पटनाः पटना हाई कोर्ट ने बगैर रोस्टर अनुमति के प्रोन्नति वाले पदों को अस्थाई व्यवस्था के अनुसार भरने संबंधी निर्णय को चुनौती देने वाली याचिका पर राज्य सरकार को जवाब देने का आदेश दिया है. चीफ जस्टिस के विनोद चंद्रन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने 1 अप्रैल 2023 को की गई गणना के अनुसार पदों को भरने हेतु लिए गए निर्णय के मामले में यह आदेश दिया.
दो सप्ताह बाद होगी सुनवाईः याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दीनू कुमार का कहना था कि संविदा के आधार पर बहाली में रोस्टर का पालन किया जाता है. बिहार रिजर्वेशन एक्ट, 1991 की धारा 6 के अनुसार यह अनिवार्य है. उनका कहना था कि इस तरह से एससी व एसटी कर्मियों को तदर्थ प्रोन्नति जारी करके राज्य सरकार ने भेदभाव किया है. राज्य सरकार के महाधिवक्ता पीके शाही का कहना था कि तदर्थ प्रोन्नति में आरक्षण का पालन किया जा रहा है. इस मामले में आगे की सुनवाई दो सप्ताह बाद की जाएगी.
पदोन्नति में आरक्षण का मामला उलझा: बिहार में पदोन्नति में आरक्षण का मामला लंबे अरसे से सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है. बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर मामले की जल्द से जल्द सुनवाई की मांग की थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 15 अप्रैल 2019 को यथास्थिति बनाए रखने का निर्णय दिया था. इस आदेश के करीब सवा चार साल हो चुके हैं. सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार की अर्जी पर जल्द सुनवाई से इनकार करते हुए कहा कि इस मामले में सुनवाई अगले साल जनवरी 2024 में की जाएगी. इस बीच बिहार सरकार ने जो फरमान जारी किया है उसके मुताबिक बिहार सरकार के पदाधिकारी को अंडरटेकिंग लेकर प्रमोशन दिया जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पदावनति भीः बिहार सरकार ने कहा कि आरक्षण से भरे जाने वाले 17 प्रतिशत पदों को खाली रखा जाएगा. उनमें से एक प्रतिशत अनुसूचित जनजाति के लिए है और 16% अनुसूचित जाति के लिए रखा गया है. इन्हें उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद अंतिम निर्णय के तहत भरा जाएगा. सरकार की ओर से कहा गया कि अगर उच्चतम न्यायालय का कोई विपरीत आदेश आता है तो जिन लोगों को नए फार्मूले के तहत प्रमोशन दिया जाएगा, उन्हें पदावनति का सामना करना पड़ेगा. लेकिन, इस अवधि के दौरान उन्हें जो अतिरिक्त पारिश्रमिक मिलेगा वह उनसे वसूल नहीं किया जाएगा.
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