पटना: कोरोना की वजह से लागू लॉकडाउन (Lockdown) के कारण सभी तरह के उद्योग व व्यापार पर बुरा असर दिखा. हालांकि अब अनलॉक ( Unlock ) लागू होने के बाद धीरे-धीरे सभी व्यवसाय अपने रफ्तार में आने लगे हैं. लेकिन कुछ ऐसे भी व्यवसाय हैं, जिनकी रफ्तार आज भी धीमी है.
दरअसल, हम बात कर रहे हैं राजधानी पटना में चाक चलाकर अपनी जिंदगी गुजारने वाले कुम्हारों ( Potter Community ) की. अनलॉक के बावजूद इस धंधे से जुड़े लोगों का हाल बुरा है. हालात ऐसे हैं कि चाक का पहिया कब रुक जाए, इन्हें इसकी जानकारी नहीं है.
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मिट्टी के बर्तन की नहीं हो रही बिक्री
इसी तरह का हाल राजधानी पटना के बांसघाट इलाकों में रहनेवालों कुम्हारों का है. उनके आंखों से लगातार आंसू उभर रहे हैं. मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हारों ने बताया कि सरकार ने व्यावसायिक गतिविधियों में छूट तो जरूर दी है लेकिन हमारा धंधा पहले की तरह ठप पड़ा है.
'संक्रमण काल से पहले रोजाना 4 से 5 हजार हजार रुपये मिट्टी के बर्तनों की बिक्री हो जाती थी, लेकिन आज के हालात में मुश्किल से 100 से 200 रुपये के भी मिट्टी के बर्तन या कुल्हड़ बेचना मुश्किल हो गया है.' : - मनोज, कुम्हार
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परिवार का पेट भरना मुश्किल
बांस घाट के कुम्हार राजेंद्र ने बताया कि पूरी उम्र इस धंधे में गुजर गई. आज तक अपने व्यवसाय की ऐसी स्थिति नहीं देखी. सबसे पहले मिट्टी के बर्तन बनाने की शुरुआत की और धीरे-धीरे हालात और परिस्थिति को देखते हुए मिट्टी के चाय के कुल्हड़, खपड़ा, हड़िया बनाना शुरू कर दिया. इतना सबकुछ करने के बावजूद परिवार का पेट नहीं भर पाया.
'मिट्टी के इस धंधे से कोई अपने परिवार का पेट नहीं भर सकता और आज के हालात में परिवार को पेट भर भोजन मिल जाए यह भी काफी है. आज अनलॉक के बाद मिले व्यावसायिक छूट के बाद भी मिट्टी के बर्तनों की बिक्री कम हो गई है. :- राजेन्द्र, कुम्हार
सरकारी मदद का इंतजार
कोरोना के दूसरी लहर के कारण लॉकडाउन लागू रहा. इस कारण सामान्य जीवन पर काफी बुरा असर पड़ा. अनलॉक के बाद भी उनके जीवन और रोजगार पर कोरोना का प्रभाव जारी है. इस परिस्थिति में इन कुम्हारों को किसी भी तरह की मदद प्रशासनिक स्तर पर नहीं मिली है. मदद की दरकार में मिट्टी के कारीगर अभी भी इंतजार में हैं.