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...तो हिंदू विधि विधान से हुआ था महात्मा बुद्ध का अंतिम संस्कार! - महात्मा बुद्ध का असली अस्थि कलश

पुरातात्विक और साहित्यिक साक्ष्य से पता चलता है कि महापरिनिर्वाण के बाद महात्मा बुद्ध का अंतिम संस्कार हिंदू विधि विधान से हुआ था. दाह संस्कार के बाद अवशेष को आठ भागों में बांटा गया था और उनपर स्तूप का निर्माण कराया गया था. पढ़ें पूरी खबर...

Lord Buddha ashes
महात्मा बुद्ध का अस्थि कलश
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Published : Sep 10, 2021, 8:38 AM IST

Updated : Sep 10, 2021, 1:09 PM IST

पटना: बिहार सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक आंदोलनों का केंद्र रहा है. महात्मा बुद्ध (Mahatma Buddha) ने भी बिहार को ही कर्म स्थली बनाया था. विश्व के कई देशों द्वारा यह दावा किया जाता है कि उनके पास महात्मा बुद्ध का असली अस्थि कलश है, लेकिन महात्मा बुद्ध का असली अस्थि कलश बिहार में है. पुरातात्विक और साहित्यिक साक्ष्य इस बात की तस्दीक करते हैं. खुदाई के दौरान वैशाली से जो धातु स्तूप मिला है वह आज भी जस के तस सुरक्षित है. आने वाले दिनों में वैशाली म्यूजियम (Vaishali Museum) में स्तूप को शिफ्ट किए जाने की संभावना है.

यह भी पढ़ें- गणेश चतुर्थी विशेष : मिठाइयों के ढेरों प्रकार में से बप्पा के लिए खास है मोदक

बिहार के गया जिले में महात्मा बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. महात्मा बुद्ध तीन बार वैशाली आए थे. यह उनकी कर्मस्थली थी. महात्मा बुद्ध के समय 16 महाजनपदों में वैशाली का स्थान मगध के समान महत्वपूर्ण था. उनके महापरिनिर्वाण के बाद लिच्छवी शासक ने उनके अस्थि कलश पर स्तूप का निर्माण करवाया था. चीनी यात्री ह्वेनसांग 630 ईसा पूर्व बिहार दौरे पर आया था. उसने कहा था कि अभिषेक पुष्कर्णी के निकट धातु स्तूप है, जिसमें महात्मा बुद्ध के अस्थि कलश हैं. एस अल्टेकर ने 1958-59 में वहां खुदाई कराई और महात्मा बुद्ध के असली अस्थि कलश मिले. अस्थि कलश में राख, एक कौड़ी, सोने का टुकड़ा, पंच मार्क सिक्के, दो मनके और ग्लास बिड हैं.

देखें रिपोर्ट

दरअसल, महात्मा बुद्ध ने अपने जीवन काल में कह दिया था कि जब उनका महापरिनिर्वाण हो तो अंतिम संस्कार चक्रवर्ती राजा की तरह हो. महात्मा बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद उनके समर्थक अस्थि कलश को लेकर उलझ गए थे. एक ब्राह्मण की मदद से विवाद सुलझाया गया और उसे 8 भागों में बांटा गया. 7 राजाओं ने अलग-अलग जगहों पर विशाल स्तूप का निर्माण करवाया और उसमें अस्थि कलश रखा. सम्राट अशोक ने सातों स्तूपों का उत्खनन करवाया था और एक तिहाई अवशेष निकालकर 84 हजार स्तूप बनवाया था. वैशाली से जो अस्थि कलश मिला था उसमें से एक तिहाई अवशेष निकाला हुआ था. इससे साबित होता है कि सम्राट अशोक के शासनकाल में कलश से अवशेष निकाला गया होगा.

पटना स्थित बिहार संग्रहालय के गाइड अनिल कुमार ने कहा, 'पूरे विश्व में महात्मा बुद्ध का अस्थि कलश बिहार में ही है. यह पुरातात्विक और साहित्यिक साक्ष्य से भी प्रमाणित है कि वैशाली से खुदाई के दौरान जो अस्थि कलश मिला वह महात्मा बुद्ध का है.' बिहार संग्रहालय के अध्यक्ष शंकर सुमन ने कहा, 'अशोक के शासनकाल में कलश से राख निकाले गए थे और उससे 84 हजार स्तूपों का निर्माण कराया गया था. वैशाली से जो अस्थि कलश मिला है उसमें से भी एक तिहाई राख निकाले गए थे. साहित्यिक स्रोत से भी इस बात की पुष्टि होती है.'

"महात्मा बुद्ध का अंतिम संस्कार कुशीनगर के मल राजा ने किया था. इसलिए उनका अंतिम संस्कार हिंदू विधि विधान से हुआ होगा. हिंदू धर्म में पांच तत्व का महत्व है. इसलिए अस्थि कलश में भी पांच तत्व मिले हैं. उस समय बौद्ध धर्म मानने वालों के अंतिम संस्कार का कोई अलग विधान नहीं था. इलाके के अनुसार बौद्ध धर्म मानने वालों का अंतिम संस्कार किया जाता था. जहां दफनाने की परंपरा थी वहां दफनाया जाता था और जहां दाह संस्कार की परंपरा थी वहां दाह संस्कार होता था."- शंकर सुमन, अध्यक्ष, बिहार संग्रहालय

"चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अस्थि कलश के बारे में सही जानकारी दी थी. इसी आधार पर खुदाई करने पर महात्मा बुद्ध के अस्थि कलश निकाले गए. बौद्ध धर्म में स्तूप का बहुत महत्व है. इसलिए महात्मा बुद्ध के अंतिम संस्कार के बाद उनके अवशेष को रखकर स्तूप का निर्माण कराया गया था."- विजय चौधरी, इतिहासकार

यह भी पढ़ें- गणेश उत्सव 2021: जानें पांच प्राचीन गणपति और उनका इतिहास

पटना: बिहार सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक आंदोलनों का केंद्र रहा है. महात्मा बुद्ध (Mahatma Buddha) ने भी बिहार को ही कर्म स्थली बनाया था. विश्व के कई देशों द्वारा यह दावा किया जाता है कि उनके पास महात्मा बुद्ध का असली अस्थि कलश है, लेकिन महात्मा बुद्ध का असली अस्थि कलश बिहार में है. पुरातात्विक और साहित्यिक साक्ष्य इस बात की तस्दीक करते हैं. खुदाई के दौरान वैशाली से जो धातु स्तूप मिला है वह आज भी जस के तस सुरक्षित है. आने वाले दिनों में वैशाली म्यूजियम (Vaishali Museum) में स्तूप को शिफ्ट किए जाने की संभावना है.

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बिहार के गया जिले में महात्मा बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. महात्मा बुद्ध तीन बार वैशाली आए थे. यह उनकी कर्मस्थली थी. महात्मा बुद्ध के समय 16 महाजनपदों में वैशाली का स्थान मगध के समान महत्वपूर्ण था. उनके महापरिनिर्वाण के बाद लिच्छवी शासक ने उनके अस्थि कलश पर स्तूप का निर्माण करवाया था. चीनी यात्री ह्वेनसांग 630 ईसा पूर्व बिहार दौरे पर आया था. उसने कहा था कि अभिषेक पुष्कर्णी के निकट धातु स्तूप है, जिसमें महात्मा बुद्ध के अस्थि कलश हैं. एस अल्टेकर ने 1958-59 में वहां खुदाई कराई और महात्मा बुद्ध के असली अस्थि कलश मिले. अस्थि कलश में राख, एक कौड़ी, सोने का टुकड़ा, पंच मार्क सिक्के, दो मनके और ग्लास बिड हैं.

देखें रिपोर्ट

दरअसल, महात्मा बुद्ध ने अपने जीवन काल में कह दिया था कि जब उनका महापरिनिर्वाण हो तो अंतिम संस्कार चक्रवर्ती राजा की तरह हो. महात्मा बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद उनके समर्थक अस्थि कलश को लेकर उलझ गए थे. एक ब्राह्मण की मदद से विवाद सुलझाया गया और उसे 8 भागों में बांटा गया. 7 राजाओं ने अलग-अलग जगहों पर विशाल स्तूप का निर्माण करवाया और उसमें अस्थि कलश रखा. सम्राट अशोक ने सातों स्तूपों का उत्खनन करवाया था और एक तिहाई अवशेष निकालकर 84 हजार स्तूप बनवाया था. वैशाली से जो अस्थि कलश मिला था उसमें से एक तिहाई अवशेष निकाला हुआ था. इससे साबित होता है कि सम्राट अशोक के शासनकाल में कलश से अवशेष निकाला गया होगा.

पटना स्थित बिहार संग्रहालय के गाइड अनिल कुमार ने कहा, 'पूरे विश्व में महात्मा बुद्ध का अस्थि कलश बिहार में ही है. यह पुरातात्विक और साहित्यिक साक्ष्य से भी प्रमाणित है कि वैशाली से खुदाई के दौरान जो अस्थि कलश मिला वह महात्मा बुद्ध का है.' बिहार संग्रहालय के अध्यक्ष शंकर सुमन ने कहा, 'अशोक के शासनकाल में कलश से राख निकाले गए थे और उससे 84 हजार स्तूपों का निर्माण कराया गया था. वैशाली से जो अस्थि कलश मिला है उसमें से भी एक तिहाई राख निकाले गए थे. साहित्यिक स्रोत से भी इस बात की पुष्टि होती है.'

"महात्मा बुद्ध का अंतिम संस्कार कुशीनगर के मल राजा ने किया था. इसलिए उनका अंतिम संस्कार हिंदू विधि विधान से हुआ होगा. हिंदू धर्म में पांच तत्व का महत्व है. इसलिए अस्थि कलश में भी पांच तत्व मिले हैं. उस समय बौद्ध धर्म मानने वालों के अंतिम संस्कार का कोई अलग विधान नहीं था. इलाके के अनुसार बौद्ध धर्म मानने वालों का अंतिम संस्कार किया जाता था. जहां दफनाने की परंपरा थी वहां दफनाया जाता था और जहां दाह संस्कार की परंपरा थी वहां दाह संस्कार होता था."- शंकर सुमन, अध्यक्ष, बिहार संग्रहालय

"चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अस्थि कलश के बारे में सही जानकारी दी थी. इसी आधार पर खुदाई करने पर महात्मा बुद्ध के अस्थि कलश निकाले गए. बौद्ध धर्म में स्तूप का बहुत महत्व है. इसलिए महात्मा बुद्ध के अंतिम संस्कार के बाद उनके अवशेष को रखकर स्तूप का निर्माण कराया गया था."- विजय चौधरी, इतिहासकार

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Last Updated : Sep 10, 2021, 1:09 PM IST
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