पटना: झारखंड विधान सभा चुनाव ने बिहार की राजनीतिक तपिश को बढ़ा दिया है. चुनाव ने राजनीति के कई मापदंड गढ़ दिए और कई सियासी समीकरण मापदंडों के कैनवास में उतरे ही नहीं. झारखंड चुनाव में बिहार एनडीए बिखर कर रह गया है.
एनडीए कुनबे के हर सियासी रणबांकुरे झारखंड में अपना अपना झंडा लिए खड़े हो गए हैं. लोजपा ने 50 सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान कर दिया तो जदयू भी खम ठोककर मैदान में उतर आई है. हालांकि इस बात को लेकर कोई विभेद नहीं था कि ऐसा नहीं हो सकता है. क्योंकि जदयू के अध्यक्ष नीतीश कुमार ने जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पहले ही ऐलान कर दिया था कि बिहार से बाहर हम किसी गठबंधन में नहीं हैं और पार्टी अपने जनाधार को बढ़ाने के लिए काम करेगी.
झारखंड बनी चुनौती
लोजपा की कमान संभालने के बाद अध्यक्ष चिराग पासवान के लिए झारखंड बड़ी चुनौती है. हालांकि चिराग के लोजपा में सक्रिय होने के बाद से लगातार उनके निर्णय पार्टी के हित में ही रहे हैं और पार्टी विकास भी कर रही है. 2015 के विधान सभा चुनाव में लोजपा को भले ही बड़ी सफलता न मिली हो लेकिन उसके बाद के चुनावों में पार्टी ने बेहतरीन प्रदर्शन किया है.
चिराग का NDA पर तंज
2019 के लोकसभा चुनाव में मिली सभी सीटों पर लोजपा ने जीत दर्ज की थी और उपचुनाव में अपनी सीट को बचाने में कामयाब भी रही थी. इन सभी सियासी तैयारी और फैसलों के बीच चिराग पासवान की ही चली थी. झारखंड चुनावों को लेकर चिराग पासवान ने एनडीए गठबंधन पर करारा तंज कस दिया. चिराग पासवान ने कहा कि हम राजनीतिक दल हैं न कि टोकन लेकर चलने वाले सियासी दल.
बता दें कि पिछले विधान सभा चुनाव में लोजपा को सिर्फ एक सीट सिकारीपारा ही मिली थी. लोजपा के खुलकर मैदान में आ जाने के बाद एनडीए की सियासी परेशानी बढ़ गयी है.
झारखंड में अकेले लड़ेगी JDU
वहीं जदयू भी अब झारखंड में अकेले चुनाव लड़ने का एलान कर चुकी है. नीतीश कुमार ने इसके लिए पार्टी के नेताओं को तैयारी करने का निर्देश भी जारी कर दिया है. 2017 में झारखंड के प्रदेश प्रभारी रहे नीतीश सरकार के संसदीय कार्य मंत्री श्रवण कुमार ने इस बात को पहले ही कहा था कि पार्टी की तैयारी मजबूती के लिए है और उसी समय से पार्टी झारखंड में चुनावी तैयारी में जुटी हुई थी. जदयू के मैदान में आ जाने के बाद एनडीए गठबंधन में हलचल मचना लाजमी है.
बिहार पर असर
बिहार एनडीए अपने पैरों पर सही ढ़ंग से खड़ा नहीं हो पा रहा है. एक राह निकलती है तो दूसरा वितंडा खड़ा हो जाता है. 2014 में मांझी के भरोसे नीतीश को घेरने का फॉर्मूला मांझी ने ही फेल कर दिया. नीतीश के बीजेपी में आने के बाद उनकी राहें अलग हो गयी. वहीं उपेन्द्र कुशवाहा की भी सियासत एनडीए के साथ ज्यादा नहीं चल पायी. बिहार में एनडीए कोटे के पहले मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा रहे जिन्होंने मोदी मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था. अब बीजेपी लोजपा और जदयू के गठबंधन को बिहार का एनडीए बता रही थी. लेकिन झारखंड में हो रहे विधान सभा चुनाव में लेाजपा और जदूय का स्टैंड से यह बात साफ हो रही है कि बिहार में एनडीए गठबंधन की गाठें खुलने लगी हैं.
झारखंड चुनाव में जुदा NDA
2020 में बिहार में विधानसभा चुनाव होना है. ऐसे में हर सियासी फैसला और चाल बिहार की राजनीतिक गणित का पैमाना होगा. झारखंड चुनाव में जुदा हुई जदयू और लेाजपा की राह से एक बात का कयास लगाता जा सकता है कि बिहार में सीटों के बंटवारे में टकराव से इनकार नहीं किया सकता. एनडीए गठबंधन में भाजपा और दूसरे दलों के बीच जिस तरह से सियासी दूरी बढ़ रही है, वह गठबंधन के सेहत के लिए ठीक नहीं है. मामला मायानगरी का भी बहुत अलग नहीं है. मुबंई में शिवसेना के साथ बीजेपी की स्क्रिप्ट से एक बात तो साफ हो गयी है कि 2020 में बिहार में जो सियासी मंचन होना है, उसमें कई कलाकार ऐसे हैं जिनकी भूमिका पूरी सियासी फिल्म को बनाने में अहम होगी. जदयू-बीजेपी के सीट बंटवारे के लोक सभा चुनाव में प्लान 50-50 विधान सभा चुनाव में किस तरह होता है और झारखंड में लोजपा के मिशन 50 से क्या अंजाम निकलता है, यह सियासी पटकथा लिखने का आगाज करेगा.