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Bihar Politics: एक विधेयक कई समीकरण, क्या निषाद बनेंगे खेवनहार!

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Published : Apr 5, 2023, 7:51 PM IST

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 137 साल पुराने बंगाल फेरी एक्ट में बदलाव कर नौकाघाट बंदोबस्ती एवं प्रबंधन विधेयक 2023 लाया है. इस विधेयक का निषाद समाज पर कई सकारात्मक असर पड़ेगा. यही वजह है कि इस विधेयक के पारित होने के बाद से इसे निषाद वोट बैंक को साधने (Nishad vote bank politics) के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है. इसके साथ अन्य दलों ने भी निषाद समाज के वोट पर अपना दावा करना शुरू कर दिया है. पढ़ें पूरी खबर..

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बिहार में नए विधेयक से निषाद वोट बैंक पर निशाना

पटना: बिहार में अभी विधानसभा चुनाव में देरी है, लेकिन राजनीतिक गोलबंदी और अपने-अपने समीकरण को तलाशने की तैयारी शुरू हो गई है. ताजा मामला सीएम नीतीश कुमार के द्वारा एक विधेयक पर लिए गए निर्णय से जुड़ा हुआ है. इसके बाद राजनीतिक पंडितों से लेकर राजनीतिक गलियारे तक में विधेयक और उससे पड़ने वाले प्रभाव की चर्चाएं शुरू हो गई हैं. यह विधेयक निषाद समाज से जुड़ा हुआ है और इसके सहारे निषाद वोट बैंक को साधने (New bill in Bihar targeting Nishad vote bank) की कोशिश की जा सकती है. ऐसे में सभी पार्टियां निषाद समाज के वोट बैंक पर अपना मजबूत दावा कर रही है.

ये भी पढ़ेंः Mukesh Sahani : 'निषाद का बेटा सीएम क्यों नहीं बन सकता?'.. बिहार-यूपी-झारखंड की सभी लोकसभा सीटों पर नजर

क्या है विधेयक: दरअसल सीएम नीतीश कुमार ने करीब 137 साल पुराने उस विधेयक में बदलाव कर दिया है, जो विधेयक सीधे-सीधे निषाद समाज से ताल्लुक रखता है. दरअसल 1885 में बंगाल फेरी एक्ट विधेयक को तैयार किया गया था. यह विधेयक मछुआरा समाज से आने वाली क्रांतिकारी महिला रासमणि से जुड़ा हुआ था. तब अंग्रेजों के जमाने में बंगाल के हुगली नदी में उनकी स्टीमर और नावें चलती थी. जिससे लकड़ी और बांस का व्यापार होता था. यात्रियों की सुविधा के लिए विभिन्न प्रकार के घाटों का भी निर्माण कराया गया था. इन जनउपयोगी कदमों से रानी रासमणि की लोकप्रियता बढ़ने लगी थी.

रासमणि की अंग्रेजों से जीत के बाद बना बंगाल फेरी एक्ट 1885: रासमणि की से तत्कालीन ब्रिटिश सरकार के अंग्रेज अधिकारी जलन रखने लगे. इन अधिकारियों ने सबसे पहले नदी में मछली पकड़ने वाले मछुआरों को रोका और भी कई तरह की शर्तों को रानी रासमणि के ऊपर लगा दिया. रानी ने कड़ा विरोध किया. अंग्रेजों के साथ उनकी झड़प भी हुई और इसमें रानी की विजय हुई. इसके बाद उन्होंने कई शर्तों को रखा, जिसे अंग्रेजों ने मान लिया और उसी पृष्ठभूमि में बंगाल फेरी एक्ट 1885 का निर्माण हुआ.

नीतीश कुमार ने किया संशोधन: करीब 137 साल के बाद नीतीश कुमार ने इस एक्ट में बदलाव कर दिया है. बदलाव के बाद ऐसा माना जा रहा है कि इसका सीधा लाभ नौका परिचालन से जुड़े निषाद यानी मछुआरा समाज को मिलेगा. बिहार में अब तक बंगाल फेरी एक्ट लागू थी. लेकिन वर्तमान सत्र में पुराने अधिनियम की जगह पर नया विधेयक दोनों ही सदनों से पारित हुआ है. इसे बिहार नौकाघाट बंदोबस्ती एवं प्रबंधन विधेयक 2023 कहा जा रहा है. इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस नई व्यवस्था के संचालन का अधिकार पंचायती राज संस्थानों के सुपुर्द किया जाएगा.

क्या वोट बैंक पर है नजर ? : दरअसल इस पुराने विधेयक में बदलाव करके नीतीश कुमार ने एक सधी हुई चाल चली है. नीतीश कुमार द्वारा विधेयक में संशोधन से एक तरफ जहां निषाद समाज के ऊपर असर पड़ने की संभावना है, वहीं दूसरी तरफ उन्होंने यह संदेश भी देने की कोशिश की है कि वह समाज के तमाम वर्ग को साथ लेकर चलने में यकीन रखते हैं. अगर आंकड़ों में देखा जाए तो बिहार में करीब 8 से 9% निषाद समाज का वोट बैंक है. इसके बाद निषाद समाज की करीब 21 उपजातियां हैं. इनका भी वोट बैंक 5 से 6% है. यानी 12 से 14% तक का वोट बैंक निषाद समाज के पास है.

कई सीटें पर निषाद वोट बैंक की भूमिका है निर्णायकः अगर यह समाज किसी पार्टी की तरफ मूव करता है तो उसे चुनावी मैदान में जीत हासिल करने में सफलता मिल सकती है. राज्य में कई ऐसी विधानसभा सीटें हैं, जहां पर निषाद समाज के वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं. इन सीटों में ब्रह्मपुर, बोचहा, गौरा बौराम, सिमरी बख्तियारपुर, सुगौली, मधुबनी, केवटी, साहेबगंज, बलरामपुर, अलीनगर, बनियापुर, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, बेतिया और बगहा शामिल हैं.

बराबर है सभी पार्टियों की नजर: राज्य में कोई भी दल इस समाज के वोट को लेने के मामले में अछूता नहीं है. इसी समाज के वोटर को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए बीजेपी और मुकेश साहनी में नजदीकी की भी खबर आती है, तो इसी समाज से ताल्लुक रखने वाले मदन साहनी जदयू के वरिष्ठ नेताओं में गिने जाते हैं और लंबे वक्त से वह मंत्री पद पर भी काबिज हैं. राष्ट्रीय जनता दल भी इस समाज के तमाम नेताओं को अपनी पार्टी की टिकट पर विधायक और सांसद बनाते रहा हैं.

निषाद विकास मंच ने भी किया आगाज: निषाद वोटरों पर ही नजर का असर है कि निषाद विकास मंच भी अब इसकी तरफदारी में लग गया है. निषाद विकास मंच की तरफ से राजधानी में गुरुवार को भगवान श्री राम के मित्र निषादराज गुह्य की जयंती को मनाने की तैयारी चल रही है. राजधानी में आयोजित होने वाले इस जयंती समारोह में निषाद समाज के कई बड़े चेहरे हिस्सा ले सकते हैं.

पहली बार निषादराज निषादराज गुह्य की मनेगी जयंती: निषाद सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुकेश निषाद कहते हैं, राज्य में पहली बार निषादराज की जयंती मनाई जा रही है. उनकी जयंती का आयोजन बिहार में आज तक नहीं किया गया था. हम लोग समाज में जागरूकता फैलाने के लिए आयोजन कर रहे हैं. क्योंकि हमारे पूर्वज कभी राजा हुआ करते थे और आज हमारी हालत दयनीय है. हमारी कोशिश अपने समाज को जगाने और उसकी ताकत को पहचानने की है. मुकेश इस बात की तरफ भी इशारा करते हैं कि निषाद समाज को लेकर राजनीति में एक नया विकल्प भी जल्द पैदा हो सकता है.

"राज्य में पहली बार निषादराज की जयंती मनाई जा रही है. उनकी जयंती का आयोजन बिहार में आज तक नहीं किया गया था. हम लोग समाज में जागरूकता फैलाने के लिए आयोजन कर रहे हैं. क्योंकि हमारे पूर्वज कभी राजा हुआ करते थे और आज हमारी हालत दयनीय है. हमारी कोशिश अपने समाज को जगाने और उसकी ताकत को पहचानने की है" - मुकेश निषाद, निषाद सेना प्रमुख

मुकेश सहनी सबसे अलग: निषाद समाज के वोटरों को अपनी अपनी तरफ आकर्षित करने में लगे हुए विभिन्न दलों के ऊपर कटाक्ष करते हुए विकासशील इंसान पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता देवज्योति कहते हैं, जितने भी दल और पार्टियां निषाद समाज के लिए आगे आकर काम करने की बात कर रही है. दरअसल वो सब उनके नेता मुकेश साहनी की नकल कर रहे हैं. मुकेश साहनी के कारण ही निषाद समाज के लोगों में जागृति आई है.

"जितने भी दल और पार्टियां निषाद समाज के लिए आगे आकर काम करने की बात कर रही है. दरअसल वो सब उनके नेता मुकेश साहनी की नकल कर रहे हैं. मुकेश साहनी के कारण ही निषाद समाज के लोगों में जागृति आई है" - देवज्योति, प्रवक्ता, वीआईपी

नीतीश कुमार रखते है सबका ख्याल: जनता दल यू के प्रवक्ता अभिषेक झा कहते हैं सीएम नीतीश कुमार की प्राथमिकता समाज के सभी वर्गों का विकास करने की रही है. विशेष रूप से पिछड़ा, अति पिछड़ा, दलित और महादलित समाज या फिर आर्थिक रूप से कमजोर सवर्ण समाज से ताल्लुक रखने वाले लोग. विधानसभा में जो प्रस्ताव पारित हुआ है. वह ऐतिहासिक है. इससे निश्चित रूप से निषाद समाज के लोगों को लाभ मिलेगा.

"सीएम नीतीश कुमार की प्राथमिकता समाज के सभी वर्गों का विकास करने की रही है. विशेष रूप से पिछड़ा, अति पिछड़ा, दलित और महादलित समाज या फिर आर्थिक रूप से कमजोर सवर्ण समाज से ताल्लुक रखने वाले लोग. विधानसभा में जो प्रस्ताव पारित हुआ है. वह ऐतिहासिक है. इससे निश्चित रूप से निषाद समाज के लोगों को लाभ मिलेगा" - अभिषेक झा, प्रवक्ता, जेडीयू

विधेयक से मछुआरा समाज को फायदा: वरिष्ठ पत्रकार मनोज पाठक कहते हैं. इस विधेयक से सबसे ज्यादा फायदा मछुआरा समाज को हो सकता है. आज बिहार में मछुआरा जाति सबसे हॉट टॉपिक बनी हुई है. मुकेश साहनी इसी जाति को लेकर राजनीति कर रहे हैं. ऐसा माना जाता है कि यह जाति मुकेश साहनी के साथ है. इधर नीतीश कुमार ने भी विधेयक पास करके नया दांव चला है. उन्होंने साफ संकेत दे दिया है कि उनकी नजर भी निषाद समाज पर है. ऐसे में आने वाला चुनाव बहुत दिलचस्प होगा. क्योंकि निषादों पर सबकी नजर है.

"इस विधेयक से सबसे ज्यादा फायदा मछुआरा समाज को हो सकता है. आज बिहार में मछुआरा जाति सबसे हॉट टॉपिक बनी हुई है. मुकेश साहनी इसी जाति को लेकर राजनीति कर रहे हैं. ऐसा माना जाता है कि यह जाति मुकेश साहनी के साथ है. इधर नीतीश कुमार ने भी विधेयक पास करके नया दांव चला है"- मनोज पाठक, वरिष्ठ पत्रकार

बिहार में नए विधेयक से निषाद वोट बैंक पर निशाना

पटना: बिहार में अभी विधानसभा चुनाव में देरी है, लेकिन राजनीतिक गोलबंदी और अपने-अपने समीकरण को तलाशने की तैयारी शुरू हो गई है. ताजा मामला सीएम नीतीश कुमार के द्वारा एक विधेयक पर लिए गए निर्णय से जुड़ा हुआ है. इसके बाद राजनीतिक पंडितों से लेकर राजनीतिक गलियारे तक में विधेयक और उससे पड़ने वाले प्रभाव की चर्चाएं शुरू हो गई हैं. यह विधेयक निषाद समाज से जुड़ा हुआ है और इसके सहारे निषाद वोट बैंक को साधने (New bill in Bihar targeting Nishad vote bank) की कोशिश की जा सकती है. ऐसे में सभी पार्टियां निषाद समाज के वोट बैंक पर अपना मजबूत दावा कर रही है.

ये भी पढ़ेंः Mukesh Sahani : 'निषाद का बेटा सीएम क्यों नहीं बन सकता?'.. बिहार-यूपी-झारखंड की सभी लोकसभा सीटों पर नजर

क्या है विधेयक: दरअसल सीएम नीतीश कुमार ने करीब 137 साल पुराने उस विधेयक में बदलाव कर दिया है, जो विधेयक सीधे-सीधे निषाद समाज से ताल्लुक रखता है. दरअसल 1885 में बंगाल फेरी एक्ट विधेयक को तैयार किया गया था. यह विधेयक मछुआरा समाज से आने वाली क्रांतिकारी महिला रासमणि से जुड़ा हुआ था. तब अंग्रेजों के जमाने में बंगाल के हुगली नदी में उनकी स्टीमर और नावें चलती थी. जिससे लकड़ी और बांस का व्यापार होता था. यात्रियों की सुविधा के लिए विभिन्न प्रकार के घाटों का भी निर्माण कराया गया था. इन जनउपयोगी कदमों से रानी रासमणि की लोकप्रियता बढ़ने लगी थी.

रासमणि की अंग्रेजों से जीत के बाद बना बंगाल फेरी एक्ट 1885: रासमणि की से तत्कालीन ब्रिटिश सरकार के अंग्रेज अधिकारी जलन रखने लगे. इन अधिकारियों ने सबसे पहले नदी में मछली पकड़ने वाले मछुआरों को रोका और भी कई तरह की शर्तों को रानी रासमणि के ऊपर लगा दिया. रानी ने कड़ा विरोध किया. अंग्रेजों के साथ उनकी झड़प भी हुई और इसमें रानी की विजय हुई. इसके बाद उन्होंने कई शर्तों को रखा, जिसे अंग्रेजों ने मान लिया और उसी पृष्ठभूमि में बंगाल फेरी एक्ट 1885 का निर्माण हुआ.

नीतीश कुमार ने किया संशोधन: करीब 137 साल के बाद नीतीश कुमार ने इस एक्ट में बदलाव कर दिया है. बदलाव के बाद ऐसा माना जा रहा है कि इसका सीधा लाभ नौका परिचालन से जुड़े निषाद यानी मछुआरा समाज को मिलेगा. बिहार में अब तक बंगाल फेरी एक्ट लागू थी. लेकिन वर्तमान सत्र में पुराने अधिनियम की जगह पर नया विधेयक दोनों ही सदनों से पारित हुआ है. इसे बिहार नौकाघाट बंदोबस्ती एवं प्रबंधन विधेयक 2023 कहा जा रहा है. इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस नई व्यवस्था के संचालन का अधिकार पंचायती राज संस्थानों के सुपुर्द किया जाएगा.

क्या वोट बैंक पर है नजर ? : दरअसल इस पुराने विधेयक में बदलाव करके नीतीश कुमार ने एक सधी हुई चाल चली है. नीतीश कुमार द्वारा विधेयक में संशोधन से एक तरफ जहां निषाद समाज के ऊपर असर पड़ने की संभावना है, वहीं दूसरी तरफ उन्होंने यह संदेश भी देने की कोशिश की है कि वह समाज के तमाम वर्ग को साथ लेकर चलने में यकीन रखते हैं. अगर आंकड़ों में देखा जाए तो बिहार में करीब 8 से 9% निषाद समाज का वोट बैंक है. इसके बाद निषाद समाज की करीब 21 उपजातियां हैं. इनका भी वोट बैंक 5 से 6% है. यानी 12 से 14% तक का वोट बैंक निषाद समाज के पास है.

कई सीटें पर निषाद वोट बैंक की भूमिका है निर्णायकः अगर यह समाज किसी पार्टी की तरफ मूव करता है तो उसे चुनावी मैदान में जीत हासिल करने में सफलता मिल सकती है. राज्य में कई ऐसी विधानसभा सीटें हैं, जहां पर निषाद समाज के वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं. इन सीटों में ब्रह्मपुर, बोचहा, गौरा बौराम, सिमरी बख्तियारपुर, सुगौली, मधुबनी, केवटी, साहेबगंज, बलरामपुर, अलीनगर, बनियापुर, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, बेतिया और बगहा शामिल हैं.

बराबर है सभी पार्टियों की नजर: राज्य में कोई भी दल इस समाज के वोट को लेने के मामले में अछूता नहीं है. इसी समाज के वोटर को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए बीजेपी और मुकेश साहनी में नजदीकी की भी खबर आती है, तो इसी समाज से ताल्लुक रखने वाले मदन साहनी जदयू के वरिष्ठ नेताओं में गिने जाते हैं और लंबे वक्त से वह मंत्री पद पर भी काबिज हैं. राष्ट्रीय जनता दल भी इस समाज के तमाम नेताओं को अपनी पार्टी की टिकट पर विधायक और सांसद बनाते रहा हैं.

निषाद विकास मंच ने भी किया आगाज: निषाद वोटरों पर ही नजर का असर है कि निषाद विकास मंच भी अब इसकी तरफदारी में लग गया है. निषाद विकास मंच की तरफ से राजधानी में गुरुवार को भगवान श्री राम के मित्र निषादराज गुह्य की जयंती को मनाने की तैयारी चल रही है. राजधानी में आयोजित होने वाले इस जयंती समारोह में निषाद समाज के कई बड़े चेहरे हिस्सा ले सकते हैं.

पहली बार निषादराज निषादराज गुह्य की मनेगी जयंती: निषाद सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुकेश निषाद कहते हैं, राज्य में पहली बार निषादराज की जयंती मनाई जा रही है. उनकी जयंती का आयोजन बिहार में आज तक नहीं किया गया था. हम लोग समाज में जागरूकता फैलाने के लिए आयोजन कर रहे हैं. क्योंकि हमारे पूर्वज कभी राजा हुआ करते थे और आज हमारी हालत दयनीय है. हमारी कोशिश अपने समाज को जगाने और उसकी ताकत को पहचानने की है. मुकेश इस बात की तरफ भी इशारा करते हैं कि निषाद समाज को लेकर राजनीति में एक नया विकल्प भी जल्द पैदा हो सकता है.

"राज्य में पहली बार निषादराज की जयंती मनाई जा रही है. उनकी जयंती का आयोजन बिहार में आज तक नहीं किया गया था. हम लोग समाज में जागरूकता फैलाने के लिए आयोजन कर रहे हैं. क्योंकि हमारे पूर्वज कभी राजा हुआ करते थे और आज हमारी हालत दयनीय है. हमारी कोशिश अपने समाज को जगाने और उसकी ताकत को पहचानने की है" - मुकेश निषाद, निषाद सेना प्रमुख

मुकेश सहनी सबसे अलग: निषाद समाज के वोटरों को अपनी अपनी तरफ आकर्षित करने में लगे हुए विभिन्न दलों के ऊपर कटाक्ष करते हुए विकासशील इंसान पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता देवज्योति कहते हैं, जितने भी दल और पार्टियां निषाद समाज के लिए आगे आकर काम करने की बात कर रही है. दरअसल वो सब उनके नेता मुकेश साहनी की नकल कर रहे हैं. मुकेश साहनी के कारण ही निषाद समाज के लोगों में जागृति आई है.

"जितने भी दल और पार्टियां निषाद समाज के लिए आगे आकर काम करने की बात कर रही है. दरअसल वो सब उनके नेता मुकेश साहनी की नकल कर रहे हैं. मुकेश साहनी के कारण ही निषाद समाज के लोगों में जागृति आई है" - देवज्योति, प्रवक्ता, वीआईपी

नीतीश कुमार रखते है सबका ख्याल: जनता दल यू के प्रवक्ता अभिषेक झा कहते हैं सीएम नीतीश कुमार की प्राथमिकता समाज के सभी वर्गों का विकास करने की रही है. विशेष रूप से पिछड़ा, अति पिछड़ा, दलित और महादलित समाज या फिर आर्थिक रूप से कमजोर सवर्ण समाज से ताल्लुक रखने वाले लोग. विधानसभा में जो प्रस्ताव पारित हुआ है. वह ऐतिहासिक है. इससे निश्चित रूप से निषाद समाज के लोगों को लाभ मिलेगा.

"सीएम नीतीश कुमार की प्राथमिकता समाज के सभी वर्गों का विकास करने की रही है. विशेष रूप से पिछड़ा, अति पिछड़ा, दलित और महादलित समाज या फिर आर्थिक रूप से कमजोर सवर्ण समाज से ताल्लुक रखने वाले लोग. विधानसभा में जो प्रस्ताव पारित हुआ है. वह ऐतिहासिक है. इससे निश्चित रूप से निषाद समाज के लोगों को लाभ मिलेगा" - अभिषेक झा, प्रवक्ता, जेडीयू

विधेयक से मछुआरा समाज को फायदा: वरिष्ठ पत्रकार मनोज पाठक कहते हैं. इस विधेयक से सबसे ज्यादा फायदा मछुआरा समाज को हो सकता है. आज बिहार में मछुआरा जाति सबसे हॉट टॉपिक बनी हुई है. मुकेश साहनी इसी जाति को लेकर राजनीति कर रहे हैं. ऐसा माना जाता है कि यह जाति मुकेश साहनी के साथ है. इधर नीतीश कुमार ने भी विधेयक पास करके नया दांव चला है. उन्होंने साफ संकेत दे दिया है कि उनकी नजर भी निषाद समाज पर है. ऐसे में आने वाला चुनाव बहुत दिलचस्प होगा. क्योंकि निषादों पर सबकी नजर है.

"इस विधेयक से सबसे ज्यादा फायदा मछुआरा समाज को हो सकता है. आज बिहार में मछुआरा जाति सबसे हॉट टॉपिक बनी हुई है. मुकेश साहनी इसी जाति को लेकर राजनीति कर रहे हैं. ऐसा माना जाता है कि यह जाति मुकेश साहनी के साथ है. इधर नीतीश कुमार ने भी विधेयक पास करके नया दांव चला है"- मनोज पाठक, वरिष्ठ पत्रकार

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