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पटना: 8 सितंबर को हजरत हुसैन की याद में शिया समुदाय के लोग निकालते हैं मातमी जुलूस

8 सितम्बर के दिन से सिया समुदाय के लोग अपने कलेजा को ठोकते हुए. मातमी जुलूस हजरत हुसैन के याद में निकलते है. जहां लोग उनकी याद में उनके प्रति श्रधांजलि शोक मानते है.

मातमी जुलूस
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Published : Sep 8, 2019, 5:14 PM IST

पटना: इस्लाम धर्म को बचाने के लिए हजरत मोहमद साहब के नवासे मो. हजरत हुसैन ने अपने 72 साथियों के साथ कर्बला की जंग को लड़ा था. जहां मोहमद हजरत हुसैन लड़ते-लड़ते शहीद हो गए. कर्बला इराक की राजधानी बगदाद से 100 किलोमीटर दूर एक कस्बा है. वहीं,10 अक्टूबर 680 ई. को 123 लोग मौजूद थे. जिसमें हजरत हुसैन के साथ 72 मर्द-औरतें और 51 बच्चे शामिल थे. वहीं, दूसरी तरफ 40 हजार सेना थी.

शिया समुदाय के लोगों ने मातमी जुलूस निकाला

इस्लाम धर्म को झुकने नहीं दिया
हजरत हुसैन की फौज के कमांडर अब्बास इब्ने अली अपने 72 साथियों के साथ यजीदी फौज की कमान उमर इब्ने सअद से जमकर मुकाबला किया. इस्लाम धर्म को झुकने या गिरने नहीं दिया. उमर लाख बार अब्बास को धर्म परिवर्तन के लिए कहते रहे. लेकिन, उन्होंने युद्ध के लिये ललकारा और इस्लाम धर्म को बदनाम नहीं होने दिया. अब्बास लड़ते-लड़ते हजारों सेना के साथ वीरगति प्राप्त को प्राप्त हुए. उनकी मौत के बाद बच्चे, महिलाओं की बहुत बेरहमी से हत्या कर दी गई.

patna
मातमी जुलूस निकाला गया हजरत हुसैन की याद में

8 सितम्बर को शोक मनाते हैं शिया समुदाय के लोग
इस्लाम धर्म को बचाने के लिए हजरत हुसैन अपने 72 साथियों के साथ शहीद हुए थे. जिसमें महिला और बच्चे भी शहीद हुए थे. इसलिए 8 सितम्बर के दिन से शिया समुदाय के लोग अपने कलेजा को ठोकते हुए. मातमी जुलूस हजरत हुसैन के याद में निकलते है. जहां लोग उनकी याद में उनके प्रति श्रद्धांजलि देते हैं और शोक मनाते हैं.

पटना: इस्लाम धर्म को बचाने के लिए हजरत मोहमद साहब के नवासे मो. हजरत हुसैन ने अपने 72 साथियों के साथ कर्बला की जंग को लड़ा था. जहां मोहमद हजरत हुसैन लड़ते-लड़ते शहीद हो गए. कर्बला इराक की राजधानी बगदाद से 100 किलोमीटर दूर एक कस्बा है. वहीं,10 अक्टूबर 680 ई. को 123 लोग मौजूद थे. जिसमें हजरत हुसैन के साथ 72 मर्द-औरतें और 51 बच्चे शामिल थे. वहीं, दूसरी तरफ 40 हजार सेना थी.

शिया समुदाय के लोगों ने मातमी जुलूस निकाला

इस्लाम धर्म को झुकने नहीं दिया
हजरत हुसैन की फौज के कमांडर अब्बास इब्ने अली अपने 72 साथियों के साथ यजीदी फौज की कमान उमर इब्ने सअद से जमकर मुकाबला किया. इस्लाम धर्म को झुकने या गिरने नहीं दिया. उमर लाख बार अब्बास को धर्म परिवर्तन के लिए कहते रहे. लेकिन, उन्होंने युद्ध के लिये ललकारा और इस्लाम धर्म को बदनाम नहीं होने दिया. अब्बास लड़ते-लड़ते हजारों सेना के साथ वीरगति प्राप्त को प्राप्त हुए. उनकी मौत के बाद बच्चे, महिलाओं की बहुत बेरहमी से हत्या कर दी गई.

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मातमी जुलूस निकाला गया हजरत हुसैन की याद में

8 सितम्बर को शोक मनाते हैं शिया समुदाय के लोग
इस्लाम धर्म को बचाने के लिए हजरत हुसैन अपने 72 साथियों के साथ शहीद हुए थे. जिसमें महिला और बच्चे भी शहीद हुए थे. इसलिए 8 सितम्बर के दिन से शिया समुदाय के लोग अपने कलेजा को ठोकते हुए. मातमी जुलूस हजरत हुसैन के याद में निकलते है. जहां लोग उनकी याद में उनके प्रति श्रद्धांजलि देते हैं और शोक मनाते हैं.

Intro:इस्लाम धर्म को बचाने के लिये हजरत मोहमद साहब के नवासे मोहमद हजरत हुशेंन ने अपने 72 साथियों के साथ कर्बला की जंग को लड़ा,और लड़ते-लड़ते शहीद हो गये।कर्बला इराक की राजधानी बगदाद से 100 किलोमीटर दूर एक कस्वा है जँहा 10 अक्टूबर 680 ईसवी में 72 सिया मत के अनुसार 123 जिसमे 72 मर्द-औरते और 51बच्चे शामिल थे।और दूसरी तरफ 40 हजार सेना थी।


Body:हजरत हुशेन की फौज के कमांडर अव्वास इब्ने अली ने अपने 72 साथियों के साथ यजीदी फौज के कमान उमर इब्ने सअद से जमकर मुकाबला किया और अपने इस्लाम धर्म को झुकने या गिरने नही दिया।उमर लाख बार अब्बास को धर्म परिवर्तन के लिये कहते लेकिन उन्होंने युद्ध के लिये ललकारा लेकिन इस्लाम धर्म को बदनाम नही होने दिया।और लड़ते लड़ते हजारों सेना के साथ अपने आप को वीरगति प्राप्त कर लिया।लेकिन इस मौत में बहुत वेहरमी से छोटे छोटे मासूम बच्चे,महिलाओ की हत्या कर दिया।


Conclusion:स्टोरी:-मातमी जुलूस।
रिपोर्ट:-पटना सिटी से अरुण कुमार।
दिनांक:-08-09-019.
एंकर:-पटना सिटी,इस्लाम धर्म को बचाने के लिए हजरत हुशैन ने अपने 72 साथियों के साथ शहीद हुए थे जिसमें महिला एवं मासूम बच्चे भी शहीद हुए थे।इसलिय आठ सितम्बर के दिन से सिया समुदाय लोग अपने कलेजा को ठोकते हुए मातमी जुलूस उन्हीके याद में आज चमडो रिया से निकलकर अशोकराजपथ होते हुए बौली मोड़ पर पहुँचकर मातमी जुलूस में शामिल होते है।जँहा लोग उनकी याद में उनके प्रति श्रधांजलि शोक मानते है।और कहते है कि हजरत हुशेन का यह कदम इस्लाम धर्म के अनुयायियों को दिशा और दशा को मजबूत कर यह संदेश देता है को हम अपने जान पर शहीद हो सकते है लेकिन इस्लाम को बदनाम नही कर सकते है।इसलिय हमलोग हर साल मोहर्रम के मौके पर उनकी याद को ताजा कर श्रधांजलि अर्पित कर उनकी यादों को ताजा करते है।
बाईट(हजरत मोहमद परवेज-आयोजक)
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