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पिंडदान का प्रथम द्वार है पुनपुन, भगवान श्री राम ने माता जानकी संग किया था पिंडदान

पुनपुन नदी को आदि गंगा भी कहा जाता है. इस नदी को पितृ तर्पण का प्रथम वेदी माना जाता है. यहां भगवान श्री राम माता जामकी संग गया जाना से पहले पहला पिंड का तर्पण किया था.

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Published : Sep 23, 2019, 7:33 AM IST

पिंडदान का प्रथम द्वार है पुनपुन

पटनाः पिंडदान का प्रथम द्वार पुनपुन नदी है. कहा जाता है कि भगवान श्रीराम ने माता जानकी के साथ पहला पिंड का तर्पण इसी पुनपुन घाट पर किया था. इसके बाद गया के फल्गु नदी पर पिंडदान का पूरा तर्पण विधि को संपन्न किया था. पटना जिले में स्थित पुनपुन नदी घाट को आदि गंगा भी कहा जाता है.

पटना का यह पुनपुन नदी घाट पर पिंडदान करने वाले श्रद्धालु लगातार पहुंच रहे हैं. पुनपुन नदी के घाट पर पहले पिंड का तर्पण किया जा रहा है. इसकी महत्ता के बारे में पंडित रामेश्वर ने बताया कि गया के प्रथम वेदी पुनपुन घाट को ही माना गया है. जो पिंड दानी पहले पिंड का तर्पण इस नदी घाट पर करते हैं, उसका ही गया के फल्गु नदी तट पर पिंडदान स्वीकार होता है. इसलिए जो भी पिंड दानी अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करते हैं वह सबसे पहले इसी पुनपुन नदी घाट पर अपना पहला पिंड का तर्पण करते हैं. इसके उपरांत ही गया जाकर फल्गु नदी तट के पर पिंडदान का पूरा तर्पण विधि संपन्न करते हैं.

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पंडित रामेश्वर, गया वेदी

महर्षि चैवण्य के कमंडल के जल से पुनपुन का उदगम
वहीं, इस पुनपुन नदी के संबंध में पंडा समिति के अध्यक्ष विजय पंडित ने बताया कि पुराणों के अनुसार पलामू के जंगल में महर्षि चैवण्य तपस्या कर रहे थे. जहां उनके कमंडल से पुनः पुनः जल गिरने से पुनपुन नदी का उद्गम हुआ. इसके बाद इसे आदि गंगा भी कहा गया.

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विजय पंडित,अध्यक्ष पंडा समिति

गया से पहले पुनपुन पहुंचते हैं लोग
गौरतलब है कि आश्विन मास की कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से आरंभ होकर अमावस्या तक चलने वाले पितृपक्ष में पूर्वजों की मोक्ष की कामना के लिए लाखों लोग गया जाते हैं. गया जाने से पहले राजधानी पटना से करीब 13 किलोमीटर दूर पुनपुन पहुंचते हैं. जहां, आदि गंगा के नाम से मशहूर पुनपुन नदी घाट पर अपना पहला पिंडदान करते हैं. पुनपुन घाट प्रथम पिंडदान स्थल है, जहां देश-विदेश से श्रद्धालु अपने पितरों के लिए पूजा एवं तर्पण करते हैं.

ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट

पितृ तर्पण की प्रथम वेदी पुनपुन नदी
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पुनपुन नदी को पितृ तर्पण की प्रथम वेदी के रूप में स्वीकार किया गया है. मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम माता जानकी के साथ सबसे पहले पुनपुन नदी के तट पर पिंडदान किये थे. उसके बाद गया में फल्गु नदी के तट पर पिंडदान किया. पुनपुन मे पिंडदान पुराणों में वर्णित किया गया है.

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पिंडदान करते लोग

पुनपुन घाट स्थल पर गयासुर का चरण
पौराणिक कथाओं के अनुसार पुनपुन घाट स्थल पर गयासुर राक्षस का चरण है. राक्षस को वरदान प्राप्त था कि उसकी सर्वप्रथम चरण की पूजा होगी. उसके बाद ही गया में पिंडदान किया गया पिंडदान स्वीकार्य होगा.

पटनाः पिंडदान का प्रथम द्वार पुनपुन नदी है. कहा जाता है कि भगवान श्रीराम ने माता जानकी के साथ पहला पिंड का तर्पण इसी पुनपुन घाट पर किया था. इसके बाद गया के फल्गु नदी पर पिंडदान का पूरा तर्पण विधि को संपन्न किया था. पटना जिले में स्थित पुनपुन नदी घाट को आदि गंगा भी कहा जाता है.

पटना का यह पुनपुन नदी घाट पर पिंडदान करने वाले श्रद्धालु लगातार पहुंच रहे हैं. पुनपुन नदी के घाट पर पहले पिंड का तर्पण किया जा रहा है. इसकी महत्ता के बारे में पंडित रामेश्वर ने बताया कि गया के प्रथम वेदी पुनपुन घाट को ही माना गया है. जो पिंड दानी पहले पिंड का तर्पण इस नदी घाट पर करते हैं, उसका ही गया के फल्गु नदी तट पर पिंडदान स्वीकार होता है. इसलिए जो भी पिंड दानी अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करते हैं वह सबसे पहले इसी पुनपुन नदी घाट पर अपना पहला पिंड का तर्पण करते हैं. इसके उपरांत ही गया जाकर फल्गु नदी तट के पर पिंडदान का पूरा तर्पण विधि संपन्न करते हैं.

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पंडित रामेश्वर, गया वेदी

महर्षि चैवण्य के कमंडल के जल से पुनपुन का उदगम
वहीं, इस पुनपुन नदी के संबंध में पंडा समिति के अध्यक्ष विजय पंडित ने बताया कि पुराणों के अनुसार पलामू के जंगल में महर्षि चैवण्य तपस्या कर रहे थे. जहां उनके कमंडल से पुनः पुनः जल गिरने से पुनपुन नदी का उद्गम हुआ. इसके बाद इसे आदि गंगा भी कहा गया.

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विजय पंडित,अध्यक्ष पंडा समिति

गया से पहले पुनपुन पहुंचते हैं लोग
गौरतलब है कि आश्विन मास की कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से आरंभ होकर अमावस्या तक चलने वाले पितृपक्ष में पूर्वजों की मोक्ष की कामना के लिए लाखों लोग गया जाते हैं. गया जाने से पहले राजधानी पटना से करीब 13 किलोमीटर दूर पुनपुन पहुंचते हैं. जहां, आदि गंगा के नाम से मशहूर पुनपुन नदी घाट पर अपना पहला पिंडदान करते हैं. पुनपुन घाट प्रथम पिंडदान स्थल है, जहां देश-विदेश से श्रद्धालु अपने पितरों के लिए पूजा एवं तर्पण करते हैं.

ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट

पितृ तर्पण की प्रथम वेदी पुनपुन नदी
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पुनपुन नदी को पितृ तर्पण की प्रथम वेदी के रूप में स्वीकार किया गया है. मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम माता जानकी के साथ सबसे पहले पुनपुन नदी के तट पर पिंडदान किये थे. उसके बाद गया में फल्गु नदी के तट पर पिंडदान किया. पुनपुन मे पिंडदान पुराणों में वर्णित किया गया है.

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पिंडदान करते लोग

पुनपुन घाट स्थल पर गयासुर का चरण
पौराणिक कथाओं के अनुसार पुनपुन घाट स्थल पर गयासुर राक्षस का चरण है. राक्षस को वरदान प्राप्त था कि उसकी सर्वप्रथम चरण की पूजा होगी. उसके बाद ही गया में पिंडदान किया गया पिंडदान स्वीकार्य होगा.

Intro:संडे स्पेशल:-

पिंडदान का प्रथम द्वार है पुनपुन, कहा जाता है कि भगवान श्रीराम ने माता जानकी के साथ अपना पहला पिंड का तर्पण इसी पुनपुन घाट पर किया था इसके बाद गया के फल्गु नदी पर पिंडदान का पूरा तर्पण विधि को संपन्न किया था,
पटना का यह पुनपुन नदी घाट को आदि गंगा भी कहा जाता है,




Body:पटना का यह पुनपुन नदी घाट को पिंडदान का प्रथम द्वार कहा जाता है, जिसकी चर्चा वेदों और पुराणों में की गई है, कहा जाता है कि भगवान श्रीराम ने भी अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पहला पिंडदान इसी नदी घाट पर किया था, उसके बाद ही गया के फल्गु नदी तट पर जाकर पिंडदान का पूरा तर्पण विधि संपन्न किए थे, पुनपुन नदी घाट को आदी गंगा भी कहा गया है, पुनपुन नदी घाट के बारे में कई वेदों में कई तरह की बातें भी चर्चा की गई है,
गया के प्रथम वेदी पुनपुन घाट को ही माना गया है, जो पिंड दानी अपना पहला पिंड का तर्पण इस नदी घाट पर करते हैं उसका ही गया के फल्गु नदी तट पर पिंडदान स्वीकार होता है, इसलिए जो भी पिंड दानी अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करते हैं वह सबसे पहले इसी पुनपुन नदी घाट पर अपना पहला हिंदी का तर्पण करते हैं, उसके बाद ही गया जाकर फल्गु नदी तट पर पिंडदान का पूरा तर्पण विधि संपन्न करते हैं
पुराणों के अनुसार कहा जाता है कि पलामू के जंगल में महर्षि चैवण्य तपस्या कर रहे थे, जहां उनके कमंडल से पुनः पुनः जल के गिरने से पुनपुन नदी का उद्गम हुआ इसे आदि गंगा भी कहा जाता है।


Conclusion:गौरतलब है कि आश्विन मास की कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से आरंभ होकर अमावस्या तक चलने वाले पितृपक्ष के मौके पर अपने पूर्वजों की मोक्ष की कामना के लिए लाखों लोग गया जाते हैं, पितरों के मोक्ष की कामना के लिए गया आने वाले श्रद्धालु सबसे पहले राजधानी पटना से करीब 13 किलोमीटर दूर पुनपुन पहुंचते हैं जहां आदी गंगा के नाम से मशहूर पुनपुन नदी घाट पर अपना पहला पिंडदान करते हैं, पुनपुन घाट प्रथम पिंडदान स्थल है, जहां देश-विदेश से श्रद्धालु अपने पितरों के लिए पूजा एवं तर्पण करते हैं
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पुनपुन नदी को पितृ तर्पण की प्रथम वेदी के रूप में स्वीकार किया गया है, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने माता जानकी के साथ सबसे पहले पुनपुन नदी के तट पर पिंडदान किया था उसके बाद गया में फल्गु नदी के तट पर पिंडदान किया था, पुनपुन मे पिंडदान पुराणों में वर्णित किया गया है सर्वविदित है
पौराणिक कथाओं के अनुसार पुनपुन घाट स्थल पर गयासुर राक्षस का चरण है, राक्षस को वरदान प्राप्त था उसकी सर्वप्रथम चरण की पूजा होगी, उसके बाद ही गया में पिंडदान किया गया पिंडदान स्वीकार्य होगा


नोट:-- डेक्स से अनुरोध होगा कि इस स्टोरी को पैकेज के रूप मे बनाये

बाईट:-विजय पंडित,अध्यक्ष, पंडा समिति,पुनपुन
बाईट:-पिंडदानी,
बाईट:-पिंडदानी
बिईट:-पिंडदानी
बाईट:-पंडित रामेश्वर, (गया वेदी)

पी टू सी:-शशि तुलस्यान, ईटीवी भारत पटना
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