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कोरोना काल में चुनाव पर बोले विशेषज्ञ- जब जनता ही नहीं बचेगी, तो लोकतंत्र कैसे बचेगा?

कोरोना काल में बिहार विधानसभा चुनाव कराने के फैसले पर सामाजिक चिंतक सवाल खड़े कर रहे हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना आपदा में लगे कर्मचारियों को अब चुनाव कराने की ट्रेनिंग दी जा रही है.

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Published : Jul 22, 2020, 8:17 PM IST

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पटना

पटना: बिहार में कोरोना संक्रमण के बीच विधानसभा के चुनाव कराने को लेकर मतभेद है. विशेषज्ञों का कहना है कि जिन अधिकारियों और कर्मचारियों को कोरोना महामारी से लड़ने की तैयारी में रात-दिन जुटा रहना चाहिए, वो चुनाव कराने की ट्रेनिंग में व्यस्त हो गये हैं.

मुख्य निर्वाचन अधिकारी सुनील अरोड़ा भी बिहार चुनाव को समय पर कराने की अपनी राय कई बार जाहिर भी कर चुके हैं. जिसके बाद से बिहार चुनाव के लिए राज्य चुनाव विभाग द्वारा लगातार जिलों के अफसरों को ट्रेनिंग कार्यक्रम में व्यस्त कर दिया गया है.

इस पूरी प्रक्रिया पर समाजिक चिंतक सवाल खड़ा करने लगे हैं. हालांकि इस मुद्दे पर पूर्व में कई राजनीतिक दलों ने भी सवाल उठाया लेकिन अब सामाजिक संस्थान से जुड़े लोग भी कह रहे हैं कि जब जनता ही नहीं बचेगी तो लोकतंत्र कैसे बचेगा?

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निर्वाचन विभाग

ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में पटना स्थित अनुग्रह नारायण सिन्हा शिक्षण शोध संस्थान के पूर्व निदेशक और प्रोफेसर डॉ. डी एम दिवाकर कहते हैं कि जब जनता बचेगी ही नहीं तो वोट कौन देगा? दिवाकर का मानना है कि जिस समय में राज्य के सभी अफसरों और कर्मचारियों को कोरोना वायरस महामारी से निपटने में जुटना चाहिए ऐसे समय में चुनाव आयोग ने उन्हें चुनावी कार्यों में व्यस्त कर रखा है. वर्तमान परिस्थिती में सबसे पहले जनता को जिंदा बचाने हर संस्थान की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए.

देखें रिपोर्ट

आपदा में बचाव कार्य छोड़कर चुनाव की तैयारी
वे कहते हैं कि बिहार में चुनाव के मामले को लेकर चुनाव आयोग, केंद्र सरकार, राज्य की सरकार और तमाम राजनीतिक दलों को जनता के हित की बात सबसे ऊपर रखनी चाहिए. उनका मानना है कि जिस डीएम एसपी सरकारी स्कूलों के शिक्षक कर्मचारी और अन्य विभागों के अधिकारी और कर्मचारियों को अभी कोरोना महामारी से निपटने और संक्रमण को रोकने में जुटा रहना चाहिए वह चुनावी तैयारियों में जुट गए हैं, जो राज्य की जनता के लिए बहुत खतरनाक है.

प्रो. दिवाकर ने दो विकल्प बताये
प्रोफेसर दिवाकर कहते हैं कि बिहार में बाढ़ और कोरोना महामारी की आपदा के बीच चुनाव की तैयारी करना समझ से परे हैं. दिवाकर राज्य और केंद्र की सरकार को दो विकल्प बताते हैं. पहला- समय रहते अगर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार राज्यपाल को आवेदन देकर महामारी को देखते हुए सरकार के विघटन और विस्तार का प्रस्ताव दे तो इस पर विचार हो सकता है. जिसके बाद अगली सरकार के गठन तक वर्तमान सरकार ही काम करती रहेगी.

कोरोना के बढ़ते मरीजों के बीच चुनाव
दूसरा विकल्प- नीतीश कुमार की सरकार कुछ न करें और चुनाव नहीं होने की परिस्थिति में राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होने दे. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि आखिरकार जिस तरह से राज्य में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है और ये स्थिति काफी खतरनाक होती जा रही है, उस बीच चुनावी कार्यों में अधिकारियों को जोड़ना कितना सही होगा यह बड़ा सवाल है.

पटना: बिहार में कोरोना संक्रमण के बीच विधानसभा के चुनाव कराने को लेकर मतभेद है. विशेषज्ञों का कहना है कि जिन अधिकारियों और कर्मचारियों को कोरोना महामारी से लड़ने की तैयारी में रात-दिन जुटा रहना चाहिए, वो चुनाव कराने की ट्रेनिंग में व्यस्त हो गये हैं.

मुख्य निर्वाचन अधिकारी सुनील अरोड़ा भी बिहार चुनाव को समय पर कराने की अपनी राय कई बार जाहिर भी कर चुके हैं. जिसके बाद से बिहार चुनाव के लिए राज्य चुनाव विभाग द्वारा लगातार जिलों के अफसरों को ट्रेनिंग कार्यक्रम में व्यस्त कर दिया गया है.

इस पूरी प्रक्रिया पर समाजिक चिंतक सवाल खड़ा करने लगे हैं. हालांकि इस मुद्दे पर पूर्व में कई राजनीतिक दलों ने भी सवाल उठाया लेकिन अब सामाजिक संस्थान से जुड़े लोग भी कह रहे हैं कि जब जनता ही नहीं बचेगी तो लोकतंत्र कैसे बचेगा?

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निर्वाचन विभाग

ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में पटना स्थित अनुग्रह नारायण सिन्हा शिक्षण शोध संस्थान के पूर्व निदेशक और प्रोफेसर डॉ. डी एम दिवाकर कहते हैं कि जब जनता बचेगी ही नहीं तो वोट कौन देगा? दिवाकर का मानना है कि जिस समय में राज्य के सभी अफसरों और कर्मचारियों को कोरोना वायरस महामारी से निपटने में जुटना चाहिए ऐसे समय में चुनाव आयोग ने उन्हें चुनावी कार्यों में व्यस्त कर रखा है. वर्तमान परिस्थिती में सबसे पहले जनता को जिंदा बचाने हर संस्थान की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए.

देखें रिपोर्ट

आपदा में बचाव कार्य छोड़कर चुनाव की तैयारी
वे कहते हैं कि बिहार में चुनाव के मामले को लेकर चुनाव आयोग, केंद्र सरकार, राज्य की सरकार और तमाम राजनीतिक दलों को जनता के हित की बात सबसे ऊपर रखनी चाहिए. उनका मानना है कि जिस डीएम एसपी सरकारी स्कूलों के शिक्षक कर्मचारी और अन्य विभागों के अधिकारी और कर्मचारियों को अभी कोरोना महामारी से निपटने और संक्रमण को रोकने में जुटा रहना चाहिए वह चुनावी तैयारियों में जुट गए हैं, जो राज्य की जनता के लिए बहुत खतरनाक है.

प्रो. दिवाकर ने दो विकल्प बताये
प्रोफेसर दिवाकर कहते हैं कि बिहार में बाढ़ और कोरोना महामारी की आपदा के बीच चुनाव की तैयारी करना समझ से परे हैं. दिवाकर राज्य और केंद्र की सरकार को दो विकल्प बताते हैं. पहला- समय रहते अगर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार राज्यपाल को आवेदन देकर महामारी को देखते हुए सरकार के विघटन और विस्तार का प्रस्ताव दे तो इस पर विचार हो सकता है. जिसके बाद अगली सरकार के गठन तक वर्तमान सरकार ही काम करती रहेगी.

कोरोना के बढ़ते मरीजों के बीच चुनाव
दूसरा विकल्प- नीतीश कुमार की सरकार कुछ न करें और चुनाव नहीं होने की परिस्थिति में राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होने दे. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि आखिरकार जिस तरह से राज्य में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है और ये स्थिति काफी खतरनाक होती जा रही है, उस बीच चुनावी कार्यों में अधिकारियों को जोड़ना कितना सही होगा यह बड़ा सवाल है.

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