पटना: आपदा में अवसर की तलाश की एक बानगी भर देखनी हो तो एक बार राजधानी के प्राइवेट अस्पतालों के चक्कर लगा आईये. मरीजों के तीमारदारों से इलाज कराने के नाम पर वहां रोजाना लूट मची है. कोरोना महामारी ने जहां सरकारी स्वास्थ्य ढ़ांचे की पोल को खोल दी है. तो वहीं, इस मुश्किल घड़ी में निजी अस्पतालों का भी नंगा सच सबके सामने आ गया है. जहां मरीज मरता है तो मरने दो, जान जाती है तो जाये लेकिन अस्पताल में मरीज भर्ती का रेट रत्ती भर कम नहीं होगा. मानव सेवा कहलाने वाला यह धर्म अब बस जेब भरने का कर्म बनकर रह गया है.
यह हकीकत ईटीवी भारत के पड़ताल में सामने आया है. ईटीवी भारत संवाददाता ने मरीज का तीमारदार बन निजी अस्पतालों की ग्राउंड रियलिटी चेक की. रियालटी चेक में यह बात खुलकर सामने आ गई कि राज्य सरकार द्वारा कोरोना इलाज के लिए तय किये गये रेट देखने, सुनने और पढ़ने में तो गरीबों के हित में लगते हैं. मानों जैसे समाजवाद की पौध से निकला एक मुख्यमंत्री सचमुच में गरीबों के हित में सोच कर यह आदेश दिया हो, लेकिन उसे मनवाने के लिए उसका पूरा महकमा सोया हुआ है. राजधानी में निजी अस्पतालों का यह खुला खेल, प्रशासन के उदासीन रवैये की पोल खोलता है.
अपने पड़ताल में निकले ईटीवी संवाददाता सबसे कंकड़बाग थाना क्षेत्र के मेडिजोन अस्पताल पहुंचे. संवाददाता ने रिसेप्शन पर काउंटर पर पहुंचते के साथ कहा कि मैडम मेरा मरीज पीएमसीएच में भर्ती है. वहां इलाज अच्छा नहीं है. सोच रहे है यहीं भर्ती करवा दें. मरीज को भर्ती करने से पहले ही अपनी जान छुड़ाने के लिए अस्पताल प्रबंधक ये सवाल पूछता है.
महिला स्वास्थ्य कर्मी: ऑक्सिजन लेवल कितना है जी मरीज का.
संवाददाता: ऑक्सीजन लेवल 82-83 पहुंच चुका है.
इतना सुनते ही रिसेप्शन पर खड़ी महिला ने अस्पताल में कार्यरत किसी अभय नाम के व्यक्ति को फोन लगाया. जबकि उनके सामने अस्पताल में भर्ती किये जाने वाले मरीजों का रजिस्टर मौजूद था. फोन पर बात करने के बाद महिला ने पहले तो मरीज को लेने से साफ इंकार कर दिया. फिर कुछ देर के मानमनोव्वल के बाद कहा, "लेकिन हम साफ बोल देते हैं बायपास हम नहीं दे पायेंगे". इसके बाद जब ईटीवी संवाददाता इस बात पर राजी हो गये. फिर रुपये की बात की.
संवाददाता- मरीज को भर्ती करने में कितना रुपया लगेगा मैडम
महिला स्वास्थ्य कर्मी- देखिये मरीज को आप ले आइये और 30 हजार जमा कीजिए. 15 हजार रुपये डेली. जांच का पैसा अलग से और ऑक्सीजन का अलग से.
जब हमारे संवाददाता ने कहा कि हम लोग गरीब आदमी हैं. इतना रुपये नहीं दे पायेंगे. थोड़ा कम कर दीजिये. तो सामने से महिला ने तमतमाते हुए कहा,'पहले तो 50 हजार रुपये लगता था अब तो थोड़ा कम भी हुआ है. जल्दी लेकर आइये. मरीज भी और पैसा भी'.
यह हाल राजधानी के सिर्फ एक अस्पताल का नहीं है. ईटीवी संवाददाता जब राजधानी के पत्रकार नगर थाना क्षेत्र के बाइपास स्थित ईश्वर दयाल मेमोरियल हॉस्पिटल पहुंचे. तो वहां भर्ती प्रक्रिया का फॉर्मेट बिलकुल हूबहू एक जैसा था.
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संवाददाता: कोरोना मरीज को भर्ती करना है.
रिशेप्सन पर खड़ी महिला स्वास्थ्य कर्मी का जबाव- 50 हजार रुपये लगेगा, वेंटिलेटर का चार्ज अलग से, लैब और मेडिसिन का चार्ज अलग से.
महिला से बातचीत के दौरान ईटीवी भारत संवाददाता के बगल में खड़े अस्पताल में भर्ती एक मरीज के परिजन ने कहा, 'बहुत पैसा लगता है भइया'. मरीज के तीमारदार ने बताया कि वह अपने किसी बुजुर्ग को भर्ती कराने आये हैं.
वहीं, उन्होंने कहा कि, 'हर दो से तीन घंटे में काउंटर पर पैसा जमा करना पड़ रहा है. बेटा गया है. उसके पास ही बिल है. मरीज की हालत ठीक है कि नहीं, यह भी पता करना मुश्किल हो जाता है. मेरा बेटा अभी कहीं गया हुआ है, अगर वह रहता तो बताता कितना पैसा लग गया है'.
बता दें कि सरकार ने कोरोना इलाज के लिए अलग-अलग श्रेणियों में रेट तय किये हैं. राजधानी पटना में मान्यता प्राप्त प्राइवेट अस्पतालों के आइसोलेशन वार्ड में भर्ती मरीजों के लिए प्रतिदिन अधिकतम 10 हजार रुपये, आईसीयू में भर्ती मरीजों के लिए 15000 रुपये और आईसीयू में वेंटिलेटर के साथ भर्ती मरीजों के लिए अधिकतम 18 हजार रुपये की सीमा तय की है.
वहीं, गैर मान्यता प्राप्त प्राइवेट अस्पतालों में आइसोलेशन वार्ड में भर्ती मरीजों को अधिकतम 8 हजार रुपये प्रतिदिन का भुगतान तय किया गया था. आईसीयू में 13 हजार, आईसीयू विथ वेंटिलेटर 15000 रुपये प्रतिदिन तय किया था. इसमें पीपीई किट भी शामिल है.
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