पटना: बिदेशिया जैसे विश्वप्रसिद्ध नाटक रचने वाले बिहार के लोक कलाकार भिखारी ठाकुर के शिष्य रामचंद्र मांझी को इस साल बार पद्मश्री सम्मान के लिए चुना गया है. लौंडा नाच की परंपरा को नई पीढ़ी के अंदर पिरोने में उनका अहम योगदान रहा है.
प्रसिद्ध नाटककार स्वर्गीय भिखारी ठाकुर की परंपरा को जीवित रखने वाले रामचंद्र मांझी उन कलाकारों की एक आस बने है जो सूचना और प्रौद्योगिकी के इस युग में खोती जा रही विधाओं के संरक्षण में दिन रात कार्यरत हैं.
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पद्मश्री के लिए उनके नाम की घोषणा पर उन्होंने खुशी जाहिर की. मांझी ने बताया कि उनके जैसे कलाकार को सरकार ने बड़ा सम्मान दिया है. यह उनके सम्मान के साथ भिखारी ठाकुर की कला का भी सम्मान है.
''मैं जब10 साल का था, तो भिखारी ठाकुर के नाच दल में काम करना शुरू किया. भिखारी ठाकुर के साथ वर्ष 1971 तक काम किया. उनके निधन के बाद गौरीशंकर ठाकुर, रामदास राही, प्रभुनाथ ठाकुर, दिनकर ठाकुर, शत्रुघ्न ठाकुर आदि के साथ काम करता रहा. अब जैनेंद्र दोस्त की रंगमंडली में अभिनय किया करता हूं.'' - रामचंद्र मांझी, कलाकार
संगीत नाटक अकादमी अवार्ड मिल चुका है
केंद्रीय संगीत नाटक अकादमी द्वारा रामचंद्र मांझी को संगीत नाटक अकादमी अवार्ड 2017 से नवाजा जा चुका है. उन्हें राष्ट्रपति के हाथों प्रशस्ति पत्र और एक लाख रुपये की पुरस्कार राशि दी गई थी. यह अकादमी पुरस्कार 1954 से हर साल रंगमंच, नृत्य, लोक संगीत, ट्राइबल म्यूजिक सहित कई अन्य क्षेत्रों में दिया जाता है.
क्या होता है लौंडा नाच?
लौंडा नाच बिहार की प्राचीन लोक कलाओं में से एक है. यह नृत्य नाटिका की एक लोकविधा है. जैनेंद्र बताते हैं कि इसमें लड़का, लड़की की तरह कपड़े पहन कर, मेकअप कर उन्हीं की तरह नृत्य करता है. शादी विवाह और अन्य शुभ आयोजनों पर लोग अपने यहां ऐसे आयोजन कराते हैं.
भिखारी ठाकुर के शिष्य हैं रामचंद्र मांझी
फिलहाल, लोक कलाकार भिखारी ठाकुर की अमर कृतियों के बखान करने वालों में चंद लोग ही आज जीवित बचे हुए हैं. 94 वर्षीय रामचंद्र मांझी भिखारी ठाकुर के साथ काम करने वालों में से एक हैं. जिन्हें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार 2017 से सम्मानित भी किया है.