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अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवसः मिलिए बिहार की पैडवुमन से, समाज को मेंस्ट्रुअल हाइजीन के प्रति करती हैं जागरूक

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Published : Mar 8, 2021, 10:42 AM IST

अमृता साल 2012 से प्रदेश में महिलाओं को मेंस्ट्रुअल हाइजीन को लेकर जागरूक करती हैं. साथ ही समाज के निचले तबके की महिलाओं के बीच जाकर सेनेटरी पैड का महत्व समझाती हैं.

pad woman amrita singh
pad woman amrita singh

पटनाः अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर देश भर में विभिन्न जगहों पर कार्यक्रमों में महिलाओं को सम्मानित किया जा रहा है. प्रदेश में इस दिन महिलाओं के कोरोना वैक्सीनेशन को लेकर एक ड्राइव चलाया जा रहा है. इसके तहत 100000 महिलाओं के वैक्सीनेशन का लक्ष्य रखा गया है.

सेनेटरी पैड का महत्व
प्रदेश में महिलाओं के स्वास्थ्य की स्थिति देश में काफी नीचे है. इसका मुख्य कारण मेंस्ट्रुअल हाइजीन के बारे में महिलाओं को सही जानकारी न हो पाना है. अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर बिहार में पैडवुमन के नाम से मशहूर अमृता सिंह से ईटीवी भारत संवाददाता ने खास बातचीत की. अमृता साल 2012 से प्रदेश में महिलाओं को मेंस्ट्रुअल हाइजीन को लेकर जागरूक करती हैं. साथ ही समाज के निचले तबके की महिलाओं के बीच जाकर सेनेटरी पैड का महत्व समझाती हैं.

स्वच्छ बेटियां स्वच्छ समाज कार्यक्रम
पैडवुमन अमृता सिंह ने बताया कि साल 2012 में उन्होंने महिलाओं के महामारी के विषय में काम करने के बारे में निर्णय लिया. उन्होंने बताया जब उन्होंने कुछ महिलाओं और बच्चियों को पढ़ाना शुरू किया तो यह देखा कि उनकी हेल्थ एंड हाइजीन सही नहीं है. उसके बाद उन्होंने उन बच्चियों और महिलाओं का रेग्युलर हेल्थ चेकअप करवाना शुरू किया. इस दौरान अमृता सिंह ने पाया कि महिलाओं की खराब हेल्थ कंडीशन के पीछे मूल वजह मेंस्ट्रुअल हाइजीन को लेकर सही जानकारी न हो पाना है. इसके बाद से उन्होंने स्वच्छ बेटियां स्वच्छ समाज कार्यक्रम चलाना शुरु किया.

देखें रिपोर्ट

ये भी पढेः बौआ देवीः 12 साल में बाल विवाह होने के बावजूद हाथों से गढ़ी अपनी मुकाम

"मैंने स्वच्छ बेटियां स्वच्छ समाज कार्यक्रम के तहत समाज के निचले तबके के महिलाओं के बीच जाकर सेनेटरी पैड का महत्व, उसके यूज करने के तरीके और मेंस्ट्रुअल हाइजीनसे जुड़ी बातों को लेकर जागरूक करना शुरू किया. कार्यक्रम के 2 साल बाद जब मैंने उन इलाकों के घरों का विजिट करना शुरू किया जहां लगातार दो साल सेनेटरी पैड बांटे थे तब मैनें देखा कि सेनेटरी पैड का महिलाओं ने सही उपयोग नहीं किया है. किसी ने उसका ब्लाउज सील दिया तो किसी ने उसका कुछ और उपयोग कर लिया."- अमृता सिंह, पैडवुमन

pad woman amrita singh
पैडवुमन अमृता सिंह

मेंस्ट्रुअल हाइजीन के बारे में जागरूकता
अमृता सिंह ने बताया कि उन्होंने 3 साल तक स्वच्छ बेटियां स्वच्छ समाज कार्यक्रम बंद रखा और महिलाओं को और किस प्रकार से मेंस्ट्रुअल हाइजीन के बारे में जागरूक किया जा सकता है इसके आइडिया पर काम करना शुरू किया. उन्होंने बताया कि इसके बाद साल 2017 में उन्होंने एक पैड बैंक की स्थापना की और बिहार में इस प्रकार की सबसे पहली पहल थी.

सैनिटरी पैड बैंक
पैडवुमन ने बताया कि सैनिटरी पैड बैंक को खोलने के पीछे मंशा थी कि 4-A फार्मूला पर काम किया जाए. पहला अवेयरनेस दूसरा अफॉर्डेबिलिटी तीसरा अवेलेबिलिटी और चौथा आयुष चिकित्सा पद्धति ताकि महिलाओं को एक कंपलीट पैकेज दिया जा सके. उन्होंने बताया कि महिलाओं के बीच महामारी से जुड़ी सर्वाधिक स्वास्थ्य समस्याएं देखने को मिली. इसे देखते हुए से उन्होंने आयुष चिकित्सा पद्धति को भी अपने कार्यक्रम में ऐड किया ताकि महिलाओं को उनकी बीमारियों का सही ट्रीटमेंट भी दिया जा सके. जरूरत पड़ने पर चिकित्सक उन्हें विशेषज्ञ चिकित्सक से परामर्श करने की सलाह भी देते हैं.

महिलाओं को दिया जाता है पासबुक
अमृता सिंह ने बताया कि पैड बैंक एक बैंक की तरह है. इसमें महिलाओं को एक पासबुक दिया जाता है और उन्हें अफॉर्डेबल रेट में सेनेटरी पैड उपलब्ध कराया जाता है. पासबुक पर यह नोट होता है कि महीने में महिला को कितने पैड दिए गए और अगर कोई महिला कुछ महीने पैड नहीं लेती या अधिक पैड लेती है तो इसकी वजह पता की जाती है.

उच्च वर्ग के महिलाओं के बीच नहीं है जानकारी
पैडवुमन ने बताया कि शुरुआत में उनके इस अभियान का बहुत विरोध हुआ. उनका सर्वाधिक विरोध महिलाओं के बीच ही हुआ. उन्होंने बताया कि जब वह पटना के कॉलेजों में जाकर लड़कियों के बीच मेंस्ट्रुअल हाइजीन को लेकर अवेयरनेस शुरू किया उस दौरान उन्हें पता चला कि महावारी को लेकर जो जानकारी समाज के निचले तबके की महिलाओं के बीच है, वही जानकारी उच्च वर्ग के महिलाओं के बीच भी है.

अक्षय कुमार की फिल्म ने किया जागरूक
अमृता सिंह ने कहा कि साल 2018 में अक्षय कुमार की फिल्म पैडमैन के बाद से समाज में मेंस्ट्रुअल हाइजीन को लेकर लोगों के बीच काफी जागरूकता आई है. उन्होंने कहा कि समाज में मेंस्ट्रुअल हाइजीन के बारे में सही जानकारी ना होने के पीछे वह औरतों को वजह मानती है, क्योंकि शुरू से ही उन्होंने पुरुषों को इससे दूर कर दिया. महामारी के बारे में बच्चियां और महिलाएं घर के पुरुषों से कुछ भी जानकारी नहीं साझा करती. ऐसे में पुरुष नहीं समझ पाते कि महिला किस दर्द और तकलीफ में है.

अभियान का दिख रहा सकारात्मक असर
पैडवुमन ने कहा कि पैडमैन फिल्म के बाद समाज के पुरुष जागरूक हो गए हैं और अब उन्हें विश्वास है कि आने वाले कुछ सालों में समाज में मेंस्ट्रुअल हाइजीन को लेकर काफी जागरुकता आएगी. उन्होंने कहा कि सती प्रथा के खिलाफ और विधवा पुनर्विवाह के समर्थन में जिस प्रकार पुरुष वर्ग ने अभियान छेड़ा और आज इसमें बदलाव आए हैं. इसी प्रकार से अब महामारी के विषय में भी अभियान में काफी पुरुष सामने आ रहे हैं. इसका सकारात्मक असर आने वाले दिनों में समाज में देखने को मिलेगा.

ये भी पढ़ेः महिला दिवस स्पेशल: संभाग सत्र का आयोजन, पद्मश्री बौआ देवी को किया गया सम्मानित
अमृता सिंह की अपील
अमृता सिंह ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान उन्होंने पैड बैंक से निशुल्क पैड बांटना शुरू किया था. अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर पैडवुमन अमृता सिंह ने समाज से अपील करते हुए कहा कि समाज में मेंस्ट्रुअल हाइजीन पर गंभीरता से चर्चा करें. उन्होंने कहा कि 40 से 50 की उम्र के बीच महिलाओं को मोनोपॉज आता है और समय महिलाओं के व्यवहार में काफी परिवर्तन आता है. ऐसे समय में उनके साथ पूरी सहानुभूति से खड़े रहने की जरूरत है.

पटनाः अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर देश भर में विभिन्न जगहों पर कार्यक्रमों में महिलाओं को सम्मानित किया जा रहा है. प्रदेश में इस दिन महिलाओं के कोरोना वैक्सीनेशन को लेकर एक ड्राइव चलाया जा रहा है. इसके तहत 100000 महिलाओं के वैक्सीनेशन का लक्ष्य रखा गया है.

सेनेटरी पैड का महत्व
प्रदेश में महिलाओं के स्वास्थ्य की स्थिति देश में काफी नीचे है. इसका मुख्य कारण मेंस्ट्रुअल हाइजीन के बारे में महिलाओं को सही जानकारी न हो पाना है. अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर बिहार में पैडवुमन के नाम से मशहूर अमृता सिंह से ईटीवी भारत संवाददाता ने खास बातचीत की. अमृता साल 2012 से प्रदेश में महिलाओं को मेंस्ट्रुअल हाइजीन को लेकर जागरूक करती हैं. साथ ही समाज के निचले तबके की महिलाओं के बीच जाकर सेनेटरी पैड का महत्व समझाती हैं.

स्वच्छ बेटियां स्वच्छ समाज कार्यक्रम
पैडवुमन अमृता सिंह ने बताया कि साल 2012 में उन्होंने महिलाओं के महामारी के विषय में काम करने के बारे में निर्णय लिया. उन्होंने बताया जब उन्होंने कुछ महिलाओं और बच्चियों को पढ़ाना शुरू किया तो यह देखा कि उनकी हेल्थ एंड हाइजीन सही नहीं है. उसके बाद उन्होंने उन बच्चियों और महिलाओं का रेग्युलर हेल्थ चेकअप करवाना शुरू किया. इस दौरान अमृता सिंह ने पाया कि महिलाओं की खराब हेल्थ कंडीशन के पीछे मूल वजह मेंस्ट्रुअल हाइजीन को लेकर सही जानकारी न हो पाना है. इसके बाद से उन्होंने स्वच्छ बेटियां स्वच्छ समाज कार्यक्रम चलाना शुरु किया.

देखें रिपोर्ट

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"मैंने स्वच्छ बेटियां स्वच्छ समाज कार्यक्रम के तहत समाज के निचले तबके के महिलाओं के बीच जाकर सेनेटरी पैड का महत्व, उसके यूज करने के तरीके और मेंस्ट्रुअल हाइजीनसे जुड़ी बातों को लेकर जागरूक करना शुरू किया. कार्यक्रम के 2 साल बाद जब मैंने उन इलाकों के घरों का विजिट करना शुरू किया जहां लगातार दो साल सेनेटरी पैड बांटे थे तब मैनें देखा कि सेनेटरी पैड का महिलाओं ने सही उपयोग नहीं किया है. किसी ने उसका ब्लाउज सील दिया तो किसी ने उसका कुछ और उपयोग कर लिया."- अमृता सिंह, पैडवुमन

pad woman amrita singh
पैडवुमन अमृता सिंह

मेंस्ट्रुअल हाइजीन के बारे में जागरूकता
अमृता सिंह ने बताया कि उन्होंने 3 साल तक स्वच्छ बेटियां स्वच्छ समाज कार्यक्रम बंद रखा और महिलाओं को और किस प्रकार से मेंस्ट्रुअल हाइजीन के बारे में जागरूक किया जा सकता है इसके आइडिया पर काम करना शुरू किया. उन्होंने बताया कि इसके बाद साल 2017 में उन्होंने एक पैड बैंक की स्थापना की और बिहार में इस प्रकार की सबसे पहली पहल थी.

सैनिटरी पैड बैंक
पैडवुमन ने बताया कि सैनिटरी पैड बैंक को खोलने के पीछे मंशा थी कि 4-A फार्मूला पर काम किया जाए. पहला अवेयरनेस दूसरा अफॉर्डेबिलिटी तीसरा अवेलेबिलिटी और चौथा आयुष चिकित्सा पद्धति ताकि महिलाओं को एक कंपलीट पैकेज दिया जा सके. उन्होंने बताया कि महिलाओं के बीच महामारी से जुड़ी सर्वाधिक स्वास्थ्य समस्याएं देखने को मिली. इसे देखते हुए से उन्होंने आयुष चिकित्सा पद्धति को भी अपने कार्यक्रम में ऐड किया ताकि महिलाओं को उनकी बीमारियों का सही ट्रीटमेंट भी दिया जा सके. जरूरत पड़ने पर चिकित्सक उन्हें विशेषज्ञ चिकित्सक से परामर्श करने की सलाह भी देते हैं.

महिलाओं को दिया जाता है पासबुक
अमृता सिंह ने बताया कि पैड बैंक एक बैंक की तरह है. इसमें महिलाओं को एक पासबुक दिया जाता है और उन्हें अफॉर्डेबल रेट में सेनेटरी पैड उपलब्ध कराया जाता है. पासबुक पर यह नोट होता है कि महीने में महिला को कितने पैड दिए गए और अगर कोई महिला कुछ महीने पैड नहीं लेती या अधिक पैड लेती है तो इसकी वजह पता की जाती है.

उच्च वर्ग के महिलाओं के बीच नहीं है जानकारी
पैडवुमन ने बताया कि शुरुआत में उनके इस अभियान का बहुत विरोध हुआ. उनका सर्वाधिक विरोध महिलाओं के बीच ही हुआ. उन्होंने बताया कि जब वह पटना के कॉलेजों में जाकर लड़कियों के बीच मेंस्ट्रुअल हाइजीन को लेकर अवेयरनेस शुरू किया उस दौरान उन्हें पता चला कि महावारी को लेकर जो जानकारी समाज के निचले तबके की महिलाओं के बीच है, वही जानकारी उच्च वर्ग के महिलाओं के बीच भी है.

अक्षय कुमार की फिल्म ने किया जागरूक
अमृता सिंह ने कहा कि साल 2018 में अक्षय कुमार की फिल्म पैडमैन के बाद से समाज में मेंस्ट्रुअल हाइजीन को लेकर लोगों के बीच काफी जागरूकता आई है. उन्होंने कहा कि समाज में मेंस्ट्रुअल हाइजीन के बारे में सही जानकारी ना होने के पीछे वह औरतों को वजह मानती है, क्योंकि शुरू से ही उन्होंने पुरुषों को इससे दूर कर दिया. महामारी के बारे में बच्चियां और महिलाएं घर के पुरुषों से कुछ भी जानकारी नहीं साझा करती. ऐसे में पुरुष नहीं समझ पाते कि महिला किस दर्द और तकलीफ में है.

अभियान का दिख रहा सकारात्मक असर
पैडवुमन ने कहा कि पैडमैन फिल्म के बाद समाज के पुरुष जागरूक हो गए हैं और अब उन्हें विश्वास है कि आने वाले कुछ सालों में समाज में मेंस्ट्रुअल हाइजीन को लेकर काफी जागरुकता आएगी. उन्होंने कहा कि सती प्रथा के खिलाफ और विधवा पुनर्विवाह के समर्थन में जिस प्रकार पुरुष वर्ग ने अभियान छेड़ा और आज इसमें बदलाव आए हैं. इसी प्रकार से अब महामारी के विषय में भी अभियान में काफी पुरुष सामने आ रहे हैं. इसका सकारात्मक असर आने वाले दिनों में समाज में देखने को मिलेगा.

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अमृता सिंह की अपील
अमृता सिंह ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान उन्होंने पैड बैंक से निशुल्क पैड बांटना शुरू किया था. अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर पैडवुमन अमृता सिंह ने समाज से अपील करते हुए कहा कि समाज में मेंस्ट्रुअल हाइजीन पर गंभीरता से चर्चा करें. उन्होंने कहा कि 40 से 50 की उम्र के बीच महिलाओं को मोनोपॉज आता है और समय महिलाओं के व्यवहार में काफी परिवर्तन आता है. ऐसे समय में उनके साथ पूरी सहानुभूति से खड़े रहने की जरूरत है.

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