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पटना: कुम्हारों के चमकती दीपावली पर चाइनीज लाइटों का ग्रहण, पुश्तैनी धंधा छोड़ने पर विवश

सनातन धर्म में मिट्टी के दीये बनाने की परंपरा को जीवंत रखने वाले कुम्हार जाति आज चाइनीज लाइट के धड़ल्ले से बिक्री के वजह से मिट्टी के दिये नहीं बेच पा रहे हैं. इस कारण इनके बच्चे पुश्तैनी धंधा से मुंह मोड़ने लगे हैं.

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Published : Nov 14, 2020, 4:05 PM IST

Updated : Nov 14, 2020, 6:51 PM IST

पटना(बाढ़): एक तरफ पूरे देशभर में दिवाली की धूम है, तो वहीं दूसरी तरफ कुम्हारों के दीपक से दमकती दीपावली पर चाइनीज लाइटों का ग्रहण लग गया है. दीपावली से दो-तीन महीने पहले जिन कुम्हारों को दम भरने की फुरसत नहीं मिलती थी. लेकिन अब धीमी चाक पर कुम्हारों की जिंदगी रेंगती नजर आ रही है.

बाढ़ अनुमंडल के कुम्हारों का कहना है कि पहले व्यवसाय चाइनीज झालरों के कारण ठप्प हो गया था. अब चाइनीज महामारी कोविड़-19 ने पूरी दुनिया को अपने चंगुल में दबोच रखा है. भले ही लॉकडाउन खुल गया है. लेकिन बाजार में खरीददारों के अभाव के बाद उनका धंधा पूरी तरह चौपट हो गया है.

देखें रिपोर्ट.

सनातन धर्म में मिट्टी के दीये बनाने की परंपरा को जीवंत रखने वाले कुम्हार जाति आज चाइनीज लाइट के धड़ल्ले से बिक्री के वजह से मिट्टी के दिये नहीं बेच पा रहे हैं. इस कारण इनके बच्चे पुश्तैनी धंधा से मुंह मोड़ने लगे हैं.

पुश्तैनी धंधे आधुनिकता का ग्रहण
दिवाली के त्यौहार के लिए दिए बनाने का कार्य 2 महीने पहले से शुरू हो जाता है. इसके लिए पूरे परिवार मिलकर दिया बनाने में लग जाते हैं. लेकिन बाजार में घटते मिट्टी के दीए की डिमांड से विवश होकर अब अपने पुश्तैनी धंधे को छोड़ने के लिए मजबूर हैं.

पटना(बाढ़): एक तरफ पूरे देशभर में दिवाली की धूम है, तो वहीं दूसरी तरफ कुम्हारों के दीपक से दमकती दीपावली पर चाइनीज लाइटों का ग्रहण लग गया है. दीपावली से दो-तीन महीने पहले जिन कुम्हारों को दम भरने की फुरसत नहीं मिलती थी. लेकिन अब धीमी चाक पर कुम्हारों की जिंदगी रेंगती नजर आ रही है.

बाढ़ अनुमंडल के कुम्हारों का कहना है कि पहले व्यवसाय चाइनीज झालरों के कारण ठप्प हो गया था. अब चाइनीज महामारी कोविड़-19 ने पूरी दुनिया को अपने चंगुल में दबोच रखा है. भले ही लॉकडाउन खुल गया है. लेकिन बाजार में खरीददारों के अभाव के बाद उनका धंधा पूरी तरह चौपट हो गया है.

देखें रिपोर्ट.

सनातन धर्म में मिट्टी के दीये बनाने की परंपरा को जीवंत रखने वाले कुम्हार जाति आज चाइनीज लाइट के धड़ल्ले से बिक्री के वजह से मिट्टी के दिये नहीं बेच पा रहे हैं. इस कारण इनके बच्चे पुश्तैनी धंधा से मुंह मोड़ने लगे हैं.

पुश्तैनी धंधे आधुनिकता का ग्रहण
दिवाली के त्यौहार के लिए दिए बनाने का कार्य 2 महीने पहले से शुरू हो जाता है. इसके लिए पूरे परिवार मिलकर दिया बनाने में लग जाते हैं. लेकिन बाजार में घटते मिट्टी के दीए की डिमांड से विवश होकर अब अपने पुश्तैनी धंधे को छोड़ने के लिए मजबूर हैं.

Last Updated : Nov 14, 2020, 6:51 PM IST
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