पटना: बिहार में चुनाव आयोग समय पर चुनाव कराने की तैयारी कर रहा है. वहीं सभी राजनीतिक दल भी करीब-करीब इसके लिए तैयार हैं. हालांकि विपक्ष अब भी यह मांग कर रहा है कि जब तक परिस्थितियां सामान्य नहीं हो और पारंपरिक तरीके से चुनाव कराने की स्थिति नहीं हो, तब तक बिहार में चुनाव नहीं होने चाहिए. विश्लेषक भी इस बात को लेकर सवाल खड़े कर रहे हैं.
बात हो रही है चुनाव में वर्चुअल रैली की, वर्चुअल संवाद की और डिजिटल चुनाव की तो बता दें कि बिहार के शहरी इलाकों में करीब-करीब सभी जगह नेटवर्क कनेक्टिविटी उपलब्ध है. लेकिन समस्या ग्रामीण इलाकों की है जहां अब तक मोबाइल का नेटवर्क सही तरीके से काम नहीं करता. समस्या सिर्फ यही नहीं है, समस्या गांव में लोगों की साक्षरता दर को लेकर भी है. सरकारी आंकड़े के मुताबिक 2011 की जनगणना में करीब 69% लोग बिहार में साक्षर हैं.
विपक्षी दल चुनाव को लेकर असहज
अब तक बिहार में सिर्फ बीजेपी और जदयू में चुनाव कराने की पक्षधर दिख रही है. एनडीए में शामिल लोजपा हो या फिर राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस या अन्य विपक्षी दल, सभी चुनाव को लेकर सहज नहीं दिख रहे. इन सभी का कहना है कि जब जनता से संवाद ही नहीं हो पाएगा तो फिर लोकतंत्रिक व्यवस्था कैसे कायम रहेगी.
हर घर में पहुंच चुकी है स्मार्ट मोबाइल
राष्ट्रीय जनता दल ने चुनाव आयोग से सवाल किया है कि ऐसे चुनाव का क्या मतलब जहां जनता और राजनीतिक दलों के बीच संवाद ही नहीं हो पाए. वहीं बीजेपी ने कहा है कि हर दौर में कुछ न कुछ नया होता आया है. पहले रेडियो आया उसके बाद टेलीविजन और फिर संवाद के नए-नए तरीके विकसित हुए. डिजिटल क्रांति का दौर है और हर घर में स्मार्ट मोबाइल पहुंच चुका है, ऐसे में कोई परेशानी नहीं होगी.
डिजिटल चुनाव की ओर बिहार
हालांकि राजनीतिक विश्लेषक इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते डॉक्टर डीएन दिवाकर ने कहा कि अब तक सरकार सभी को वोटर आई कार्ड तक नहीं पहुंचा पाई है, चाहे इसकी वजह कोई भी रही हो. सरकारी आंकड़े बताते हैं कि साक्षरता दर करीब 70 फीसदी ही है. डिजिटल चुनाव में कहीं डिजिटल डिवाइड का खामियाजा लोगों को ना भुगतना पड़े. उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग को यह तय करना होगा कि संवाद दोतरफा हो और लोगों तक सही बात पहुंच सके.