पटना: बिहार के पटना (Patna) जिले का पुनपुन पिंडदान (Pind Daan) का प्रथम द्वार है. भगवान श्रीराम ने अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पुनपुन नदी (Punpun River) तट पर ही पिंडदान का पहला तर्पण किया था. उसके बाद गया (Gaya) के फल्गु नदी (Falgu River) तट पर जाकर पिंडदान का पूरा विधि-विधान से संपन्न किया था.
ये भी पढ़ें- कोरोना काल में इस साल भी नहीं लगेगा पितृपक्ष मेला, लेकिन कर सकेंगे पिंडदान
पुनपुन की चर्चा पुराणों में की गई है. पुनपुन नदी को आदिगंगा कहा जाता है. बताया ये भी जाता है कि भगवान श्रीराम ने अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए माता जानकी के साथ पुनपुन नदी तट पर ही आकर पहला पिंड का तर्पण किया था. भगवान श्रीराम ने इसके बाद गया के फल्गु नदी तट पर पिंडदान का पूरा विधि-विधान संपन्न किया था, इसलिए पुनपुन नदी तट को पिंडदान का प्रथम द्वार कहा जाता है.
पर्यटन विभाग ने भी पुनपुन नदी घाट को अंतरराष्ट्रीय पिंडदान स्थल के रूप में घोषित किया है और प्रत्येक साल भव्य पितृपक्ष मेले का आयोजन किया जाता है. जहां पर देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां आकर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पहले पिंड का तर्पण करते हैं, उसके बाद गया जाकर फल्गु नदी तट पर पिंडदान का पूरा विधि-विधान संपन्न कराते हैं.
ये भी पढ़ें- वाह! बासी फूलों का ऐसा उपयोग... कमाई भी और सफाई भी, अच्छी पहल है
19 सितंबर से पितृपक्ष की शुरुआत हो रही है. ऐसे में हर कोई अपने-अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए उनका पिंडदान करते हैं. ऐसे में राजधानी पटना से सटे मसौढ़ी अनुमंडल के इस पुनपुन नदी तट की काफी पौराणिक मान्यताएं हैं और इसे पिंडदान के प्रथम द्वार के रूप में जाना जाता है. जिसकी चर्चा पुराणों में कही गई है.
पुनपुन नदी को आदिगंगा भी कहा जाता है, भगवान श्रीराम यहीं पर आकर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पहला पिंड तर्पण किए थे. पुनपुन नदी के बारे में कहा जाता है कि महर्षि च्यवन जब तपस्या कर रहे थे तो उनके कमंडल से बार-बार जल गिर रहा था और उनके अनायास मुख से निकला पुनः पुनः और वहीं से एक नदी उद्गम हुई जिसका नाम पुनपुन पड़ा.