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झारखंड बिहार सीमा पर संगठन को मजबूत करने में लगे माओवादी, अलर्ट पर पुलिस - झारखंड बिहार सीमा

झारखंड बिहार सीमा पर माओवादी अपने संगठन को मजबूत कर रहे हैं. नक्सली सीमावर्ती इलाके में लोगों के संपर्क में हैं. मामले में सुरक्षा एजेंसियों और पुलिस ने अलर्ट जारी किया है. फिलहाल, माओवादी गतिविधि पर निगरानी रखी जा रही है.

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Published : Sep 21, 2020, 2:39 PM IST

पलामू/पटनाः झारखंड-बिहार सीमा पर माओवादी खुद को मजबूत करने की फिराक में है. माओवादी 18 पुराने नक्सली कैडरों के संपर्क में हैं. इसके लिए उन्हें प्रलोभन दिया जा रह है. हालांकि, अभी तक कोई भी दस्ते में शामिल नहीं हुआ है. माओवादी पलामू के नौडीहा बाजार, मनातू, पिपरा, हुसैनाबाद, पांडु, बिश्रामपुर, मोहम्मदगंज, हरिहरगंज और छत्तरपुर के इलाके में, जबकि बिहार के गया और औरंगाबाद के सीमावर्ती इलाके में लोगों के संपर्क में है. मामले में सुरक्षा एजेंसियों और पुलिस ने अलर्ट जारी किया है. साथ ही माओवादी गतिविधि पर निगरानी रखी जा रही है.

टॉप कमांडर संदीप के खास ने दस्ता छोड़ा
झारखंड-बिहार सीमा माओवादियों के मध्य जोन में है. कमांडर संदीप के कई बॉडीगार्ड और करीबी दस्ता छोड़कर भाग चुके हैं. आजाद नाम का बॉडीगार्ड दस्ता छोड़ कर भाग गया है, जबकि नवल भूइयां, अखिलेश भूइयां, रवि भूइयां, मंदीप यादव उर्फ मतला, सूबेदार यादव बिहार में सीआरपीएफ के समक्ष आत्मसमर्पण कर चुके हैं. ये सभी 25 लाख के इनामी माओवादी संदीप यादव के करीबी हैं.

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आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली

खुद को मजबूत करने में लगे माओवादी
मंदीप यादव उर्फ मतला संदीप यादव का बेहद करीबी है. चारों ने पुलिस को कई अहम जानकारी दी है, जिसमें बताया गया है कि माओवादी मध्य जोन में खुद को मजबूत करने में लगे हैं. माओवादियों के मध्य जोन में पलामू, चतरा, बिहार का गया और औरंगाबाद के इलाके आते हैं.

मध्य जोन में बचे 60 से 65 सदस्य
आत्मसमर्पण करने वालों ने सुरक्षा एजेंसियों को बताया कि मध्य जोन में माओवादी के 60 से 65 सदस्य हैं. विजय आर्या, प्रमोद मिश्रा, मिथिलेश मेहता के दस्ते में वापस लौटने के बाद माओवादी नए लोगों को साथ में जोड़ने का प्रयास कर रही है. प्रमोद मिश्रा इसमें अहम भूमिका निभा रहा है. कई टॉप माओवादी कमांडर गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं. संदीप यादव और विजय आर्या बीमार रहते हैं. वहीं, कई टॉप कमांडर आत्मसमर्पण कर सकते हैं.

पुलिस के साथ नहीं चाहते सीधी लड़ाई
आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों ने पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों को बताया कि माओवादी पुलिस और सुरक्षाबलों के साथ सीधी टक्कर नहीं चाहते हैं. जब भी मुठभेड़ होती है माओवादियों को बड़ा नुकसान हो रहा है. कई नक्सली मारे जा रहे हैं, जबकि कई दस्ता छोड़ भाग जा रहे हैं.

पलामू/पटनाः झारखंड-बिहार सीमा पर माओवादी खुद को मजबूत करने की फिराक में है. माओवादी 18 पुराने नक्सली कैडरों के संपर्क में हैं. इसके लिए उन्हें प्रलोभन दिया जा रह है. हालांकि, अभी तक कोई भी दस्ते में शामिल नहीं हुआ है. माओवादी पलामू के नौडीहा बाजार, मनातू, पिपरा, हुसैनाबाद, पांडु, बिश्रामपुर, मोहम्मदगंज, हरिहरगंज और छत्तरपुर के इलाके में, जबकि बिहार के गया और औरंगाबाद के सीमावर्ती इलाके में लोगों के संपर्क में है. मामले में सुरक्षा एजेंसियों और पुलिस ने अलर्ट जारी किया है. साथ ही माओवादी गतिविधि पर निगरानी रखी जा रही है.

टॉप कमांडर संदीप के खास ने दस्ता छोड़ा
झारखंड-बिहार सीमा माओवादियों के मध्य जोन में है. कमांडर संदीप के कई बॉडीगार्ड और करीबी दस्ता छोड़कर भाग चुके हैं. आजाद नाम का बॉडीगार्ड दस्ता छोड़ कर भाग गया है, जबकि नवल भूइयां, अखिलेश भूइयां, रवि भूइयां, मंदीप यादव उर्फ मतला, सूबेदार यादव बिहार में सीआरपीएफ के समक्ष आत्मसमर्पण कर चुके हैं. ये सभी 25 लाख के इनामी माओवादी संदीप यादव के करीबी हैं.

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आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली

खुद को मजबूत करने में लगे माओवादी
मंदीप यादव उर्फ मतला संदीप यादव का बेहद करीबी है. चारों ने पुलिस को कई अहम जानकारी दी है, जिसमें बताया गया है कि माओवादी मध्य जोन में खुद को मजबूत करने में लगे हैं. माओवादियों के मध्य जोन में पलामू, चतरा, बिहार का गया और औरंगाबाद के इलाके आते हैं.

मध्य जोन में बचे 60 से 65 सदस्य
आत्मसमर्पण करने वालों ने सुरक्षा एजेंसियों को बताया कि मध्य जोन में माओवादी के 60 से 65 सदस्य हैं. विजय आर्या, प्रमोद मिश्रा, मिथिलेश मेहता के दस्ते में वापस लौटने के बाद माओवादी नए लोगों को साथ में जोड़ने का प्रयास कर रही है. प्रमोद मिश्रा इसमें अहम भूमिका निभा रहा है. कई टॉप माओवादी कमांडर गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं. संदीप यादव और विजय आर्या बीमार रहते हैं. वहीं, कई टॉप कमांडर आत्मसमर्पण कर सकते हैं.

पुलिस के साथ नहीं चाहते सीधी लड़ाई
आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों ने पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों को बताया कि माओवादी पुलिस और सुरक्षाबलों के साथ सीधी टक्कर नहीं चाहते हैं. जब भी मुठभेड़ होती है माओवादियों को बड़ा नुकसान हो रहा है. कई नक्सली मारे जा रहे हैं, जबकि कई दस्ता छोड़ भाग जा रहे हैं.

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