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बड़े निवेश का दशकों से बाट जोह रहा बिहार, निचले पायदन पर है बरकरार

बिहार निवेश के मामले में पिछड़े पायदन पर है. दशकों से यहां बड़े उद्योग नहीं लग पाए हैं. सरकार के बड़े- बड़े दावे के बावजूद प्रवासी मजदूर फिर से काम के लिए दूसरे राज्यों में लौटना शुरू कर दिए हैं.

बिहार निवेश
बिहार निवेश
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Published : Sep 17, 2020, 10:47 PM IST

पटना: बिहार में औद्योगिक निवेश सरकारों की प्राथमिकताओं में शामिल नहीं रहा है. निवेश को बढ़ावा देने के लिए कई सम्मेलनों का आयोजन किया गया. लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर गैप और बैंकों के नकारात्मक रवैया ने उद्योगपतियों को आकर्षित नहीं किया. सरकार भी उद्योगपतियों के लिए माहौल बनाने में नाकामयाब रही. राज्य में सहीं रूप में सिंगल विंडो सिस्टम भी लागू नहीं किया जा सका.

बिहार में 30 साल तक जयप्रकाश नारायण के अनुयायी लालू यादव और नीतीश कुमार का शासनकाल रहा. राज्य में औद्योगिक निवेश को लेकर सरकार गंभीर नहीं रही. नतीजतन लालू यादव के 15 साल के शासनकाल में जहां औद्योगिक उत्पादन नकारात्मक रहा. वहीं, नीतीश कुमार के 15 साल के शासन काल में हालात सुधरे. लेकिन उद्योगपतियों के लिए उचित माहौल नहीं बनाया जा सका.

पेश है रिपोर्ट


निवेश में पिछड़ा बिहार
कोरोना संकटकाल में जब 40 लाख से भी ज्यादा प्रवासी मजदूर बिहार लौटे, तब सरकार को निवेश की याद आई. तत्कालीन उद्योग मंत्री श्याम रजक ने 24 कंपनियों को निवेश के लिए खत लिखा. बिहार में उद्योग लगाने का न्योता भी दिया. ये भी वादा किया गया कि 30 दिनों के अंदर तमाम तरह के क्लीयरेंस दे दी जाएंगी. बिहार सरकार के पहल का कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकला और प्रवासी मजदूर फिर से काम के लिए दूसरे राज्यों में लौटना शुरू कर दिए हैं. वहीं, लालू प्रसाद यादव के 15 साल के शासन काल में निवेश की स्थिति बदतर रही और उत्पादन के क्षेत्र में वार्षिक विकास दर भी नकारात्मक रहा. हालांकि बाद के वर्षों में हालात सुधरे और औद्योगिक उत्पादन के क्षेत्र में प्रगति हुई. इसके बावजूद राज्य में बड़े निवेश नहीं हुए.

ये है आंकड़ा

1991-20012005-15 2016-19
उत्पादन क्षेत्र-7.1%7% 8.6%
निबंधित क्षेत्र-13%19.3%.......
गैर निबंध क्षेत्र-1.2%3.4%......


राज्य के जीएसडीपी पर अगर नजर डालें, तो 1990- 1991 में उत्पादन सेक्टर का योगदान 10004 करोड़ रुपए का था, जो 2000-01 में घटकर 4215 करोड़ का हो गया. 2005-06 में घटकर 4106 करोड़ का हो गया. हालांकि 2014- 15 आंकड़ा बढ़कर 7575 करोड़ का हो गया और 2018-19 में आंकड़ा बढ़कर 30632 करोड़ तक पहुंच गया. वर्तमान में ये आंकड़ा 33963 करोड़ का है.

पूर्व मंत्री आलोक मेहता, राजद
पूर्व मंत्री आलोक मेहता, राजद
सत्ता और विपक्ष का आरोप-प्रत्यारोप
चुनावी मौसम है और आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी जारी है. राजद ने सरकार को कटघरे में खड़ा किया है. पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री आलोक मेहता ने कहा कि नीतीश कुमार के शासनकाल में कितने बड़े उद्योग लगे? ये सरकार को बताना चाहिए. बिहार सरकार निवेश को बढ़ावा देने में पूरी तरह विफल साबित हुई और उद्योगपतियों को निवेश के लिए सुरक्षा नहीं किया जा सका. वहीं, उद्योग मंत्री महेश्वर हजारी का मानना है कि बिहार में बड़े उद्योग न लगे लेकिन छोटे उद्योग बिहार में सबसे ज्यादा कमी है. हम आगे भी प्रयास कर रहे हैं.
मंत्री महेश्वर हजारी
मंत्री महेश्वर हजारी

अर्थशास्त्रियों की अलग-अलग राय
वहीं, बिहार में निवेश को लेकर अर्थशास्त्रियों की भी अलग-अलग राय है. अमित बक्शी का मानना है कि नीतीश सरकार के शासनकाल में स्थिति बेहतर हुई. सरकारी निवेश को सरकार ने बढ़ावा दिया और कई निगम आज की तारीख में फायदे में हैं. लेकिन उद्योग के क्षेत्र में निजी निवेश हुए, लेकिन इस दिशा में बहुत कुछ करने की जरूरत है. केंद्र सरकार की नीतियों के वजह से भी बिहार जैसे राज्य पिछड़ गए. अर्थशास्त्री डीएम दिवाकर का मानना है कि बैंकों के रवैया के चलते निवेश को बढ़ावा नहीं किया जा सका. अब जब कि पूरे देश में जीएसटी लागू हो चुका है. ऐसी स्थिति में अब निवेश की संभावना भी नहीं है. बिहार जैसे राज्य अब उपभोक्ता राज्य बन कर रह जाएगा.

पटना: बिहार में औद्योगिक निवेश सरकारों की प्राथमिकताओं में शामिल नहीं रहा है. निवेश को बढ़ावा देने के लिए कई सम्मेलनों का आयोजन किया गया. लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर गैप और बैंकों के नकारात्मक रवैया ने उद्योगपतियों को आकर्षित नहीं किया. सरकार भी उद्योगपतियों के लिए माहौल बनाने में नाकामयाब रही. राज्य में सहीं रूप में सिंगल विंडो सिस्टम भी लागू नहीं किया जा सका.

बिहार में 30 साल तक जयप्रकाश नारायण के अनुयायी लालू यादव और नीतीश कुमार का शासनकाल रहा. राज्य में औद्योगिक निवेश को लेकर सरकार गंभीर नहीं रही. नतीजतन लालू यादव के 15 साल के शासनकाल में जहां औद्योगिक उत्पादन नकारात्मक रहा. वहीं, नीतीश कुमार के 15 साल के शासन काल में हालात सुधरे. लेकिन उद्योगपतियों के लिए उचित माहौल नहीं बनाया जा सका.

पेश है रिपोर्ट


निवेश में पिछड़ा बिहार
कोरोना संकटकाल में जब 40 लाख से भी ज्यादा प्रवासी मजदूर बिहार लौटे, तब सरकार को निवेश की याद आई. तत्कालीन उद्योग मंत्री श्याम रजक ने 24 कंपनियों को निवेश के लिए खत लिखा. बिहार में उद्योग लगाने का न्योता भी दिया. ये भी वादा किया गया कि 30 दिनों के अंदर तमाम तरह के क्लीयरेंस दे दी जाएंगी. बिहार सरकार के पहल का कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकला और प्रवासी मजदूर फिर से काम के लिए दूसरे राज्यों में लौटना शुरू कर दिए हैं. वहीं, लालू प्रसाद यादव के 15 साल के शासन काल में निवेश की स्थिति बदतर रही और उत्पादन के क्षेत्र में वार्षिक विकास दर भी नकारात्मक रहा. हालांकि बाद के वर्षों में हालात सुधरे और औद्योगिक उत्पादन के क्षेत्र में प्रगति हुई. इसके बावजूद राज्य में बड़े निवेश नहीं हुए.

ये है आंकड़ा

1991-20012005-15 2016-19
उत्पादन क्षेत्र-7.1%7% 8.6%
निबंधित क्षेत्र-13%19.3%.......
गैर निबंध क्षेत्र-1.2%3.4%......


राज्य के जीएसडीपी पर अगर नजर डालें, तो 1990- 1991 में उत्पादन सेक्टर का योगदान 10004 करोड़ रुपए का था, जो 2000-01 में घटकर 4215 करोड़ का हो गया. 2005-06 में घटकर 4106 करोड़ का हो गया. हालांकि 2014- 15 आंकड़ा बढ़कर 7575 करोड़ का हो गया और 2018-19 में आंकड़ा बढ़कर 30632 करोड़ तक पहुंच गया. वर्तमान में ये आंकड़ा 33963 करोड़ का है.

पूर्व मंत्री आलोक मेहता, राजद
पूर्व मंत्री आलोक मेहता, राजद
सत्ता और विपक्ष का आरोप-प्रत्यारोप
चुनावी मौसम है और आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी जारी है. राजद ने सरकार को कटघरे में खड़ा किया है. पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री आलोक मेहता ने कहा कि नीतीश कुमार के शासनकाल में कितने बड़े उद्योग लगे? ये सरकार को बताना चाहिए. बिहार सरकार निवेश को बढ़ावा देने में पूरी तरह विफल साबित हुई और उद्योगपतियों को निवेश के लिए सुरक्षा नहीं किया जा सका. वहीं, उद्योग मंत्री महेश्वर हजारी का मानना है कि बिहार में बड़े उद्योग न लगे लेकिन छोटे उद्योग बिहार में सबसे ज्यादा कमी है. हम आगे भी प्रयास कर रहे हैं.
मंत्री महेश्वर हजारी
मंत्री महेश्वर हजारी

अर्थशास्त्रियों की अलग-अलग राय
वहीं, बिहार में निवेश को लेकर अर्थशास्त्रियों की भी अलग-अलग राय है. अमित बक्शी का मानना है कि नीतीश सरकार के शासनकाल में स्थिति बेहतर हुई. सरकारी निवेश को सरकार ने बढ़ावा दिया और कई निगम आज की तारीख में फायदे में हैं. लेकिन उद्योग के क्षेत्र में निजी निवेश हुए, लेकिन इस दिशा में बहुत कुछ करने की जरूरत है. केंद्र सरकार की नीतियों के वजह से भी बिहार जैसे राज्य पिछड़ गए. अर्थशास्त्री डीएम दिवाकर का मानना है कि बैंकों के रवैया के चलते निवेश को बढ़ावा नहीं किया जा सका. अब जब कि पूरे देश में जीएसटी लागू हो चुका है. ऐसी स्थिति में अब निवेश की संभावना भी नहीं है. बिहार जैसे राज्य अब उपभोक्ता राज्य बन कर रह जाएगा.

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