पटना: बिहार में हो रहे 2 सीटों के लिए उपचुनाव (By-Election) में बहुत सारे राजनीतिक मापदंड बदल गए. लंबे समय से चले आ रही कांग्रेस (Congress) और राजद (RJD) के बीच का गठबंधन लगभग टूट चुका है. बयानों में यह बात सामने आने भी लगी है कि राजद ने गठबंधन तोड़ दिया है. कांग्रेस चाहती थी कि जो समझौता था उस आधार पर उपचुनाव हों.
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लेकिन, राजद बगैर कांग्रेस को भरोसे में लिए दोनों सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए. जबकि कुशेश्वरस्थान सीट कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है और पिछले पांच विधानसभा चुनाव से वहां कांग्रेस ही चुनाव लड़ती रही है. उपचुनाव में विभेद के बाद जो राजनैतिक समीकरण अब सामने निकलकर आ रहे हैं, उसमें कांग्रेस भी राजद से चेहरा छुड़ाना ही चाह रही है. दरअसल, कांग्रेस का जो लालू यादव के साथ समीकरण और संबंध में बैठा वह अब सियासत की दूसरी डगर लेता जा रहा है और कांग्रेस उसे भगाने के मूड में भी आ गई है.
मंडल कमीशन के बाद देश में आए बदलाव ने कई क्षेत्रीय दलों को बहुत मजबूत बनाया. सामाजिक समीकरण के नाम पर बिहार में लालू यादव का राजनीतिक कद इतना बड़ा आकार ले लिया कि उसके सामने कांग्रेस की सियासत छोटी पड़ गई.
1990 से कांग्रेस लालू यादव की पीछे की राजनीति कर रही है, लेकिन बदले राजनीतिक हालात में अब कांग्रेस लालू वाली छवि से बाहर निकलना चाहती है. उसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि लालू की राष्ट्रीय जनता दल अब लालू की छवि से बाहर निकल रही है और लालू के छोटे बेटे तेजस्वी यादव की सियासत की राजद को दिखा दे रही है. ऐसे में कांग्रेस अब उस सियासी दबाव में रहकर राजनीति नहीं करना चाहती जो मंडल कमीशन के बाद लालू यादव के जाति दबदबे के कारण बिहार में चली थी.
बिहार विधानसभा के तारापुर और कुशेश्वरस्थान पर हो रहे उपचुनाव में राष्ट्रीय जनता दल ने अपने दोनों उम्मीदवारों की जब घोषणा की तो कांग्रेस ने इस बात का आरोप तेजस्वी यादव पर लगाया कि उन्होंने कांग्रेस के साथ कोई बातचीत नहीं की, लेकिन तेजस्वी यादव ने कह दिया कि उन्होंने कांग्रेस के लोगों को इसकी जानकारी दे दी थी.
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दरअसल, तेजस्वी यादव जिस मनमानी से गठबंधन में राजनीति कर रहे हैं, कांग्रेस को यह नागवार गुजर रहा है. बाप के नाम पर अपने चेहरे की सियासत करने पर तेजस्वी यादव उतरे हुए हैं और शायद तेजस्वी यह भूल गए कि 1990 के मंडल कमीशन से निकले बिहार की राजनीति नहीं है, बल्कि बदलाव में मोदी से लड़ने वाले उन मुद्दों की राजनीति है, जिसमें यादव जाति पर लालू या तेजस्वी का कब्जा है.
इसका दावा भी नहीं किया जा सकता क्योंकि अगर इस दावे की बात होती तो 2010 में कांग्रेस की जो फजीहत हुई और राजद की भी जिस तरीके से फजीहत हुआ उससे एक बात तो साफ है कि राजद भी इस बात को जानती है कि यादव सियासत अब इतनी मजबूत रही नहीं, क्योंकि मोदी से लड़ने वाली राजनीति ही अब मुद्दों के आधार पर खड़ा करेगी और मुद्दों में अगर विकास का मॉडल नहीं रहा तो जनता का कोई रूप साथ जोड़ेगा कहना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. लेकिन, अभी भी राष्ट्रीय जनता दल यादव और चेहरे की सियासत से बाहर नहीं निकल पाई है और यही वजह है कि उपचुनाव में भी जातीय गोलबंदी के तहत ही कांग्रेस को दरकिनार कर दोनों सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए.
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मनमानी की इस राजनीति से कांग्रेस भी अब किनारा करना चाहती है और यही वजह है कि पप्पू यादव के जेल से बाहर आते ही पप्पू यादव को कांग्रेस में शामिल होने का ऑफर मिलने की चर्चा शुरू हो गई. हालांकि, जाप के सामने ये बातें रखी गई थी कि पप्पू यादव अगर अपनी पार्टी जन अधिकार पार्टी का कांग्रेस में विलय कर लेते हैं तो कांग्रेस पप्पू यादव की शर्तों को मान सकती है, लेकिन पप्पू यादव ने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय करने से इनकार कर दिया.
दरअसल, तेजस्वी यादव पर जिस तरीके के राजनीतिक आरोप हैं और तेजस्वी यादव पिता की सियासत से भ्रष्टाचार के जिस मुद्दे में घिरे पड़े हुए हैं, अगर कांग्रेस नेतृत्व के स्थान पर आती है, तो उसे इसका जवाब देना बहुत मुश्किल होगा.
बिहार की राजनीति में पप्पू यादव ऐसे चेहरे जरूर हैं, जो लालू यादव के चेहरे को टक्कर तो नहीं दे सकते, लेकिन यादव राजनीति के लिए तेजस्वी से कम भी नहीं पड़ेंगे. अगर तेजस्वी यादव के पीछे से लालू यादव का नाम हटा दिया जाए तो तेजस्वी यादव का अपना वजूद छोटा पड़ जाएगा. ऐसे में कांग्रेस भी ये देखने लगी है कि जब लालू यादव पार्टी की राजनीति से बाहर जा रहे हैं तो लालू यादव के पीछे खड़े होने का कोई मतलब रहा नहीं और तेजस्वी यादव को तरजीह दे करके अपनी सियासत को डूबा देना भी कांग्रेस को अब नागवार गुजर रहा है.
यही वजह है कि कांग्रेस राजद की उस छवि से बाहर निकली है और जिन 2 सीटों पर चुनाव हो रहे हैं, वहां कांग्रेस ने भी अपने उम्मीदवार उतार दिए. जीत हार अलग बात है , लेकिन एक बात तो साफ है कि कांग्रेस ने राजद के सामने अपने उम्मीदवार उतारकर जिस तरीके से तेजस्वी यादव को चुनौती दी है और पप्पू यादव को अपने साथ जोड़ने के लिए समर्थन वाली सियासत से एक बात तो साफ है कि अब राजद को इस गुमान में नहीं रहना है कि कांग्रेस यादव वाली चेहरे की राजनीति के लिए लालू यादव के पीछे डुबकी खड़ी रहेगी, क्योंकि अब बदलती सियासत में कांग्रेस ने भी बदलाव के बयार के तरफ रुख कर लिया है.
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यह माना जाता है कि हर सियासत के बाद भी बिहार की जाति वाली राजनीति अलग नहीं जाती और इसी आधार को तेजस्वी यादव लालू यादव की उस सियासत और विरासत के आधार पर जाना चाह रहे हैं, जिसे मंडल कमीशन के बाद लालू यादव ने यादव समीकरण के साथ खड़ा किया था. कांग्रेस यादव समीकरण के नाते ही लालू के साथ थी लेकिन अब तेजस्वी से बड़ा चेहरा पप्पू यादव अपने बलबूते बने हैं, यह तो सत्य है ऐसे में अगर कांग्रेस पप्पू यादव को अपने साथ कर लेती है, तो बिहार में कांग्रेस का पप्पू समीकरण तेजस्वी यादव की सियासत पर चुनौती तो जरूर दे देगा.
पप्पू यादव विधानसभा चुनाव में तेजस्वी के लिए चुनौती भी दे दिए थे कि जिस सीट से तेजस्वी यादव चाहे उनसे लड़ सकते हैं या मुद्दों पर उनके साथ डिबेट भी कर सकते हैं. लालू यादव का बेटा होने का मतलब यह नहीं हुआ कि सियासत में पार्टी की कमान उन्हीं को मिल जाए या विरोध वाली राजनीति भी पप्पू यादव की रही है और अगर इस विरोध को कांग्रेस अपने साथ जोड़ लेती है तो फिर तेजस्वी के लिए ऐसे विरोधियों का सामना करना और यादव समीकरण पर पुख्ता दावा करना बेमानी हो जाएगा, क्योंकि तेजस्वी अपनी सियासत को विरासत के रूप में पाएं हैं और इसी विरासत वाली सियासत को अपनी राजनीति का आधार भी मानते हैं जो अब कांग्रेस के साथ फिलहाल भटकता दिख रहा है.