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Lockdown Effect: पुश्तैनी काम छोड़ने को मजबूर हुए लोहार, ये है वजह...

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Published : Jun 2, 2021, 8:15 PM IST

बिहार में कोरोना (Corona) महामारी का असर देखने को मिल रहा है. इसकी वजह से कई लोग बर्बादी के कगार पर पहुंच गए हैं. लोहारों का जीवन भी कोरोना के कहर से अछूता नहीं है. देखिए इनकी दर्द भरी कहानी...

Lockdown effect in patna
Lockdown effect in patna

पटना: वैश्विक महामारी कोरोना (Corona Pandemic) ने सभी का जीना मुहाल कर दिया है. ऐसा कोई नहीं जिसे कोरोना ने रुलाया ना हो. खुली हवा में सांस लेने में पाबंदी (Lockdown Effect) है. घर में रहने से दाने दाने को लोग मोहताज हो रहे हैं. ऐसे में लोहारों की जिंदगी भी मुसीबतों और परेशानियों का सबब बन गई है.

यह भी पढ़ें- ग्राउंड रिपोर्ट: मुजफ्फरपुर में 1 हजार करोड़ का शहद कारोबार 100 करोड़ में सिमटा, जानें वजह

लोहारों पर असर
विरासत में मिली पूर्वजों से मिले रोजगार को अब लोहार छोड़ना चाहते हैं. इतना ही नहीं अपने बच्चों को भी इससे दूर रखना चाहते हैं. उन लोगों का कहना है कि एक तो काम नहीं मिलता और अब लॉकडाउन ने मुश्किलें और बढ़ा दी हैं.

'हम लोहार का काम करने वाले छठी पीढ़ी हैं. लेकिन मैं अपने बेटे को ये काम नहीं सिखाऊंगा. विरासत में मिले रोजगार में अब कोई दम नहीं है. क्योंकि बड़ी बड़ी फैक्ट्री के आगे लोहार का जीवन बदहाल है.'- राजू, लोहार

Lockdown effect in patna
राजू लोहार की तस्वीर

यह भी पढ़ें- Lockdown Effect: बोधगया में कोरोना महामारी से पर्यटन उद्योग तबाह, अब तक 200 करोड़ से ज्यादा का नुकसान

समाप्ति के कगार पर रोजगार
आज कई ऐसे रोजगार हैं जो समाप्ति के कगार पर पहुंच गए हैं. बड़ी-बड़ी फैक्ट्री और आधुनिक युग की मशीनों ने खानदानी रोजगारों को बदहाल कर दिया है. कुम्हार, लोहार, नाई, धोबी, बढई जैसे कई ऐसे रोजगार हैं जिन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी किया जाता है. लेकिन अब ये रोजगार दम तोड़ रहे हैं.

'लॉकडाउन के कारण सब बंद है. काम धंधा नहीं है. छोटे- छोटे दुकान सिपाही के डर से बंद हैं. खाने-खाने को मोहताज हैं. मेरे परिवार में आठ दस लोग हैं. उनका पेट कैसे भरेंगे.'- राकेश, लोहार

यह भी पढ़ें- पटना: शादी के समय में बैंड बाजे वालों की बुकिंग हो रही कैंसिल, इनकम में भारी कमी

नहीं मिल रहा काम
यह रोजगार बदहाली के कगार पर है. लोहार कठोर से कठोर लोहे को आग में पिघलाकर हथौड़े से पीट-पीट कर मनमर्जी औजार बनाते थे लेकिन आज ये भुखमरी के कगार पर हैं. कल तक ग्राहक आते थे लेकिन आज लोग बाजार चले जाते हैं. और अपनी मनपसंद चीजें सस्ते दामों में खरीद लेते हैं. एक तो पहले से भुखमरी थी अब लॉकडाउन के आगे रोजगार के साथ साथ लोहार भी दम तोड़ रहे हैं.

'बैठे बैठे तबाह हैं. पहले काम था अब नहीं मिल रहा. मेरा सब कुछ खत्म हो गया है. 20 साल से काम कर रहे हैं. लेकिन ऐसी परेशानी कभी नहीं हुई. सरकार काम दे कुछ मदद करे.'- छोटु, लोहार

यह भी पढ़ें- कोरोना ने फीकी की मिठाई दुकानदारों के 'जीवन की मिठास', परिवार पालना हो रहा मुश्किल

सरकार से मदद की गुहार
लोहारों का कहना है कि अपना दर्द हम किसे बतायें. साथ ही इन लोगों ने ईटीवी भारत के माध्यम से सरकार से मदद की गुहार लगाई है. इनकी मांग है कि लोहारों के बारे में सरकार कुछ सोचे और रोजगार विकसित करने के लिये आर्थिक मदद करे. ताकि ये अपने परिवार के साथ सामान्य जिंदगी गुजर बसर कर सकें.

यह भी पढ़ें- खराब दौर से गुजर रहा गुड्स ट्रांसपोर्ट सेक्टर, बिहार की अर्थव्यवस्था पर भी बुरा असर

पटना: वैश्विक महामारी कोरोना (Corona Pandemic) ने सभी का जीना मुहाल कर दिया है. ऐसा कोई नहीं जिसे कोरोना ने रुलाया ना हो. खुली हवा में सांस लेने में पाबंदी (Lockdown Effect) है. घर में रहने से दाने दाने को लोग मोहताज हो रहे हैं. ऐसे में लोहारों की जिंदगी भी मुसीबतों और परेशानियों का सबब बन गई है.

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लोहारों पर असर
विरासत में मिली पूर्वजों से मिले रोजगार को अब लोहार छोड़ना चाहते हैं. इतना ही नहीं अपने बच्चों को भी इससे दूर रखना चाहते हैं. उन लोगों का कहना है कि एक तो काम नहीं मिलता और अब लॉकडाउन ने मुश्किलें और बढ़ा दी हैं.

'हम लोहार का काम करने वाले छठी पीढ़ी हैं. लेकिन मैं अपने बेटे को ये काम नहीं सिखाऊंगा. विरासत में मिले रोजगार में अब कोई दम नहीं है. क्योंकि बड़ी बड़ी फैक्ट्री के आगे लोहार का जीवन बदहाल है.'- राजू, लोहार

Lockdown effect in patna
राजू लोहार की तस्वीर

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समाप्ति के कगार पर रोजगार
आज कई ऐसे रोजगार हैं जो समाप्ति के कगार पर पहुंच गए हैं. बड़ी-बड़ी फैक्ट्री और आधुनिक युग की मशीनों ने खानदानी रोजगारों को बदहाल कर दिया है. कुम्हार, लोहार, नाई, धोबी, बढई जैसे कई ऐसे रोजगार हैं जिन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी किया जाता है. लेकिन अब ये रोजगार दम तोड़ रहे हैं.

'लॉकडाउन के कारण सब बंद है. काम धंधा नहीं है. छोटे- छोटे दुकान सिपाही के डर से बंद हैं. खाने-खाने को मोहताज हैं. मेरे परिवार में आठ दस लोग हैं. उनका पेट कैसे भरेंगे.'- राकेश, लोहार

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नहीं मिल रहा काम
यह रोजगार बदहाली के कगार पर है. लोहार कठोर से कठोर लोहे को आग में पिघलाकर हथौड़े से पीट-पीट कर मनमर्जी औजार बनाते थे लेकिन आज ये भुखमरी के कगार पर हैं. कल तक ग्राहक आते थे लेकिन आज लोग बाजार चले जाते हैं. और अपनी मनपसंद चीजें सस्ते दामों में खरीद लेते हैं. एक तो पहले से भुखमरी थी अब लॉकडाउन के आगे रोजगार के साथ साथ लोहार भी दम तोड़ रहे हैं.

'बैठे बैठे तबाह हैं. पहले काम था अब नहीं मिल रहा. मेरा सब कुछ खत्म हो गया है. 20 साल से काम कर रहे हैं. लेकिन ऐसी परेशानी कभी नहीं हुई. सरकार काम दे कुछ मदद करे.'- छोटु, लोहार

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सरकार से मदद की गुहार
लोहारों का कहना है कि अपना दर्द हम किसे बतायें. साथ ही इन लोगों ने ईटीवी भारत के माध्यम से सरकार से मदद की गुहार लगाई है. इनकी मांग है कि लोहारों के बारे में सरकार कुछ सोचे और रोजगार विकसित करने के लिये आर्थिक मदद करे. ताकि ये अपने परिवार के साथ सामान्य जिंदगी गुजर बसर कर सकें.

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