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दिल्ली से सहरसा के लिए पैदल निकले मजदूर पहुंचे पटना, कुछ इस तरह बयां किया दर्द

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Published : May 15, 2020, 6:33 PM IST

लॉकडाउन ने प्रवासी मजदूरों की समस्या बढ़ा दी है. इस कारण मजदूर भूखे प्यासे अपने घर पहुंचने को बेताब हैं. मजदूरों ने बताया कि वे दिल्ली से पैदल ही सहरसा के लिए 11 मई को निकले थे और पटना पहुंच गए है और अब सहरसा के लिए बढ़ रहे हैं.

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पटना: कोरोना संकट और लॉकडाउन ने उन लोगों की मुसीबत बढ़ा दी है, जिनकी रोजी-रोटी छीन गई है. रोजगार के लिए पहले घर और गांव छोड़कर परदेश में मजदूरी के लिए गए थे, लेकिन अब वापस लौट रहे हैं. वाहन नहीं मिले तो पैदल ही लौट रहे हैं. कई किलोमीटर पैदल चलते-चलते इनके जूते-चप्पल टूट गए. नंगे पैर और हाथ में बच्चों की उंगली पकड़े पैदल चल रहे इन लोगों को देखकर दिल पसीज जाता है.

लॉकडाउन के कारण प्रवासी मजदूरों के पलायन का सिलसिला लगातार जारी है. कोई पैदल तो कोई श्रमिक ट्रेन के जरिए अपने घर लौट रहा है. एक तरफ मजदूरों के लिए सरकार हर राज्य से ट्रेन चलवा रही है. सरकार की ओर से दावा हो रहा है कि 4 लाख से अधिक मजदूर अगले 7 दिन में बिहार पहुंचेंगे. दूसरी तरफ हर दिन बड़ी संख्या में मजदूर सड़क मार्ग से अपने घर के लिए निकल पड़े हैं. ऐसे ही कुछ प्रवासी मजदूरों से ईटीवी भारत संवाददाता अमित वर्मा ने बात की.

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घर के लिए पैदल रवाना हुए मजदूर

प्रवासी मजदूरों के लौटने का सिलसिला जारी
बिहार में शुक्रवार को 30 से ज्यादा श्रमिक स्पेशल ट्रेनें अलग-अलग शहरों से आ रही हैं. ट्रेनों से करीब 35 हजार प्रवासी बिहारी अपने घर लौट रहे हैं. यह सिलसिला पिछले कई दिनों से चल रहा है, लेकिन इन ट्रेनों के अलावा भी हजारों की संख्या में ऐसे श्रमिक हैं, जो सड़क के रास्ते किसी तरह अपने घर का सफर तय कर रहे हैं. इनके लिए ना तो खाने की व्यवस्था है और ना ही इन्हें घर तक पहुंचाने की. हां, रास्ते में इन्हें कुछ खाने को मिल जाए तो यह खा लेते हैं अगर कोई गाड़ी मिल गई. तो बिना सोशल डिस्टेंसिंग का ख्याल किए कुछ दूर का सफर तय कर लेते हैं.

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सड़क मार्ग से घर के लिए पैदल निकले मजदूर

दिल्ली से सहरसा के लिए पैदल निकले मजदूर
मजदूरों ने बताया कि वे दिल्ली से पैदल ही सहरसा के लिए 11 मई को निकले थे और पटना पहुंच गए हैं और अब सहरसा के लिए बढ़ रहे हैं. उनका कहना है कि रास्ते में इन्हें अगर किसी ने कुछ खाने को दे दिया, तो खा लिया. अगर कोई गाड़ी मिल गई. तो उसके जरिए कुछ दूर का सफर तय कर लिया.

पेश है रिपोर्ट.

भूखे प्यासे अपने घर पहुंचने को बेताब हैं मजदूर
मजदूरों की यह कहानी व्यथित करने वाली है. सरकार चाहे लाख दावे करे कि आपदा राहत कोष के जरिए प्रवासियों की मदद की जा रही है, लेकिन हकीकत यही है कि बड़ी संख्या में ऐसे मजदूर सड़क से भूखे प्यासे अपने घर पहुंचने को बेताब हैं. उनके पास अब खोने को कुछ नहीं है. जरूरत इस बात की है कि इन सब के लिए सड़कों पर भी सरकार की तरफ से पर्याप्त इंतजाम किए जाएं, ताकि यह लोग सकुशल अपने घर पहुंच सकें.

पटना: कोरोना संकट और लॉकडाउन ने उन लोगों की मुसीबत बढ़ा दी है, जिनकी रोजी-रोटी छीन गई है. रोजगार के लिए पहले घर और गांव छोड़कर परदेश में मजदूरी के लिए गए थे, लेकिन अब वापस लौट रहे हैं. वाहन नहीं मिले तो पैदल ही लौट रहे हैं. कई किलोमीटर पैदल चलते-चलते इनके जूते-चप्पल टूट गए. नंगे पैर और हाथ में बच्चों की उंगली पकड़े पैदल चल रहे इन लोगों को देखकर दिल पसीज जाता है.

लॉकडाउन के कारण प्रवासी मजदूरों के पलायन का सिलसिला लगातार जारी है. कोई पैदल तो कोई श्रमिक ट्रेन के जरिए अपने घर लौट रहा है. एक तरफ मजदूरों के लिए सरकार हर राज्य से ट्रेन चलवा रही है. सरकार की ओर से दावा हो रहा है कि 4 लाख से अधिक मजदूर अगले 7 दिन में बिहार पहुंचेंगे. दूसरी तरफ हर दिन बड़ी संख्या में मजदूर सड़क मार्ग से अपने घर के लिए निकल पड़े हैं. ऐसे ही कुछ प्रवासी मजदूरों से ईटीवी भारत संवाददाता अमित वर्मा ने बात की.

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घर के लिए पैदल रवाना हुए मजदूर

प्रवासी मजदूरों के लौटने का सिलसिला जारी
बिहार में शुक्रवार को 30 से ज्यादा श्रमिक स्पेशल ट्रेनें अलग-अलग शहरों से आ रही हैं. ट्रेनों से करीब 35 हजार प्रवासी बिहारी अपने घर लौट रहे हैं. यह सिलसिला पिछले कई दिनों से चल रहा है, लेकिन इन ट्रेनों के अलावा भी हजारों की संख्या में ऐसे श्रमिक हैं, जो सड़क के रास्ते किसी तरह अपने घर का सफर तय कर रहे हैं. इनके लिए ना तो खाने की व्यवस्था है और ना ही इन्हें घर तक पहुंचाने की. हां, रास्ते में इन्हें कुछ खाने को मिल जाए तो यह खा लेते हैं अगर कोई गाड़ी मिल गई. तो बिना सोशल डिस्टेंसिंग का ख्याल किए कुछ दूर का सफर तय कर लेते हैं.

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सड़क मार्ग से घर के लिए पैदल निकले मजदूर

दिल्ली से सहरसा के लिए पैदल निकले मजदूर
मजदूरों ने बताया कि वे दिल्ली से पैदल ही सहरसा के लिए 11 मई को निकले थे और पटना पहुंच गए हैं और अब सहरसा के लिए बढ़ रहे हैं. उनका कहना है कि रास्ते में इन्हें अगर किसी ने कुछ खाने को दे दिया, तो खा लिया. अगर कोई गाड़ी मिल गई. तो उसके जरिए कुछ दूर का सफर तय कर लिया.

पेश है रिपोर्ट.

भूखे प्यासे अपने घर पहुंचने को बेताब हैं मजदूर
मजदूरों की यह कहानी व्यथित करने वाली है. सरकार चाहे लाख दावे करे कि आपदा राहत कोष के जरिए प्रवासियों की मदद की जा रही है, लेकिन हकीकत यही है कि बड़ी संख्या में ऐसे मजदूर सड़क से भूखे प्यासे अपने घर पहुंचने को बेताब हैं. उनके पास अब खोने को कुछ नहीं है. जरूरत इस बात की है कि इन सब के लिए सड़कों पर भी सरकार की तरफ से पर्याप्त इंतजाम किए जाएं, ताकि यह लोग सकुशल अपने घर पहुंच सकें.

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