ETV Bharat / state

अपने राजनीतिक फैसलों से नीतीश कुमार ने जितना चौंकाया, उतना ही JDU को उलझाया भी

नीतीश कुमार (Nitish Kumar) बिहार की राजनीति के शिल्पकार माने जाते हैं. अपने फैसले से जहां उन्होंने जहां जेडीयू को बड़ा आकार देने में कामयाबी हासिल की, 2014 के बाद से उनके राजनीतिक निर्णयों ने उनको कमजोर भी किया है. यू-टर्न पॉलिटिक्स के कारण कई बार उनकी किरकिरी भी हुई है. अब नजर नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के उनके डिसिजन पर होगी.

नीतीश कुमार
नीतीश कुमार
author img

By

Published : Jul 31, 2021, 4:53 PM IST

पटना: राजनीतिक तौर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के फैसले अक्सर चौंकाते हैं. बीजेपी से अलग होकर आरजेडी से गठबंधन, फिर महागठबंधन का साथ छोड़कर एनडीए में लौटना. मांझी को अपनी जगह सत्ता सौंपना और फिर उनके कुर्सी छीन लेना. कई दफे उनके निर्णय सही साबित होते हैं तो कई मर्तबे जेडीयू (JDU) के लिए परेशानी का सबब भी बन जाते हैं. अब एक बार फिर पार्टी आरसीपी सिंह (RCP Singh) के केंद्रीय मंत्री बनने के बाद नए राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर उनके डिसिजन पर नजर होगी.

ये भी पढ़ें- JDU नेतृत्व में जार्ज-शरद की तलाश कर रहे हैं नीतीश कुमार!

जेडीयू और बीजेपी के बीच का रिश्ता काफी पुराना रहा है, लेकिन 17 साल तक साथ रहने के बाद नीतीश कुमार का बीजेपी से मोहभंग हो गया. साल 2013 में उन्होंने नरेंद्र मोदी के विरोध में अपना अलग राजनीतिक राह अख्तियार कर लिया. वे अपनी ताकत भी देखना चाहते थे, लिहाजा 2014 का लोकसभा चुनाव जेडीयू ने अकेले लड़ा. हालांकि नतीजा उम्मीद के बिल्कुल विपरीत था, पार्टी सिर्फ 2 सीटों पर सिमट गई.

देखें रिपोर्ट

2014 के लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद जेडीयू में मंथन का दौर चला और नीतीश कुमार ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने दलित कार्ड खेलकर सबको चौंका दिया. इसके साथ ही जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी, लेकिन एक साल भी नहीं बीता कि मांझी और नीतीश के बीच मतभेद शुरू हो गया. मांझी पर इस्तीफे के लिए दबाव बनाया जाने लगा, लेकिन मांझी तैयार नहीं हुए. आखिरकार आरजेडी चीफ लालू यादव के समर्थन से नीतीश कुमार एक बार फिर सत्तासीन हुए.

ये भी पढ़ें- बोले उपेंद्र कुशवाहा- RCP सिंह को JDU अध्यक्ष बने रहना चाहिए, मैं रेस में नहीं

वहीं, 2015 का विधानसभा चुनाव लालू के साथ लड़ना, बेहद चौंकाने वाला फैसला तो था ही, मोदी विरोध में विपक्षी जीत का 'दमदार फॉर्म्यूला' भी साबित हुआ. नीतीश कुमार और लालू यादव ने मिलकर महागठबंधन को आकार दिया और बड़े मतों के अंतर से महागठबंधन को चुनाव में जीत हासिल हुई. नीतीश कुमार एक बार फिर मुख्यमंत्री बने. ये सरकार डेढ़ साल ठीक से चली, तभी विवाद शुरू हो गया. नीतीश कुमार ने अचानक इस्तीफा देकर अपने पुराने घर एनडीए में वापसी कर ली. बीजेपी के समर्थन से रातों-रात नीतीश कुमार फिर एक बार सूबे के सीएम बन गए.

जेडीयू के अंदर भी नीतीश कुमार ने कई महत्वपूर्ण फैसले लिए. पहले तो शरद यादव को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया और फिर मांझी प्रकरण में नीतीश कुमार और शरद यादव के बीच विवाद गहरा गया. नीतीश कुमार को अपने फैसले से पीछे हटना पड़ा और शरद यादव को भी अध्यक्ष पद से हटा दिया गया. नीतीश कुमार खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष बने. अभी हालिया विधानसभा चुनाव के बाद नीतीश ने एक बार फिर चौंकाते हुए आरसीपी सिंह के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष पद छोड़ दिया.

ये भी पढ़ें- RCP सिंह ने दी सहमति तो ललन सिंह का जेडीयू अध्यक्ष बनना तय

राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार कहते हैं कि नीतीश कुमार कुशल राजनेता हैं, लेकिन 2014 के बाद उनके फैसले उनकी छवि के खिलाफ गए. नीतीश कुमार ने जो भी फैसले लिए, कुछ फैसले से या तो उनकी फजीहत हुई या फिर उन्हें यू टर्न लेना पड़ा.

डॉ. संजय कुमार कहते हैं कि नीतीश कुमार ने 2019 में मोदी मंत्रिमंडल में शामिल होने को लेकर भी फैसला लिया था और कहा था कि सांकेतिक प्रतिनिधित्व तो उन्हें नहीं चाहिए, लेकिन 2 साल बाद ही यू-टर्न ले लिया. हालिया मंत्रिमंडल विस्तार में आरसीपी सिंह को जगह दी गई. ऐसे में अब देखना अहम होगा कि राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में नीतीश कुमार की पसंद कौन होते हैं और वह नीतीश कुमार की उम्मीदों पर भविष्य में कितना खरा उतर पाते हैं.

पटना: राजनीतिक तौर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के फैसले अक्सर चौंकाते हैं. बीजेपी से अलग होकर आरजेडी से गठबंधन, फिर महागठबंधन का साथ छोड़कर एनडीए में लौटना. मांझी को अपनी जगह सत्ता सौंपना और फिर उनके कुर्सी छीन लेना. कई दफे उनके निर्णय सही साबित होते हैं तो कई मर्तबे जेडीयू (JDU) के लिए परेशानी का सबब भी बन जाते हैं. अब एक बार फिर पार्टी आरसीपी सिंह (RCP Singh) के केंद्रीय मंत्री बनने के बाद नए राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर उनके डिसिजन पर नजर होगी.

ये भी पढ़ें- JDU नेतृत्व में जार्ज-शरद की तलाश कर रहे हैं नीतीश कुमार!

जेडीयू और बीजेपी के बीच का रिश्ता काफी पुराना रहा है, लेकिन 17 साल तक साथ रहने के बाद नीतीश कुमार का बीजेपी से मोहभंग हो गया. साल 2013 में उन्होंने नरेंद्र मोदी के विरोध में अपना अलग राजनीतिक राह अख्तियार कर लिया. वे अपनी ताकत भी देखना चाहते थे, लिहाजा 2014 का लोकसभा चुनाव जेडीयू ने अकेले लड़ा. हालांकि नतीजा उम्मीद के बिल्कुल विपरीत था, पार्टी सिर्फ 2 सीटों पर सिमट गई.

देखें रिपोर्ट

2014 के लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद जेडीयू में मंथन का दौर चला और नीतीश कुमार ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने दलित कार्ड खेलकर सबको चौंका दिया. इसके साथ ही जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी, लेकिन एक साल भी नहीं बीता कि मांझी और नीतीश के बीच मतभेद शुरू हो गया. मांझी पर इस्तीफे के लिए दबाव बनाया जाने लगा, लेकिन मांझी तैयार नहीं हुए. आखिरकार आरजेडी चीफ लालू यादव के समर्थन से नीतीश कुमार एक बार फिर सत्तासीन हुए.

ये भी पढ़ें- बोले उपेंद्र कुशवाहा- RCP सिंह को JDU अध्यक्ष बने रहना चाहिए, मैं रेस में नहीं

वहीं, 2015 का विधानसभा चुनाव लालू के साथ लड़ना, बेहद चौंकाने वाला फैसला तो था ही, मोदी विरोध में विपक्षी जीत का 'दमदार फॉर्म्यूला' भी साबित हुआ. नीतीश कुमार और लालू यादव ने मिलकर महागठबंधन को आकार दिया और बड़े मतों के अंतर से महागठबंधन को चुनाव में जीत हासिल हुई. नीतीश कुमार एक बार फिर मुख्यमंत्री बने. ये सरकार डेढ़ साल ठीक से चली, तभी विवाद शुरू हो गया. नीतीश कुमार ने अचानक इस्तीफा देकर अपने पुराने घर एनडीए में वापसी कर ली. बीजेपी के समर्थन से रातों-रात नीतीश कुमार फिर एक बार सूबे के सीएम बन गए.

जेडीयू के अंदर भी नीतीश कुमार ने कई महत्वपूर्ण फैसले लिए. पहले तो शरद यादव को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया और फिर मांझी प्रकरण में नीतीश कुमार और शरद यादव के बीच विवाद गहरा गया. नीतीश कुमार को अपने फैसले से पीछे हटना पड़ा और शरद यादव को भी अध्यक्ष पद से हटा दिया गया. नीतीश कुमार खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष बने. अभी हालिया विधानसभा चुनाव के बाद नीतीश ने एक बार फिर चौंकाते हुए आरसीपी सिंह के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष पद छोड़ दिया.

ये भी पढ़ें- RCP सिंह ने दी सहमति तो ललन सिंह का जेडीयू अध्यक्ष बनना तय

राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार कहते हैं कि नीतीश कुमार कुशल राजनेता हैं, लेकिन 2014 के बाद उनके फैसले उनकी छवि के खिलाफ गए. नीतीश कुमार ने जो भी फैसले लिए, कुछ फैसले से या तो उनकी फजीहत हुई या फिर उन्हें यू टर्न लेना पड़ा.

डॉ. संजय कुमार कहते हैं कि नीतीश कुमार ने 2019 में मोदी मंत्रिमंडल में शामिल होने को लेकर भी फैसला लिया था और कहा था कि सांकेतिक प्रतिनिधित्व तो उन्हें नहीं चाहिए, लेकिन 2 साल बाद ही यू-टर्न ले लिया. हालिया मंत्रिमंडल विस्तार में आरसीपी सिंह को जगह दी गई. ऐसे में अब देखना अहम होगा कि राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में नीतीश कुमार की पसंद कौन होते हैं और वह नीतीश कुमार की उम्मीदों पर भविष्य में कितना खरा उतर पाते हैं.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.