पटना: साल 1967 में बॉलीवुड की एक फिल्म आई थी नाम था तकदीर. जिसके एक गाने के बोल थे 'पापा जल्दी घर आना, गुड़िया चाहे ना लाना'. यह गाना आज के समय में भी चरितार्थ हो रहा है. जहां बच्चे अपने माता-पिता से खिलौने नहीं मांग रहे हैं बल्कि उनसे उनका थोड़ा वक्त मांग रहे (Parents Give Time To Children) हैं. दरअसल पटना के बाल भवन किलकारी में इन दिनों मूल्यवर्धन परीक्षा ली जा रही है. इस परीक्षा में लगभग 1000 बच्चे सम्मिलित हुए हैं. और इनमें अब तक 800 से अधिक बच्चों ने किलकारी के नाम पत्र लिखा है.
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किलकारी संस्था बच्चों को खुश रखने के लिए लेती है परीक्षा : मासूमों ने लेटर में लिखा है कि उनके मम्मी-पापा के पास उनके लिए समय नहीं होता है. जब भी कुछ कहने जाते हैं तो कहते हैं कि इन बातों के लिए अभी मेरे पास वक्त नहीं है. बच्चों ने पत्र में यह भी लिखा है कि उनके मम्मी-पापा हमेशा झगड़ते रहते हैं. और इससे उन्हें काफी डर लगता है. बिना गलती के भी डांट पड़ती है और रिजल्ट अच्छे होते हैं फिर भी दूसरों से तुलना करके उन्हें डांटा जाता है. बच्चों से ऐसे पत्र मिलने के बाद बाल भवन किलकारी की ओर से अभिभावकों और बच्चों की बैठक आयोजित कर अभिभावकों की काउंसलिंग की जा रही है.
राजधानी में अभिभावकों की काउंसलिंग : बाल भवन किलकारी की डायरेक्टर ज्योति परिहार ने बताया कि हर बच्चे अपने आप में अलग होते हैं. और हर बच्चे में एक अलग प्रतिभा होती है. ऐसे में किसी बच्चे का मूल्यांकन किया जाना संभव नहीं है. इसलिए मूल्यवर्धन परीक्षा किलकारी की ओर से ली जा रही है. बच्चों से किलकारी परिसर के अनुभव को साझा करने को कहा गया है और इसके लिए उन्हें किलकारी के नाम से पत्र लिखने को कहा गया है. जिसमें बच्चों ने खुलकर लिखा है. और ज्यादातर बच्चों ने अपने घर के माहौल के बारे में लिखा है.
'ज्यादातर बच्चे जो उनके पास आते हैं, वह मिडिल क्लास फैमिली के होते हैं. जहां परिवार में माता और पिता दोनों गृहस्थी चलाने के लिए नौकरी करते हैं. ऐसे माता-पिता को अपने बच्चों के लिए अधिक समय नहीं मिल पाता है. काउंसलिंग के क्रम में पता चलता है कि बच्चों के स्कूल फीस भी समय पर जमा हो बच्चे को उचित पोषण आहार मिले, इसके लिए माता-पिता दोनों का कमाना जरूरी है. माता और पिता दोनों में किसी एक की सैलरी इतनी अधिक नहीं है कि कोई काम छोड़ दे तो घर आसानी से चल सके.' - ज्योति परिहार, डायरेक्टर, बाल भवन
'बच्चों के पालन-पोषण पर दें ध्यान' : बाल भवन किलकारी की डायरेक्टर ज्योति परिहार ने बताया कि ऐसे में माता-पिता के पास मजबूरी है कि वो बच्चों को समय नहीं दे पाते. ज्योति परिहार ने कहा कि इसके बावजूद वो सभी माता-पिता को समझा रहीं हैं कि नौकरी के बाद जो भी समय मिले, कुछ समय बच्चों के लिए निकालें और इस समय बच्चों से प्यार से बातें करें, बच्चों की छोटी-मोटी गलतियों को नजरअंदाज करें. ऑफिस के तनाव को बच्चों के ऊपर ना निकाले. बच्चों को प्रोत्साहित करते रहें और प्यार से उन्हें बताएं कि वो हर समय उनके साथ हैं. इसके अलावा वो लोग अभिभावकों को समझाती हैं कि घर में क्लेश का वातावरण नहीं रखें.
'बच्चों को समय दें' : पटना एम्स में मनोरोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ पंकज कुमार ने बताया कि इन दिनों जो लाइफस्टाइल हो गई है, उसमें अभिभावक सोशल मीडिया और मोबाइल और अन्य कार्यो में अधिक व्यस्त रह रहे हैं. घर में होते हुए भी बच्चों को समय नहीं दे पा (Psychiatrist Advises Parents To Give Time To Children) रहे. ऐसे लोगों को शिकायत रहती है कि उनके पास वक्त नहीं है. लेकिन सभी के लिए दिन में 24 घंटे का ही समय है. और इसी में उन्हें अपने बच्चों के लिए समय निकालना होगा. बच्चों को माता-पिता के साथ में समय बिताना से उनके मानसिक स्वास्थ्य और मानसिक विकास के लिए बेहद जरूरी है.
'आज के समय जिस प्रकार हम भौतिकता की चीजों में लिप्त हो रहे हैं और जीवन की आपाधापी में लगे रह रहे हैं. इसका प्रतिकूल असर नेक्स्ट जेनरेशन पर देखने को मिल रहा है. जो युवा पीढ़ी हैं, उन पर देखने को मिल रहा है. माता-पिता अगर कुछ समय बैठकर अपने बच्चे के साथ समय नहीं बिताएंगे तो इसका प्रतिकूल असर बच्चों के मानसिक बौद्धिक और व्यक्तित्व के विकास पर पड़ता है. माता-पिता से उचित साथ और समय नहीं मिल पाने के कारण बच्चों में हिंसा की भावना पैदा होती है. नशे की प्रवृत्ति जागृत होती है, कुंठा की भावना पैदा होती है. इसके साथ ही बच्चों में डिप्रेशन और सुसाइडल इंसीडेंस के मामले बढ़ रहे हैं.' - डॉ पंकज कुमार, मनोरोग विभाग के अध्यक्ष, पटना एम्स
'बच्चों से प्यार करें' : पटना एम्स में मनोरोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ पंकज कुमार ने ये भी बताया कि यह तमाम तरह की मानसिक विकृतियां और इन विकृतियों से उत्पन्न व्यवहार आज के समय में हमारे समाज में परिलक्षित हो रही हैं. इसके मूल कारण में जाएंगे तो बचपन से बच्चों के मन में घर के वातावरण का जो असर पड़ता है, वह उनके मन पर एक गहरा छाप छोड़ता है. यही छाप बच्चे के आगे के व्यक्तित्व और विचारों के विकास में दिशा देता है. डॉ पंकज कुमार ने कहा कि वह आज के अभिभावकों से अपील करेंगे कि समय सभी के पास 24 घंटे हैं ऐसे में इसी में से कुछ समय अपने बच्चे के लिए निकालें और बच्चों के साथ कुछ समय बैठे उनसे बातें करें.