पटनाः गया के पूर्व एसएसपी आदित्य कुमार के मामले में साइबर क्राइम को लेकर फंसे बिहार पुलिस के डीजीपी एसके सिंघल की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. दरअसल पटना हाईकोर्ट के एक एडवोकेट (Patna High Court Advocate Demands CBI Inquiry) द्वारा इस हाई प्रोफाइल मामले में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. पटना हाईकोर्ट के एडवोकेट द्वारा इस मामले में चीफ जस्टिस और न्यायपालिका की छवि धूमिल करने की बत कहकर सर्वोच्च न्यायालय से सीबीआई जांच करवाने की मांग की है. एडवोकेट का मानना है कि आर्थिक अपराध इकाई जांच एजेंसी बिहार के डीजीपी के अंदर ही आता है, जिस वजह से जांच निष्पक्ष नहीं हो पाएगी.
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मामले की सीबीआई जांच की मांगः जिस तरह से इस पूरे हाई प्रोफाइल मामले में डीजीपी संजीव कुमार सिंघल की भूमिका सामने आ रही है और उनके बयान से यह कहा जा सकता है कि साइबर अपराधी के फोन कॉल पर भ्रष्ट आईपीएस की मदद करना डीजीपी को भारी पड़ सकता है. दरअसल पटना उच्च न्यायालय के सीनियर एडवोकेट मणि भूषण प्रताप सिंह ने बिहार के डीजीपी एसके सिंघल के कार्यप्रणाली पर बड़ा सवाल खड़ा किया है, जिस वजह से उन्होंने लेटर पिटीशन देकर इस गंभीर मामले की न्यायिक जांच सीबीआई जैसी स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराने की मांग की है.
'बिना जांच डीजीपी ने एक्शन क्यों लिया' : पटना हाई कोर्ट के एडवोकेट मणि भूषण प्रताप सेंगर का कहना है कि डीजीपी के पद पर बैठे किसी व्यक्ति से साइबर फ्रॉड नहीं किया जा सकता है. अगर किसी भ्रष्ट अफसर को मदद पहुंचाने का मामला था तो डीजीपी ने आंख बंद करके इस पर काम क्यों कर दिया. दरअसल गया के पूर्व एसएसपी आदित्य कुमार के दोस्त अभिषेक अग्रवाल द्वारा पटना हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस बन कर आईपीएस अमित कुमार के पक्ष में प्रशासनिक आदेश जारी करने का निर्देश बिहार के डीजीपी को दिया गया था.
फर्जी चीफ जस्टिस बनकर डीजीपी को दिया झांसा: आपको बता दें कि आईपीएस आदित्य कुमार ने अपने ऊपर लगे आरोपों से मुक्ति के लिए अभिषेक अग्रवाल के साथ एक गेम प्लान किया. योजना के मुताबिक अभिषेक अग्रवाल को छद्म मुख्य न्यायधीश बनाया गया. अभिषेक अग्रवाल ने मुख्य न्यायाधीश के नाम पर बिहार के डीजीपी एसके सिंघल को फोन किया और आदित्य कुमार पर चल रहे प्रोसीडिंग खत्म करने का आदेश दिया. अभिषेक अग्रवाल मुख्य न्यायाधीश बन कर 30 से 40 बार डीजीपी एसके सिंघल से बात करते हैं. फिर आदित्य कुमार को डीजीपी के स्तर से क्लीनचिट दे दिया जाता है. मामले की भनक जब मुख्यमंत्री सचिवालय को लगी तब पुलिस महकमे में हड़कंप मचा. जांच की कार्रवाई शुरू हुई.
मुख्यमंत्री सचिवालय के एक्टिव होने पर खुली पोल: अभिषेक अग्रवाल को साइबर सेल की टीम ने गिरफ्तार किया. चुपके से कोर्ट में पेश किया और फिर जेल भी भेज दिया गया. क्योंकि इस शख्स ने पुलिस महकमे में ऐसी सनसनी मचाई है कि बड़े-बड़े अधिकारी भी अपना चेहरा बचा रहे हैं. अभिषेक अग्रवाल ने गया के पूर्व एसएसपी आदित्य कुमार की पैरवी के लिए एक बड़ी साजिश रची. इस साजिश के तहत खुद अभिषेक अग्रवाल ने पटना हाई कोर्ट के एक सीनियर जज की फेक आई डी बनाई और फिर जज बनकर आदित्य कुमार के केस को जल्द ख़त्म करने का दबाव बड़े साहेब पर बनाया. अब बड़े साहब इतना डर गए थे कि आनन फानन में जाँच रिपोर्ट में मिस्टेक ऑफ़ फैक्ट बताते हुए रिपोर्ट कोर्ट में जमा कराया. पूर्व एसएसपी आदित्य कुमार को इस मामले में क्लीन चिट दे दिया गया. लेकिन इस मामले में मुख्यमंत्री सचिवालय की नजर पड़ी और मामले की जांच EoU और साइबर सेल को दी गई. ईओयू की टीम ने अभिषेक को धर दबोचा. कई सिम कार्ड और मोबाईल फोन मिले हैं. जाँच में सामने आया की इन्ही नम्बरों से कॉल किया गया था.
अभिषेक गोलकिया का काला चिट्ठा: यह भी जानकारी मिली है कि अभिषेक के ऊपर पूर्व में भी ऐसे मामले दर्ज हैं. दिल्ली पुलिस ने भी इसे जेल भेजा था. दिल्ली के कमला मार्केट थाना में भी उनके खिलाफ 43 /2021 केस दर्ज किया गया था. 16 मार्च 2021 को अभिषेक जेल भेजा गया था और 5 दिन अभिषेक तिहाड़ जेल में रहा था. अभिषेक पर आरोप था कि एमसीडी के एमडी को गृह मंत्री के सचिव साकेत सिंह के नाम पर धमकाने का काम किया था. अभिषेक अग्रवाल के खिलाफ बिहार के कहलगांव थाने में भी प्राथमिकी दर्ज कराया गया था. अभिषेक ने आईपीएस ऑफिसर सौरभ शाह के पिता कृष्ण कुमार से लगभग एक करोड़ की ठगी की थी. कहलगांव थाना में आईपीसी की धारा 406, 420, 467, 468, 471 और 120 बी के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था.