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Bihar Politics: बिहार की राजनीति का एपिक सेंटर बना 'सीमांचल', तीसरे मोर्चे पर सबकी नजर

पटना: बिहार की राजधानी भले ही पटना है, लेकिन आने वाले चुनाव में सीमांचल सभी दलों के लिए अहम (political turmoil in seemanchal) हो गया है. यहां बीजेपी की रैली और दौरों के बाद अब महागठबंधन के सभी दल सीमांचल में एक बड़ी आम सभा करने की तैयारी में है. वहीं दूसरी तरफ एआईएमआईएम का कहना है कि महागठबंधन भले ही वहां तैयारी कर ले, लेकिन जब तक विकास की रोशनी सिर्फ पटना में रहेगी और सीमांचल उससे उपेक्षित रहेगा, तो आमसभाओं का कोई निष्कर्ष नहीं निकल सकता. पढ़ें पूरी खबर..

सीमांचल की राजनीति
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Published : Feb 10, 2023, 11:58 PM IST

Updated : Feb 11, 2023, 6:49 AM IST

सीमांचल में सियासी घमासान

पटना: बिहार की राजधानी भले ही पटना है, लेकिन आने वाले चुनाव में सीमांचल सभी दलों के लिए अहम हो गया है. यहां बीजेपी की रैली और दौरों के बाद अब महागठबंधन के सभी दल सीमांचल में एक बड़ी आम सभा करने की तैयारी (Mahagathbandhan rally in Seemanchal ) में है. वहीं दूसरी तरफ एआईएमआईएम का कहना है कि महागठबंधन भले ही वहां तैयारी कर ले, लेकिन जब तक विकास की रोशनी सिर्फ पटना में रहेगी और सीमांचल उससे उपेक्षित रहेगा, तो आम सभाओं का कोई निष्कर्ष नहीं निकल सकता.

ये भी पढ़ेंः Bihar Politics: आमने-सामने के मूड में महागठबंधन व भाजपा, दोनों ने सीमांचल को बनाया बैटलग्राउंड

राजनीति का एपिक सेंटर बनता जा रहा सीमांचलः विधानसभा चुनाव में भले ही अभी देरी है, लेकिन सीमांचल का इलाका राजनीति का एपिक सेंटर बनने जा रहा है. सीमांचल देश की मानचित्र पर अपनी अलग पहचान रखता है. मुस्लिम बाहुल्य इस क्षेत्र में अगर किसी पार्टी की पकड़ मजबूत हो जाए तो वह बिहार सहित केंद्र की सत्ता में भी अपनी पकड़ को मजबूत करने में सक्षम होता है. इस इलाके का भौगोलिक परिप्रेक्ष्य जातीय सहित अन्य मसलों पर एकदम अलग है.

बीजेपी ने की तैयारी: बीजेपी भी इस बात को जानती है और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शायद इसी अहमियत को देखते हुए पिछले साल सीमांचल में अपने मास्टर स्ट्रोक की तैयारी की थी. खुद अमित शाह सीमांचल के दौरे पर गए. बीजेपी के आला नेता सीमांचल के प्रमंडल से लेकर पंचायत स्तर के संगठन को सिंचने में जुटे हुए हैं. गौर करने वाली बात है कि बिहार में एनडीए सरकार से अलग होते ही सीमांचल के जिलों में बीजेपी के बड़े नेताओं का दौरा शुरू हुआ और यह हर तरफ चर्चा का विषय बन गया.

अब महागठबंधन की तैयारी: बीजेपी के बड़े नेताओं में शुमार होने वाले केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय सीमांचल का दौरा कर चुके हैं. इसके अलावा केंद्रीय गृह मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति भी सीमांचल का दौरा कर चुकी है. सीमांचल में बीजेपी की रैली भी हो चुकी है. बीजेपी की तैयारी के बाद अब महागठबंधन भी सीमांचल को लेकर गंभीर है. महागठबंधन पूर्णिया में आगामी 25 फरवरी को एक बड़ी आम सभा करने की तैयारी में है. इसके लिए राजद के प्रदेश कार्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके इसकी जानकारी दी गई.

महागठबंधन की आम सभा में नीतीश और तेजस्वी दोनों रहेंगेः इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में महागठबंधन के तमाम दलों के बड़े नेता उपस्थित थे. खास बात यह कि पूर्णिया की आम सभा में सीएम नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव भी उपस्थित रहेंगे अब बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर सीमांचल राज्य की राजनीति में इतना अहम क्यों हो गया कि हर पार्टी की नजर सीमांचल पर टिकी हुई है. दरअसल सीमांचल में एक खास बात यह है कि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी आईएमआईएम ने पिछले विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन किया था और पांच विधानसभा सीटों पर अपनी इस जीत हासिल की थी.

एआईएमआईएम की उपस्थिति मजबूतः सीमांचल में पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज, अररिया, सुपौल जैसे जिले आते हैं. इनमें कुल 24 विधानसभा सीटें आती है और इस इलाके में ज्यादातर पिछड़ी जाति के लोग आते हैं. हालांकि, इसमें 47% आबादी मुसलमानों की है. इस लिहाज से इस इलाके में मुस्लिम वोट काफी अहम माने जाते हैं. ओवैसी ने पिछले विधानसभा चुनाव में सीमांचल के इन्हीं इलाकों में अपने ज्यादातर प्रत्याशी को भी उतारा था.

ओवैसी महागठबंधन के लिए कड़ी चुनौतीः पिछले विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने 20 उम्मीदवारों को मौका दिया था. इनमें से 14 मुस्लिम बहुल सीमांचल क्षेत्र से थे. बाकी सीटें मिथिलांचल की थी. ओवैसी की पार्टी को अमौर, कोचाधामन, जोकीहाट, बायसी और बहादुरगंज सीट पर जीत मिली. यह सारे के सारे सीमांचल से ताल्लुक रखते हैं. मुस्लिम जनसंख्या के लिहाज से देखा जाए तो किशनगंज में करीब 70% आबादी मुसलमानों की है. अररिया में 42 और कटिहार में करीब 38% मुसलमान हैं. सीमांचल का यह क्षेत्र में महागठबंधन के लिए बहुत अहम है. सीमांचल के लोगों ने पिछले विधानसभा चुनाव में ओवैसी को चुनकर महागठबंधन के लिए बड़ी चुनौती पेश कर दी थी.

महागठबंधन के दलों को ही मिला था झटका: पिछले विधानसभा चुनाव में अपनी उपस्थिति के दौरान ओवैसी की पार्टी ने बीजेपी को कोई खास झटका तो नहीं दिया था, लेकिन उसने महागठबंधन में शामिल दलों को जरूर झटका दिया था. इन 5 सीटों पर ओवैसी की पार्टी को जीत मिली थी, उसमें अमौर और बहादुरगंज की सीट उसने कांग्रेस से छीनी थी. जबकि बायसी में ओवैसी की पार्टी ने आरजेडी को हराया था. वहीं जोकीहाट और कोचाधामन सीट को ओवैसी की पार्टी ने जदयू से छीना था. इन सारे समीकरण को ही देखते हुए महागठबंधन के दल सीमांचल में अपनी उपस्थिति को मजबूत कर रहे हैं.

नहीं है कोई ओवैसी फैक्टरः सीमांचल में ओवैसी फैक्टर है या नहीं, इस पर सत्तारूढ़ राजद के नेता बात तो करते हैं लेकिन स्पष्ट जवाब नहीं दे पाते हैं. राजद के राज्य प्रधान महासचिव और भूमि सुधार विभाग के मंत्री आलोक कुमार मेहता कहते हैं कि हमारे सभी नेताओं ने बहुत सारी चीजों का जिक्र किया. समझ में नहीं आता कि मीडिया ओवैसी पर क्यों अटक गई है? ओवैसी की पार्टी है. वह भी अपना काम कर रही है. इसमें कहीं कोई बात नहीं है.

"हम बिहार की जनता को जागृत रखे रहना चाहते हैं. ताकि चुनाव तक कहीं कोई दुर्भावना फैलाने वाली शक्तियां आकर उसे प्रभावित न कर सके. विधानसभा चुनाव की समीक्षा हो गई और ओवैसी की पार्टी के कई विधायक हमारी पार्टी के साथ हैं. यहां कोई और फैक्टर नहीं है। यह दो ही फैक्टर है इस पार या उस पार. सारी बातें चल रही हैं" - आलोक कुमार मेहता, भूमि सुधार मंत्री, बिहार सरकार

बीजेपी और राजद को जवाब देने की जरूरत नहींः एक तरफ बीजेपी और दूसरी तरफ महागठबंधन, दोनों की ही सीमांचल में तैयारी, पर ओवैसी की पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और विधायक अख्तरुल इमान कहते हैं कि इन दोनों को ही जवाब देने की मेरी पार्टी कोई जरूरत नहीं समझती है. टेलीफोन पर हुई बातचीत में अख्तरूल ने कहा कि चाहे बीजेपी हो या महागठबंधन, इन दोनों ने ही दलितों और अकलियतों के साथ छल किया है. जब एआईएमआईएम इनके साथ खड़ी है तो इनके वोट बैंक में दिक्कत हो रही है. हम संविधान की लड़ाई लड़ रहे हैं.

"बीजेपी ने एक तरफ जहां मुसलमानों को धोखा दिया. उसके द्वारा सामाजिक तनाव फैलाने वाली बात कही गई. हमारी लड़ाई उन सभी लोगों से है जो सामाजिक ताना बाना को बिगाड़ने की बात करते हैं. चाहे बीजेपी हो या महागठबंधन, इन दोनों ने ही दलितों और अकलियतों के साथ छल किया है" - अख्तरूल ईमान, प्रदेश अध्यक्ष, एआईएमआईएम

दलित और अल्पसंख्यक को एक साथ करने की कोशिशःअख्तरुल इमान खुलकर कुछ नहीं कहते लेकिन वह इशारों-इशारों में ही बहुत कुछ कह जाते हैं. अख्तरुल इमान कहते हैं कि पिछली बार हमने जब टिकट दी थी, तो उसमें पिछड़ों को भी मौका दिया था. हमारी पार्टी केवल अल्पसंख्यक तक ही सीमित नहीं थी. इस बार भी हमारी कोशिश होगी कि विधानसभा चुनाव में दलितों, पिछड़ों को टिकट देने की संख्या को बढ़ाएं. अख्तरुल यह भी कहते हैं कि उनकी पार्टी चाहती है कि दलित, मुस्लिम और अति पिछड़ों का एक ऐसा साथ बने कि सारे दलों को उसका मैसेज पहुंच जाए.

एमआईएमआईएम की सेंधमारी को रोकने की कवायद है महागठबंधन की रैलीः वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय बताते हैं कि 2020 की विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी में राजद को एक तरह से झटका दिया था. सीमांचल का इलाका राजद का गढ़ माना जाता था. वहां ओवैसी की पार्टी ने 5 सीटों की सेंधमारी की. हैदराबाद से चलकर ओवैसी जब सीमांचल में स्ट्राइक करते हैं तो 5 सीट एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती है. राजद अभी तक यह कहता रहा है कि मेरे साथ यादव और मुस्लमान हैं. आरजेडी एमवाई समीकरण का क्लेम करती रही है. उसमें निश्चित रूप से सेंधमारी हुई है. महागठबंधन की 25 फरवरी की रैली उसे रोकने की कवायद प्रतीत हो रही है.

उपेंद्र कुशवाहा और ओवैसी दोनों पर निशानाः रवि उपाध्याय ने कहा कि एक बात और कहे कि महागठबंधन में उपेंद्र कुशवाहा का जो पिक्चर दिख रहा है. कहीं न कहीं सब कुछ सहज नहीं है. उसे भी कवर अप करने की तैयारी है. उपेंद्र कुशवाहा फैक्टर हैं. पिछले बिहार विधानसभा चुनाव में ग्रैंड अलायंस बनाकर उपेंद्र कुशवाहा सीएम का फेस हुआ करते थे. ओवैसी की पार्टी इनकी घटक दल थी. ऐसे में वहां पर स्ट्राइक करना बड़ी बात है. उसी को रोकने की कवायद है. इसमें असदुद्दीन ओवैसी भी हैं और उपेंद्र कुशवाहा भी हैं. मुस्लिम और अति पिछड़ा का गठजोड़ बनाएं और दलितों के साथ पिछड़ों को भी उनका हक दिलाएं.

मीर जाफर की जरूरत नहींःअख्तरूल इस बात को विशेष रूप से उल्लेखित करते हैं कि पार्टी को मीर जाफर की जरूरत नहीं है. दरअसल उनका इशारा अपनी पार्टी के उन चार विधायकों की तरफ था, जिन्होंने जीत तो एआईएमआईएम के टिकट पर हासिल की थी और बाद में राष्ट्रीय जनता दल में शामिल हो गए. अख्तरूल कहते हैं, वे लोग उनकी पार्टी में वापस नहीं आएंगे और ऐसे लोगों की हमें जरूरत भी नहीं है. पार्टी में साथ देने वालों की जरूरत है, न की मीर जाफर की तरह के विधायकों की.

"2020 चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने राजद को एक तरह से झटका दिया था. सीमांचल का इलाका राजद का गढ़ माना जाता था. वहां ओवैसी की पार्टी ने 5 सीटों की सेंधमारी की.आरजेडी एमवाई समीकरण का क्लेम करता रहा है. उसमें निश्चित रूप से सेंधमारी हुई है. विधानसभा चुनाव में ग्रैंड अलायंस बनाकर उपेंद्र कुशवाहा सीएम का फेस हुआ करते थे. ओवैसी की पार्टी इनकी घटक दल थी. ऐसे में वहां पर स्ट्राइक करना बड़ी बात है. महागठबंधन की 25 फरवरी की रैली उसे रोकने की कवायद प्रतीत हो रही है" - रवि उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार



सीमांचल में सियासी घमासान

पटना: बिहार की राजधानी भले ही पटना है, लेकिन आने वाले चुनाव में सीमांचल सभी दलों के लिए अहम हो गया है. यहां बीजेपी की रैली और दौरों के बाद अब महागठबंधन के सभी दल सीमांचल में एक बड़ी आम सभा करने की तैयारी (Mahagathbandhan rally in Seemanchal ) में है. वहीं दूसरी तरफ एआईएमआईएम का कहना है कि महागठबंधन भले ही वहां तैयारी कर ले, लेकिन जब तक विकास की रोशनी सिर्फ पटना में रहेगी और सीमांचल उससे उपेक्षित रहेगा, तो आम सभाओं का कोई निष्कर्ष नहीं निकल सकता.

ये भी पढ़ेंः Bihar Politics: आमने-सामने के मूड में महागठबंधन व भाजपा, दोनों ने सीमांचल को बनाया बैटलग्राउंड

राजनीति का एपिक सेंटर बनता जा रहा सीमांचलः विधानसभा चुनाव में भले ही अभी देरी है, लेकिन सीमांचल का इलाका राजनीति का एपिक सेंटर बनने जा रहा है. सीमांचल देश की मानचित्र पर अपनी अलग पहचान रखता है. मुस्लिम बाहुल्य इस क्षेत्र में अगर किसी पार्टी की पकड़ मजबूत हो जाए तो वह बिहार सहित केंद्र की सत्ता में भी अपनी पकड़ को मजबूत करने में सक्षम होता है. इस इलाके का भौगोलिक परिप्रेक्ष्य जातीय सहित अन्य मसलों पर एकदम अलग है.

बीजेपी ने की तैयारी: बीजेपी भी इस बात को जानती है और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शायद इसी अहमियत को देखते हुए पिछले साल सीमांचल में अपने मास्टर स्ट्रोक की तैयारी की थी. खुद अमित शाह सीमांचल के दौरे पर गए. बीजेपी के आला नेता सीमांचल के प्रमंडल से लेकर पंचायत स्तर के संगठन को सिंचने में जुटे हुए हैं. गौर करने वाली बात है कि बिहार में एनडीए सरकार से अलग होते ही सीमांचल के जिलों में बीजेपी के बड़े नेताओं का दौरा शुरू हुआ और यह हर तरफ चर्चा का विषय बन गया.

अब महागठबंधन की तैयारी: बीजेपी के बड़े नेताओं में शुमार होने वाले केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय सीमांचल का दौरा कर चुके हैं. इसके अलावा केंद्रीय गृह मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति भी सीमांचल का दौरा कर चुकी है. सीमांचल में बीजेपी की रैली भी हो चुकी है. बीजेपी की तैयारी के बाद अब महागठबंधन भी सीमांचल को लेकर गंभीर है. महागठबंधन पूर्णिया में आगामी 25 फरवरी को एक बड़ी आम सभा करने की तैयारी में है. इसके लिए राजद के प्रदेश कार्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके इसकी जानकारी दी गई.

महागठबंधन की आम सभा में नीतीश और तेजस्वी दोनों रहेंगेः इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में महागठबंधन के तमाम दलों के बड़े नेता उपस्थित थे. खास बात यह कि पूर्णिया की आम सभा में सीएम नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव भी उपस्थित रहेंगे अब बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर सीमांचल राज्य की राजनीति में इतना अहम क्यों हो गया कि हर पार्टी की नजर सीमांचल पर टिकी हुई है. दरअसल सीमांचल में एक खास बात यह है कि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी आईएमआईएम ने पिछले विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन किया था और पांच विधानसभा सीटों पर अपनी इस जीत हासिल की थी.

एआईएमआईएम की उपस्थिति मजबूतः सीमांचल में पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज, अररिया, सुपौल जैसे जिले आते हैं. इनमें कुल 24 विधानसभा सीटें आती है और इस इलाके में ज्यादातर पिछड़ी जाति के लोग आते हैं. हालांकि, इसमें 47% आबादी मुसलमानों की है. इस लिहाज से इस इलाके में मुस्लिम वोट काफी अहम माने जाते हैं. ओवैसी ने पिछले विधानसभा चुनाव में सीमांचल के इन्हीं इलाकों में अपने ज्यादातर प्रत्याशी को भी उतारा था.

ओवैसी महागठबंधन के लिए कड़ी चुनौतीः पिछले विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने 20 उम्मीदवारों को मौका दिया था. इनमें से 14 मुस्लिम बहुल सीमांचल क्षेत्र से थे. बाकी सीटें मिथिलांचल की थी. ओवैसी की पार्टी को अमौर, कोचाधामन, जोकीहाट, बायसी और बहादुरगंज सीट पर जीत मिली. यह सारे के सारे सीमांचल से ताल्लुक रखते हैं. मुस्लिम जनसंख्या के लिहाज से देखा जाए तो किशनगंज में करीब 70% आबादी मुसलमानों की है. अररिया में 42 और कटिहार में करीब 38% मुसलमान हैं. सीमांचल का यह क्षेत्र में महागठबंधन के लिए बहुत अहम है. सीमांचल के लोगों ने पिछले विधानसभा चुनाव में ओवैसी को चुनकर महागठबंधन के लिए बड़ी चुनौती पेश कर दी थी.

महागठबंधन के दलों को ही मिला था झटका: पिछले विधानसभा चुनाव में अपनी उपस्थिति के दौरान ओवैसी की पार्टी ने बीजेपी को कोई खास झटका तो नहीं दिया था, लेकिन उसने महागठबंधन में शामिल दलों को जरूर झटका दिया था. इन 5 सीटों पर ओवैसी की पार्टी को जीत मिली थी, उसमें अमौर और बहादुरगंज की सीट उसने कांग्रेस से छीनी थी. जबकि बायसी में ओवैसी की पार्टी ने आरजेडी को हराया था. वहीं जोकीहाट और कोचाधामन सीट को ओवैसी की पार्टी ने जदयू से छीना था. इन सारे समीकरण को ही देखते हुए महागठबंधन के दल सीमांचल में अपनी उपस्थिति को मजबूत कर रहे हैं.

नहीं है कोई ओवैसी फैक्टरः सीमांचल में ओवैसी फैक्टर है या नहीं, इस पर सत्तारूढ़ राजद के नेता बात तो करते हैं लेकिन स्पष्ट जवाब नहीं दे पाते हैं. राजद के राज्य प्रधान महासचिव और भूमि सुधार विभाग के मंत्री आलोक कुमार मेहता कहते हैं कि हमारे सभी नेताओं ने बहुत सारी चीजों का जिक्र किया. समझ में नहीं आता कि मीडिया ओवैसी पर क्यों अटक गई है? ओवैसी की पार्टी है. वह भी अपना काम कर रही है. इसमें कहीं कोई बात नहीं है.

"हम बिहार की जनता को जागृत रखे रहना चाहते हैं. ताकि चुनाव तक कहीं कोई दुर्भावना फैलाने वाली शक्तियां आकर उसे प्रभावित न कर सके. विधानसभा चुनाव की समीक्षा हो गई और ओवैसी की पार्टी के कई विधायक हमारी पार्टी के साथ हैं. यहां कोई और फैक्टर नहीं है। यह दो ही फैक्टर है इस पार या उस पार. सारी बातें चल रही हैं" - आलोक कुमार मेहता, भूमि सुधार मंत्री, बिहार सरकार

बीजेपी और राजद को जवाब देने की जरूरत नहींः एक तरफ बीजेपी और दूसरी तरफ महागठबंधन, दोनों की ही सीमांचल में तैयारी, पर ओवैसी की पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और विधायक अख्तरुल इमान कहते हैं कि इन दोनों को ही जवाब देने की मेरी पार्टी कोई जरूरत नहीं समझती है. टेलीफोन पर हुई बातचीत में अख्तरूल ने कहा कि चाहे बीजेपी हो या महागठबंधन, इन दोनों ने ही दलितों और अकलियतों के साथ छल किया है. जब एआईएमआईएम इनके साथ खड़ी है तो इनके वोट बैंक में दिक्कत हो रही है. हम संविधान की लड़ाई लड़ रहे हैं.

"बीजेपी ने एक तरफ जहां मुसलमानों को धोखा दिया. उसके द्वारा सामाजिक तनाव फैलाने वाली बात कही गई. हमारी लड़ाई उन सभी लोगों से है जो सामाजिक ताना बाना को बिगाड़ने की बात करते हैं. चाहे बीजेपी हो या महागठबंधन, इन दोनों ने ही दलितों और अकलियतों के साथ छल किया है" - अख्तरूल ईमान, प्रदेश अध्यक्ष, एआईएमआईएम

दलित और अल्पसंख्यक को एक साथ करने की कोशिशःअख्तरुल इमान खुलकर कुछ नहीं कहते लेकिन वह इशारों-इशारों में ही बहुत कुछ कह जाते हैं. अख्तरुल इमान कहते हैं कि पिछली बार हमने जब टिकट दी थी, तो उसमें पिछड़ों को भी मौका दिया था. हमारी पार्टी केवल अल्पसंख्यक तक ही सीमित नहीं थी. इस बार भी हमारी कोशिश होगी कि विधानसभा चुनाव में दलितों, पिछड़ों को टिकट देने की संख्या को बढ़ाएं. अख्तरुल यह भी कहते हैं कि उनकी पार्टी चाहती है कि दलित, मुस्लिम और अति पिछड़ों का एक ऐसा साथ बने कि सारे दलों को उसका मैसेज पहुंच जाए.

एमआईएमआईएम की सेंधमारी को रोकने की कवायद है महागठबंधन की रैलीः वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय बताते हैं कि 2020 की विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी में राजद को एक तरह से झटका दिया था. सीमांचल का इलाका राजद का गढ़ माना जाता था. वहां ओवैसी की पार्टी ने 5 सीटों की सेंधमारी की. हैदराबाद से चलकर ओवैसी जब सीमांचल में स्ट्राइक करते हैं तो 5 सीट एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती है. राजद अभी तक यह कहता रहा है कि मेरे साथ यादव और मुस्लमान हैं. आरजेडी एमवाई समीकरण का क्लेम करती रही है. उसमें निश्चित रूप से सेंधमारी हुई है. महागठबंधन की 25 फरवरी की रैली उसे रोकने की कवायद प्रतीत हो रही है.

उपेंद्र कुशवाहा और ओवैसी दोनों पर निशानाः रवि उपाध्याय ने कहा कि एक बात और कहे कि महागठबंधन में उपेंद्र कुशवाहा का जो पिक्चर दिख रहा है. कहीं न कहीं सब कुछ सहज नहीं है. उसे भी कवर अप करने की तैयारी है. उपेंद्र कुशवाहा फैक्टर हैं. पिछले बिहार विधानसभा चुनाव में ग्रैंड अलायंस बनाकर उपेंद्र कुशवाहा सीएम का फेस हुआ करते थे. ओवैसी की पार्टी इनकी घटक दल थी. ऐसे में वहां पर स्ट्राइक करना बड़ी बात है. उसी को रोकने की कवायद है. इसमें असदुद्दीन ओवैसी भी हैं और उपेंद्र कुशवाहा भी हैं. मुस्लिम और अति पिछड़ा का गठजोड़ बनाएं और दलितों के साथ पिछड़ों को भी उनका हक दिलाएं.

मीर जाफर की जरूरत नहींःअख्तरूल इस बात को विशेष रूप से उल्लेखित करते हैं कि पार्टी को मीर जाफर की जरूरत नहीं है. दरअसल उनका इशारा अपनी पार्टी के उन चार विधायकों की तरफ था, जिन्होंने जीत तो एआईएमआईएम के टिकट पर हासिल की थी और बाद में राष्ट्रीय जनता दल में शामिल हो गए. अख्तरूल कहते हैं, वे लोग उनकी पार्टी में वापस नहीं आएंगे और ऐसे लोगों की हमें जरूरत भी नहीं है. पार्टी में साथ देने वालों की जरूरत है, न की मीर जाफर की तरह के विधायकों की.

"2020 चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने राजद को एक तरह से झटका दिया था. सीमांचल का इलाका राजद का गढ़ माना जाता था. वहां ओवैसी की पार्टी ने 5 सीटों की सेंधमारी की.आरजेडी एमवाई समीकरण का क्लेम करता रहा है. उसमें निश्चित रूप से सेंधमारी हुई है. विधानसभा चुनाव में ग्रैंड अलायंस बनाकर उपेंद्र कुशवाहा सीएम का फेस हुआ करते थे. ओवैसी की पार्टी इनकी घटक दल थी. ऐसे में वहां पर स्ट्राइक करना बड़ी बात है. महागठबंधन की 25 फरवरी की रैली उसे रोकने की कवायद प्रतीत हो रही है" - रवि उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार



Last Updated : Feb 11, 2023, 6:49 AM IST
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