पटना: बिहार के पुनपुन में अंतराष्ट्रीय पितृपक्ष मेला का समापन (Pitru Paksha Mela 2022) होने जा रहा है. जिले के पुनपुन नदी में अंतिम दिन पिंडदानियों के लिए खास माना जाता है. कई लोगों का मानना है कि आज सर्वपितृ अमावस्या है. आज के दिन सभी पूर्वजों को श्रद्धापूर्वक स्मरण कर तर्पण कर प्रसन्न करने का दिन है. पितृपक्ष मेला का आयोजन 9 सितंबर से यह मेला की शुरुआत की गई थी जो 25 सितंबर तक के मेला चलता है, जहां हर वर्ष सरकार द्वारा अंतरराष्ट्रीय पितृपक्ष मेला का आयोजन जिला प्रशासन द्वारा किया जाता है.
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पितरों के पूजा का आज अंतिम दिन: दरअसल, पटना के पुनपुन में चल रहे पितृपक्ष मेला का आज समापन है, जहां लाखों पिंडदानी देश और विदेश से आकर यहां अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण करते हैं. जिसके कारण पटना के पुनपुन नदी घाट को आदि गंगा भी कहा जाता है. कई मायनों में पुनपुन नदी पर पिंड का तर्पण करना खास माना जाता है. वेद और पुराणों में इसके लिए कई तरह के महत्व की चर्चाएं हुई है. वेदों के अनुसार पुनपुन नदी घाट को पिंडदान का प्रथम द्वार माना गया है. जहां पर भगवान राम ने अपनी धर्मपत्नी माता सीता के साथ जाकर अपने पूर्वजों के आत्मा की शांति के लिए पहला पिंड का तर्पण यहीं किया था, इसके बाद ही गया के फल्गु नदी तट पर जाकर पिंड अर्पण का पूरे विधि-विधान से संपन्न किया गया था.
बताया जाता है कि पितरों के नाम, गोत्र और मंत्र के द्वारा श्राद्ध किया जाता है तो सीधे उन पितरों के पास जाता है चाहे वह किसी भी योनि में क्यों न हो, श्राद्ध के अनादि से उनकी तृप्ति होती हैं. मालूम हो कि सर्वपितृ अमावस्या के दिन सारे पितर भूमि पर आते हैं. इसलिए इस दिन श्राद्ध अवश्य करनी चाहिए. आज के दिन पितरों का अगर तर्पण नहीं किया गया तो पितर नाराज हो कर चले जाते हैं.
पितरों के भूमि पर आने का आज दिन: इस पूरे मसले पर पांडा समिति अध्यक्ष सुदामा पांडे (Panda Samiti Chairman Sudama Pandey) ने कहा कि "आज पिंडदान का अंतिम दिन है. आज का दिन काफी पिंडदानियो के लिए महत्व रखता है. आज के दिन तांबे के लोटे में जल भरकर भगवत गीता का पाठ करना चाहिए और भगवान सूर्यनारायण को जल देना चाहिए. माना जाता है कि पितरों को आह्वान करते हुए स्मरण करना चाहिए. पितृपक्ष के दौरान घर में मीट, मछली, मांस, लहसुन, प्याज, मसूर की दाल नहीं बननी चाहिए" .