पटना: मिशन 2020 में एनडीए को जिताने के लिए मैदान में उतरे पीएम नरेन्द्र मोदी 23 अक्टूबर को अपनी पहली सभा को जो रंग दिया. उसने एनडीए के चुनाव प्रचार को एक अलग दिशा दे दी. नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण में रामविलास पासवान और रघुवंश प्रसाद सिंह को सबसे पहले जिक्र में लाकर एक तीर से कई निशाने साध दिए. मंच पर मौजूद बिहार की राजनीति के पंडितों को भी यह समझ आ गया कि यह क्यों कहा जाता है कि मोदी है तो मुमकिन है.
रघुवंश प्रसाद सिंह को श्रद्वांजलि
पीएम मोदी ने अपने भाषण की शुरुआत वरिष्ठ समाजवादी नेता और भारत में महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के जनक रघुवंश प्रसाद सिंह को श्रद्वांजलि के साथ शुरू की. मोदी सिर्फ रघुवंश बाबू का नाम लेकर आरजेडी के लिए फिर से उस फांस की राजनीति के चक्रव्यूह में बांध दिया. जिसमें पूरे जीवन आरजेडी के रहने के बाद पार्टी ने उनके साथ जो किया. वह बिहार के लोगों को यह समझाने का प्रयास था कि आरजेडी पर भरोसा आप भ्रम में आकर भले करें, लेकिन आरजेडी आप पर भरोसा नहीं करती है. यह भी तय है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश से सटे रैली स्थल का जातीय समीकरण राजपूत, भूमिहार और महादलितों से जुड़ा है. पीएम मोदी ने रघुवंश प्रसाद सिंह का नाम लेकर जाति और दूसरे जगह फंस रही बिहार की राजनीति को राजनीति में किस पर भरोसा करें. इस पर लाकर खड़ा कर दिया है.
रघुवंश प्रसाद ने स्वार्थ की नहीं की राजनीति
यह तो अब सभी को पता चल गया है कि तेजस्वी यादव जिस सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. उस राघोपुर में 45 हजार से ज्यादा राजपूत वोटर हैं. उस क्षेत्र पर प्रभाव रामा सिंह का है. भले ही रामा सिंह पर दर्जनों अपराध के मामले हैं. उसके बाद भी तेजस्वी उन्हीं के साथ अपनी स्वार्थ की राजनीति के लिए खडे हैं. रघुवंश प्रसाद सिंह पूरे जीवन आरजेडी के साथ खड़े रहे. लेकिन कभी स्वार्थ की राजनीति नहीं की.
भरोसे की राजनीति का एनडीए को प्रमाण पत्र
पीएम मोदी ने रोहतास की अपनी पहली रैली में ही विकास के विश्वास वाली राजनीति पर भरोसा और भरोसे की राजनीति करने का जो प्रमाण पत्र एनडीए और नीतीश कुमार को दिया, उससें म मिलनी तय है. टिकट के बदले नोट लेने के मामले में आरजेडी पहले से ही बैकफुट पर है और रोजगार के मामले पर जेडीयू को जवाब देना मुश्किल हो रहा था. वहीं, भरोसे की जिस राजनीति का पीएम ने बिहार की सियासत का मुद्दा बनाया है. वो आरजेडी के लिए नई चुनौती है.
रामविलास के विकास का साथ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनावी जनसभा के दौरान बिहार के विकास में अपने अहम सहयोगी रामविलास पासवान को भी मंच से नमन किया. नीतीश के नाम पर स्व. रामविलास पासवान के सलतनत के उत्तराधिकारी चिराग पासवान जिस विभेद की राजनीति को लेकर एनडीए से अलग हुए. पीएम मोदी ने उसकी भी गिनती करवा ही दी. हालांकि नीतीश बिहार के विकास के लिए कार्य कर रहे हैं और इस विकास में रामविलास पासवान का भी योगदान रहा है. सियासत की भाषा में बहुत बड़ा शब्द है. सियासत में समीक्षा करने वाले राजनीति पीड़ितों ने पीएम मोदी के इस भाषण के बाद चिराग के राजनीतिक भविष्य की गिनती भी शुरू कर दी है.
बीजेपी सिर्फ नीतीश के विकास ही करवाएगी गिनती
एनडीए विकास के बदौलत ही कुर्सी हासिल करेगी यह तय है और उसी विकास के चेहरे के रूप में चिराग पासवान नरेन्द्र मोदी के पोस्टर वाली राजनीति तक कर डाली. लेकिन जब खुद नरेन्द्र मोदी ने विकास की राजनीति वाला फॉर्मूला पढ़ा तो नीतीश कुमार के विकास मॉडल को इतनी तरजीह मिल गई कि बीजेपी के वे नेता जो चिराग को थोडा नरम रूख रख कर गाहे-ब-गाहे चर्चा कर लेते थे और उनके वार्ता पर भी मोदी ने विराम लगा दिया. मामला साफ है कि अब नरेन्द्र मोदी वाली बीजेपी सिर्फ नीतीश के विकास की ही गिनती करवाएगी और यही गिनती चुनाव में विकास भी देगा.
एक रंग से नई राजनीति का पता
बिहार की राजनीति में रोजगार के मुद्दे पर आरजेडी ने जिस तरह से पिछले 4 दिनों से हर मंच से राग छेड़ रखा था, भरोसे की एक साख पर पीएम मोदी ने इसे दरकिनार कर दिया. अब विकास पर अगर पीएम मोदी के भरोसे चिराग चुनाव में जाना चाहते थे तो उन्हें एनडीए से अलग नहीं होना चाहिए था. वहीं, आरजेडी पर जिस भरोसे के साथ रघुवंश बाबू ने पूरा जीवन काट दिया. उसे आरजेडी को नहीं तोड़ना चाहिए था. इसके बाद अगर चिराग पासवान और तेजस्वी यादव की कोई राजनीति जगह होती है तो गठबंधन तो जरूरत होगा. लेकिन भरोसा हमेशा सवालों में रहेगा. विकास को लेकर पीएम मोदी ने विकास के जिस भरोसे वाली राजनीति को नया रंग दिया है, उसमें कौन राजनीतिक दल किस रंग से नहाएगा. यह उसकी रणनीति का हिस्सा है. लेकिन जनता का भरोसा कहां जाएगा यह तो 10 नम्बर को पता चलेगा. लेकिन बिहार की सियासत एक रंग से नई राजनीति का पता लिखने चल दी है. यह पीएम मोदी की चुनावी जनसभा से साफ हो गया है.