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उपभोक्ताओं को पहले कंपनियों ने ठगा, अब लचर सरकारी व्यवस्था की झेल रहे हैं दंश

पटना उपभोगता फोरम के हालात कुछ ऐसे ही हैं. क्योंकि यहां पिछले कई महीनों से अध्यक्ष का पद खाली पड़ा है. वहीं हाजीपुर उपभोगता फोरम के अध्यक्ष को तत्काल पटना का भी प्रभार दे दिया गया है.

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Published : May 27, 2019, 9:26 PM IST

उपभोगता फोरम की बदहाली

पटनाः शहर के उपभोक्ता फोरम कंपनी द्वारा दिखाए गए बड़े सपनो के झांसे में कई लोग ठगे गए. अब उपभोक्ता न्याय के लिए फोरम का चक्कर लगा रहे हैं. लेकिन वहां भी उनकी सुनने वाला कोई नहीं है.

पटना उपभोक्ता फोरम के हालात कुछ ऐसे ही हैं. क्योंकि यहां पिछले कई महीनों से अध्यक्ष का पद खाली पड़ा है. वहीं, हाजीपुर उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष को तत्काल पटना का भी प्रभार दे दिया गया है. जो हफ्ते में दो दिन लोगों की परेशानियों को सुनते हैं.

patna
उपभोगता फोरम की बदहाली

अधिकारियों का पद पिछले चार साल से खाली
वहीं, उपभोक्ताओं की परेशानी यही खत्म नहीं होती है. अगर किसी मामले की सुनवाई पूरी भी हो जाए और फैसला आ जाता है तो भी आदेश नहीं हो पाता है. क्योंकि आदेश लिखने वाले अधिकारियों का पद पिछले चार साल से खाली पड़ा है. यह हालात ज्यादातर जिले के उपभोगता फोरम का भी बना हुआ है.

उपभोगता फोरम की बदहाली

अधिवक्ताओं को भी परेशानी
फोरम के बदहाल स्थिति से केवल उपभोक्ता ही नहीं बल्कि वहां प्रैक्टिस कर रहे अधिवक्ताओं को भी दो चार होना पड़ा रहा है. वहां कई सालों से वकालत कर रहे सत्येन्द्र कुमार दुबे बताते हैं कि वो अपने आप को दोषी महसूस करते हैं. क्योंकि वो खुद बर्दाश्त भी कर लें लेकिन क्लाइंट का गुस्सा झेलना पड़ता है.

डिस्ट्रिक्ट फोरम में संसाधन की कमी
उन्होंने बताया कि जजमेंट का निर्धारित समय 90 दिनों का होता है. लेकिन वो तीन सालों तक केवल तारीख ही दिलवा पाते हैं. वहीं, स्टेट कमीशन कंज्यूमर फोरम में कई सालों से प्रैक्टिस कर रहे अधिवक्ता प्रकाश कुमार ने कहा कि डिस्ट्रिक्ट फोरम में संसाधन की कमी के कारण परेशानी तो है, जिसको हम लोग झेल रहे हैं. लेकिन एक वैकल्पिक व्यवस्था की गई है जो काफी नहीं है. क्योंकि जिला फोरम में 20 लाख रुपय तक और स्टेट फोरम में 20 लाख से लेकर एक करोड़ रुपये तक के मामले की सुनवाई का प्रावधान है.

पटनाः शहर के उपभोक्ता फोरम कंपनी द्वारा दिखाए गए बड़े सपनो के झांसे में कई लोग ठगे गए. अब उपभोक्ता न्याय के लिए फोरम का चक्कर लगा रहे हैं. लेकिन वहां भी उनकी सुनने वाला कोई नहीं है.

पटना उपभोक्ता फोरम के हालात कुछ ऐसे ही हैं. क्योंकि यहां पिछले कई महीनों से अध्यक्ष का पद खाली पड़ा है. वहीं, हाजीपुर उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष को तत्काल पटना का भी प्रभार दे दिया गया है. जो हफ्ते में दो दिन लोगों की परेशानियों को सुनते हैं.

patna
उपभोगता फोरम की बदहाली

अधिकारियों का पद पिछले चार साल से खाली
वहीं, उपभोक्ताओं की परेशानी यही खत्म नहीं होती है. अगर किसी मामले की सुनवाई पूरी भी हो जाए और फैसला आ जाता है तो भी आदेश नहीं हो पाता है. क्योंकि आदेश लिखने वाले अधिकारियों का पद पिछले चार साल से खाली पड़ा है. यह हालात ज्यादातर जिले के उपभोगता फोरम का भी बना हुआ है.

उपभोगता फोरम की बदहाली

अधिवक्ताओं को भी परेशानी
फोरम के बदहाल स्थिति से केवल उपभोक्ता ही नहीं बल्कि वहां प्रैक्टिस कर रहे अधिवक्ताओं को भी दो चार होना पड़ा रहा है. वहां कई सालों से वकालत कर रहे सत्येन्द्र कुमार दुबे बताते हैं कि वो अपने आप को दोषी महसूस करते हैं. क्योंकि वो खुद बर्दाश्त भी कर लें लेकिन क्लाइंट का गुस्सा झेलना पड़ता है.

डिस्ट्रिक्ट फोरम में संसाधन की कमी
उन्होंने बताया कि जजमेंट का निर्धारित समय 90 दिनों का होता है. लेकिन वो तीन सालों तक केवल तारीख ही दिलवा पाते हैं. वहीं, स्टेट कमीशन कंज्यूमर फोरम में कई सालों से प्रैक्टिस कर रहे अधिवक्ता प्रकाश कुमार ने कहा कि डिस्ट्रिक्ट फोरम में संसाधन की कमी के कारण परेशानी तो है, जिसको हम लोग झेल रहे हैं. लेकिन एक वैकल्पिक व्यवस्था की गई है जो काफी नहीं है. क्योंकि जिला फोरम में 20 लाख रुपय तक और स्टेट फोरम में 20 लाख से लेकर एक करोड़ रुपये तक के मामले की सुनवाई का प्रावधान है.

Intro:उपभोगताओं को पहले कंपनियों ने छला और अब सता रही है व्यवस्था...लोग कहा लगाए न्याय की गुहार।


Body:कंपनियों द्वारा दिखाएं गए बड़े सपनो के झांसे आकर ठगे गए उपभोगता अब न्याय के लिए उपभोगता फोरम का चक्कर लगा रहे है..लेकिन वहां भी कोई सुनने वाला नही है।जी हां पटना उपभोगता फोरम के हालात कुछ ऐसा ही है।क्योंकि यहां पिछले कई महीनों से अध्यक्ष का पद खाली पड़ा है।वही हाजीपुर उपभोगता फोरम के अध्यक्ष को तत्काल पटना का भी प्रभार दिया गया है..जो हफ्ते में दो दिन मामले को सुनते है।

वही उपभोगताओं की परेशानी यही समाप्त नही होती है..अगर किसी मामले की सुनवाई पूरी भी हो जाती है और फैसला आ जाता है तो अभी आदेश नही हो पाता है।क्योंकि आदेश लिखने वालों स्टोनो का पद पिछले चार साल से खाली पड़ा है।यह हालात ज्यादातर जिले के उपभोगता फोरम का भी बना हुआ है।

फोरम के बदहाल स्थित से केवल उपभोगता को ही परेशानी उठानी पड़ रही है..वहां प्रैक्टिस कर रहे अधिवक्ताओं को भी दो चार होना पड़ा रहा है...वहा कई सालों से वकालत कर रहे सत्येन्द्र कुमार दुबे बताते है कि हम सफर करके बर्दाश्त भी कर लेते है..लेकिन क्लाइंट का जो रिएक्शन होता है और हमसे पूछते केवल तारीख पर तारीख दिया जा रहा है..तो हमलोग कुछ बता नही पाते है।वही उन्होंने कहा की जजमेंट का निर्धारित समय 90 दिनों का लेकिन हम उन्होंने तीन सालों तक केवल तारीख ही दिलवा पाते है..ऐसे हम अपने आपको को दोषी महसूस करते है।

वही स्टेट कमीशन कंज्यूमर फोरम में कई सालों से प्रैक्टिस कर रहे अधिवक्ता प्रकाश कुमार ने कहा डिस्टिक फोरम में संसाधन की कमी के कारण परेशानी तो है जिसको हम लोग झेल रहे है..लेकिन एक वैकल्पिक व्यवस्था की गई है जो काफी नही है।क्योंकि जिला फोरम में 20 लाख रुपया तक और स्टेट फोरम में 20 लाख लेकर एक करोड़ रुपये तक के मामले की सुनवाई के प्रावधान है...लेकिन समय केस का निपटारा नही होने के करण काफी बढ़ गई है...जिससे उपभोगताओं परेशानी उठानी पड़ रही है।

एक आकड़ो के मुताबिक स्टेट कमीशन कंज्यूमर फोरम में लगभग पांच हजार से अधिक केस पेंडिंग है..तो वही हर जिले के उपभोगता फोरम में भी हजारों की संख्या में केस लबिंत है...वही पटना जिला में सबसे अधिक लगभग सात हजार केस कोर्ट में अध्यक्ष और संसाधनों के अभाव में लटके पड़े है।



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