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Makar Sankranti 2023: मकर संक्रांति है आज, जानें शुभ मुहूर्त, पूजन विधि, दान और कथा - Makar Sankranti Snan

आज के दिन पूरे देश में मकर संक्रांति का पर्व (Makar Sankranti 2023) मनाया जा रहा है. इस दिन सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं. मकर संक्रांति को खिचड़ी और उत्तरायण के नाम से भी जाना जाता है. मकर संक्रांति से सभी मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाती है. सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करते ही खरमास का समापन हो जाता है. इसके बाद शुभ और मांगलिक कार्य एक बार फिर से शुरू हो जाते हैं.

मकर संक्रांति का पर्व
मकर संक्रांति का पर्व
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Published : Jan 15, 2023, 9:28 AM IST

पटना: मकर संक्रांति (Makar Sankranti) का हिंन्दू धर्म में खास महत्व है. आज के दिन सूर्य उत्तरायण होते हैं. बहुत सी जगहों पर इसे 'खिचड़ी' और 'उत्तरायण' भी कहते हैं. सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करते ही खरमास का समापन हो जाता है. इसके बाद शुभ और मांगलिक कार्य एक बार फिर से शुरू हो जाते हैं. 14 जनवरी की रात 3 बजकर एक मिनट से मकर संक्रांति लग गई है. यह पर्व 15 जनवरी की दोपहर 2 बजकर 27 मिनट तक रहेगा. उदया तिथि होने से रविवार को मकर संक्रांति का पुण्यकाल दिनभर माना गया है.

ये भी पढ़ें: Makar Sankranti 2023 : कड़ाके की सर्दी में संगम में 14 लाख श्रद्धालुओं ने लगाई आस्था की डुबकी

मकर संक्रांति पर करें दान: प्रातःकाल स्नान कर लोटे में लाल फूल और अक्षत डाल कर सूर्य को अर्घ्य दें. सूर्य के बीज मंत्र का जाप करें. श्रीमदभागवद के एक अध्याय का पाठ करें या गीता का पाठ करें. नए अन्न, कम्बल, तिल और घी का दान करें. भोजन में नए अन्न की खिचड़ी बनाएं. भोजन भगवान को समर्पित करके प्रसाद रूप से ग्रहण करें. संध्या काल में अन्न का सेवन न करें. इस दिन किसी गरीब व्यक्ति को बर्तन समेत तिल का दान करने से शनि से जुड़ी हर पीड़ा से मुक्ति मिलती है.

तिल और तिल से बनी चीजों के दान से पुण्य: मकर संक्रांति को तिल संक्रांति भी कहा जाता है. इस दिन काले तिल और तिल से बनी चीजों को दान करने से पुण्य लाभ मिलता है. कहा जाता है कि काले तिल के दान से शनिदेव भी प्रसन्न होते हैं. इसके अलावा इस दिन नए अन्न, कम्बल, घी, वस्त्र, चावल, दाल, सब्जी, नमक और खिचड़ी का दान करना सर्वोत्तम होता है. आज के दिन तेल का दान करने से भी शनिदेव प्रसन्न होते हैं.

क्या है मकर संक्रांति का पौराणिक महत्व: मान्यताओं के अनुसार आज के दिन सूर्य देव पिता अपने पुत्र शनि देव से मिलने जाते हैं. चूंकि मकर राशि शनि का घर है इसलिए भी इसे मकर संक्रांति कहते हैं. एक अन्य मान्यता के अनुसार महाभारत के समय भीष्म पितामह ने सूर्य उत्तरायण होने पर ही अपने शरीर का त्याग किया था. इसी दिन उनका श्राद्ध कर्म तर्पण किया गया था. एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार महाराजा भागीरथ ने अपने पूर्वजों के तर्पण के लिए वर्षों की तपस्या करके गंगा जी को पृथ्वी पर आने को मजबूर कर दिया था. इसी दिन गंगा जी स्वर्ग से पृथ्वी लोक पर अवतरित हुईं थीं. मकर संक्रांति पर ही महाराजा भागीरथ ने अपने पूर्वजों का तर्पण किया था. उनके पीछे चलते-चलते गंगा जी कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए सागर में समा गईं थीं.

पटना: मकर संक्रांति (Makar Sankranti) का हिंन्दू धर्म में खास महत्व है. आज के दिन सूर्य उत्तरायण होते हैं. बहुत सी जगहों पर इसे 'खिचड़ी' और 'उत्तरायण' भी कहते हैं. सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करते ही खरमास का समापन हो जाता है. इसके बाद शुभ और मांगलिक कार्य एक बार फिर से शुरू हो जाते हैं. 14 जनवरी की रात 3 बजकर एक मिनट से मकर संक्रांति लग गई है. यह पर्व 15 जनवरी की दोपहर 2 बजकर 27 मिनट तक रहेगा. उदया तिथि होने से रविवार को मकर संक्रांति का पुण्यकाल दिनभर माना गया है.

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मकर संक्रांति पर करें दान: प्रातःकाल स्नान कर लोटे में लाल फूल और अक्षत डाल कर सूर्य को अर्घ्य दें. सूर्य के बीज मंत्र का जाप करें. श्रीमदभागवद के एक अध्याय का पाठ करें या गीता का पाठ करें. नए अन्न, कम्बल, तिल और घी का दान करें. भोजन में नए अन्न की खिचड़ी बनाएं. भोजन भगवान को समर्पित करके प्रसाद रूप से ग्रहण करें. संध्या काल में अन्न का सेवन न करें. इस दिन किसी गरीब व्यक्ति को बर्तन समेत तिल का दान करने से शनि से जुड़ी हर पीड़ा से मुक्ति मिलती है.

तिल और तिल से बनी चीजों के दान से पुण्य: मकर संक्रांति को तिल संक्रांति भी कहा जाता है. इस दिन काले तिल और तिल से बनी चीजों को दान करने से पुण्य लाभ मिलता है. कहा जाता है कि काले तिल के दान से शनिदेव भी प्रसन्न होते हैं. इसके अलावा इस दिन नए अन्न, कम्बल, घी, वस्त्र, चावल, दाल, सब्जी, नमक और खिचड़ी का दान करना सर्वोत्तम होता है. आज के दिन तेल का दान करने से भी शनिदेव प्रसन्न होते हैं.

क्या है मकर संक्रांति का पौराणिक महत्व: मान्यताओं के अनुसार आज के दिन सूर्य देव पिता अपने पुत्र शनि देव से मिलने जाते हैं. चूंकि मकर राशि शनि का घर है इसलिए भी इसे मकर संक्रांति कहते हैं. एक अन्य मान्यता के अनुसार महाभारत के समय भीष्म पितामह ने सूर्य उत्तरायण होने पर ही अपने शरीर का त्याग किया था. इसी दिन उनका श्राद्ध कर्म तर्पण किया गया था. एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार महाराजा भागीरथ ने अपने पूर्वजों के तर्पण के लिए वर्षों की तपस्या करके गंगा जी को पृथ्वी पर आने को मजबूर कर दिया था. इसी दिन गंगा जी स्वर्ग से पृथ्वी लोक पर अवतरित हुईं थीं. मकर संक्रांति पर ही महाराजा भागीरथ ने अपने पूर्वजों का तर्पण किया था. उनके पीछे चलते-चलते गंगा जी कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए सागर में समा गईं थीं.

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