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बिहार : वापस आए तो अपना लिए गए मजदूर, अब फिर बन रहे 'प्रवासी' - bihar government

बिहार में कोरोना महामारी में लॉकडाउन के दौरान जहां लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूर लौटे. वहीं, अब रोजी-रोटी की तलाश में एक बार फिर मजदूर पलायन कर रहे हैं. पढ़ें पूरी खबर...

बिहार में पलायन
बिहार में पलायन
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Published : Jun 22, 2020, 8:26 PM IST

पटना: कोरोना काल की शुरुआत से लेकर अब तक अन्य राज्यों से प्रवासी मजदूरों का बिहार लौटना एक तरफ जहां जारी है, तो वहीं शुरुआत में आए प्रवासी मजदूर अब फिर से अन्य राज्यों की ओर रुख करने लगे हैं. सरकार ने भले ही इन मजदूरों को रोजगार देने का वादा किया हो, लेकिन इन मजदूरों को सरकार पर भरोसा नहीं. इसलिए ये रोजगार की आस में अन्य राज्यों की ओर लौट रहे हैं.

कोसी, मिथिलांचल और चंपारण के इलाकों में रोज पंजाब और हरियाणा से बसें आ रही हैं, जो मजदूरों को अपने साथ धान रोपनी के लिए ले जा रही हैं. एक अनुमान के मुताबिक, पंजाब से प्रतिदिन 50 से लेकर 100 से भी अधिक बसें बिहार के कई इलाकों में पहुंच रही हैं और फिर यहां से मजदूरों को लेकर वापस लौट रही हैं. इसके अलावा दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, तेलंगाना आदि राज्यों की छोटी-बड़ी औद्योगिक इकाइयों में काम करने के लिए भी बड़ी संख्या में मजदूर बिहार से जा रहे हैं. मुजफ्फरपुर के औराई, कटरा और मीनापुर प्रखंड से रोजाना मजदूर बाहर जा रहे हैं.

बस खुलने के इंतजार में मजदूर
बस खुलने के इंतजार में मजदूर

यहां नहीं मिलता उतना रुपया
लुधियाना के एक गांव में काम करने वाले और मीनापुर के रहने वाले राकेश यादव ने कहा, 'अभी धान रोपाई का मौसम चल रहा है, इसलिए हम जा रहे हैं. बिहार में लंबे समय तक अगर रहेंगे तो खाएंगे क्या. यहां ज्यादा दिन तक रहना मुश्किल है.' कोयली पंचायत के मुखिया अजय कुमार सहनी भी कहते हैं कि लोग यहां से पंजाब के खेतों में काम करने के लिए लौट रहे हैं. मेरी पंचायत से 2,000 से अधिक लोग जहां से आए थे, वहां लौट गए हैं. यहां आने के बाद भी ये लोग वहां के लोगों के संपर्क में थे.

दरभंगा में पलायन

दरभंगा में पलायन
दरभंगा में मजदूर पंजाब, हरियाणा और दिल्ली वापस जा रहे हैं. इन प्रदेशों के जमींदार उन्हें धान रोपनी के लिए गाड़ियां भेज कर बिना भाड़ा चुकाए वापस बुला रहे हैं. ऐसी ही एक बस हरियाणा के कुरुक्षेत्र से दरभंगा जिले के बेनीपुर पहुंचीऔर आसपास के गांवों से मजदूरों को धानरोपनी के लिए ले गई.

चल पड़े परदेस
चल पड़े परदेस

गोपालगंज में पलायन
इधर, गोपालगंज से भी मजदूरों का पलायन जारी है. दरअसल, कोरोना महामारी के कारण लागू लॉकडाउन के दौरान दूसरे राज्यों में काम कर रहे मजदूर परेशान होकर अपने घर लौट आए थे. इन मजदूरों ने शायद यह सोचा था कि अब अपने गांव में ही कोई काम करके परिवार का भरण-पोषण कर लेंगे, लेकिन वैसी स्थिति दिख नहीं रही है. पलायन कर रहे मजदूरो ने अपने अंदर छिपे दर्द को बयां करते हुए ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि अब तो हमे कोरोना संक्रमण से ज्यादा भूखे मरने का भय सता रहा है.

गोपालगंज में पलायन

'सोचा था...घर पर ही रहकर काम करेंगे, पंजाब जा रहा हूं'
अररिया निवासी मो.अब्बास का दर्द छलक पड़ा. अब्बास कहते है कि, लॉकडाउन में हम बाहर से पैदल अपने घर पहुंचे थे. सोचा था कि घर पर ही रहकर काम करेंगे, बाहर नही जाएंगे. लेकिन घर पर कोई काम नही मिला भूखे परिवार के लिए नही चाहते हुए फिर से बाहर जाना पड़ रहा है. बिहार में कोई रोजगार नही. पंजाब से बस आई है हम लोगों को ले जाने के लिए हम लोग वही जा रहे है.

'खाली बसें आ रही हैं, मजदूरों को लेकर जा रही हैं'
गोपालगंज के जिला परिवहन पदाधिकारी प्रमोद कुमार भी मानते हैं कि अन्य राज्यों से बसें आ रही हैं और यहां से मजदूरों को ले जा रही हैं. उन्होंने बताया, 'बलथरी चेक पोस्ट पर रोजाना एक सौ से ड़ेढ़ सौ बसें पंजाब, हरियाणा, राजस्थान से आ रही हैं. हमने पता किया तो बस वालों ने बताया कि वे लोग बिहार के विभिन्न जिलों से मजदूरों को लेकर जाने के लिए आए हैं. खाली बसें बिहार में प्रवेश कर रही हैं और मजदूरों को साथ लेकर बॉर्डर पार कर रही हैं.'

'पंजाब जा रहा हूं...यहां रहकर पेट कैसे भरेगा?'
वैसे, वापस जाने वाले मजदूरों को कोरोना का डर भी सता रहा है, लेकिन क्या करें. रोजगार भी जरूरी है. अररिया के रहने वाले लखीचंद पंजाब जा रहे हैं. वे कहते हैं, 'कोरोना का डर तो है, लेकिन यहां रहकर पेट कैसे भरेगा? हम पति-पत्नी के अलावे दो बच्चे और माता-पिता हैं. गांव में रहकर करेंगे क्या, कमाएंगे नहीं तो खाएंगे क्या?, यहां कोई रोजगार नही है. रोजगार मिलता तो हम बाहर क्यों जाते. रोज का अगर 150 से 200 रुपया भी मिलता तो हम गुजारा कर लेते...लेकिन' इतना कहते है लखीचंद के आंखों में आंसू आ जाते है.'

तेजस्वी यादाव का ट्वीट

  • नीतीश सरकार देश की सबसे नकारा, विफ़ल और निकम्मी सरकार है। इनके 15 वर्षों के कार्यकाल में बिहार के हर दूसरे घर से पलायन हुआ है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद श्रमिकों को बिहार में रोज़गार नहीं मिलने एवं भुखमरी के संकट के चलते मजबूरी में उन्हें वापस पलायन करना पड़ रहा है। pic.twitter.com/MaRjyp5h1p

    — Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) June 21, 2020 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

मिलेगा रोजगार-उद्योग मंत्री
हालांकि, राज्य के उद्योग मंत्री श्याम रजक का कहना है कि सरकार लोगों को रोजगार देने के लिए कृतसंकल्पित है. वे कहते हैं, 'कुशल मजदूरों का डाटा तैयार करवाया जा रहा है, जिनमें बढ़ई, पलंबर, लेथ, वेल्डिंग मशीन, मोटर मैकेनिक, राजमिस्त्री, गारमेंट व सर्विस जैसे अन्य सेक्टर के कामगार शामिल हैं. इसके आधार पर निवेशकों को बताया जा सकेगा कि किस सेक्टर में राज्य में कितने कुशल या अर्धकुशल कामगार हैं. उसी आधार पर रोजगार दिया जाएगा.'

श्याम रजक का बयान

उन्होंने कहा कि, उद्योग विभाग मजदूरों को रोजगार देने के लिए योजना बना रही है. अल्पकालिक और दीर्घकालिक योजना रोजगार सृजन के लिए बनाए जा रहे हैं. राज्य के अंदर कुल 52 औद्योगिक क्षेत्र के चीनी मिल को 13 जोन में बांटा गया है और अब कुल 65 औद्योगिक क्षेत्र हो गए हैं. हर जिले में जिला कुशल श्रमिक सलाह केंद्र बनाया गया है. जिसके अध्यक्ष डीडीसी होंगे. सप्ताह में 1 दिन डीडीसी कुशल श्रमिकों के साथ बैठक करेंगे.

पटना: कोरोना काल की शुरुआत से लेकर अब तक अन्य राज्यों से प्रवासी मजदूरों का बिहार लौटना एक तरफ जहां जारी है, तो वहीं शुरुआत में आए प्रवासी मजदूर अब फिर से अन्य राज्यों की ओर रुख करने लगे हैं. सरकार ने भले ही इन मजदूरों को रोजगार देने का वादा किया हो, लेकिन इन मजदूरों को सरकार पर भरोसा नहीं. इसलिए ये रोजगार की आस में अन्य राज्यों की ओर लौट रहे हैं.

कोसी, मिथिलांचल और चंपारण के इलाकों में रोज पंजाब और हरियाणा से बसें आ रही हैं, जो मजदूरों को अपने साथ धान रोपनी के लिए ले जा रही हैं. एक अनुमान के मुताबिक, पंजाब से प्रतिदिन 50 से लेकर 100 से भी अधिक बसें बिहार के कई इलाकों में पहुंच रही हैं और फिर यहां से मजदूरों को लेकर वापस लौट रही हैं. इसके अलावा दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, तेलंगाना आदि राज्यों की छोटी-बड़ी औद्योगिक इकाइयों में काम करने के लिए भी बड़ी संख्या में मजदूर बिहार से जा रहे हैं. मुजफ्फरपुर के औराई, कटरा और मीनापुर प्रखंड से रोजाना मजदूर बाहर जा रहे हैं.

बस खुलने के इंतजार में मजदूर
बस खुलने के इंतजार में मजदूर

यहां नहीं मिलता उतना रुपया
लुधियाना के एक गांव में काम करने वाले और मीनापुर के रहने वाले राकेश यादव ने कहा, 'अभी धान रोपाई का मौसम चल रहा है, इसलिए हम जा रहे हैं. बिहार में लंबे समय तक अगर रहेंगे तो खाएंगे क्या. यहां ज्यादा दिन तक रहना मुश्किल है.' कोयली पंचायत के मुखिया अजय कुमार सहनी भी कहते हैं कि लोग यहां से पंजाब के खेतों में काम करने के लिए लौट रहे हैं. मेरी पंचायत से 2,000 से अधिक लोग जहां से आए थे, वहां लौट गए हैं. यहां आने के बाद भी ये लोग वहां के लोगों के संपर्क में थे.

दरभंगा में पलायन

दरभंगा में पलायन
दरभंगा में मजदूर पंजाब, हरियाणा और दिल्ली वापस जा रहे हैं. इन प्रदेशों के जमींदार उन्हें धान रोपनी के लिए गाड़ियां भेज कर बिना भाड़ा चुकाए वापस बुला रहे हैं. ऐसी ही एक बस हरियाणा के कुरुक्षेत्र से दरभंगा जिले के बेनीपुर पहुंचीऔर आसपास के गांवों से मजदूरों को धानरोपनी के लिए ले गई.

चल पड़े परदेस
चल पड़े परदेस

गोपालगंज में पलायन
इधर, गोपालगंज से भी मजदूरों का पलायन जारी है. दरअसल, कोरोना महामारी के कारण लागू लॉकडाउन के दौरान दूसरे राज्यों में काम कर रहे मजदूर परेशान होकर अपने घर लौट आए थे. इन मजदूरों ने शायद यह सोचा था कि अब अपने गांव में ही कोई काम करके परिवार का भरण-पोषण कर लेंगे, लेकिन वैसी स्थिति दिख नहीं रही है. पलायन कर रहे मजदूरो ने अपने अंदर छिपे दर्द को बयां करते हुए ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि अब तो हमे कोरोना संक्रमण से ज्यादा भूखे मरने का भय सता रहा है.

गोपालगंज में पलायन

'सोचा था...घर पर ही रहकर काम करेंगे, पंजाब जा रहा हूं'
अररिया निवासी मो.अब्बास का दर्द छलक पड़ा. अब्बास कहते है कि, लॉकडाउन में हम बाहर से पैदल अपने घर पहुंचे थे. सोचा था कि घर पर ही रहकर काम करेंगे, बाहर नही जाएंगे. लेकिन घर पर कोई काम नही मिला भूखे परिवार के लिए नही चाहते हुए फिर से बाहर जाना पड़ रहा है. बिहार में कोई रोजगार नही. पंजाब से बस आई है हम लोगों को ले जाने के लिए हम लोग वही जा रहे है.

'खाली बसें आ रही हैं, मजदूरों को लेकर जा रही हैं'
गोपालगंज के जिला परिवहन पदाधिकारी प्रमोद कुमार भी मानते हैं कि अन्य राज्यों से बसें आ रही हैं और यहां से मजदूरों को ले जा रही हैं. उन्होंने बताया, 'बलथरी चेक पोस्ट पर रोजाना एक सौ से ड़ेढ़ सौ बसें पंजाब, हरियाणा, राजस्थान से आ रही हैं. हमने पता किया तो बस वालों ने बताया कि वे लोग बिहार के विभिन्न जिलों से मजदूरों को लेकर जाने के लिए आए हैं. खाली बसें बिहार में प्रवेश कर रही हैं और मजदूरों को साथ लेकर बॉर्डर पार कर रही हैं.'

'पंजाब जा रहा हूं...यहां रहकर पेट कैसे भरेगा?'
वैसे, वापस जाने वाले मजदूरों को कोरोना का डर भी सता रहा है, लेकिन क्या करें. रोजगार भी जरूरी है. अररिया के रहने वाले लखीचंद पंजाब जा रहे हैं. वे कहते हैं, 'कोरोना का डर तो है, लेकिन यहां रहकर पेट कैसे भरेगा? हम पति-पत्नी के अलावे दो बच्चे और माता-पिता हैं. गांव में रहकर करेंगे क्या, कमाएंगे नहीं तो खाएंगे क्या?, यहां कोई रोजगार नही है. रोजगार मिलता तो हम बाहर क्यों जाते. रोज का अगर 150 से 200 रुपया भी मिलता तो हम गुजारा कर लेते...लेकिन' इतना कहते है लखीचंद के आंखों में आंसू आ जाते है.'

तेजस्वी यादाव का ट्वीट

  • नीतीश सरकार देश की सबसे नकारा, विफ़ल और निकम्मी सरकार है। इनके 15 वर्षों के कार्यकाल में बिहार के हर दूसरे घर से पलायन हुआ है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद श्रमिकों को बिहार में रोज़गार नहीं मिलने एवं भुखमरी के संकट के चलते मजबूरी में उन्हें वापस पलायन करना पड़ रहा है। pic.twitter.com/MaRjyp5h1p

    — Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) June 21, 2020 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

मिलेगा रोजगार-उद्योग मंत्री
हालांकि, राज्य के उद्योग मंत्री श्याम रजक का कहना है कि सरकार लोगों को रोजगार देने के लिए कृतसंकल्पित है. वे कहते हैं, 'कुशल मजदूरों का डाटा तैयार करवाया जा रहा है, जिनमें बढ़ई, पलंबर, लेथ, वेल्डिंग मशीन, मोटर मैकेनिक, राजमिस्त्री, गारमेंट व सर्विस जैसे अन्य सेक्टर के कामगार शामिल हैं. इसके आधार पर निवेशकों को बताया जा सकेगा कि किस सेक्टर में राज्य में कितने कुशल या अर्धकुशल कामगार हैं. उसी आधार पर रोजगार दिया जाएगा.'

श्याम रजक का बयान

उन्होंने कहा कि, उद्योग विभाग मजदूरों को रोजगार देने के लिए योजना बना रही है. अल्पकालिक और दीर्घकालिक योजना रोजगार सृजन के लिए बनाए जा रहे हैं. राज्य के अंदर कुल 52 औद्योगिक क्षेत्र के चीनी मिल को 13 जोन में बांटा गया है और अब कुल 65 औद्योगिक क्षेत्र हो गए हैं. हर जिले में जिला कुशल श्रमिक सलाह केंद्र बनाया गया है. जिसके अध्यक्ष डीडीसी होंगे. सप्ताह में 1 दिन डीडीसी कुशल श्रमिकों के साथ बैठक करेंगे.

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