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हर बार तबाही की नई कहानी लिखती है कोसी, अरबों खर्च के बाद भी नतीजा 'जलप्रलय'

हिमालय से निकलकर नेपाल के रास्ते भारत आने वाली कोसी नदी कई दशकों से बिहार का शोक बनी हुई है. कोसी के शोक से निपटने के लिए अरबों रुपए अब तक खर्च हो चुके हैं. लेकिन स्थिति बदस्तूर अब भी वही है. आखिर क्या वजह है बिहार में कोसी के शोक बनने की और क्यों हर साल तमाम उपाय फेल हो रहे हैं. पढ़ें पूरी रिपोर्ट.

बिहार का शोक कोसी
बिहार का शोक कोसी
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Published : Jun 19, 2021, 10:58 PM IST

पटना: बिहार में लाखों लोगों को प्रभावित करने वाली कोसी नदी (Kosi River) की कहानी बस इतनी है कि हर बार बस 'वर्ष' बदलता है, कहानी वही होती है. बांध का टूटना, खेतों का उजड़ना, लोगों और जानवरों की जिन्दा जल समाधि. हजारों लोगों का विस्थापन और बाढ़ राहत के नाम पर एक बार फिर करोड़ों रुपए का खर्च. लेकिन इसके बावजूद स्थिति जस की तस. लोग हर साल तबाही का मंजर देखते हैं. कब किस क्षेत्र में बांध टूट जाए, लोगों के मन में डर समाया रहता है.

यह भी पढ़ें- बोले मंत्री संजय झा- 'बाढ़ को लेकर विभाग मुस्तैद, गंडक में फ्लैश फ्लड से हालात गंभीर'

क्यों कहते हैं शोक
कोसी को बिहार का शोक यूं ही नहीं कहते. पिछले 40 साल में जितनी बर्बादी बिहार में बाढ़ की वजह से कोसी नदी ने की है, उतनी देश में शायद किसी और नदी ने नहीं की. बिहार के सुपौल में नेपाल बॉर्डर पर भीम नगर के रास्ते प्रवेश करने वाली कोसी नदी सहरसा होते हुए करीब 260 किलोमीटर का रास्ता तय करने के बाद कटिहार के कुर्सेला में गंगा नदी में समाहित हो जाती है.

देखें रिपोर्ट

260 किमी का पूरा करती है सफर
कोसी के 260 किमी के सफर में सहरसा, सुपौल और मधेपुरा के अलावा सीमांचल का पूरा इलाका शामिल हो जाता है. जिसमें कटिहार, किशनगंज और पूर्णिया, अररिया के अलावा मिथिलांचल के दरभंगा, मधुबनी और खगड़िया भी शामिल हैं. इस पूरे इलाके को कोसी बेल्ट कहते हैं. इस पूरे इलाके में जमीन काफी उपजाऊ होती है. जिन से लाखों लोगों की रोजी-रोटी चलती है. लेकिन यही कोसी नदी मॉनसून के वक्त इन लाखों लोगों के लिए जानलेवा बन जाती है.

यह भी पढ़ें- ये है बिहार की जमीनी हकीकत: नहर तो तैयार है, पर सिंचाई के लिए पानी नहीं

क्या है इसकी वजह
हिमालय से निकलने वाली कोसी नेपाल के पहाड़ी इलाकों से भारी मात्रा में सिल्ट (गाद) लेकर आती है. इस सिल्ट की वजह से कोसी नदी की सतह ऊंची होती गई. जिसकी वजह से पानी बढ़ने पर नदी अपनी सीमाएं तोड़कर आसपास के इलाकों में फैल जाती है. एक और बड़ी वजह कोसी तटबंध का निर्माण है. जिसे लेकर विश्लेषक भी कहते हैं कि करीब सवा दो लाख हेक्टेयर जमीन को बचाने के लिए कुर्सी पर बांध तो बना दिया गया, लेकिन इसकी कीमत करीब 4,00,000 हेक्टेयर जमीन बर्बाद करके चुकानी पड़ी.

कोसी नदी की बाढ़ में डूबा गांव
कोसी नदी की बाढ़ में डूबा गांव

कोसी बांध का भी नहीं हुआ कोई फायदा
1955 से 1962 के बीच कोसी बांध का निर्माण हुआ. नेपाल से आने वाली सप्तकोसी के बहाव को रोकने के लिए. लेकिन इसका आज तक कोई फायदा नहीं हुआ है. उल्टे इसकी मरम्मत पर हजारों करोड़ों रुपए खर्च हो चुके हैं. वर्ष 2008 में जो बांध टूटने से बाढ़ आई थी, वह अब इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुका है. जिसमें करीब 15,000 करोड़ का नुकसान हुआ और सैकड़ों लोगों की जान चली गई.

नेपाल के कोसी बराज में उफनाता पानी
नेपाल के कोसी बराज में उफनाता पानी

यह भी पढ़ें- कोसी नदी पर 1478.4 करोड़ की लागत से फोर लेन पुल का निर्माण कार्य शुरू

जानें... कोसी नदी का व्यवहार

  • सन कोसी, तमा कोसी, दूध कोसी, इंद्रावती, लिखू, अरुण और तमार नदी का है संगम
  • संगम से ही इसका नाम पड़ा 'सप्तकोसी'
  • कोसी नदी दिशा बदलने में है माहिर
  • पिछले 200 वर्षों में कोसी ने पूर्व से पश्चिम की ओर 120 किलोमीटर का मार्ग बदला
  • हिमालय की ऊंची पहाड़ियों से तरह-तरह से अवसाद (बालू, कंकड़-पत्थर) अपने साथ लाती है कोसी
  • यह नदी निरंतर फैलाती है अपना क्षेत्र
  • उत्तरी बिहार के मैदानी इलाकों पर जाती यह नदी पूरे क्षेत्र को बनाती है उपजाऊ
  • नेपाल में कोसी बेल्ट है विराटनगर
  • बिहार में कोसी बेल्ट कहलाता है कटिहार और पूर्णिया
  • कोसी के कहर को साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु ने अपने रिपोर्ताज में बखूबी किया है बयां
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कोसी नदी पर बना है बांध

  • कोसी नदी पर सन् 1962 में बनाया गया था एक बांध
  • बांध भारत-नेपाल सीमा के पास नेपाल में है स्थित
  • पानी के बहाव के नियन्त्रण के लिए बनाए गए 52 फाटक
  • नियंत्रित करने का कार्य करते हैं भारत के अधिकारी
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टूट चुका है कोसी पर बना बांध

  • अभियंताओं के अनुसार यह नौ लाख घन फुट प्रति सेकेंड (क्यूसेक) पानी के बहाव को झेलने में था सक्षम
  • बांध की आयु आंकी गई थी 25 वर्ष, पहली बार 1963 में टूटा था बांध
  • 1968 में यह 5 जगहों पर टूटा
  • उस वक्त नदी में पानी का बहाव था 9 लाख 13 हजार क्यूसेक
  • 1991 में नेपाल के जोगनिया में भी टूटा
  • 2008 में यह नेपाल के ही कुसहा में टूटा
  • वर्ष 2008 में जब यह टूटा तो इसमें बहाव थे महज 1 लाख 44 हजार क्यूसेक
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कोसी के जद में आते हैं कई इलाके

  • कोसी के मार्ग बदलने से हर साल जद में आते हैं कई नए इलाके
  • पूर्णिया, अररिया, मधेपुरा, सहरसा, कटिहार जिलों में कोसी की हैं कई शाखाएं
  • बिहार में महानंदा और गंगा में मिलती है कोसी
  • इन बड़ी नदियों में मिलने से कई क्षेत्रों में बढ़ जाता है पानी का दबाव
  • दबाव के बढ़ने से ही उत्पन्न हो जाता है बाढ़ और जलभराव का खतरा
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धार्मिक ग्रंथों के अनुसार कोसी

  • महर्षि विश्वामित्र से है कोसी का संबंध
  • हिन्दू ग्रंथ महाभारत में इसे 'कोशिकी' कहा गया
  • इस नदी को 'सप्तकोसी' भी कहा जाता है
  • पौराणिक मान्यता के अनुसार इसी नदी किनारे विश्वामित्र को मिला था ऋषि का दर्जा
  • कुशिक ऋषि के शिष्य थे विश्वामित्र
  • ऋग्वेद में उन्हें कहा गया है कौशिक

ब्रिटिश सरकार के वक्त भी चली थी बांध बनाने की बात

  • कोसी नदी पर बांध बनाने का काम ब्रिटिश शासन के समय से था विचाराधीन
  • ब्रिटिश सरकार को थी प्राकृतिक बहाव के कारण बांध के टूटने की चिंता
  • तभी ब्रिटिश सरकार ने तटबंध नहीं बनाने का लिया था फैसला
  • बांध टूटने से भरपाई करना होता ज्यादा मुश्किल
  • आजादी के बाद 1954 में भारत सरकार ने नेपाल के साथ किया समझौता
  • 1962 में बांध बनकर हुआ तैयार

यह भी पढ़ें- 87 साल बाद एक हुई दो भागों में बटी मिथिला, नए कोसी रेलपुल से जुड़े दरभंगा और सहरसा, बरसात के पहले शुरू होगी पैसेंजर ट्रेन सेवा

नदी जोड़ परियोजना पर हो विचार

'कोसी पर हाई डैम इस वक्त की सबसे बड़ी जरूरत है. इसके साथ-साथ नदी में जो सिल्ट जमा है, उसकी सफाई का इंतजाम करना होगा. नदी जोड़ परियोजना पर भी सरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए. ताकि जिन नदियों में पानी कम हो, उन नदियों तक कोसी का पानी डाइवर्ट करके आपदा में अवसर बनाया जा सके.' -डॉक्टर संजय कुमार, आर्थिक सामाजिक विश्लेषक

'अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रयास के साथ-साथ राज्य सरकार को अपने स्तर से तमाम चीजों को गंभीरता से देखना होगा. खासतौर पर नदी में जमा गाद हटाना बेहद जरूरी है. नदी के बहाव क्षेत्र पर भी ध्यान देना होगा. जो कहीं-कहीं काफी संकरा है, तो कहीं बहुत ज्यादा चौड़ा है. जिसकी वजह से परेशानी और ज्यादा बढ़ जाती है.' -डॉक्टर विद्यार्थी, विकास विशेषज्ञ

'नेपाल से आने वाली पानी को लेकर अब तक कोई सहयोग नेपाल की तरफ से नहीं किया गया है. केंद्र सरकार की तरफ से 2004 में ही डैम बनाने के लिए डीपीआर बनाने पर फैसला हुआ है. नेपाल के भरोसे नहीं रहकर हम कोई ना कोई रास्ता जरूर निकालेंगे.' -संजय झा, जल संसाधन मंत्री

यह भी पढ़ें- खगड़िया: तेलिहार गांव में कोसी कटाव के कारण दहशत में लोग, प्रशासन से मदद की मांग

यह भी पढ़ें- खगड़िया में बाढ़ से जनजीवन अस्त-व्यस्त, सरकार से मदद की आस में ग्रामीण

यह भी पढ़ें- खगड़ियाः बाढ़ ने बढ़ाई मुश्किलें, मक्के की रोटी और नमक खाकर पेट भरने को लोग मजबूर

पटना: बिहार में लाखों लोगों को प्रभावित करने वाली कोसी नदी (Kosi River) की कहानी बस इतनी है कि हर बार बस 'वर्ष' बदलता है, कहानी वही होती है. बांध का टूटना, खेतों का उजड़ना, लोगों और जानवरों की जिन्दा जल समाधि. हजारों लोगों का विस्थापन और बाढ़ राहत के नाम पर एक बार फिर करोड़ों रुपए का खर्च. लेकिन इसके बावजूद स्थिति जस की तस. लोग हर साल तबाही का मंजर देखते हैं. कब किस क्षेत्र में बांध टूट जाए, लोगों के मन में डर समाया रहता है.

यह भी पढ़ें- बोले मंत्री संजय झा- 'बाढ़ को लेकर विभाग मुस्तैद, गंडक में फ्लैश फ्लड से हालात गंभीर'

क्यों कहते हैं शोक
कोसी को बिहार का शोक यूं ही नहीं कहते. पिछले 40 साल में जितनी बर्बादी बिहार में बाढ़ की वजह से कोसी नदी ने की है, उतनी देश में शायद किसी और नदी ने नहीं की. बिहार के सुपौल में नेपाल बॉर्डर पर भीम नगर के रास्ते प्रवेश करने वाली कोसी नदी सहरसा होते हुए करीब 260 किलोमीटर का रास्ता तय करने के बाद कटिहार के कुर्सेला में गंगा नदी में समाहित हो जाती है.

देखें रिपोर्ट

260 किमी का पूरा करती है सफर
कोसी के 260 किमी के सफर में सहरसा, सुपौल और मधेपुरा के अलावा सीमांचल का पूरा इलाका शामिल हो जाता है. जिसमें कटिहार, किशनगंज और पूर्णिया, अररिया के अलावा मिथिलांचल के दरभंगा, मधुबनी और खगड़िया भी शामिल हैं. इस पूरे इलाके को कोसी बेल्ट कहते हैं. इस पूरे इलाके में जमीन काफी उपजाऊ होती है. जिन से लाखों लोगों की रोजी-रोटी चलती है. लेकिन यही कोसी नदी मॉनसून के वक्त इन लाखों लोगों के लिए जानलेवा बन जाती है.

यह भी पढ़ें- ये है बिहार की जमीनी हकीकत: नहर तो तैयार है, पर सिंचाई के लिए पानी नहीं

क्या है इसकी वजह
हिमालय से निकलने वाली कोसी नेपाल के पहाड़ी इलाकों से भारी मात्रा में सिल्ट (गाद) लेकर आती है. इस सिल्ट की वजह से कोसी नदी की सतह ऊंची होती गई. जिसकी वजह से पानी बढ़ने पर नदी अपनी सीमाएं तोड़कर आसपास के इलाकों में फैल जाती है. एक और बड़ी वजह कोसी तटबंध का निर्माण है. जिसे लेकर विश्लेषक भी कहते हैं कि करीब सवा दो लाख हेक्टेयर जमीन को बचाने के लिए कुर्सी पर बांध तो बना दिया गया, लेकिन इसकी कीमत करीब 4,00,000 हेक्टेयर जमीन बर्बाद करके चुकानी पड़ी.

कोसी नदी की बाढ़ में डूबा गांव
कोसी नदी की बाढ़ में डूबा गांव

कोसी बांध का भी नहीं हुआ कोई फायदा
1955 से 1962 के बीच कोसी बांध का निर्माण हुआ. नेपाल से आने वाली सप्तकोसी के बहाव को रोकने के लिए. लेकिन इसका आज तक कोई फायदा नहीं हुआ है. उल्टे इसकी मरम्मत पर हजारों करोड़ों रुपए खर्च हो चुके हैं. वर्ष 2008 में जो बांध टूटने से बाढ़ आई थी, वह अब इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुका है. जिसमें करीब 15,000 करोड़ का नुकसान हुआ और सैकड़ों लोगों की जान चली गई.

नेपाल के कोसी बराज में उफनाता पानी
नेपाल के कोसी बराज में उफनाता पानी

यह भी पढ़ें- कोसी नदी पर 1478.4 करोड़ की लागत से फोर लेन पुल का निर्माण कार्य शुरू

जानें... कोसी नदी का व्यवहार

  • सन कोसी, तमा कोसी, दूध कोसी, इंद्रावती, लिखू, अरुण और तमार नदी का है संगम
  • संगम से ही इसका नाम पड़ा 'सप्तकोसी'
  • कोसी नदी दिशा बदलने में है माहिर
  • पिछले 200 वर्षों में कोसी ने पूर्व से पश्चिम की ओर 120 किलोमीटर का मार्ग बदला
  • हिमालय की ऊंची पहाड़ियों से तरह-तरह से अवसाद (बालू, कंकड़-पत्थर) अपने साथ लाती है कोसी
  • यह नदी निरंतर फैलाती है अपना क्षेत्र
  • उत्तरी बिहार के मैदानी इलाकों पर जाती यह नदी पूरे क्षेत्र को बनाती है उपजाऊ
  • नेपाल में कोसी बेल्ट है विराटनगर
  • बिहार में कोसी बेल्ट कहलाता है कटिहार और पूर्णिया
  • कोसी के कहर को साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु ने अपने रिपोर्ताज में बखूबी किया है बयां
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कोसी नदी पर बना है बांध

  • कोसी नदी पर सन् 1962 में बनाया गया था एक बांध
  • बांध भारत-नेपाल सीमा के पास नेपाल में है स्थित
  • पानी के बहाव के नियन्त्रण के लिए बनाए गए 52 फाटक
  • नियंत्रित करने का कार्य करते हैं भारत के अधिकारी
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टूट चुका है कोसी पर बना बांध

  • अभियंताओं के अनुसार यह नौ लाख घन फुट प्रति सेकेंड (क्यूसेक) पानी के बहाव को झेलने में था सक्षम
  • बांध की आयु आंकी गई थी 25 वर्ष, पहली बार 1963 में टूटा था बांध
  • 1968 में यह 5 जगहों पर टूटा
  • उस वक्त नदी में पानी का बहाव था 9 लाख 13 हजार क्यूसेक
  • 1991 में नेपाल के जोगनिया में भी टूटा
  • 2008 में यह नेपाल के ही कुसहा में टूटा
  • वर्ष 2008 में जब यह टूटा तो इसमें बहाव थे महज 1 लाख 44 हजार क्यूसेक
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कोसी के जद में आते हैं कई इलाके

  • कोसी के मार्ग बदलने से हर साल जद में आते हैं कई नए इलाके
  • पूर्णिया, अररिया, मधेपुरा, सहरसा, कटिहार जिलों में कोसी की हैं कई शाखाएं
  • बिहार में महानंदा और गंगा में मिलती है कोसी
  • इन बड़ी नदियों में मिलने से कई क्षेत्रों में बढ़ जाता है पानी का दबाव
  • दबाव के बढ़ने से ही उत्पन्न हो जाता है बाढ़ और जलभराव का खतरा
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धार्मिक ग्रंथों के अनुसार कोसी

  • महर्षि विश्वामित्र से है कोसी का संबंध
  • हिन्दू ग्रंथ महाभारत में इसे 'कोशिकी' कहा गया
  • इस नदी को 'सप्तकोसी' भी कहा जाता है
  • पौराणिक मान्यता के अनुसार इसी नदी किनारे विश्वामित्र को मिला था ऋषि का दर्जा
  • कुशिक ऋषि के शिष्य थे विश्वामित्र
  • ऋग्वेद में उन्हें कहा गया है कौशिक

ब्रिटिश सरकार के वक्त भी चली थी बांध बनाने की बात

  • कोसी नदी पर बांध बनाने का काम ब्रिटिश शासन के समय से था विचाराधीन
  • ब्रिटिश सरकार को थी प्राकृतिक बहाव के कारण बांध के टूटने की चिंता
  • तभी ब्रिटिश सरकार ने तटबंध नहीं बनाने का लिया था फैसला
  • बांध टूटने से भरपाई करना होता ज्यादा मुश्किल
  • आजादी के बाद 1954 में भारत सरकार ने नेपाल के साथ किया समझौता
  • 1962 में बांध बनकर हुआ तैयार

यह भी पढ़ें- 87 साल बाद एक हुई दो भागों में बटी मिथिला, नए कोसी रेलपुल से जुड़े दरभंगा और सहरसा, बरसात के पहले शुरू होगी पैसेंजर ट्रेन सेवा

नदी जोड़ परियोजना पर हो विचार

'कोसी पर हाई डैम इस वक्त की सबसे बड़ी जरूरत है. इसके साथ-साथ नदी में जो सिल्ट जमा है, उसकी सफाई का इंतजाम करना होगा. नदी जोड़ परियोजना पर भी सरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए. ताकि जिन नदियों में पानी कम हो, उन नदियों तक कोसी का पानी डाइवर्ट करके आपदा में अवसर बनाया जा सके.' -डॉक्टर संजय कुमार, आर्थिक सामाजिक विश्लेषक

'अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रयास के साथ-साथ राज्य सरकार को अपने स्तर से तमाम चीजों को गंभीरता से देखना होगा. खासतौर पर नदी में जमा गाद हटाना बेहद जरूरी है. नदी के बहाव क्षेत्र पर भी ध्यान देना होगा. जो कहीं-कहीं काफी संकरा है, तो कहीं बहुत ज्यादा चौड़ा है. जिसकी वजह से परेशानी और ज्यादा बढ़ जाती है.' -डॉक्टर विद्यार्थी, विकास विशेषज्ञ

'नेपाल से आने वाली पानी को लेकर अब तक कोई सहयोग नेपाल की तरफ से नहीं किया गया है. केंद्र सरकार की तरफ से 2004 में ही डैम बनाने के लिए डीपीआर बनाने पर फैसला हुआ है. नेपाल के भरोसे नहीं रहकर हम कोई ना कोई रास्ता जरूर निकालेंगे.' -संजय झा, जल संसाधन मंत्री

यह भी पढ़ें- खगड़िया: तेलिहार गांव में कोसी कटाव के कारण दहशत में लोग, प्रशासन से मदद की मांग

यह भी पढ़ें- खगड़िया में बाढ़ से जनजीवन अस्त-व्यस्त, सरकार से मदद की आस में ग्रामीण

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