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किसानों के समर्थन में भारतीय किसान महासभा और भाकपा माले का प्रदर्शन, 'काला कानून' वापस लेने की मांग - protest of cpi ml

प्रदर्शन का नेतृत्व माले के प्रदेश सचिव उमेश प्रसाद ने केंद्र सरकार की खिंचाई करते हुए कहा कि नरेंद्र मोदी ने कोरोना की आड़ में सार्वजिक संस्थान को बेच दिया. अब लोकतांत्रिक तरीके से तीन काला कानून को सदन में पास करवा लिया, जिससे देश भर के किसान एकजुट होकर दिल्ली कूच कर प्रदर्शन कर रहे है.

protest of Kisan Mahasabha
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Published : Dec 7, 2020, 9:52 AM IST

पटना: आज किसान आंदोलन का 12वां दिन है. केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर किसान डटे हुए हैं. वहीं, राजधानी पटना में भी किसानों का आंदोलन जारी है. इसी कड़ी में भारतीय किसान महासभा और भाकपा माले की ओर से पटनासिटी चौक स्तिथ शहीद भगत सिंह चौक और अशोक राजपथ पर घण्टो चक्का जाम कर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया गया.

कानून को वापस लेने की मांग
प्रदर्शन का नेतृत्व माले के प्रदेश सचिव उमेश प्रसाद ने केंद्र सरकार की खिंचाई करते हुए कहा कि नरेंद्र मोदी ने कोरोना की आड़ में सार्वजिक संस्थान को बेच दिया. अब लोकतांत्रिक तरीके से तीन काला कानून को सदन में पास करवा लिया, जिससे देश भर के किसान एकजुट होकर दिल्ली कूच कर प्रदर्शन कर रहे है. साथ ही किसानों ने तीन कानून को वापस लेने की मांग की.

प्रदर्शन करते भाकपा माले के कार्यकर्ता
प्रदर्शन करते भाकपा माले के कार्यकर्ता

जानें क्या है संसद से पास 3 नए कानून:

1. 'कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य कानून 2020': इसमें सरकार कह रही है कि वह किसानों की उपज को बेचने के लिए विकल्प को बढ़ाना चाहती है. किसान इस कानून के जरिये अब एपीएमसी मंडियों के बाहर भी अपनी उपज को ऊंचे दामों पर बेच पाएंगे. साथ ही निजी खरीदारों को भी बेहतर दाम मिल पाएंगे. लेकिन, सरकार ने इस कानून के जरिये एपीएमसी मंडियों को एक सीमा में बांध दिया है. इसके जरिये बड़े कॉरपोरेट खरीदारों को खुली छूट दी गई है. बिना किसी पंजीकरण और बिना किसी कानून के दायरे में आए हुए वे किसानों की उपज खरीद-बेच सकते है.

प्रदर्शन करते लोग
प्रदर्शन करते लोग

2. 'कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत अश्वासन और कृषि सेवा करार कानून, 2020'': इस कानून के संदर्भ में सरकार का कहना है कि वह किसानों और निजी कंपनियों के बीच में समझौते वाली खेती का रास्ता खोल रही है. इसे सामान्य भाषा में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कहते है. आप की जमीन को एक निश्चित राशि पर एक पूंजीपति या ठेकेदार को किराये पर दे सकते है और वो हिसाब से फसल का उत्पादन कर बाजार में बेचेगा. हलांकि देश के कुछ किसान कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग चाहते हैं.

3. 'आवश्यक वस्तु संशोधन कानून, 2020': किसानों का कहना है कि यह कानून सिर्फ किसानों के लिए बल्कि आम जन के लिए भी खतरनाक है. अब कृषि उपज जुटाने की कोई सीमा नहीं होगी. उपज जमा करने के लिए निजी निवेश को छूट होगी. सरकार को पता नहीं चलेगा कि किसके पास कितना स्टॉक है और कहां है? खुली छूट. यह तो जमाखोरी और कालाबाजारी को कानूनी मान्यता देने जैसा है.

देखें रिपोर्ट...

'पैक्स नहीं खरीद रहा धान'
बता दें कि सरकार 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का वादा कर चुकी है. यह देश के लगभाग 14 करोड़ से अधिक कृषि परिवारों का सवाल है. जानकारों का कहना है कि अधिक संख्या में किसान एमएसपी का लाभ नहीं उठा पाते हैं. इस कारण किसान बाजार और बिचौलियों पर ही निर्भर रहते हैं. उदाहरण के लिए अभी बिहार में सरकार की ओर से धान खरीद की कीमत तो तय कर दी गई है. लेकिन अभी तक पैक्स की ओर से धान की खरीद शुरु नहीं हुई है. चुंकी धान कच्चा फसल होता और उसे ज्यादा दिन तक भंडारण भी नहीं कर सकते है. इस कारण किसान उसे औने-पौने दाम पर बेचने को मजबूर है.

किसानों को कितना फायदा हुआ?
सरकार का कहना है कि निजी क्षेत्र के आने से किसानों को लंबे समय में फायदा होगा. लेकिन बिहार में सरकारी मंडी व्यवस्था तो 2006 में ही खत्म हो गई थी. 14 वर्ष बीत गए. अब जवाब है कि वहां इतने दिनों में किसानों की क्या हुआ? वहां के किसानों को क्यों आज औने-पौने धाम पर फसल बेचनी पड़ रही है? अगर वहां इसके बाद कृषि क्रांति आ गई थी तो मजदूरों के पलायन क्यों कर रहे है? ऐसे कई सवाल हैं, लेकिन जबाव नहीं. बता दें कि बिहार में 60 प्रतिशत लोगों के पास अपनी जमीन नहीं है. ऐसे में वहां दूसरे के जमीन में खेती कर रहे किसानों का क्या होगा?. इन्हीं सब समस्याओं को लेकर देश के किसान आज सड़कों पर है. विशेषज्ञयों का कहना कि ये काननू किसानों के हित में नहीं है और सरकार को इस कानून को वापस ले लेना चाहिए.

पटना: आज किसान आंदोलन का 12वां दिन है. केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर किसान डटे हुए हैं. वहीं, राजधानी पटना में भी किसानों का आंदोलन जारी है. इसी कड़ी में भारतीय किसान महासभा और भाकपा माले की ओर से पटनासिटी चौक स्तिथ शहीद भगत सिंह चौक और अशोक राजपथ पर घण्टो चक्का जाम कर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया गया.

कानून को वापस लेने की मांग
प्रदर्शन का नेतृत्व माले के प्रदेश सचिव उमेश प्रसाद ने केंद्र सरकार की खिंचाई करते हुए कहा कि नरेंद्र मोदी ने कोरोना की आड़ में सार्वजिक संस्थान को बेच दिया. अब लोकतांत्रिक तरीके से तीन काला कानून को सदन में पास करवा लिया, जिससे देश भर के किसान एकजुट होकर दिल्ली कूच कर प्रदर्शन कर रहे है. साथ ही किसानों ने तीन कानून को वापस लेने की मांग की.

प्रदर्शन करते भाकपा माले के कार्यकर्ता
प्रदर्शन करते भाकपा माले के कार्यकर्ता

जानें क्या है संसद से पास 3 नए कानून:

1. 'कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य कानून 2020': इसमें सरकार कह रही है कि वह किसानों की उपज को बेचने के लिए विकल्प को बढ़ाना चाहती है. किसान इस कानून के जरिये अब एपीएमसी मंडियों के बाहर भी अपनी उपज को ऊंचे दामों पर बेच पाएंगे. साथ ही निजी खरीदारों को भी बेहतर दाम मिल पाएंगे. लेकिन, सरकार ने इस कानून के जरिये एपीएमसी मंडियों को एक सीमा में बांध दिया है. इसके जरिये बड़े कॉरपोरेट खरीदारों को खुली छूट दी गई है. बिना किसी पंजीकरण और बिना किसी कानून के दायरे में आए हुए वे किसानों की उपज खरीद-बेच सकते है.

प्रदर्शन करते लोग
प्रदर्शन करते लोग

2. 'कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत अश्वासन और कृषि सेवा करार कानून, 2020'': इस कानून के संदर्भ में सरकार का कहना है कि वह किसानों और निजी कंपनियों के बीच में समझौते वाली खेती का रास्ता खोल रही है. इसे सामान्य भाषा में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कहते है. आप की जमीन को एक निश्चित राशि पर एक पूंजीपति या ठेकेदार को किराये पर दे सकते है और वो हिसाब से फसल का उत्पादन कर बाजार में बेचेगा. हलांकि देश के कुछ किसान कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग चाहते हैं.

3. 'आवश्यक वस्तु संशोधन कानून, 2020': किसानों का कहना है कि यह कानून सिर्फ किसानों के लिए बल्कि आम जन के लिए भी खतरनाक है. अब कृषि उपज जुटाने की कोई सीमा नहीं होगी. उपज जमा करने के लिए निजी निवेश को छूट होगी. सरकार को पता नहीं चलेगा कि किसके पास कितना स्टॉक है और कहां है? खुली छूट. यह तो जमाखोरी और कालाबाजारी को कानूनी मान्यता देने जैसा है.

देखें रिपोर्ट...

'पैक्स नहीं खरीद रहा धान'
बता दें कि सरकार 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का वादा कर चुकी है. यह देश के लगभाग 14 करोड़ से अधिक कृषि परिवारों का सवाल है. जानकारों का कहना है कि अधिक संख्या में किसान एमएसपी का लाभ नहीं उठा पाते हैं. इस कारण किसान बाजार और बिचौलियों पर ही निर्भर रहते हैं. उदाहरण के लिए अभी बिहार में सरकार की ओर से धान खरीद की कीमत तो तय कर दी गई है. लेकिन अभी तक पैक्स की ओर से धान की खरीद शुरु नहीं हुई है. चुंकी धान कच्चा फसल होता और उसे ज्यादा दिन तक भंडारण भी नहीं कर सकते है. इस कारण किसान उसे औने-पौने दाम पर बेचने को मजबूर है.

किसानों को कितना फायदा हुआ?
सरकार का कहना है कि निजी क्षेत्र के आने से किसानों को लंबे समय में फायदा होगा. लेकिन बिहार में सरकारी मंडी व्यवस्था तो 2006 में ही खत्म हो गई थी. 14 वर्ष बीत गए. अब जवाब है कि वहां इतने दिनों में किसानों की क्या हुआ? वहां के किसानों को क्यों आज औने-पौने धाम पर फसल बेचनी पड़ रही है? अगर वहां इसके बाद कृषि क्रांति आ गई थी तो मजदूरों के पलायन क्यों कर रहे है? ऐसे कई सवाल हैं, लेकिन जबाव नहीं. बता दें कि बिहार में 60 प्रतिशत लोगों के पास अपनी जमीन नहीं है. ऐसे में वहां दूसरे के जमीन में खेती कर रहे किसानों का क्या होगा?. इन्हीं सब समस्याओं को लेकर देश के किसान आज सड़कों पर है. विशेषज्ञयों का कहना कि ये काननू किसानों के हित में नहीं है और सरकार को इस कानून को वापस ले लेना चाहिए.

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