पटना: बिहार में 2 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव (By Election in Bihar) होना है. राजनीतिक दलों ने 2 सीटों के लिए जिस तरीके से जीत के लिए मुद्दों से लड़ने की तैयारी की है उससे एक बात तो साफ दिख रहा है कि कहने के लिए भले यह 2 सीटों का उपचुनाव है लेकिन इस चुनाव से एक राजनीतिक दिशा और तय होगी जो सभी राजनैतिक दल मानकर चल रहे हैं और इसी समीकरण पर काम भी कर रहे हैं.
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2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में जब मुद्दों की रणभेरी बज रही थी. उसमें सबसे बड़ा मुद्दा राजद के तरफ से 15 लाख लोगों को रोजगार देने का था. आरोप 19 लाख लोगों की नौकरी ले लेने का था. अब बिहार में एक बार फिर विधानसभा के 2 सीटों पर चुनाव होने जा रहा है तो ऐसे में राजनीति को नई दिशा देने वाले नए चेहरे मुद्दों को नए तरीके से सामने रख रहे हैं. विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव ने वादा किया था कि 15 लाख लोगों को राजग की सरकार आने पर नौकरी दी जाएगी. एक कदम आगे बढ़ते हुए बीजेपी और जदयू ने ऐलान कर दिया था कि 20 लाख लोगों को रोजगार एनडीए की सरकार देगी.
हालांकि इस बात को लेकर विभेद भी रहा और सभी लोगों ने अपने-अपने तरीके से राजनीतिक परिणाम की समीक्षा भी की. युवाओं के साथ आने और उनके नाराज होने के बारे में भी सभी राजनैतिक दलों ने अपनी-अपनी बातें रख दी. अब विधानसभा के 2 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में एक बार फिर इस मुद्दे की बात इसलिए भी उठ रही है कि सभी राजनीतिक दलों ने जिस तरीके से 2 विधानसभा सीटों पर अपना पूरा दम लगा दिया है उसमें दमदार मुद्दों का मैदान में होना भी जरूरी है और इसकी जरूरत भी महसूस होने लगी है.
बिहार विधानसभा की दोनों सीटों (तारापुर और कुशेश्वरस्थान) की भौगोलिक स्थिति अलग-अलग है. विकास के मुद्दे वाली राजनीति ने यहां पर जीत दिलाई है. हालांकि जाति की राजनीति हावी रहती है. इसमें दो राय नहीं है. माना जा रहा है कि राजद नेता तेजस्वी यादव एक बार फिर नौकरी दिलाने का वादा लेकर आएंगे. अलग बात है कि सरकार उनकी नहीं बनी और बचे हुए कार्यकाल तक राजद और तेजस्वी को इंतजार ही करना होगा. फिर भी नौकरी वाले वादे पर जितनी मजबूती से युवा तेजस्वी यादव के साथ खड़ा हुए थे उसकी एक बांगी तो जरूर चुनाव में बजाने की कोशिश होगी.
रोजगार वाला मुद्दा तेजस्वी को फायदा कितना देगा या फिर इस मुद्दे को उठाकर तेजस्वी का नुकसान हो जाएगा इसपर अभी राष्ट्रीय जनता दल के वार रूम में चर्चा हो रही है. एक बात तो साफ है कि तेज प्रताप यादव ने हाल के दिनों में युवा सियासत को जिस तरीके से जगह दे दी है उससे रोजगार का मुद्दा खड़ा जरूर होगा, लेकिन यह मुद्दा कितना बड़ा होगा यह तो आने वाला चुनाव परिणाम ही बताएगा.
युवा राजनीति और रोजगार के मुद्दे से निपटने के लिए बिहार सरकार ने भी कमर कस ली है. नीतीश कुमार की पार्टी इस बात को लेकर पूरे तौर पर तैयार है कि अगर इसे राजद उपचुनाव में मुद्दा बनाता है तो सरकार द्वारा किया जा रहा काम तेजस्वी के आरोपों का जवाब होगा. बिहार सरकार ने 2021-22 के लिए 218303 करोड़ का बजट रखा है और इसमें युवा रोजगार पाएं और उद्यमिता स्थापित करें इसके लिए 200 करोड़ का अलग से बजट रखा गया है. सरकार इस बात को हर फोरम से बता रही है. युवाओं को बिहार में रोजगार देने के लिए नीतीश कुमार ने कदम बढ़ा दिया है. 200 करोड़ रुपये बिहार के लोगों को काम करने के लिए दिया जाएगा.
2 सीटों पर हो रहा उपचुनाव निश्चित तौर पर बिहार में सियासी समीकरण का नया मापदंड खड़ा करेगा. बहुमत के गणित के आसपास के आंकड़े पर चल रही सरकार और विपक्ष के बीच अंतर बहुत कम है. जिस सियासी समीकरण में 2 विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव का मुद्दा फंस गया है और अपनों की नाराजगी के साथ ही अपनों को मनाने का जो खेल चला है उसमें अभी तक तो सरकार का पक्ष ही ऊपर जा रहा है और जदयू उसमें ज्यादा मजबूत दिख रही है.
इन 2 सीटों पर जदयू को कब्जा करना है. यह चुनौती भी है. क्योंकि अगर इन 2 सीटों में से कोई सीट गड़बड़ होती है तो सीधे तौर पर जदयू की हार मानी जाएगी. क्योंकि इन दोनों सीटों पर जदयू का कब्जा था. अब देखने वाली बात होगी कि विपक्ष अपने दावों पर कितना खरा उतरता है और सत्ता पक्ष इसे बचा पाने में कितना दम लगा पाता है. क्योंकि बिहार की राजनीति में अभी 19 लाख वाली बात तो चल ही रही है.
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