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इतिहास में पहली बार रेल के रफ्तार पर लगी ब्रेक, 'घाटे के बाद रेलवे का हो सकता है निजीकरण'

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Published : Apr 20, 2020, 2:26 PM IST

Updated : Apr 20, 2020, 6:22 PM IST

कोरोना वायरस के खतरे और लॉकडाउन के कारण इतिहास में पहली बार रेल बंदी हुआ है. ऐसे में विशेषज्ञों को निजीकरण का भय सताने लगा है.

Railway service stopped
Railway service stopped

पटना: कोरोना वायरस के कहर के कारण लॉकडाउन है. ऐसे में देश के इतिहास में पहला मौका है, जब रेल यात्रा पर पूरी तरह से पांबदी लगाई गई हो. हजारों यात्रियों को हर रोज मंजिल तक पहुंचाने वाले ट्रेन को यात्रियों का इंतजार है. लॉकडाउन के कारण रेलवे पर भी निजीकरण का खतरा मंडराने लगा है.

भारतीय रेल 167 साल की यात्रा पूरी कर चुकी है. 16 अप्रैल 1853 को मुंबई से थाने के बीच पहले ट्रेन चली थी. भारत में 90 फीसदी लोग ट्रेनों से यात्रा करते हैं. कोरोना वायरस के खतरे और लॉकडाउन के कारण इतिहास में पहली बार रेल बंदी हुआ है. देश में लॉकडाउन के बाद पहली बार रेलवे के 16 लाख से ज्यादा कर्मचारियों को घर बैठना पड़ा है.

economist DM Diwakar
डीएम दिवाकर , अर्थशास्त्री

20 हजार से ज्यादा ट्रेनों का होता है संचालन
भारत में रेल मार्गों की लंबाई 63 हजार किलोमीटर से ज्यादा बताई जाती है. भारतीय रेल हर रोज 20 हजार से ज्यादा ट्रेनों का संचालन करती हैं और लगभग हर रोज ढाई करोड़ लोग ट्रेनों से सफर करते हैं. लॉकडाउन के कारण रेलवे की रफ्तार पर ब्रेक लग गई है और ऐसे में विशेषज्ञों को निजीकरण का भय सताने लगा है.

देखें रिपोर्ट.

घाटे के बाद रेलवे का हो सकता है निजीकरण
चर्चित अर्थशास्त्री डीएम दिवाकर का कहना है कि इतिहास में पहली बार रेल बंदी हुई है. उन्होंने कहा कि इससे पहले जॉर्ज फर्नांडिस ने मजदूर यूनियन का सहारा लेकर हड़ताल करवाया था और कुछ ट्रेन सेवाएं बाधित हुई थी, लेकिन इस बार व्यापक स्तर पर रेल सेवाएं ठप है. हर रोज रेलवे को करोड़ों का नुकसान उठाना पड़ रहा है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि रेलवे घाटे की भरपाई कैसे करेगी.

डीएम दिवाकर का कहना है कि अगर सरकार पहले से ही पहल करती और समय रहते अंतरराष्ट्रीय उड़ान बंद दिया होता. तो आज की तारीख में रेलवे को बंद करने की नौबत नहीं आती. हालात ऐसे हो गए हैं कि घाटे की भरपाई के लिए सरकार ने रेलवे के निजीकरण के मार्ग को प्रशस्त कर दिया है.

पटना: कोरोना वायरस के कहर के कारण लॉकडाउन है. ऐसे में देश के इतिहास में पहला मौका है, जब रेल यात्रा पर पूरी तरह से पांबदी लगाई गई हो. हजारों यात्रियों को हर रोज मंजिल तक पहुंचाने वाले ट्रेन को यात्रियों का इंतजार है. लॉकडाउन के कारण रेलवे पर भी निजीकरण का खतरा मंडराने लगा है.

भारतीय रेल 167 साल की यात्रा पूरी कर चुकी है. 16 अप्रैल 1853 को मुंबई से थाने के बीच पहले ट्रेन चली थी. भारत में 90 फीसदी लोग ट्रेनों से यात्रा करते हैं. कोरोना वायरस के खतरे और लॉकडाउन के कारण इतिहास में पहली बार रेल बंदी हुआ है. देश में लॉकडाउन के बाद पहली बार रेलवे के 16 लाख से ज्यादा कर्मचारियों को घर बैठना पड़ा है.

economist DM Diwakar
डीएम दिवाकर , अर्थशास्त्री

20 हजार से ज्यादा ट्रेनों का होता है संचालन
भारत में रेल मार्गों की लंबाई 63 हजार किलोमीटर से ज्यादा बताई जाती है. भारतीय रेल हर रोज 20 हजार से ज्यादा ट्रेनों का संचालन करती हैं और लगभग हर रोज ढाई करोड़ लोग ट्रेनों से सफर करते हैं. लॉकडाउन के कारण रेलवे की रफ्तार पर ब्रेक लग गई है और ऐसे में विशेषज्ञों को निजीकरण का भय सताने लगा है.

देखें रिपोर्ट.

घाटे के बाद रेलवे का हो सकता है निजीकरण
चर्चित अर्थशास्त्री डीएम दिवाकर का कहना है कि इतिहास में पहली बार रेल बंदी हुई है. उन्होंने कहा कि इससे पहले जॉर्ज फर्नांडिस ने मजदूर यूनियन का सहारा लेकर हड़ताल करवाया था और कुछ ट्रेन सेवाएं बाधित हुई थी, लेकिन इस बार व्यापक स्तर पर रेल सेवाएं ठप है. हर रोज रेलवे को करोड़ों का नुकसान उठाना पड़ रहा है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि रेलवे घाटे की भरपाई कैसे करेगी.

डीएम दिवाकर का कहना है कि अगर सरकार पहले से ही पहल करती और समय रहते अंतरराष्ट्रीय उड़ान बंद दिया होता. तो आज की तारीख में रेलवे को बंद करने की नौबत नहीं आती. हालात ऐसे हो गए हैं कि घाटे की भरपाई के लिए सरकार ने रेलवे के निजीकरण के मार्ग को प्रशस्त कर दिया है.

Last Updated : Apr 20, 2020, 6:22 PM IST
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