पूर्णिया: लॉकडाउन के बाद से कोटा में फंसे जिले के सैकड़ों छात्र मीलों के सफर के बाद बुधवार की दोपहर पूर्णिया पहुंचे. अपनों के बीच लौटने की खुशी से ज्यादा ये छात्र सरकारी बदइंतजामी को लेकर नाराज दिखे. ईटीवी भारत के साथ अपना दर्द बयां करते हुए छात्रों ने कहा कि 'कोटा और कानपुर में मिले स्वागत देख हमें ऐसा लगा कि सीएम नीतीश अंकल के तैयारियों के आगे सब फीकी रह जाएगी. लेकिन यहां पर पहुंचने के बाद हमारे साथ जेल के कैदियों की तरह ट्रीट किया गया. यह अनुभव अपनों के बीच गैरों जैसा सुलूक किए जाने जैसा रहा.'
छात्रों के चेहरे पर दिखा सफर का दर्द
दरअसल, राजस्थान के कोटा से जिस स्पेशल ट्रेन के जरिए 1200 छात्र कटिहार जंक्शन उतरे. उनमें पूर्णिया के भी सैकड़ों छात्र शामिल थे. इस दौरान कोटा से लौटे छात्रों ने सफर की दर्द भरी दास्तां सुनाते हुए कहा कि राजस्थान के कोटा से लौटते हुए उनके चेहरे खुशी से खिले हुए थे. कोटा और कानपुर समेत दूसरे स्टेशनों पर मिल रहे स्वागत सत्कार खास पल था. लिहाजा इन स्टेशनों को क्रॉस करते हुए लगा की स्वागत और सत्कार की सारी तस्वीर सीएम नीतीश अंकल की तैयारियों के आगे फीकी पड़ जाएगी. लेकिन यहां आने के बाद हमें सरकारी बदइंतजामी से रूबरू होना पड़ा.
छात्रों का कहना था कि कटिहार जंक्शन पर ट्रेन 9 बजे के आसपास आकर लगी. स्टेशन पर लगेज ढ़ोने के लिए कोई इंतजाम नहीं किये गए थे. जिसके बाद भारी लगेज का भार विवश होकर खुद उठाना पड़ा. पुलिस प्रशासन के तैनात कर्मी मदद की बजाए खड़े होकर देखते रहे. जबकि, कोटा में भारी लगेज ट्रैन कंपाटमेंट तक पहुंचाने में तैनात जवानों और अधिकारियों का भरपूर सहयोग मिला था.
'अपनों के बीच हुआ गैरों जैसा सुलूक'
छात्रों ने कहा कि ट्रेन जब कटिहार जंक्शन पर पहुंची तो यहां पर खाने की व्यवस्था तो दूर की बात है, यहां पानी तक का प्रबंध नहीं था. छात्रों ने कहा कि हमलोगों के मोबाइल के बैटरी डिस्चार्ज हो गई थे. इस वजह से अपने पैरेंट्स के साथ बात नहीं कर पा रहे थे. ऐसे में जब स्टेशन पर तैनात कर्मियों से फोन मांगा तो हमारे साथ सौतेले व्यवहार किया गया. प्रशासनिक लेटलतीफी के चलते स्टेशन पर पहुंचने के बाद 4 घंटे बाद पूर्णिया की बस खुली. सिर्फ 5 बसों थी. इसलिए सोशल डिस्टेंसिंग का पाठ भी फेल हो गई. हमें बसों में ठूसकर किसी तरह पूर्णिया पहुंचाया गया.
'नास्ते में मिले सड़े और कच्चे केले'
सरकार के बदइंतजामी से नाराज छात्रों ने कहा कि हम अपनों के बीच अपने गृह जिले में थे. मगर हमारे साथ किया जा रहा सुलूक देखकर ऐसा महसूस हो रहा था. जैसे हम अपनों के बीच नहीं बल्कि गैरों की बस्ती में भटककर चले आए हों. घंटों के सफर के बाद जोर की भूख लगी थी. लिहाजा पूर्णिया उतरते ही प्रशासन की ओर से मिले नाश्ते के पैकेट देख सभी स्टूडेंट्स के चेहरे खुशी से खिल उठे. मगर पैकेट के भीतर महज कुछ केले और नमकीन का छोटा पैकेट था. नास्ते के डब्बों में केले कच्चे या फिर सड़े हुए थे. नाश्ते के नाम पर अगर कुछ बेहतर मिला तो वह सिर्फ पानी का बोतल था.
'राजस्थान सरकार ने भरपेट भोजन करवाकर किया था विदा'
कोटा से वापस आए छात्रों ने कहा कि हमें कोटा से वापस बिहार लौटने के दौरान राजस्थान सरकार ने भरपेट सब्जी, पूरी और जलेबी का नाश्ता करवाया था. कोटा प्रशासन की ओर से बेहतर इंतजाम किए गए थे. बिहार वापस आने पर सरकार की व्यवस्थाएं और प्रशासन का रवैया देखकर बिहार के पिछड़े होने का एहसास हो रहा है. छात्रों ने बताया कि सरकार हर संभव कोशिश कर रही है. लेकिन अफसरशही के कारण बिहार सरकार के किये गए कार्य भी धूमिल हो रही है.