पटना: राजनीति में मुद्दों के शतरंज का यह अजब सा खेल है, क्योंकि इस खेल को खेलने वाले लोग यह जानते हैं कि कब कौन सा मोहरा कहां बैठाना है. हाथ में कब कमल लेना है कब साइकिल की सवारी करनी है. लालटेन की रोशनी चटक कब होगी और मुद्दों पर सियासी तीर कब चलाना है और इस शतरंज के माहिर खिलाड़ी अपनी जरूरत के अनुसार ही मुद्दे को तय करते हैं.
भले ही उसमें जनता अपने नुमाइंदों की नुमाइंदगी का इंतजार तो करती है लेकिन उसके हिस्से में सिर्फ इंतजार ही आता है. बाकी उन मुद्दों की सियासत करने वाले अपने पाले में सब कुछ ले जाते हैं. देश में बढ़ती महंगाई ( Inflation ), पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत, घरेलू गैस सिलेंडर से लेकर कमर्शियल गैस सिलेंडर, खाने वाले तेल का दाम, हरी सब्जियों के दाम, आलू-प्याज के दाम यहां तक कि नमक का दाम लगातार बढ़ रहा है.
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कोरोना वायरस ( Coronavirus ) से जनता की पूरी आर्थिक व्यवस्था ही चरमरा गई है. बेपटरी हुई जिंदगी और उससे जूझने की जंग देश की जनता लड़ रही है, लेकिन सियासत ने हर मुद्दे को छोड़कर जातिय जंग का एक ऐसा मुद्दा उठा लिया है, जिसमें आम जनता के हर सरोकार ही दरकिनार हो गए हैं. कोरोना से कराह रही जनता, बेरोजगारी का दंश, बढ़ती महंगाई, देश के सामने ऐसे प्रचंड मुद्दे के तौर पर हैं, जिसका जवाब देश का हर कोई जानना कहता है. निजात भी चाहता है.
कोरोना वायरस से अर्थव्यवस्था निश्चित तौर पर बिगड़ी है. आम आदमी की जिंदगी ही बेरंग हो गई है. उम्मीद इस बात की थी कि विपक्ष इस मुद्दे को काफी तेजी से उठाएगा. मोदी सरकार को सदन से लेकर सड़क तक घेरेगा, लेकिन यहां भी शतरंज के खिलाड़ियों ने जातीय गोलबंदी का ऐसा मोहरा फेंक दिया कि पूरी विपक्ष की राजनीति ही जाति-जाति करते सड़क पर दौड़ रही है.
क्योंकि सबको इस बात का अंदाजा है कि अगर जाति वाली राजनीति गोरबंद नहीं कर पाए तो सत्ता की गद्दी और उसकी कुंजी भी हाथ नहीं लगेगी. जनता तो आज महंगाई झेल लेगी, कल रो लेगी, चल रही सरकार को कोस लेगी और होने वाली राजनीति का हिस्सा बन कर उन नेताओं के साथ चल देगी, जो अपनी-अपनी जाति के सियासी लंबरदार हैं.
बिहार में तेजस्वी यादव ( Tejashwi Yadav ) मानसून सत्र के दौरान उस घटना पर सबसे ज्यादा चर्चा किए जो 23 मार्च को सदन में पुलिस पिटाई से हुई थी. उसके बाद अगर कुछ बचा तो जाति जनगणना ( Caste Census ) के नाम पर. केंद्र सरकार द्वारा यह कह देना कि जाति जनगणना नहीं होगी, इसे लेकर तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार से मुलाकात कर ज्ञापन दिया. प्रधानमंत्री से मिलने और बिहार का पक्ष रखने की बात भी कर दी लेकिन देश की बढ़ती महंगाई पर सभी राजनैतिक दल चुप हैं.
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वजह साफ है कि बढ़ती महंगाई से जनता कराह रही है और इसे लेकर मुद्दा बनाकर सड़क पर उतरना इन राजनेताओं को इसलिए भी नागवार गुजर रहा है क्योंकि फलाफल कुछ निकलना नहीं है. ऐसे में जनता के इस मुद्दे को राजनेता बेकार ही समझ रहे हैं. यह अलग बात है कि 2013 में महंगाई और भ्रष्टाचार के मुद्दे को बनाकर ही नरेंद्र मोदी गद्दी पर बैठे थे.
बात बिहार की करें तो बेरोजगारी, पलायन, कोरोना वायरस और बाढ़ से बिहार त्राहिमाम कर रहा है. बढ़ती महंगाई जनता का दम निकाल दे रही है. ऐसे में जनता के पास विकल्प के तौर पर कुछ दिख ही नहीं रहा है. सरकार के कामकाज की जो परिपाटी है, उसमें जो चीजें दिख रही है, उससे साफ है कि जनता को फिलहाल उससे कोई राहत नहीं मिलने वाला है.
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जातिय जनगणना का राग देकर केंद्र ने पूरी विपक्ष को जात की राजनीति के भंवर जाल में उलझा दिया और महंगाई के सारे मुद्दे से ही विपक्षी दलों का ध्यान ही भटक गया. 2022 के लिए पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव का बिगुल 2 महीने के भीतर बज जाएगा ऐसे में विपक्षी दलों को यह समझ नहीं आ रहा है कि महंगाई के मुद्दे को पार्टी का एजेंडा बनाया जाए या फिर विकास के मुद्दे पर लड़ाई लड़ी जाए या फिर जाति को गोलबंद किया जाए.
उलझे विपक्ष को सियासत की कोई सीधी राह नहीं दिख रही है क्योंकि कोई भी मुद्दा अगर हाथ से निकला तो चुनाव में होने वाले जीत का फासला बढ़ जाएगा. ऐसे में मंडल कमीशन की सियासत लालू उठा लिए हैं. मुलायम से मुलाकात कर राजनीति को जगह दे दिए हैं. कांग्रेस सक्रिय तो है लेकिन प्रियंका की सियासत से बाहर नहीं निकल पाई और यूपी के आगे बहुत कुछ होता नहीं दिख रहा.
पंजाब में कांग्रेस सिद्धू बनाम कैप्टन कर रखी है. बाकी राज्यों की स्थिति विपक्ष के किसी मुद्दे की एक पकड़ और विरोध पर आ नहीं रहा. अब जनता को कुछ समझ नहीं आ रहा है कि अब महंगाई डायन को किस मंत्र के से रोका जाए. कौन सा तीर इसे मारेगा और किस योगी की तपस्या से इसे भस्म किया जाय. जनता चौराहे पर बैठी सिर्फ सोच रही है क्योंकि करने वाले लोग सियासत में जाति वाली डगर पर डेरा डाल कर बैठ गए हैं.