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मसौढ़ी के पुनपुन से त्रिपाक्षिक पिंडदान शुरू, गयाजी से पहले यहां तर्पण करने की है परंपरा - etv bharat news

गया में पिंडदान करने से पहले पटना से सटे मसौढ़ी के पुनपुन नदी तट पर तर्पण करना अनिवार्य माना जाता है. क्यों गयाजी से पहले पुनपन में किया जाता है पिंडदान और पितृ पक्ष (Pitru Paksha 2022) के 17 दिनों तक कैसे नियम धर्म का पलान करें जानिए.

Pind Daan On Punpun River Of Masaurhi
Pind Daan On Punpun River Of Masaurhi
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Published : Sep 9, 2022, 6:00 AM IST

Updated : Sep 9, 2022, 4:39 PM IST

पटना: मसौढ़ी के पुनपुन नदी को पिंडदान (Pind Daan On Punpun River Of Masaurhi) का प्रथम द्वार कहा जाता है. मान्यता के अनुसार पितरों का गयाजी में पिंडदान करने से पहले यहां पिंडदान ( Importance Of Pitru Paksha) करना जरूरी होता है. पुनपुन में पिंडदान करने के बाद ही गया में पिंडदान को संपन्न माना जाता है. इसके पीछे सदियों से चली आ रही मान्यता है. अगर यहां पिंडदान किए बिना कोई गया जाकर पितरों के मोक्ष प्राप्ति के लिए पिंडदान करना चाहे तो ऐसा संभव नहीं हो सकता है.

पढ़ें- पितृपक्ष 2022: गया में देश का सबसे बड़ा रबर डैम, सीएम नीतीश ने किया उद्घाटन

पुनपुन में पिंडदान शुरू : पितृपक्ष की शुरुआत ( Pitri Paksha 2022) 10 सितंबर 2022 से हो रही है और 25 सितंबर (Pitru Paksha Date 2022) तक चलेगी. इसकी तिथि को लेकर किसी भी तरह का संशय नहीं होता है. लेकिन क्या आप जानते हैं मसौढ़ी के पुनपुन में पिंडदान 9 सितंबर यानी कि आज से शुरू हो गया है. भाद्रपद चतुर्दशी को पटना जिले की पुनपुन नदी या गया शहर में स्थित गोदावरी से त्रिपाक्षिक पिंडदान शुरू हो गया है. पिंडदानी पुनपुन नदी में श्राद्ध करने के बाद गया के लिए रवाना हो रहे हैं. कई बार ऐसा भी होता है कि किन्हीं कारणों से पिंडदानी पुनपुन में पिंडदान नहीं कर पाते. ऐसी स्थिति में अगर कोई सीधे गयाजी आते हैं तो वे यहां के गोदावरी तालाब में पिंडदान के साथ त्रिपाक्षिक पिंडदान शुरू करेंगे. यानी कि यहां उन्हें त्रिपाक्षिक पिंडदान करना ही होगा. तभी पितरों की आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्त होती है.

पिंडदानियों का गया पहुंचने का सिलसिला शुरू: पहले दिन पुनपुन घाट पर श्राद्ध किया जाता है, जो व्यक्ति पुनपुन नहीं पहुंच पाते. वह गया में गोदावरी सरोवर पर पिंडदान करते हैं. गोदावरी सरोवर पर शुक्रवार को पिंडदान करने के लिए बंगाल, मुंबई समेत देश के कोने-कोने से पिंडदानी पहुंचे हैं. इस तरह पिंडदानियों के गया आने का सिलसिला शुरू हो गया है.

पुनपुन में भगवान श्री राम ने किया था पिंड दान: मान्यताओं के अनुसार पुनपुन घाट पर ही भगवान श्री राम (Lord Shri Ram Pind Daan in Punpun) माता जानकी के साथ अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पहला पिंड का तर्पण किए थे, इसलिए इसे पिंड दान का प्रथम द्वार कहा जाता है. इसके बाद ही गया के फल्गु नदी तट पर पूरे विधि-विधान से तर्पण किया गया था. प्राचीन काल से पहले पुनपुन नदी घाट पर पिंडदान तर्पण करने फिर गया के 52 वेदी पर पिंडदान का तर्पण करने की परंपरा भी है. तभी पितृपक्ष में पिंडदान को पूरा तर्पण संपन्न माना जाता है.

यह भी है मान्यता: पुनपुन नदी के उद्गम के बारे में कहा जाता है महर्षि चैवण्य ने सृष्टि के रचियता बह्मा से पूछा कि भगवान मृत्युलोक के लोगों की मृत्यु के पश्चात उसे मोक्ष कैसै प्राप्ति होगी. तब उन्होंने महर्षि चैवण्य को तपस्या का मार्ग बतलाया. महर्षि चैवण्य अपने सभी सप्त ऋषियों के साथ जंगल मे घोर तपस्या में लीन होकर मोक्ष का मार्ग ढूंढने लगे. घोर तपस्या के बाद ब्रह्मदेव प्रकट हुए और कहा कि आपलोगों की तपस्या सफल हुई, लेकिन ऋषियों को समझ में नहीं आया कि कुछ मिला नहीं और ब्रहमदेव कह रहे हैं कि तपस्या सफल हुई. उसके बाद सभी ऋषि ब्रह्मदेव के चरण धोने के लिए जल खोजने लगे, लेकिन जंगल मे जल नहीं मिलने पर अपने-अपने पसीने को कमंडल में जमा करना शुरू कर दिया. बार-बार कमंडल में पसीना भरने के बाद वह अपने आप गिर जाता था. ऐसे में ब्रहमदेव के मुख से निकला पुनः पुनः. ऐसा क्यों हो रहा है. फिर उसी समय वहां जल स्त्रोत का उदगम हुआ, जो पुनपुन नदी कहलाया. ब्रह्मदेव ने कहा कि जो भी प्राणी इस पुनपुन नदी तट पर अपने पितरों का पिंड दान करेगा, उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी.

कब से शुरू हो रहा पितृ पक्ष 2022: पितृ पक्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष के पूर्णिमा से शुरू होता है. भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि 10 सितंबर को है, ऐसे में पितृ पक्ष की शुरुआत 11 सिंतबर अश्विन माह के कृष्ण पक्ष के प्रतिपदा तिथि से हो रही है. इसका समापन 25 सितंबर को होगा. इस बीच पितरों का आशीर्वाद पाने के लिए उनका तर्पण अवश्य करना चाहिए.

क्यों करते हैं पितृ पक्ष?: हिंदू धर्म में व्यक्ति के मृत्यु के पश्चात उसे पितृ की संज्ञा दी जाती है. मान्यता अनुसार मृतक का श्राद्ध या तर्पण न करने से पितरों की आत्मा को शांति नहीं मिलती है, जिससे घर में पितृ दोष लगता है और घर पर कई तरह की समस्याएं उत्पन्न होती हैं. वहीं जिनके घर के पितृ प्रसन्न रहते हैं उनके घर कभी कोई मुसीबत नहीं आती है. ऐसे में पूर्वजों को प्रसन्न करने के लिए आश्विन माह में 15 दिन का पितृ पक्ष समर्पित होता है, इस बीच पितरों को प्रसन्न करने के लिए श्राद्ध किया जाता है.

गया श्राद्ध का क्रम: गया श्राद्ध का क्रम 1 दिन से लेकर 17 दिनों तक का होता है. 1 दिन में गया श्राद्ध कराने वाले लोग विष्णुपद फल्गु नदी और अक्षय वट में श्राद्ध पिंडदान कर सुफल देकर यह अनुष्ठान समाप्त करते हैं. वह एक दृष्टि गया श्राद्ध कहलाता है. वहीं, 7 दिन के कर्म केवल सकाम श्राद्ध करने वालों के लिए है. इन 7 दिनों के अतिरिक्त वैतरणी भसमकुट, गो प्रचार आदि गया आदि में भी स्नान-तर्पण-पिंडदानादि करते हैं. इसके अलावा 17 दिन का भी श्राद्ध होता है. इन 17 दिनों में पिंडदान का क्या विधि विधान है जानिए.

पहला दिन: पुनपुन के तट पर श्राद्ध करके गया आकर पहले दिन फल्गु में स्नान और फल्गु के किनारे श्राद्ध किया जाता है. इस दिन गायत्री तीर्थ में प्रातः स्नान, संध्या मध्याह्न में सावित्री कुंड में स्नान करना चाहिए. संध्या और सांय काल सरस्वती कुंड में स्नान करना विशेष फलदायक माना जाता है.

दूसरा दिन: दूसरे दिन फल्गु स्नान का प्रावधान है. साथ ही प्रेतशिला जाकर ब्रह्मा कुंड और प्रेतशिला पर पिंडदान किया जाता है. वहां से रामशिला आकर रामकुंड और रामशिला पर पिंडदान किया जाता है और फिर वहां से नीचे आकर काकबली स्थान पर काक, यम और स्वानबली नामक पिंडदान करना चाहिए.

तीसरा दिन: तीसरे दिन पिंडदानी फल्गु स्नान करके उत्तर मानस जाते हैं. वहां स्नान, तर्पण, पिंडदान, उत्तरारक दर्शन किया जाता है. वहां से मौन होकर सूरजकुंड आकर उसके उदीची कनखल और दक्षिण मानस तीर्थों में स्नान तर्पण पिंडदान और दक्षिणारक का दर्शन करना चाहिए. फिर पूजन करके फल्गु किनारे जाकर तर्पण करें और भगवान गदाधर जी का दर्शन एवं पूजन करें.

चौथा दिन: चौथे दिन भी फल्गु स्नान अनिवार्य है. मातंग वापी जाकर वहां पिंडदान करना चाहिए. इस दिन धर्मेश्वर दर्शन के बाद पिंडदान करना चाहए फिर वहां से बोधगया जाकर श्राद्ध करना चाहिए.

पांचवां दिन: पितृ पक्ष के पांचवें दिन मोक्ष की नगरी गया में ब्रह्म सरोवर महत्व रखता है. ब्रह्म सरोवर में पिंडदान कर काकबलि वेदी पर कुत्ता, कौआ और यम को उड़द के आटे का पिंड बनाकर तर्पण दिया जाता है. काकबलि से बलि देकर आम्र सिचन वेदी के पास आम वृक्ष की जड़ को कुश के सहारे जल दिया जाता है. तीनों वेदियों में प्रमुख वेदी ब्रह्म सरोवर है.

छठा दिन: छठे दिन फल्गु स्नान के पश्चात विष्णुपद दक्षिणा अग्नीपद वेदियों का आह्वान किया जाता है, जो विष्णु मंदिर में ही मानी जाती है. उसके दर्शन कर श्राद्ध पिंडदान करना चाहिए. वहां से गज कर्णिका में तर्पण करना चाहिए. साथ ही गया सिर पर पिंडदान करना चाहिए. मुंड पृष्टा पर पिंड दान करना चाहिए.

सातवां दिन: फल्गु स्नान, श्राद्ध, अक्षय वट जाकर अक्षय वट के नीचे श्राद्ध करना चाहिए. वहां 3 या 1 ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए. यहीं गया पाल पंडों के द्वारा सुफल दिलाई जाती है.

आठवां दिन: इस दिन जल से किए तर्पण के द्वारा पितृ दोष से मुक्ति मिलती है. पितृ कार्य करने के साथ पितरों की प्रसन्नता के लिए पितृ स्त्रोत का पाठ भी करना चाहिए.

नौवां दिन: पिंडदान अर्पित कर कण्वपद, दधीचि पद, कार्तिक पद, गणेश पद और गजकर्ण पद पर दूध ,गंगा जल या फल्गू नदी के पानी से तर्पण करना चाहिए. अंत में कश्यप पद पर श्राद्ध करके कनकेश, केदार और वामन की ओर उत्तर मुख होकर पूजा करने मात्र से पितर तर जाते हैं.

दसवां दिन: मोक्ष की नगरी गया जी में पिंडदान के दसवें दिन मातृ नवमी को सीताकुंड और रामगया तीर्थ इन दो पुण्य तीर्थो में पिंडदान करने का विधान है. दसवें दिन सीताकुंड पर सुहाग पिटारी दान और बालू का पिंड अर्पित किया जाता है. फल्गु नदी की बालू से पिंड बना विधि विधान पूरा किया जाता है.

11वां दिन: मोक्ष की नगरी गया जी में पिंडदान के 11वें दिन गया सिर और गया कूप नामक दो तीर्थों में पिंडदान होता है. गया सिर की ऐसी मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से नरक भोग रहे पूर्वजों को भी स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है. वहीं, गया कूप के बारे में कहा जाता है कि यहां पिंडदान करने से जो स्वर्गस्थ पितर हैं, उन्हें मोक्ष को प्राप्त होता है. दोनों तीर्थों की पौराणिक कथा भी प्रचलित है.

12वां दिन: मोक्ष की नगरी गयाजी में पिंडदान के 12वें दिन मुंड पृष्ठा तीर्थ पर पिंडदान करने का विधान है. एकादशी तिथि के दिन फल्गु स्नान करने के बाद यहां पिंडदान किया जाता है. वहीं, ऐसी मान्यता है कि खोया और चांदी का सामान दान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.

13वां दिन: मोक्ष की नगरी गया में पितृपक्ष के 13वें दिन द्वादशी तिथि को भीम गया,गौ प्रचार,गदालोल इन तीन वेदियों पर श्राद्ध करने का विधान है. मंगला गौरी मंदिर के मुख्य रास्ता से भीम गया वेदी अक्षयवट वाले रास्ते मे गौप्रचार वेदी है. अक्षयवट के सामने गदालोल वेदी स्थित है, जहां पिंडदान किया जाता है.

14वां दिन: 14वें दिन फल्गु नदी में स्नान करके दूध तर्पण करने का विधान है. 14वें दिन शाम यहां शाम को पितृ दीपावली मनायी जाती है. इसमें पितरों के लिए दीप जलाया जाता है और आतिशबाजी की जाती है.

15वां दिन: इस दिन वैतरणी सरोवर में पिंडदान और गौदान करने का नियम है. ऐसी मान्यता है कि देवनदी वैतरणी में स्नान करने से पितर स्वर्ग को जाते हैं. पिंडदान और गोदान करने के बाद सरोवर के निकट स्थित मार्कण्डेय शिव मंदिर में जाकर पूजा अर्चना करने का भी प्रावधान है.

16वां दिन: श्राद्ध पक्ष में गाय को गुड़ के साथ रोटी खिलाएं और कुत्ते, बिल्ली और कौओं को भी आहार दें. इससे पितरों का आशीर्वाद आप पर बना रहेगा. दुर्घटना, अस्त्र-शस्त्र और अपमृत्यु से मरे लोगों का श्राद्ध किया जाता है. इस दिन को तर्पण-श्राद्ध कर प्रसन्न करने का दिन माना जाता है.

17वां और आखिरी दिन: आखिरी दिन पितृ अमावस्या को लेकर मोक्षदायिनी फल्गु नदी पर तीर्थयात्रियों पितरों की आत्मा की मोक्ष प्राप्ति के लिए फल्गु नदी के जल से तर्पण करते हैं.

पितृ पक्ष में इन बातों का रखें खास ध्यान: हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व होता है. पितृपक्ष का समय पितरों यानी पूर्वजों के लिए समर्पित है. इसकी शुरुआत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से होती है, जो अश्विम मास की अमावस्या तिथि को समाप्त होती है. ऐसे में इस दौरान घर के किचन में मीट, मछली, मांस, लहसून, प्याज, मसूर की दाल, भूलकर भी न बनाएं. ऐसा करने से पितृ देव नाराज होते हैं और पितृ दोष लगता है. इसके साथ ही इस दौरान जो लोग पितरों का तर्पण करते हैं उन्हें शरीर में साबुन और तेल का प्रयोग नहीं करना चाहिए. पितृ पक्ष के दौरान नए कपड़े, भूमि, भवन सहित सभी प्रकार के मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं. इस दौरान कोई भी मांगलिक काम करने से परहेज करें.

पटना: मसौढ़ी के पुनपुन नदी को पिंडदान (Pind Daan On Punpun River Of Masaurhi) का प्रथम द्वार कहा जाता है. मान्यता के अनुसार पितरों का गयाजी में पिंडदान करने से पहले यहां पिंडदान ( Importance Of Pitru Paksha) करना जरूरी होता है. पुनपुन में पिंडदान करने के बाद ही गया में पिंडदान को संपन्न माना जाता है. इसके पीछे सदियों से चली आ रही मान्यता है. अगर यहां पिंडदान किए बिना कोई गया जाकर पितरों के मोक्ष प्राप्ति के लिए पिंडदान करना चाहे तो ऐसा संभव नहीं हो सकता है.

पढ़ें- पितृपक्ष 2022: गया में देश का सबसे बड़ा रबर डैम, सीएम नीतीश ने किया उद्घाटन

पुनपुन में पिंडदान शुरू : पितृपक्ष की शुरुआत ( Pitri Paksha 2022) 10 सितंबर 2022 से हो रही है और 25 सितंबर (Pitru Paksha Date 2022) तक चलेगी. इसकी तिथि को लेकर किसी भी तरह का संशय नहीं होता है. लेकिन क्या आप जानते हैं मसौढ़ी के पुनपुन में पिंडदान 9 सितंबर यानी कि आज से शुरू हो गया है. भाद्रपद चतुर्दशी को पटना जिले की पुनपुन नदी या गया शहर में स्थित गोदावरी से त्रिपाक्षिक पिंडदान शुरू हो गया है. पिंडदानी पुनपुन नदी में श्राद्ध करने के बाद गया के लिए रवाना हो रहे हैं. कई बार ऐसा भी होता है कि किन्हीं कारणों से पिंडदानी पुनपुन में पिंडदान नहीं कर पाते. ऐसी स्थिति में अगर कोई सीधे गयाजी आते हैं तो वे यहां के गोदावरी तालाब में पिंडदान के साथ त्रिपाक्षिक पिंडदान शुरू करेंगे. यानी कि यहां उन्हें त्रिपाक्षिक पिंडदान करना ही होगा. तभी पितरों की आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्त होती है.

पिंडदानियों का गया पहुंचने का सिलसिला शुरू: पहले दिन पुनपुन घाट पर श्राद्ध किया जाता है, जो व्यक्ति पुनपुन नहीं पहुंच पाते. वह गया में गोदावरी सरोवर पर पिंडदान करते हैं. गोदावरी सरोवर पर शुक्रवार को पिंडदान करने के लिए बंगाल, मुंबई समेत देश के कोने-कोने से पिंडदानी पहुंचे हैं. इस तरह पिंडदानियों के गया आने का सिलसिला शुरू हो गया है.

पुनपुन में भगवान श्री राम ने किया था पिंड दान: मान्यताओं के अनुसार पुनपुन घाट पर ही भगवान श्री राम (Lord Shri Ram Pind Daan in Punpun) माता जानकी के साथ अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पहला पिंड का तर्पण किए थे, इसलिए इसे पिंड दान का प्रथम द्वार कहा जाता है. इसके बाद ही गया के फल्गु नदी तट पर पूरे विधि-विधान से तर्पण किया गया था. प्राचीन काल से पहले पुनपुन नदी घाट पर पिंडदान तर्पण करने फिर गया के 52 वेदी पर पिंडदान का तर्पण करने की परंपरा भी है. तभी पितृपक्ष में पिंडदान को पूरा तर्पण संपन्न माना जाता है.

यह भी है मान्यता: पुनपुन नदी के उद्गम के बारे में कहा जाता है महर्षि चैवण्य ने सृष्टि के रचियता बह्मा से पूछा कि भगवान मृत्युलोक के लोगों की मृत्यु के पश्चात उसे मोक्ष कैसै प्राप्ति होगी. तब उन्होंने महर्षि चैवण्य को तपस्या का मार्ग बतलाया. महर्षि चैवण्य अपने सभी सप्त ऋषियों के साथ जंगल मे घोर तपस्या में लीन होकर मोक्ष का मार्ग ढूंढने लगे. घोर तपस्या के बाद ब्रह्मदेव प्रकट हुए और कहा कि आपलोगों की तपस्या सफल हुई, लेकिन ऋषियों को समझ में नहीं आया कि कुछ मिला नहीं और ब्रहमदेव कह रहे हैं कि तपस्या सफल हुई. उसके बाद सभी ऋषि ब्रह्मदेव के चरण धोने के लिए जल खोजने लगे, लेकिन जंगल मे जल नहीं मिलने पर अपने-अपने पसीने को कमंडल में जमा करना शुरू कर दिया. बार-बार कमंडल में पसीना भरने के बाद वह अपने आप गिर जाता था. ऐसे में ब्रहमदेव के मुख से निकला पुनः पुनः. ऐसा क्यों हो रहा है. फिर उसी समय वहां जल स्त्रोत का उदगम हुआ, जो पुनपुन नदी कहलाया. ब्रह्मदेव ने कहा कि जो भी प्राणी इस पुनपुन नदी तट पर अपने पितरों का पिंड दान करेगा, उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी.

कब से शुरू हो रहा पितृ पक्ष 2022: पितृ पक्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष के पूर्णिमा से शुरू होता है. भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि 10 सितंबर को है, ऐसे में पितृ पक्ष की शुरुआत 11 सिंतबर अश्विन माह के कृष्ण पक्ष के प्रतिपदा तिथि से हो रही है. इसका समापन 25 सितंबर को होगा. इस बीच पितरों का आशीर्वाद पाने के लिए उनका तर्पण अवश्य करना चाहिए.

क्यों करते हैं पितृ पक्ष?: हिंदू धर्म में व्यक्ति के मृत्यु के पश्चात उसे पितृ की संज्ञा दी जाती है. मान्यता अनुसार मृतक का श्राद्ध या तर्पण न करने से पितरों की आत्मा को शांति नहीं मिलती है, जिससे घर में पितृ दोष लगता है और घर पर कई तरह की समस्याएं उत्पन्न होती हैं. वहीं जिनके घर के पितृ प्रसन्न रहते हैं उनके घर कभी कोई मुसीबत नहीं आती है. ऐसे में पूर्वजों को प्रसन्न करने के लिए आश्विन माह में 15 दिन का पितृ पक्ष समर्पित होता है, इस बीच पितरों को प्रसन्न करने के लिए श्राद्ध किया जाता है.

गया श्राद्ध का क्रम: गया श्राद्ध का क्रम 1 दिन से लेकर 17 दिनों तक का होता है. 1 दिन में गया श्राद्ध कराने वाले लोग विष्णुपद फल्गु नदी और अक्षय वट में श्राद्ध पिंडदान कर सुफल देकर यह अनुष्ठान समाप्त करते हैं. वह एक दृष्टि गया श्राद्ध कहलाता है. वहीं, 7 दिन के कर्म केवल सकाम श्राद्ध करने वालों के लिए है. इन 7 दिनों के अतिरिक्त वैतरणी भसमकुट, गो प्रचार आदि गया आदि में भी स्नान-तर्पण-पिंडदानादि करते हैं. इसके अलावा 17 दिन का भी श्राद्ध होता है. इन 17 दिनों में पिंडदान का क्या विधि विधान है जानिए.

पहला दिन: पुनपुन के तट पर श्राद्ध करके गया आकर पहले दिन फल्गु में स्नान और फल्गु के किनारे श्राद्ध किया जाता है. इस दिन गायत्री तीर्थ में प्रातः स्नान, संध्या मध्याह्न में सावित्री कुंड में स्नान करना चाहिए. संध्या और सांय काल सरस्वती कुंड में स्नान करना विशेष फलदायक माना जाता है.

दूसरा दिन: दूसरे दिन फल्गु स्नान का प्रावधान है. साथ ही प्रेतशिला जाकर ब्रह्मा कुंड और प्रेतशिला पर पिंडदान किया जाता है. वहां से रामशिला आकर रामकुंड और रामशिला पर पिंडदान किया जाता है और फिर वहां से नीचे आकर काकबली स्थान पर काक, यम और स्वानबली नामक पिंडदान करना चाहिए.

तीसरा दिन: तीसरे दिन पिंडदानी फल्गु स्नान करके उत्तर मानस जाते हैं. वहां स्नान, तर्पण, पिंडदान, उत्तरारक दर्शन किया जाता है. वहां से मौन होकर सूरजकुंड आकर उसके उदीची कनखल और दक्षिण मानस तीर्थों में स्नान तर्पण पिंडदान और दक्षिणारक का दर्शन करना चाहिए. फिर पूजन करके फल्गु किनारे जाकर तर्पण करें और भगवान गदाधर जी का दर्शन एवं पूजन करें.

चौथा दिन: चौथे दिन भी फल्गु स्नान अनिवार्य है. मातंग वापी जाकर वहां पिंडदान करना चाहिए. इस दिन धर्मेश्वर दर्शन के बाद पिंडदान करना चाहए फिर वहां से बोधगया जाकर श्राद्ध करना चाहिए.

पांचवां दिन: पितृ पक्ष के पांचवें दिन मोक्ष की नगरी गया में ब्रह्म सरोवर महत्व रखता है. ब्रह्म सरोवर में पिंडदान कर काकबलि वेदी पर कुत्ता, कौआ और यम को उड़द के आटे का पिंड बनाकर तर्पण दिया जाता है. काकबलि से बलि देकर आम्र सिचन वेदी के पास आम वृक्ष की जड़ को कुश के सहारे जल दिया जाता है. तीनों वेदियों में प्रमुख वेदी ब्रह्म सरोवर है.

छठा दिन: छठे दिन फल्गु स्नान के पश्चात विष्णुपद दक्षिणा अग्नीपद वेदियों का आह्वान किया जाता है, जो विष्णु मंदिर में ही मानी जाती है. उसके दर्शन कर श्राद्ध पिंडदान करना चाहिए. वहां से गज कर्णिका में तर्पण करना चाहिए. साथ ही गया सिर पर पिंडदान करना चाहिए. मुंड पृष्टा पर पिंड दान करना चाहिए.

सातवां दिन: फल्गु स्नान, श्राद्ध, अक्षय वट जाकर अक्षय वट के नीचे श्राद्ध करना चाहिए. वहां 3 या 1 ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए. यहीं गया पाल पंडों के द्वारा सुफल दिलाई जाती है.

आठवां दिन: इस दिन जल से किए तर्पण के द्वारा पितृ दोष से मुक्ति मिलती है. पितृ कार्य करने के साथ पितरों की प्रसन्नता के लिए पितृ स्त्रोत का पाठ भी करना चाहिए.

नौवां दिन: पिंडदान अर्पित कर कण्वपद, दधीचि पद, कार्तिक पद, गणेश पद और गजकर्ण पद पर दूध ,गंगा जल या फल्गू नदी के पानी से तर्पण करना चाहिए. अंत में कश्यप पद पर श्राद्ध करके कनकेश, केदार और वामन की ओर उत्तर मुख होकर पूजा करने मात्र से पितर तर जाते हैं.

दसवां दिन: मोक्ष की नगरी गया जी में पिंडदान के दसवें दिन मातृ नवमी को सीताकुंड और रामगया तीर्थ इन दो पुण्य तीर्थो में पिंडदान करने का विधान है. दसवें दिन सीताकुंड पर सुहाग पिटारी दान और बालू का पिंड अर्पित किया जाता है. फल्गु नदी की बालू से पिंड बना विधि विधान पूरा किया जाता है.

11वां दिन: मोक्ष की नगरी गया जी में पिंडदान के 11वें दिन गया सिर और गया कूप नामक दो तीर्थों में पिंडदान होता है. गया सिर की ऐसी मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से नरक भोग रहे पूर्वजों को भी स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है. वहीं, गया कूप के बारे में कहा जाता है कि यहां पिंडदान करने से जो स्वर्गस्थ पितर हैं, उन्हें मोक्ष को प्राप्त होता है. दोनों तीर्थों की पौराणिक कथा भी प्रचलित है.

12वां दिन: मोक्ष की नगरी गयाजी में पिंडदान के 12वें दिन मुंड पृष्ठा तीर्थ पर पिंडदान करने का विधान है. एकादशी तिथि के दिन फल्गु स्नान करने के बाद यहां पिंडदान किया जाता है. वहीं, ऐसी मान्यता है कि खोया और चांदी का सामान दान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.

13वां दिन: मोक्ष की नगरी गया में पितृपक्ष के 13वें दिन द्वादशी तिथि को भीम गया,गौ प्रचार,गदालोल इन तीन वेदियों पर श्राद्ध करने का विधान है. मंगला गौरी मंदिर के मुख्य रास्ता से भीम गया वेदी अक्षयवट वाले रास्ते मे गौप्रचार वेदी है. अक्षयवट के सामने गदालोल वेदी स्थित है, जहां पिंडदान किया जाता है.

14वां दिन: 14वें दिन फल्गु नदी में स्नान करके दूध तर्पण करने का विधान है. 14वें दिन शाम यहां शाम को पितृ दीपावली मनायी जाती है. इसमें पितरों के लिए दीप जलाया जाता है और आतिशबाजी की जाती है.

15वां दिन: इस दिन वैतरणी सरोवर में पिंडदान और गौदान करने का नियम है. ऐसी मान्यता है कि देवनदी वैतरणी में स्नान करने से पितर स्वर्ग को जाते हैं. पिंडदान और गोदान करने के बाद सरोवर के निकट स्थित मार्कण्डेय शिव मंदिर में जाकर पूजा अर्चना करने का भी प्रावधान है.

16वां दिन: श्राद्ध पक्ष में गाय को गुड़ के साथ रोटी खिलाएं और कुत्ते, बिल्ली और कौओं को भी आहार दें. इससे पितरों का आशीर्वाद आप पर बना रहेगा. दुर्घटना, अस्त्र-शस्त्र और अपमृत्यु से मरे लोगों का श्राद्ध किया जाता है. इस दिन को तर्पण-श्राद्ध कर प्रसन्न करने का दिन माना जाता है.

17वां और आखिरी दिन: आखिरी दिन पितृ अमावस्या को लेकर मोक्षदायिनी फल्गु नदी पर तीर्थयात्रियों पितरों की आत्मा की मोक्ष प्राप्ति के लिए फल्गु नदी के जल से तर्पण करते हैं.

पितृ पक्ष में इन बातों का रखें खास ध्यान: हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व होता है. पितृपक्ष का समय पितरों यानी पूर्वजों के लिए समर्पित है. इसकी शुरुआत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से होती है, जो अश्विम मास की अमावस्या तिथि को समाप्त होती है. ऐसे में इस दौरान घर के किचन में मीट, मछली, मांस, लहसून, प्याज, मसूर की दाल, भूलकर भी न बनाएं. ऐसा करने से पितृ देव नाराज होते हैं और पितृ दोष लगता है. इसके साथ ही इस दौरान जो लोग पितरों का तर्पण करते हैं उन्हें शरीर में साबुन और तेल का प्रयोग नहीं करना चाहिए. पितृ पक्ष के दौरान नए कपड़े, भूमि, भवन सहित सभी प्रकार के मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं. इस दौरान कोई भी मांगलिक काम करने से परहेज करें.

Last Updated : Sep 9, 2022, 4:39 PM IST
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