पटना : पटना हाईकोर्ट में बिहार के गर्भाशय घोटाले के मामले पर सुनवाई हुई. चीफ जस्टिस केवी चन्द्रन की खंडपीठ ने वेटरन फोरम की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को पीड़ित महिलाओं को दिये गये क्षतिपूर्ति का विस्तृत ब्यौरा देने के लिए चार सप्ताह की फिर से मोहलत दी.
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जांच कराने का दिया गया था आदेश : पिछली सुनवाई में कोर्ट ने राज्य सरकार को पीड़ितों की सूची और क्षतिपूर्ति देने की जानकारी देने के लिए समय दिया था. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दीनू कुमार ने हाईकोर्ट को बताया था कि राज्य में अवैध रूप 27 हजार महिलाओं के गर्भाशय हटाने के मामले पर राज्य सरकार ने कोई जांच नहीं कराई. इस सम्बंध में राज्य मानवाधिकार आयोग ने जांच कराने का आदेश दिया था.
'204 पीड़ित महिलाओं को क्षतिपूर्ति नहीं दी गई' : उन्होंने कोर्ट को बताया कि 40 साल तक आयु की पीड़ित महिलाओं को दो लाख रुपये, जबकि 40 वर्ष आयु के ऊपर की पीड़ित महिलाओं को सवा लाख रुपये बतौर क्षतिपूर्ति देने का आदेश राज्य सरकार को देने का निर्देश दिया था. उन्होंने बताया कि राज्य के आठ जिलों के 540 में से 204 पीड़ित महिलाओं को क्षतिपूर्ति नहीं दी गई है.
2017 में जनहित याचिका : अधिवक्ता दीनू कुमार ने बताया राज्य सरकार ने इस बात को अब तक रिकॉर्ड पर नहीं लाया कि कितनी पीड़ित महिलाओं को क्षतिपूर्ति की धनराशि दे दी गई है और कितनों को देना बाकी है. सबसे पहले ये मामला मानवाधिकार आयोग के समक्ष 2012 में लाया गया था. 2017 में पटना हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका वेटरन फोरम ने दायर किया गया था.
क्या है आरोप : इसमें ये आरोप लगाया गया था कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना का गलत लाभ उठाने के लिए बिहार के विभिन्न अस्पतालों/डॉक्टरों द्वारा बड़ी तादाद में बगैर महिलाओं की सहमति के ऑपरेशन कर गर्भाशय निकाल लिए गए. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता दीनू कुमार और रितिका रानी व राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता एस डी यादव ने कोर्ट के समक्ष पक्षों को प्रस्तुत किया.