पटना : पटना हाईकोर्ट में राज्य सरकार के विभिन्न विभागों द्वारा उपयोगिता प्रमाण पत्र जमा नहीं किये जाने के मामले पर सुनवाई दुर्गापूजा के अवकाश के बाद की जाएगी. रंजीत पंडित की जनहित याचिका पर चीफ जस्टिस केवी चंद्रन की खंडपीठ कर रही है. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दीनू कुमार ने बताया कि अभी भी राज्य सरकार के विभिन्न विभागों द्वारा 75 हजार करोड़ रुपये का उपयोगिता प्रमाणपत्र नहीं दिया गया है.
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'उपयोगिता प्रमाणपत्र नहीं जमा किया गया' : इस जनहित याचिका में ये आरोप लगाया गया है कि राज्य सरकार के कई विभागों द्वारा उपयोगिता प्रमाणपत्र नहीं जमा किया गया है. पूर्व में अधिवक्ता दीनू कुमार ने बताया था कि ये राशि लगभग 1 लाख 12 हजार करोड़ का है. जिसका उपयोगिता प्रमाणपत्र नहीं दायर किया गया है. ये आंकड़े 31 अगस्त 2022 तक का है. ये राशि 2002-03 से लेकर 2020-21 तक सामंजित किया जाना लंबित है.
कोर्ट ने अकाउंटेंट जनरल का जानना चाहा था पक्ष : कोर्ट ने अकाउंटेंट जनरल के पक्ष को प्रस्तुत कर रहे अधिवक्ता से जानना चाहा था कि इस सन्दर्भ में अकाउंटेंट जनरल की क्या शक्तियां हैं. राज्य सरकार की ओर से तत्कालीन एडवोकेट जनरल ललित किशोर ने कोर्ट को बताया था कि इस सम्बन्ध में अकाउंटेंट जनरल और राज्य सरकार के विभिन्न विभागों के सचिवों के बीच माह में एक बार इस मुद्दे पर बैठक किये जाने की योजना है.
मुख्य सचिव को हलफनामा दायर करने के लिए कहा गया : पिछली सुनवाई में कोर्ट ने अकाउंटेंट जनरल को हलफनामा दायर कर बताने को कहा था कि सन 2003-04 से 2018-19 तक का उपयोगिता प्रमाणपत्र राज्य सरकार व उनके विभागों द्वारा क्यों नहीं प्रस्तुत किये गए. कोर्ट ने जानना चाहा था कि उन्होंने अपने शक्तियों का प्रयोग क्यों नहीं किया. साथ ही राज्य सरकार के मुख्य सचिव को भी व्यक्तिगत रूप से हलफनामा दायर कर बताने को कहा था कि विभिन्न विभागों द्वारा 2003-04 से 2020-21 तक उपयोगिता प्रमाणपत्र नहीं जमा करने पर क्या कार्रवाई की. इस मामले पर दुर्गापूजा के अवकाश के बाद सुनवाई की जाएगी.
जनहित याचिका खारिज करते हुए लगाया अर्थदंड : वहीं दूसरे मामले में पटना हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका में तथ्यों को छुपाने और जनहित याचिका का दुरूपयोग करने के मामले में याचिकाकर्ता पर दस हजार रूपए का आर्थिक दंड लगाया. चीफ जस्टिस केवी चंद्रन की खंडपीठ ने मिर्जा जलालुद्दीन बेग की जनहित को खारिज करते हुए ये आर्थिक दंड लगाया. इस जनहित याचिका में ये मांग की गयी थी कि सार्वजनिक भूमि पर से अतिक्रमण हटाया जाये. ये भूमि जमुई जिला के सिकंदरा अंचल में स्थित है.
याचिकाकर्ता के पिता ने टाइटल सूट लड़ा था : याचिकाकर्ता का कहना था कि ये भूमि सिकंदरा में राजस्व अंचल कार्यालय के निर्माण के लिए था. रिवेनुए कलेक्टर के रिकार्ड में ऐसा ही दर्ज है. इस मामले में राज्य सरकार ने जो जवाब दायर किया उसमें ये पाया गया कि जिन्हें अतिक्रमणकारी बताया गया, वे भूमि के टाइटल होल्डर हैं. याचिकाकर्ता के पिता ने भी कथित अतिक्रमणकारी के विरुद्ध टाइटल सूट लड़ा था.
याचिकाकर्ता ने अपने जनहित याचिका में ये तथ्य नहीं बताया था. कोर्ट ने इसे काफी गंभीरता से लेते हुए कहा कि ये आधा अधूरा सच कोर्ट के सामने रखा गया, जो जनहित याचिका फोरम का दुरूपयोग है. कोर्ट ने याचिकाकर्ता को आर्थिक दंड की धनराशि एक महीने के भीतर बिहार स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी में जमा करने का आदेश दिया.