पटनाः बिहार के पटना विश्वविद्यालय (Patna University Considered Nursery Of Politics) को प्रदेश की राजनीति का नर्सरी माना जाता है. वर्तमान समय में बिहार की सत्ता की धूरी रहे नेताओं ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत पटना विश्वविद्यालय के छात्र संघ चुनाव (Student Union Election In Patna University) से ही शुरू की थी. राजद नेता शिवानंद तिवारी ने कहते हैं कि उनके दौर में पूरे विश्वविद्यालय में छात्र संघ चुनाव के दौरान 2 लोग काफी फेमस थे, एक थे लालू प्रसाद यादव और दूसरे सुशील मोदी. एक बार फिर पटना विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव की गूंज है. इस छात्र संघ चुनाव में प्रदेश की विधायिका में मौजूद लगभग सभी राजनीतिक दलों के छात्र संगठन चुनाव लड़ रहे हैं. ऐसे में जानते हैं कि पटना विश्वविद्यालय से छात्र राजनीति की शुरुआत करने वाले प्रदेश और देश की राजनीति में किस स्थान पर हैं और पहले और अब की तुलना में छात्र संघ का चुनाव कितना बदल गया है.
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1970 में पहली बार हुआ था पीयू में छात्र संघ चुनावः साल 1970 में पहली बार पटना विश्वविद्यालय में प्रत्यक्ष रूप से वोटिंग के माध्यम से छात्र संघ चुनाव हुआ. तब लालू प्रसाद यादव महासचिव बने थे. छात्र संघ चुनाव जब प्रत्यक्ष रूप से पहली बार हुआ उसके बाद नियम बना की हर वर्ष छात्रसंघ चुनाव होगा लेकिन बीच में कई वर्ष ऐसे रहे हैं जब छात्र संघ चुनाव नहीं हुए हैं. साल 1971 में जब छात्रसंघ चुनाव हुआ जिसमें अध्यक्ष पद के लिए रामजतन सिन्हा और लालू प्रसाद यादव आमने-सामने थे जिसमें रामजतन सिन्हा की जीत हुई और इस चुनाव में प्रदेश के पूर्व कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह महासचिव बने.
चुनाव पर 28 वर्षों तक के लिए अघोषित रोकः इसके बाद 1973 में छात्रसंघ चुनाव हुआ. जिसमें लालू प्रसाद यादव अध्यक्ष बने, सुशील मोदी महासचिव बने, रविशंकर प्रसाद सहायक महासचिव बने. इसके बाद बीच में इमरजेंसी का दौरा या विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव कुछ वर्ष नहीं हुए फिर 1977 में छात्र संघ का चुनाव हुआ. जिसमें अश्विनी चौबे छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए. फिर जब 1980 में छात्रसंघ चुनाव हुआ तो अनिल शर्मा महासचिव बने. वहीं 1984 में रणवीर नंदन महासचिव बने. साल 1984 आते-आते छात्र संघ चुनाव में हिंसा बढ़ गई और वजह थी उम्र सीमा तय नहीं होने के कारण नेतागिरी चमकाने के लिए लोग छात्र बनकर राजनीति करते रहे. ऐसे में छात्रसंघ चुनाव पर अगले 28 वर्षों तक के लिए अघोषित रोक लग गई.
28 साल बाद 2012 में दोबारा हुए चुनावः दोबारा साल 2012 में विश्वविद्यालय के छात्रों की मांग पर छात्र संघ चुनाव हुआ. जिसमें भाजपा के दिग्गज नेता और विधायक अरुण सिन्हा के बेटे आशीष सिन्हा ने अध्यक्ष पद पर कब्जा जमाया और उपाध्यक्ष पद पर अंशुमान चुने गए. आशीष सिन्हा वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी से सक्रिय राजनीति में हैं. वही अंशुमान वकालत के पेशे में हैं और हर छात्र संघ चुनाव में एक नए कैंडिडेट को अपना समर्थन देते आ रहे हैं. साल 2012 के बाद एक बार फिर कुछ वर्षों के लिए छात्र संघ चुनाव रुक गया और 2018 में छात्र संघ चुनाव हुआ जिसमें मोहित प्रकाश छात्र संघ के अध्यक्ष बने. इसके बाद साल 2019 में छात्र संघ चुनाव हुआ जिसमें मनीष कुमार यादव ने छात्र संघ के अध्यक्ष पद पर जीत हासिल की. इसके बाद कोरोना का हवाला देते हुए विश्वविद्यालय में छात्र संघ अगले 2 वर्षों तक रुक गया.
पीयू में होने जा रहा छात्र संघ चुनावः एक बार फिर 2022 में छात्र संघ चुनाव की गूंज पटना विश्वविद्यालय के साथ-साथ पटना की गलियों में सुनाई दे रही है. ऐसे में अगर बात करें तो छात्र राजनीति से प्रदेश और देश की राजनीति में सफलता के झंडे गाड़ने वाली नेताओं की करें तो सबसे ऊपर नाम आता है लालू प्रसाद यादव का. यह अकेले ऐसे नेता हैं कि जब से प्रत्यक्ष रूप से छात्रसंघ चुनाव शुरू हुआ उसके बाद से छात्र संघ में अध्यक्ष बने और फिर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद तक पहुंचे. इनके अलावा सुशील मोदी जिन्होंने छात्र संघ चुनाव में महासचिव का पद हासिल किया वह प्रदेश में कई वर्षों तक उप मुख्यमंत्री के पद पर काबिज रहे हैं और वर्तमान में राज्यसभा सांसद हैं.
छात्र राजनीति में सक्रिय थे नीतीश कुमारः मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जो अपने कॉलेज के समय ही पटना विश्वविद्यालय के छात्र राजनीति में सक्रिय हो गए थे और लंबे समय से बिहार के मुख्यमंत्री बने हुए हैं और उन्होंने बिहार के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री बने रहने का कीर्तिमान भी बनाया है. इसके अलावा वशिष्ठ नारायण सिंह, रविशंकर प्रसाद, शिवानंद तिवारी, अश्विनी चौबे, रणवीर नंदन, जैसे कई दर्जन ऐसे नेता हैं जिन्होंने पटना यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान छात्र संघ में सक्रिय रहे और फिर प्रदेश और देश के राजनीतिक फलक पर अपना नाम स्थापित किए. पहले और अब के छात्र संघ चुनाव के फर्क को बताते हुए राजद नेता और पूर्व सांसद शिवानंद तिवारी ने बताया कि उनके दौर में छात्रसंघ चुनाव का अलग अंदाज रहता था. शुरुआत में उनकी छात्र संघ की राजनीति में रुचि नहीं थी लेकिन धीरे-धीरे उनका मन छात्र राजनीति में रमने लगा.
"साल 1970 में जब पहली बार छात्र संघ का चुनाव विश्वविद्यालय में हो रहा था तो हमारे एक दोस्त की दुकान यूनिवर्सिटी गेट के ठीक सामने थी. जहां पर काफी गहमागहमी बनी रहती थी. एक बार हमने अपने दोस्त से पूछा कि इतनी गहमागहमी क्यों है तो बताया कि छात्र संघ चुनाव हो रहा है और सभी को बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना चाहिए. इसके बाद वहां कुछ लोगों ने मुझे चुनाव लड़ने के लिए चैलेंज कर दिया. इसके बाद हमने एक खुद का पैनल बनाया जिसमें 70 से 80 की संख्या में विद्यार्थी सम्मिलित हुए और वह सभी के साथ विश्वविद्यालय के छात्र छात्राओं से जाकर मिलने लगे. ये लोग छात्रों से मिलने उनके हॉस्टल जाते थे और वोट की अपील करते थे"-शिवानंद तिवारी, राजद नेता और पूर्व सांसद
पीयू के छात्र संघ चुनाव में फेमस थे दो लोगः शिवानंद तिवारी ने बताया कि उसी समय लालू प्रसाद यादव उनसे मिलने आए और उन्होंने कहा कि अपने साथ जोड़ लो. उसी चुनाव में लालू यादव जनरल सेक्रेटरी बने थे और उस समय नीतीश कुमार के बारे में कुछ लोगों ने बताया था कि एक लड़का है नीतीश कुमार बड़ा शांत स्वभाव का लड़का है. नीतीश कुमार को अपने साथ जोड़ने के लिए वह उनके हॉस्टल के कमरे में मिलने भी गए लेकिन नीतीश कुमार अपने रूम में नहीं थे और उनकी उस समय मुलाकात नहीं हो पाई. अपने दौर के छात्र संघ चुनाव को याद करते हुए शिवानंद तिवारी ने कहा कि उनके दौर में पूरे विश्वविद्यालय में छात्र संघ चुनाव के दौरान 2 लोग काफी फेमस थे, एक थे लालू प्रसाद यादव और दूसरे सुशील मोदी.
1973 में छात्रसंघ के अध्यक्ष बने लालू यादवः अध्यक्ष उन्होंने बताया कि जब 1973 में छात्रसंघ चुनाव हुआ तो लालू यादव अध्यक्ष बने और सुशील मोदी जिंदल सेक्रेटरी और यही बात लालू यादव आज भी बोलते हैं कि मोदी मेरा सेक्रेटरी था. शिवानंद तिवारी ने अपने दौर को याद करते हुए कहा कि उस समय काफी डायनेमिक छात्र नेता हुआ करते थे वशिष्ठ नारायण सिंह जो बाद में जाकर बड़े मुकाम पर पहुंचे. उन्हें उस दौर में राजपूतों का बड़ा नेता माना जाता था और एक और बड़े नेता थे दिवंगत नरेंद्र सिंह जिनके बेटे सुमित अभी नीतीश कुमार की सरकार में मंत्री हैं. शिवानंद तिवारी ने कहा कि उनके जमाने में विचारधारा की लड़ाई होती थी और उनके जमाने में भी छात्र संघ चुनाव में लेफ्ट पार्टी से जुड़े छात्र संगठन बहुत एक्टिव रहते थे और आज के दौर में भी लेफ्ट के छात्र संघ बहुत एक्टिव रहते हैं.
2012 में छात्रसंघ के उपाध्यक्ष बने अंशुमानः के पटना विश्वविद्यालय में 28 वर्षों के अंतराल के बाद जब 2012 में छात्रसंघ चुनाव हुआ तो उस समय उपाध्यक्ष पद पर अंशुमान की जीत हुई. अध्यक्ष पद पर आशीष सिन्हा ने जीत दर्ज किया लेकिन उन्होंने 1 साल बाद ही अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और ऐसे में अगले 4 साल तक 2018 तक जब तक छात्र संघ चुनाव नहीं हुआ अंशुमान ने बतौर कार्यकारी अध्यक्ष, अध्यक्ष पद का भी कार्यभार संभाला. ईटीवी से बातचीत में अंशुमान ने बताया कि जब 28 वर्षों के बाद पटना विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव हुआ तो उस समय नेशनल मीडिया के साथ-साथ इंटरनेशनल मीडिया की भी नजरें थी. छात्र संघ चुनाव को लेकर के पूरे प्रदेश के विश्वविद्यालयों के छात्रों में एक अलग उत्साह देखने को मिला और सभी को ऐसा लग रहा था कि अब उनके विश्वविद्यालय में भी छात्र संघ चुनाव होगा और राजनीति का ककहरा विश्वविद्यालय से ही सीखना शुरू कर देंगे.
"धीरे-धीरे विगत 10 वर्षों में ही छात्रों का छात्र राजनीति से झुकाव कम हुआ है. इसका वजह यह है कि विश्वविद्यालय में छात्र संघ को लेकर जो लिंगदोह कमेटी की रिपोर्ट है उसे लागू नहीं किया गया. छात्र संघ के पास अधिकार काफी कम हैं और विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति में भी जात पात हावी हो गया है. उम्मीदवार छात्रों के बीच अपने मुद्दों को इतने उत्साह और प्रमुखता से नहीं रख रहे हैं और इसके बजाय छात्र संघ चुनाव में महंगी गाड़ियों का इस्तेमाल करके, बिरयानी बांट कर वोट खरीदने की जुगत में हैं"- अंशुमान, पूर्व उपाध्यक्ष, छात्र संघ
आज भी बैलेट पेपर से होता है चुनावः आपको बता दें कि पटना विश्वविद्यालय में लड़कियों की संख्या सबसे अधिक है और लड़कियों में ही चुनाव को लेकर रिस्पांस काफी कम है. हालांकि सोशल मीडिया का दौर होने से चुनाव प्रचार और अपने मुद्दों को सब तक पहुंचाने में उम्मीदवारों को सहूलियत भी हो रही है, लेकिन विश्वविद्यालय में छात्र जहां पर्यावरण की रक्षा की बात करते हैं, हाईटेक होने की बात करते हैं. इस दौर में भी बैलेट से चुनाव हो रहा है. अगर छात्र संघ चुनाव में ईवीएम का इस्तेमाल होता तो मतदान करने में छात्रों का समय भी बचता, कागज की बर्बादी अधिक नहीं होती और मतगणना में भी अधिक मशक्कत नहीं करनी पड़ती.