पटना: प्रदेश में पशुपालकों के सामने बड़ी समस्या खड़ी है. पशुपालकों के लिए बड़ी परेशानी पशुओं के देखरेख की है. इसकी बड़ी वजह सूबे में वेटनरी अस्पतालों की कमी है. ऐसे में जानकारी के अभाव में पशुपालक अच्छी आमदनी तो दूर की बात, पशुओं से भी हाथ धोने को मजबूर हैं.
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बिहार में पशुओं की संख्या
पशु गणना 2019 के अनुसार राज्य में सबसे ज्यादा पशुपालक गाय को पालना पसंद करते हैं. राज्य में कुल 1 करोड़ 53 लाख गायें हैं. भैस की संख्या भी 77 लाख है. तीसरे नंबर पर लोग बकरी पालना पसंद करते हैं. प्रदेश में बकरी की संख्या लगभग 28 लाख है. वहीं भेंड़ों की संख्या 2 लाख 38 हजार, सुअर की संख्या 34 हजार, घोड़ा की संख्या 32 हजार है, जबकि बिहार में सबसे कम गदहों की संख्या है. बिहार में कुल 11 हजार गदहे हैं.
3000 वेटनरी डॉक्टरों के भरोसे बिहार
ये बात अलग है कि पशुपालन को लेकर किसानों की रुचि बढ़ी है, यही कारण है कि कॉम्फेड अकेले बिहार में 16 लाख लीटर दुग्ध का प्रतिदिन उत्पादन कर रहा है. बावजूद इसके अभी भी पशुपालकों को मूलभूत सुविधा उपलब्ध नहीं है. किसान पशु को पाल लेते हैं, जबकि अभी भी प्रदेश में मात्र 3000 वेटेनरी डॉक्टर हैं. उनमें भी सरकारी पशु डॉक्टरों का अभाव है. अधिकांश पशुपालकों का कहना है कि सरकारी पशु चिकित्सक नहीं होने के चलते प्राइवेट पशु चिकित्सक से जानवरों का इलाज कराते हैं.
'पंचायत क्या प्रखंड में भी पशु चिकित्सालय कामयाब नहीं हैं. जिससे हमें दिक्कत होता है. हम 4 गाय और 2 भैस पाल रखे हैं. जानवरों की तबीयत खराब होती है, तो पटना ही लाना होता है. लोकल डॉक्टर का भी कभी-कभी सहारा लेना होता है': विक्रमादित्य ठाकुर, पशुपालक, जट डुमरी, पटना
'पशुओं को तो हम लोग पाल लिए हैं, लेकिन बीमारी होने पर बहुत दिक्कत होता है. प्रखंड में पशु चिकित्सालय है, लेकिन काफी दूर है' - बीके सिंह, पशुपालक, भोजपुर
'सरकार को पशु चिकित्सक की व्यवस्था करनी चाहिए. हम लोगों को काफी परेशानी होती है. आमदनी के लिए हम लोग पशुओं को पालते हैं. लेकिन सब बीमारी में चला जाता है': मंटू यादव, पशुपालक
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पटना के पशु विज्ञान विश्वविद्यालय से उम्मीद
वैसे अगर हम पटना की बात करें तो यहां पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के चिकित्सालय में लगातार राज्य के बिभिन्न हिस्सों से लोग जानवरों को लेकर आ रहे हैं. यहां पशु के इलाज की सारी सुविधा मौजूद है. ड्यूटी पर मौजूद असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर सोनम भट्ट का कहना है कि यहाँ जानवरों का लागातर इलाज हो रहा है. डॉक्टरों की कोई कमी नहीं है. 24 घंटे ओपीडी खुली रहती है. इमरजेंसी सेवा भी उपलब्ध हैं. मवेशियों के दवा का भी स्टोर है जहां दवाई की कोई कमी नहीं है.
ये है बिहार में हाल
राज्य में लगभग 800 पशु अस्पताल हैं. उनमें से 127 ऐसे पशु अस्पताल हैं जिसमें वेटनरी डॉक्टर नियमित रूप से नहीं है. यानी कई डॉक्टर चार-चार पशु अस्पताल पर ड्यूटी करते हैं. वैसे पशुपालन मंत्री की माने तो मुख्यमंत्री के निर्देश पर कार्य हो रहे हैं. वेटनरी डॉक्टर की बहाली की प्रक्रिया शुरू की गई है. 700 से 800 पशु चिकित्सक 2 से 3 महीने में बहाल होंगे.
पशुपालन मंत्री का दावा
पशुपालन मंत्री ने कहा कि जिले में मोबाइल वैन से पशुओं का इलाज शुरू कर रहे हैं. ये वैन प्रत्येक जिले में तैनात होगी. पशुपालक जहां कॉल करेंगे वहां डॉक्टर के साथ वैन पहुंच जाएगी. प्रखंड स्तर तक पशु चिकित्सालय है. दूध, मीट और मछली का उत्पादन बढ़े इसको लेकर विभाग काम कर रहा है. युवा ज्यादा से ज्यादा पशुपालन करें, इसपर उनकी सरकार का फोकस है.
'दो से तीन महीने में 700 से 800 पशु चिकित्सकों की बहाली होगी, हर जिले में पशुपालकों के लिए मोबाइल वैन से पशु चिकित्सा की शुरूआत कर रहे हैं. पशुपालक जहां कॉल करेंगे वहीं ये वैन पहुंचेगी. पशुपालन में ज्यादा से ज्यादा युवा जुड़े उनकी सरकार का फोकस है.'- मुकेश सहनी, मंत्री, पशुपालन, एवं मत्स्य, विभाग
...तो फिर कैसे बढ़ेगा उत्पादन?
भले ही मंत्री कुछ भी दावा करें लेकिन सच्चाई यही है कि करोड़ों की संख्या में पशु अभी भी मात्र 3000 पशु चिकित्सक के भरोसे हैं. पशु अस्पताल की संख्या राज्य में जरूर बढ़ी है, लेकिन अभी भी पशु चिकित्सकों की भारी कमी है . ऐसे में सरकारी उत्पादन बढ़ाने का जो सरकारी दावा है वो कैसे सफल होगा ? इसका जवाब शायद किसी के पास नहीं है.