पटना (मसौढ़ी): पितृपक्ष के दौरान गयाजी में पिंडदान का बड़ा महत्व है. ऐसा कहा जाता है कि पितृपक्ष के दौरान मृत्यु लोक से पूर्वज पृथ्वी लोक में भ्रमण करने गयाजी आते हैं. ऐसे में पिंडदान का प्रथम द्वार पटना स्थित मसौढ़ी के पुनपुन नदी की वेदी को कहा जाता है. पुनपुन नदी घाट को आदि गंगा भी कहा जाता है.
पितृ तर्पण की प्रथम वेदी पुनपुन नदी
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पुनपुन नदी को पितृ तर्पण की प्रथम वेदी के रूप में स्वीकार किया गया है. मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम माता जानकी के साथ सबसे पहले पुनपुन नदी के तट पर पिंडदान किया थे. उसके बाद गया में फल्गु नदी के तट पर पिंडदान किया. पुनपुन मे पिंडदान पुराणों में वर्णित किया गया है.
वेदों और पुराणों में पुनपुन नदी की चर्चा की गई है. पुनपुन नदी पलामु के जंगलो से निकल कर गंगा में मिलती है. इसके उदगम के बारे कहा जाता है, 'ब्रह्मदेव की तपस्या कर रहे महृषि चैवण्य के कमंडल से बार बार जल के गिर जाने से यानी पुन: पुनः के ध्वनि से पुनपुन नदी का उदगम हुआ.
पुनपुन घाट स्थल पर गयासुर का चरण
पौराणिक कथाओं के अनुसार पुनपुन घाट स्थल पर गयासुर राक्षस का चरण है. राक्षस को वरदान प्राप्त था कि उसकी सर्वप्रथम चरण की पूजा होगी. उसके बाद ही गया में किया गया पिंडदान स्वीकार होगा.
कोरोना संक्रमण को देखते हुए इस बार पितृपक्ष मेला को स्थगित कर दिया गया है. पुनपुन के महत्व को देखते हुए सरकार ने पुनपुन को अंतरराष्ट्रीय मेले का दर्जा दिया. यहां प्रत्येक वर्ष वृहद पैमाने पर मेले का आयोजन किया जाता रहा है. यहां लाखों की संख्या में सैलानी आते थे.