पटना : 5 जून देश के लिए ऐतिहासिक दिन था. लोकनायक जय प्रकाश नारायण ने इस दिन ऐतिहासिक आंदोलन के लिए बिगुल फूंका था. राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक और आध्यात्मिक क्रांति को जेपी ने 'सप्त क्रांति' का नाम दिया था. संपूर्ण क्रांति की चिंगारी देश के कोने-कोने में आग बनकर भड़क उठी थी. 48 साल बीत जाने के बाद भी हिन्दुस्तान 'जेपी के सपनों का भारत' नहीं बन सका. कुर्सी के मोह में 'जेपी के शिष्य' रास्ते से भटक गए.
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क्या है संपूर्ण क्रांति दिवस : 5 जून 1974 की तारीख को 'संपूर्ण क्रांति दिवस' के रूप में जाना जाता है. किसी दिन जेपी ने पहली बार संपूर्ण क्रांति शब्द का उच्चारण किया था. संपूर्ण क्रांति के नायक जयप्रकाश नारायण ने राष्ट्रव्यापी आंदोलन के लिए बिगुल फूंका था. राजधानी पटना को जेपी ने बैटलफील्ड बनाया था. ऐतिहासिक गांधी मैदान में बड़ी रैली कर इंदिरा गांधी की सरकार को उखाड़ फेंका था.
जेपी का सप्त क्रांति कॉन्सेप्ट : लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने 'सप्त क्रांति' का आह्वान किया था. सातों क्रांतियों में राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक और अध्यात्मिक क्रांति शामिल थे. गांधी मैदान में मौजूद लाखों लोगों से जयप्रकाश नारायण ने जात-पात, तिलक-दहेज और भेदभाव छोड़ने का संकल्प लेने को कहा था. लोगों ने हजारों की संख्या में अपने जनेऊ तोड़ दिए थे.
जाति के वोटबैंक पर अब फोकस : जेपी ने कहा था कि ''जात-पात तोड़ दो, तिलक-दहेज छोड़ दो, समाज के प्रवाह को नई दिशा में मोड़ दो.'' जेपी ने जो राह अपने शिष्यों को दिखाई थी, उससे नेता भटक गए हैं. आज जातिगत राजनीति को धार दी जा रही है. जातिगत जनगणना के जरिए वोट बैंक की सियासत की मजबूत दीवार खड़ी करने की कोशिश चल रही है.
संपूर्ण क्रांति के लिए संपूर्ण व्यवस्था परिवर्तन : 5 जून को संध्याकाल में गांधी मैदान में लगभग 5 लाख लोगों की भीड़ को संबोधित करते हुए कहा था कि ''संपूर्ण क्रांति का उद्देश्य विधानसभा का विघटन मात्र नहीं है. यह तो महज मील का पत्थर है, हमारी मंजिल तो बहुत दूर है. हमें अभी बहुत दूर तक जाना है.'' जेपी ने भ्रष्टाचार मिटाने, बेरोजगारी दूर करने, शिक्षा में क्रांति लाने का सपना संजोया था. तब उन्होंने कहा था कि यह तभी पूरी हो सकता है जब संपूर्ण व्यवस्था बदल दी जाए. संपूर्ण व्यवस्था परिवर्तन के लिए ही जेपी ने संपूर्ण क्रांति को जरूरी बताया था.
30 साल से बिहार चला रहे जेपी की शिष्य : बिहार में लगभग 30 साल से जेपी के करीबी शिष्य लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार सत्ता के शीर्ष पर काबिज हैं. इन्हीं नेताओं पर बिहार में सप्त क्रांति को मूर्त रूप देने की जिम्मेदारी थी. सामाजिक चिंतक और जे पी आंदोलन को करीब से समझने वाले प्रेम कुमार मणि वर्तमान हालात से संतुष्ट नहीं दिखते. प्रेम कुमार मणि का मानना है कि आज नेता सत्ता के मद में चूर हैं. राजनीतिक दलों में एक व्यक्ति की तूती बोलती है. लोकतांत्रिक मूल्यों का लगातार क्षरण हो रहा है. सुप्रीमो की परंपरा चल पड़ी है.
सादगी भूल चुके हैं आज के नेता : जेपी ने नेताओं से सादगी का आह्वान किया था. लेकिन आज नेता करोड़ों के घर में रहते हैं. लीडर सुविधा भोगी हो चुके हैं. युवा राजनीति से बेहद दूर हैं, जबकि जेपी ने युवाओं को राजनीति से जोड़ा था. नेता सत्ता से चिपके रहना चाहते हैं. उनकी मंशा होती है कि उम्र के अंतिम पड़ाव तक वह कुर्सी पर कायम रहें. ऐसे में युवाओं को आगे आने देना नहीं चाहते.
''जेपी ने जात-पात की राजनीति से तौबा करने को कहा था. जनेऊ तोड़ने का आह्वान भी किया था. लेकिन आज उनके शिष्य जात-पात की राजनीति करते हैं. बात जातिगत जनगणना तक पहुंच चुकी है. शिक्षा की स्थिति दिन प्रतिदिन बदतर होती जा रही है. छात्र पलायन को मजबूर हैं.''- प्रेम कुमार मणि, जेपी आंदोलन के जानकार
''जयप्रकाश नारायण के सपनों का बिहार अब तक नहीं बन पाया है. जिनके हाथ में सत्ता की चाबी है वह राह से भटक गए हैं. सप्त क्रांति को लेकर उनके शिष्य गंभीर नहीं हैं. जयप्रकाश नारायण ने कभी भी जातिगत जनगणना की बात नहीं की. लेकिन आज सप्त क्रांति के बजाय नेता जातिगत जनगणना की वकालत कर रहे हैं. शिक्षा का स्तर कैसे सुधरे इस पर सरकार की कोई चिंता नहीं है.'' - डॉक्टर संजय कुमार, बुद्धिजीवी