पटनाः बिहार में इस साल मकर संक्रांति (Makar Sankranti 2023) 15 जनवरी को मनाया जाएगा. इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है. देश के अलग अलग हिस्सों में इस त्यौहार को स्थानीय मान्यताओं के अनुसार धूमधाम से मनाया जाता है. मकर संक्रांति के दिन दान दक्षिणा का विशेष महत्व होता है. साथ ही इस दिन देश भर में लोग परंपरा के रूप में पतंग भी उड़ाते हैं. कही-कहीं तो इस दिन पतंग उड़ाने की बड़ी-बड़ी प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं. राजधानी में भी पतंग की बिक्री को लेकर जगह जगह दुकानें सज गई हैं. बड़ी संख्या में लोग पतंग खरीद रहे हैं.
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पुष्पा पतंग का जलबाः पटना के बाजार में रंग-बिरंगे पतंग बिक रहे हैं. ज्यादातर पतंगे कागज की हैं, लेकिन कुछ प्लास्टिक की भी हैं. एक तरफ जहां ये पतंगे लाल, काली, नीली, पीली और हरे रंग में है .वहीं, दूसरी तरफ प्लास्टिक की पतंगों पर किसी न किसी खास करेक्टर को छाप दिया गया है. इनमें पुष्पा से लेकर मोटू पतलु और स्पाइडर-मैन है. इन पतंगों की कीमत पांच रुपए से लेकर पचास रुपए तक है. ये रेंज पतंग की मजबूती, कागज और साइज पर निर्भर है.
मकर संक्रांति पर उड़ाते पतंगः राज्य के बड़े पतंग व्यापारी राजीव रंजन बताते हैं कि जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुजरात में पतंग फेस्टिवल का आयोजन किया था, तब से बच्चों में पतंग को लेकर डिमांड बढ़ गई है. इसका सीजन नवंबर से शुरू हो जाता है और जनवरी तक रहता है. राजीव कहते हैं कि बहुत पहले से मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाने का रिवाज रहा है. इसलिए लोग पतंगबाजी करते हैं. बाजार में इसके लिए पतंग की डिमांड बढ़ गई है.
पटना से बाहर होती है पतंग की सप्लाईः राजीव बताते हैं कि उनके यहां से बनने वाली पतंगे बिहार के अलावा उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जाती है. इसके अलावा बिहार में आरा, बक्सर तथा झारखंड में धनबाद, झरिया तक बेचने के लिए भेजा जाता है. अपने राज्य में लोग महंगा पतंग नहीं खरीदते हैं. आज भी सस्ता पतंग बिकता है. जबकि गुजरात में 100 से 500 रुपए तक पतंगे बिकता है. पतंग बनाना खानदानी बिजनेस है. 200 साल से हमारे दादा, परदादा करते आ रहे हैं.
उत्तराखंड का कागज, बंगाल की कमाचीः राजीव बताते हैं कि इन पतंगों को बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाला कागज बलारपुर और खटीमा से आता है. क्योंकि अपने यहां इन पेपर की फैक्ट्री नहीं है. जबकि पतंग बनाने में प्रयोग होने वाली कमाची कोलकाता से आती है. पूरे देश में अगर किसी को भी पतंग बनाना है तो उसके लिए कोलकाता से कमाची की सप्लाई होती है. पतंग के मांझे को लपेटने वाली लटाई के बारे में राजीव कहते हैं. लटाई बनाने में रॉ मटेरियल बांस होता है. एक विशेष प्रकार की लटाई बनती है, जो केवल पटना में मिलती है.
भगवान श्रीराम ने की थी पतंग उराने की परंपराः तमिल की तन्नाना रामायण के अनुसार, पतंग उड़ाने की परंपरा भगवान श्रीराम ने शुरु की थी. मकर संक्रांति (Makar Sankranti Festival) के दिन भगवान श्रीराम ने जो पतंग उड़ाई थी, वो इंद्रलोक तक पहुंच गई थी. यही वजह है कि इस दिन पतंग उड़ाई जाती है. पतंग को खुशी, आजादी और शुभता का संकेत माना जाता है. मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाकर एक-दूसरे को खुशी का संदेश दिया जाता है. मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाने से शरीर सूर्य की किरणों को अधिक मात्रा में ग्रहण करता हैं. और शरीर में ऊर्जा आती है साथ ही विटामिन डी की कमी पूरी होती है.
"बहुत पहले से मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाने का रिवाज रहा है. इसलिए लोग पतंगबाजी करते हैं. बाजार में इसके लिए पतंग की डिमांड बढ़ गई है. अपने राज्य में लोग महंगा पतंग नहीं खरीदते हैं. आज भी सस्ता पतंग बिकता है. जबकि गुजरात में 100 से 500 रुपए तक पतंगे बिकता है. पतंग बनाना हमारी खानदानी बिजनेस है" -राजीव रंजन, थोक पतंग व्यापारी