पटना: वैसे तो ट्रांसजेंडर को कानून ने समाज में बराबरी का हक दिया है लेकिन अभी भी समाज उन्हें स्वीकार करने को तैयार नहीं है. ट्रांसजेंडर की सबसे बड़ी समस्या है कि परिवार उन्हें अपनाता नहीं है और पढ़ लिखकर कुछ नौकरी पाने की चाहत रखती हैं तो उन्हें पढ़ाई लिखाई छोड़कर बधाई गाने के काम में लगने के लिए दबाव बनाता है. कुछ ऐसी ही संघर्ष की कहानी पटना में दारोगा बनने की तैयारी कर रही ट्रांसजेंडर मानवी मधु कश्यप की है.
खुद को किया सबसे अलग: मानवी मधु ने बताया कि बचपन से वह लड़के की तरह रही लेकिन बड़े होने के साथ एहसास हो गया कि वह एक ट्रांसजेंडर हैं. ऐसे में नौवीं कक्षा से ही वह खुद को सेपरेट रखने लगी और क्लास में लड़कों के बीच रहती तो जरूर लेकिन बहुत कम किसी से बातचीत करती और अपने आप में ही दब कर रहती. परिवार में पिता नहीं है और भाइयों पर समाज का दबाव था ऐसे में उन्होंने परिवार में किसी को कुछ नहीं बताया.
9 सलों से है परिवार से दूर: उनके परिवार को शक होता था लेकिन 2014 तक उन्होंने पॉलिटिकल साइंस में अपनी स्नातक कंप्लीट कर ली. इसके बाद से उन्होंने परिवार से दूरी बना ली. वह 9 सलों से परिवार से दूर हैं और अपने घर नहीं गई हैं, ना हीं घर के किसी सदस्य से मिली हैं. बंगाल में ट्रांसजेंडर समुदाय को प्राइवेट नौकरियों में जगह दी जाती है. उन्होंने बंगाल में जाकर प्राइवेट नौकरी की लेकिन कोरोना में नौकरी छूट गई और वह बिहार आ गई.
शुरू की सरकारी नौकरी की तैयारी: मधु ने बताया कि बिहार में उन्हें एक एजेंसी में लॉजिस्टिक असिस्टेंट का काम मिला जहां उन्होंने कुछ दिनों काम किया और सरकारी नौकरी की तैयारी की. मद्य निषेध विभाग में कांस्टेबल के पद पर निकली वैकेंसी में उन्होंने क्वालीफाई किया लेकिन फिजिकल में छंट गई. मधु ने बताया कि वह ट्रांस है इसमें उनकी कोई गलती नहीं लेकिन समाज उन्हें अपनाता नहीं है. समाज उन्हें अपना ले इसके लिए उन्हें एक सर्जरी करानी पड़ी है.
सर्जरी के बाद हुई हालात खराब: सर्जरी कंप्लीट करने के लिए उनके लिए पेट में बड़ा चीरा लगाकर शरीर का एक अंग काटा गया और नया अंग तैयार किया गया. यह सर्जरी कई बार में कंपलीट हुई. जब मद्य निषेध विभाग के कांस्टेबल के लिए जब उनकी फिजिकल थी तो कुछ ही दिनों पूर्व उनकी सर्जरी कंपलीट हुई थी. सर्जरी में 2 महीना उन्हें बेड पर रहना पड़ा था और सर्जरी ऐसी थी कि 2 महीने बाद जब वह पहली बार सीढ़ी चढ़ी तो उनके प्राइवेट पार्ट से ब्लीडिंग शुरू हो गई. इतनी ब्लीडिंग हुई कि उन्हें खून चढ़ाना पड़ा और वह बेहोश हो गई थी.
11 सेकंड लेट होने से टूटा सपना: सर्जरी के 5 महीना बाद ही मधु की दौड़ हुई जिसमें वह दौड़ को कंप्लीट करने में 11 सेकंड लेट हो गई और फिजिकल में छंट गई. फिजिकल के समय वह बिहार सरकार के किन्नर कल्याण के लिए चलाए जा रहे सेल्टर होम में रह रही थी. मधु ने बताया कि जब वह यहां से छंटी तब तय कर लिया कि अब उन्हें सरकारी नौकरी लेनी ही है. सेल्टर होम में बाकी साथी कहती थी कि पढ़ लिखकर क्या होगा क्योंकि कई लोग वहां पीजी और पीएचडी क्वालिफाइड होकर बधाई गाने का काम करती है.
हॉस्टल में रहकर कर रही दारोगा की तैयारी: उन्होंने सेल्टर हम छोड़ दिया और अब वह एक लड़की की पहचान लेकर गर्ल्स हॉस्टल में रहकर बिहार दारोगा के लिए तैयारी कर रही हैं. उन्हें पता चला कि गुरु रहमान ट्रांसजेंडर को निशुल्क परीक्षा की तैयारी कराते हैं. ऐसे में वह उनके पास पहुंची. यहां निशुल्क उन्हें स्टडी मटेरियल मिल गया और पढ़ाई भी चल रही है. पूर्व में उन्होंने जो काम किया है, उससे जो कुछ भी सेविंग बची है, उसी के बदौलत वह हॉस्टल में रहकर अपनी पढ़ाई का खर्च वहन कर रही हैं.
"अपनी पहचान छुपाने के लिए अधिकतर समय मास्क पहन कर रहती हूं और दारोगा की परीक्षा के लिए तैयारी में जुटी हूं. मैं चाहती हूं कि दरोगा परीक्षा क्वालीफाई करके समाज को जवाब दूं. समाज को बताना चाहती हूं कि मैं ट्रांसजेंडर हूं तो इसमें मेरी कोई गलती नहीं और मैं समाज में किसी से कम नहीं हूं. जिस दिन दारोगा बन जाऊंगी चेहरे पर से मास्क उतार दूंगी."- मानवी मधु कश्यप, ट्रांसजेंडर अभ्यर्थी