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पीएम मोदी के भाषण में भोजपुरी तड़का, 'न खेलब, न खेले देम, खेलवे बिगाड़ब'

पीएम मोदी ने सदन में 'न खेलब, न खेले देम, खेलवे बिगाड़ब' की बात कह कांग्रेस की सियासी असफलता की दुखती रग पर हाथ रख दिया. किसानों के जिस वोट बैंक को साधने के जुगाड में कांग्रेस ने अपने तरकस के तीर को निकाला, वह गलत दिशा में चल गया. किसानों को लेकर जिस हमदर्दी को कांग्रेस जुटाना चाहती थी, उसका सारा मजमून दिल्ली की सड़कों पर किसानों के हुड़दंग ने बिगाड़ दिया.

पीएम मोदी का भोजपुरी अंदाज
पीएम मोदी का भोजपुरी अंदाज
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Published : Feb 10, 2021, 11:04 PM IST

नई दिल्ली/पटनाः पीएम मोदी ने सदन में कांग्रेस और विपक्षी दलों को किसान आंदोलन के मुददे पर जिस मुहावरे के संबोधन से जवाब दिया उसने कांग्रेस की मौजूदा राजनीति की पूरी कलई ही खुल गयी. भोजपुरी में पीएम मोदी ने कहा, 'न खेलब, न खेले देम, खेलवे बिगाड़ब...' भोजपुरी के इस मुहावरे से मिली राजनीतिक नसीहत को कांग्रेस का हर नेता बेहतर तरीके से समझ गया है. पीएम मोदी ने अपने भाषण में जिस भोजपुरी मुहावरे का उपयोग किया. उससे कांग्रेस की किसान राजनीति और उससे होने वाले राजनीतिक फायदे नुकसान की हर परत को परत दर परत कुरेद दिया. भाजपा नेताओं ने सदन में भोजपुरी मुहावरे पर ताली बजायी. लेकिन कांग्रेस के लोगों के मन के अंदर पल रही राजनीति की पूरी मुरीद की चुलें ही हिल गयी.

राजनीति जमीन चमकाने के चक्कर में कांग्रेस चारों खाने चित्त
पीएम मोदी ने अपने भाषण में किसान आंदोलन को अपने हक की लड़ाई की जायज मांग बता दी. साथ ही आंदोलनकारी को आंदोलनजीवी जैसे शब्दों से विपक्ष को बता दिया कि किसान आंदोलन से क्या साधने की कवायद हो रही है. दरअसल कांग्रेस किसान आंदोलन से एक नहीं कई निशाने को साधने की कोशिश कर रही है. भोजपुरी मुहावरे से पूर्वी भारत की राजनीति को सिर्फ किसान राजनीति से जोड़कर देखा जाए तो चल रहे किसान आंदोलन को महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह से जोड़कर कांग्रेस ने जिस राजनीति को हवा दी थी, उसकी पूरी बानगी ही बेदम हो गयी. गांधी और किसान से अपनी राजनीति जमीन को चमकाने के चक्कर में कांग्रेस चारो खाने चित्त हो गयी.

सदन में भाषण देते पीएम मोदी

कांग्रेस यह समझ ही नहीं पायी कि चम्पारण में जबरन की खेती का विरोध था. जबकि इस आंदोलन को जबरन राजनीति की खेती के लिए खींचा जा रहा है. जिसका फायदा होने के बजाय नुकसान हो जाएगा.

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एक तीर से साधे कई निशाने
पीएम मोदी ने विपक्ष पर एक नहीं कई सवाल दाग दिए. जिसके जवाब के लिए विपक्ष पूरी तरह चुप रहा. पीएम मोदी ने कहा कि देश बदल रहा है, विकास ने रफ्तार पकड़ी है. ऐसे में विपक्ष को देश के विकास के मुद्दे पर कोई सवाल ही नहीं है. 27 शहर में मेट्रो और 27 हजार गांवों तक हाई स्पीड इंटरनेट की सेवा के साथ ही 600 किलोमीटर डेडिकेटेड फ्रेट कोरिडार पर दौड़ती किसान ट्रेन पर सवाल उठाने के लिए विपक्ष के पास कुछ नहीं है.

कोरोना के समय में देश की सेवा में जुटे स्वास्थ्य कर्मियों को भगवान के नाम से बुलाकर गांव-गांव तक फैले ग्रामीण स्वास्थ्य कर्मियों को सेवा का नया संबल दे दिया. पीएम मोदी ने पूर्वी भारत के विकास के बिना देश का विकास नहीं हो सकता. भोजपुरी के जिस मुहावरे से कांग्रेस को राजनीति की नसीहत दी. उससे मोदी ने एक तीर से कई निशाने साध दिए.

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इसलिए बिहार के किसान नहीं बने आंदोलन का हिस्सा
दरअसल, किसान और गांव की जिस राजनीति को कांग्रेस 20 से शुरू कर अपने आगे की राजनीति को जमापूंजी बनाना चाहती थी, उसमें यूपी, बिहार, बंगाल और पूर्वी भारत की चुनावी तैयारी का मजमून था. जिसके बदौलत कांग्रेस सियासी समर में जाना चाहती थी. दरअसल कांग्रेस इस गणित को बैठा नहीं पायी कि एक राज्य को छोडकर दूसरे राज्य के किसान आदोलन का हिस्सा क्यो नहीं बन रहे.

किसान आंदोलन को लेकर चंपारण की बात सबसे पहले कांग्रेस नेताओं ने की थी, लेकिन कांग्रेस के लोग भूल गए कि जबरन खेती करवाने और खेती के लिए कुछ बनायी व्यवस्था पर जबरन राजनीति में बड़ा फर्क है. यही बजह है कि बिहार के किसान इस मुहीम का हिस्सा ही नहीं बने. यह सभी कहते और मानते हैं कि बिहार बदलाव की धरती रही है, चम्पारण सत्याग्रह का मामला हो या फिर जेपी आंदोलन का बिहार जब जगा हैे, तो उसने देश की राजनीतिक फिजा को ही बदल दिया है.

ये भी पढ़ें- बीजेपी ने 2 युवा मंत्री को दी आत्मनिर्भर बिहार बनाने की जिम्मेदारी, 19 लाख लोगों को देना है रोजगार

देश की राजनीति में पुरवईया हवा की लहर बहने लगी है. कांग्रेस इस लहर में अपनी राजनीतिक गोटी सेट करने में लगी है. पीएम मोदी ने भोजपुरी और पूर्वी भारत के विकास से देश को दिशा और छोटे सीमांत किसानों को अलग से सहायता देने की बात कह पूर्वी भारत की आर्थिक संरचना की नींव को इतनी मजबूत जगह दी है कि इसके जवाब में कांग्रेस को कोई मुद्दा ही नहीं सूझ रहा है.

यूपी में मार्च के बाद पंचायत चुनाव तय है. यूपी के 2021 के पंचायत चुनाव को 2022 का सेमीफाइनल माना जा रहा है. बिहार में पंचायत चुनाव मई महीने तक होना है. आसाम और बंगाल की राजनीति चुनावी अंगड़ाई ले रही है. इन राज्यों की पूरी राजनीति की खेती-किसानी ही किसानों पर टिकी है.

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बंगाल की रणनीति में जगह बनाने की जुगाड़ में कांग्रेस
बिहार की 80 फीसदी आबादी की जीविका खेती हैे. यूपी का पुर्वान्चल भी खेती पर ही निर्भर है. जबकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश गन्ना बेल्ट और खेती किसानी का अड्डा है. बंगाल में 60 प्रतिशत से ज्यादा लोगों की जीविका खेती और उससे जुड़े क्षेत्रों पर निर्भर है. राजनीतिक दलों के लिए किसान आंदोलन से सियासी फायदे की फसल काटने का जो रास्ता निकलता दिख रहा था, उसमें किसान आंदोलन का उग्र होता तेवर तैयार हो रही फसल में खाद पानी देने का काम कर रहा था.

कांग्रेस ने इससे अपनी राजनीतिक गणित बैठाने में पूरी ताकत लगा दी थी. बिहार विधान सभा में मिली सियासी बढ़त और बंगाल में टूट रही ममता की पार्टी का फायदा किसान आंदोलन के रथ पर सवार होकर भावनात्मक राजनीतिक जमीन को तैयार करने की पूरी रणनीति कांग्रेस ने तैयार कर ली थी. सोनभद्र से किसानों के मुद्दे को लेकर खेत के मेड-मेड का चक्कर लगा चुकीं प्रियंका गांधी यूपी की राजनीति में किसान आंदोलन से सियासी फसल बोने में जुटी हैं. लगातार यूपी के दौरे के साथ ही बंगाल की राजनीति में जगह बनाने की जुगाड़ में कांग्रेस कोई कोर कसर नहीं रखना चाह रही है.

ये भी पढ़ें- पटना: पंचायती राज मंत्री सम्राट चौधरी ने संभाला कार्यभार, कहा- विकास को देंगे गति

लाल घेरे में आयी कांग्रेस

पीएम मोदी ने सदन में 'न खेलब, न खले देम, खेलवे बिगाड़ब' की बात कह कांग्रेस की सियासी असफलता की दुखती रग पर हाथ रख दिया. किसानों के जिस वोट बैंक को साधने के जुगाड में कांग्रेस ने अपने तरकस के तीर को निकाला, वह गलत दिशा में चल गया. किसानों को लेकर जिस हमदर्दी को कांग्रेस जुटाना चाहती थी, उसका सारा मजमून दिल्ली की सड़कों पर किसानों के हुड़दंग ने बिगाड़ दिया. लालकिला पर झंडा फहराने के जिस कार्य को किसानों ने किया. उसने आंदोलन को समर्थन दे रही कांग्रेस की सियासत की लाल घेरे में आ गयी.

वाम दल के साथ बंगाल में लाल सलाम का नारा लगाकर सत्ता सुख पाने की पूरी कहानी ही हुगली नदी में डूबती दिखने लगी. जिस किसान आदोलन को कांग्रेस चुनाव फतह को वैतरणी बनाना चाह रही थी, उस तैयारी की पीएम मोदी ने पूरी हवा निकाल दी. दरअसल पूर्वी भारत के पिछड़े रहने का कारण भी कांग्रेस ही रही. जिसके दर्द की अंतहीन कथा का खामियाजा पूर्वी भारत भुगत रहा है. इसकी सबसे बड़ी बानगी नेताओं का भाषण ही है कि पूर्वी भारत के विकास बिना देश का विकास नहीं होगा. सदन में जिस तरह से पूर्वी भारत का गुणगान हुआ, वह निश्चित ही पूर्वी भारत के विकास के लिए नए आयाम गढ़ेगा और पूर्वी भारत को इंतजार भी इसी राजनतिक निगेहवानी की है.

नई दिल्ली/पटनाः पीएम मोदी ने सदन में कांग्रेस और विपक्षी दलों को किसान आंदोलन के मुददे पर जिस मुहावरे के संबोधन से जवाब दिया उसने कांग्रेस की मौजूदा राजनीति की पूरी कलई ही खुल गयी. भोजपुरी में पीएम मोदी ने कहा, 'न खेलब, न खेले देम, खेलवे बिगाड़ब...' भोजपुरी के इस मुहावरे से मिली राजनीतिक नसीहत को कांग्रेस का हर नेता बेहतर तरीके से समझ गया है. पीएम मोदी ने अपने भाषण में जिस भोजपुरी मुहावरे का उपयोग किया. उससे कांग्रेस की किसान राजनीति और उससे होने वाले राजनीतिक फायदे नुकसान की हर परत को परत दर परत कुरेद दिया. भाजपा नेताओं ने सदन में भोजपुरी मुहावरे पर ताली बजायी. लेकिन कांग्रेस के लोगों के मन के अंदर पल रही राजनीति की पूरी मुरीद की चुलें ही हिल गयी.

राजनीति जमीन चमकाने के चक्कर में कांग्रेस चारों खाने चित्त
पीएम मोदी ने अपने भाषण में किसान आंदोलन को अपने हक की लड़ाई की जायज मांग बता दी. साथ ही आंदोलनकारी को आंदोलनजीवी जैसे शब्दों से विपक्ष को बता दिया कि किसान आंदोलन से क्या साधने की कवायद हो रही है. दरअसल कांग्रेस किसान आंदोलन से एक नहीं कई निशाने को साधने की कोशिश कर रही है. भोजपुरी मुहावरे से पूर्वी भारत की राजनीति को सिर्फ किसान राजनीति से जोड़कर देखा जाए तो चल रहे किसान आंदोलन को महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह से जोड़कर कांग्रेस ने जिस राजनीति को हवा दी थी, उसकी पूरी बानगी ही बेदम हो गयी. गांधी और किसान से अपनी राजनीति जमीन को चमकाने के चक्कर में कांग्रेस चारो खाने चित्त हो गयी.

सदन में भाषण देते पीएम मोदी

कांग्रेस यह समझ ही नहीं पायी कि चम्पारण में जबरन की खेती का विरोध था. जबकि इस आंदोलन को जबरन राजनीति की खेती के लिए खींचा जा रहा है. जिसका फायदा होने के बजाय नुकसान हो जाएगा.

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एक तीर से साधे कई निशाने
पीएम मोदी ने विपक्ष पर एक नहीं कई सवाल दाग दिए. जिसके जवाब के लिए विपक्ष पूरी तरह चुप रहा. पीएम मोदी ने कहा कि देश बदल रहा है, विकास ने रफ्तार पकड़ी है. ऐसे में विपक्ष को देश के विकास के मुद्दे पर कोई सवाल ही नहीं है. 27 शहर में मेट्रो और 27 हजार गांवों तक हाई स्पीड इंटरनेट की सेवा के साथ ही 600 किलोमीटर डेडिकेटेड फ्रेट कोरिडार पर दौड़ती किसान ट्रेन पर सवाल उठाने के लिए विपक्ष के पास कुछ नहीं है.

कोरोना के समय में देश की सेवा में जुटे स्वास्थ्य कर्मियों को भगवान के नाम से बुलाकर गांव-गांव तक फैले ग्रामीण स्वास्थ्य कर्मियों को सेवा का नया संबल दे दिया. पीएम मोदी ने पूर्वी भारत के विकास के बिना देश का विकास नहीं हो सकता. भोजपुरी के जिस मुहावरे से कांग्रेस को राजनीति की नसीहत दी. उससे मोदी ने एक तीर से कई निशाने साध दिए.

ये भी पढ़ें- उत्तराखंड के चमोली में अब तक बिहार के 5 लोग लापता, टकटकी लगाए बैठे हैं परिजन

इसलिए बिहार के किसान नहीं बने आंदोलन का हिस्सा
दरअसल, किसान और गांव की जिस राजनीति को कांग्रेस 20 से शुरू कर अपने आगे की राजनीति को जमापूंजी बनाना चाहती थी, उसमें यूपी, बिहार, बंगाल और पूर्वी भारत की चुनावी तैयारी का मजमून था. जिसके बदौलत कांग्रेस सियासी समर में जाना चाहती थी. दरअसल कांग्रेस इस गणित को बैठा नहीं पायी कि एक राज्य को छोडकर दूसरे राज्य के किसान आदोलन का हिस्सा क्यो नहीं बन रहे.

किसान आंदोलन को लेकर चंपारण की बात सबसे पहले कांग्रेस नेताओं ने की थी, लेकिन कांग्रेस के लोग भूल गए कि जबरन खेती करवाने और खेती के लिए कुछ बनायी व्यवस्था पर जबरन राजनीति में बड़ा फर्क है. यही बजह है कि बिहार के किसान इस मुहीम का हिस्सा ही नहीं बने. यह सभी कहते और मानते हैं कि बिहार बदलाव की धरती रही है, चम्पारण सत्याग्रह का मामला हो या फिर जेपी आंदोलन का बिहार जब जगा हैे, तो उसने देश की राजनीतिक फिजा को ही बदल दिया है.

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देश की राजनीति में पुरवईया हवा की लहर बहने लगी है. कांग्रेस इस लहर में अपनी राजनीतिक गोटी सेट करने में लगी है. पीएम मोदी ने भोजपुरी और पूर्वी भारत के विकास से देश को दिशा और छोटे सीमांत किसानों को अलग से सहायता देने की बात कह पूर्वी भारत की आर्थिक संरचना की नींव को इतनी मजबूत जगह दी है कि इसके जवाब में कांग्रेस को कोई मुद्दा ही नहीं सूझ रहा है.

यूपी में मार्च के बाद पंचायत चुनाव तय है. यूपी के 2021 के पंचायत चुनाव को 2022 का सेमीफाइनल माना जा रहा है. बिहार में पंचायत चुनाव मई महीने तक होना है. आसाम और बंगाल की राजनीति चुनावी अंगड़ाई ले रही है. इन राज्यों की पूरी राजनीति की खेती-किसानी ही किसानों पर टिकी है.

ये भी पढ़ें- मोतिहारी गैंगरेप-हत्या मामला: FSL टीम ने शव जलाने वाले स्थान से इकट्ठा किया हड्डियों का अवशेष

बंगाल की रणनीति में जगह बनाने की जुगाड़ में कांग्रेस
बिहार की 80 फीसदी आबादी की जीविका खेती हैे. यूपी का पुर्वान्चल भी खेती पर ही निर्भर है. जबकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश गन्ना बेल्ट और खेती किसानी का अड्डा है. बंगाल में 60 प्रतिशत से ज्यादा लोगों की जीविका खेती और उससे जुड़े क्षेत्रों पर निर्भर है. राजनीतिक दलों के लिए किसान आंदोलन से सियासी फायदे की फसल काटने का जो रास्ता निकलता दिख रहा था, उसमें किसान आंदोलन का उग्र होता तेवर तैयार हो रही फसल में खाद पानी देने का काम कर रहा था.

कांग्रेस ने इससे अपनी राजनीतिक गणित बैठाने में पूरी ताकत लगा दी थी. बिहार विधान सभा में मिली सियासी बढ़त और बंगाल में टूट रही ममता की पार्टी का फायदा किसान आंदोलन के रथ पर सवार होकर भावनात्मक राजनीतिक जमीन को तैयार करने की पूरी रणनीति कांग्रेस ने तैयार कर ली थी. सोनभद्र से किसानों के मुद्दे को लेकर खेत के मेड-मेड का चक्कर लगा चुकीं प्रियंका गांधी यूपी की राजनीति में किसान आंदोलन से सियासी फसल बोने में जुटी हैं. लगातार यूपी के दौरे के साथ ही बंगाल की राजनीति में जगह बनाने की जुगाड़ में कांग्रेस कोई कोर कसर नहीं रखना चाह रही है.

ये भी पढ़ें- पटना: पंचायती राज मंत्री सम्राट चौधरी ने संभाला कार्यभार, कहा- विकास को देंगे गति

लाल घेरे में आयी कांग्रेस

पीएम मोदी ने सदन में 'न खेलब, न खले देम, खेलवे बिगाड़ब' की बात कह कांग्रेस की सियासी असफलता की दुखती रग पर हाथ रख दिया. किसानों के जिस वोट बैंक को साधने के जुगाड में कांग्रेस ने अपने तरकस के तीर को निकाला, वह गलत दिशा में चल गया. किसानों को लेकर जिस हमदर्दी को कांग्रेस जुटाना चाहती थी, उसका सारा मजमून दिल्ली की सड़कों पर किसानों के हुड़दंग ने बिगाड़ दिया. लालकिला पर झंडा फहराने के जिस कार्य को किसानों ने किया. उसने आंदोलन को समर्थन दे रही कांग्रेस की सियासत की लाल घेरे में आ गयी.

वाम दल के साथ बंगाल में लाल सलाम का नारा लगाकर सत्ता सुख पाने की पूरी कहानी ही हुगली नदी में डूबती दिखने लगी. जिस किसान आदोलन को कांग्रेस चुनाव फतह को वैतरणी बनाना चाह रही थी, उस तैयारी की पीएम मोदी ने पूरी हवा निकाल दी. दरअसल पूर्वी भारत के पिछड़े रहने का कारण भी कांग्रेस ही रही. जिसके दर्द की अंतहीन कथा का खामियाजा पूर्वी भारत भुगत रहा है. इसकी सबसे बड़ी बानगी नेताओं का भाषण ही है कि पूर्वी भारत के विकास बिना देश का विकास नहीं होगा. सदन में जिस तरह से पूर्वी भारत का गुणगान हुआ, वह निश्चित ही पूर्वी भारत के विकास के लिए नए आयाम गढ़ेगा और पूर्वी भारत को इंतजार भी इसी राजनतिक निगेहवानी की है.

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