पटना: इन दिनों जातीय जनगणना (Cast Census) को लेकर बिहार की राजनीति (Bihar Politics) गरमायी हुई है. वहीं, इस बार बिहार के मुख्यमंत्री और विपक्ष नेता जातीय जनगणना कराने को लेकर एक हो गए हैं. ऐसे में लोग अपना-अपना तर्क देते नजर आ रहे हैं. इसी क्रम में ईटीवी भारत (ETV Bharat) की टीम ने कुछ युवा और छात्रों से बात कर उनसे यह जानने की कोशिश की कि आखिर उनका जातीय जनगणना को लेकर क्या कुछ मानना है.
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छात्र रोहन कुमार ने कहा कि जातीय जनगणना बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था. जिससे की किस जाति समुदाय के लोग देश में कितने हैं. इस आंकड़ा के हिसाब से आरक्षण दिया जाता. जातीय जनगणना नहीं होने से किसी भी जाति को मनमाने तरीके से आरक्षण मिल रहा है.
छात्र ने बताया कि सटीक रूप से किस जाति को आरक्षण मिलना चाहिए और किस जाति को नहीं मिलना चाहिए, इसकी समझ नहीं हो पा रही है. जातीय जनगणना से पूरी जानकारी मिल पाएगी कि आर्थिक सामाजिक और शिक्षा के वास्तविक स्तर क्या हैं.
वहीं आईटीआई के छात्र अभिषेक भारती का कहना है कि जातीय जनगणना से यह फायदा होता है कि हम जिस जाति से बिलॉन्ग करते हैं उसमें आरक्षण का प्रावधान हो सकता है. युवा वर्ग का यह मानना है कि जातीय जनगणना होने से काफी कुछ फायदा मिलेगा.
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'जातीय जनगणना होनी चाहिए. सन 1931 के बाद से जातीय जनगणना नहीं हुई है. इसके होने से आरक्षण का दायरा बढ़ेगा. 1931 के दायरे के हिसाब से ही अभी तक देश में जातीय गणना चल रही है. ऐसे में यदि एक बार फिर से जातीय जनगणना हो जाती है, तो नए सिरे से आरक्षण का लाभ लोगों को मिल सकेगा.' -महानंद कुमार, छात्र
उमेश कुमार ने बताया कि मुख्यमंत्री के द्वारा जातीय जनगणना कराने को लेकर जो पहल की गई है, काफी अच्छा है. विद्यार्थियों की पढ़ाई में जो आरक्षण मिल रहा है, वह सभी वर्गों के लोगों को सामान्य मिलेगा. इसके साथ ही कुंदन कुमार का कहना है कि जातीय जनगणना अच्छा तो है, लेकिन इसका विपरीत प्रभाव भी जनता के ऊपर पड़ रहा है. कुंदन कुमार का मानना है कि जाति के प्रति जो भेदभाव उत्पन्न होते हैं, उसके लिए भी सरकार को पहल करनी चाहिए.