पटना: स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (Spinal Muscular Atrophy) वन बीमारी इन दिनों महंगे इलाज की वजह से काफी सुर्खियों में है. यह एक रेयर जेनेटिक बीमारी है. इसके इलाज में जोल्गेन्स्मा (Zolgensma) नाम के इंजेक्शन का इस्तेमाल किया जाता है. इसके एक डोज की कीमत 16 करोड़ रुपये है.
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बीमारी के इलाज में इंजेक्शन के सिर्फ एक डोज का ही उपयोग होता है, लेकिन एक डोज की कीमत इतनी अधिक है कि लोगों के लिए इतना पैसा जुटा पाना मुश्किल है. ऐसे में लोग क्राउड फंडिंग का सहारा लेते हैं. हाल ही में इस बीमारी का एक मामला टीवी शो केबीसी (कौन बनेगा करोड़पति ) में कोरियोग्राफर फराह खान ने शो के होस्ट अमिताभ बच्चन के सामने उठाया है.
डॉक्टर बताते हैं कि यह एक जेनेटिक डिसऑर्डर है. इससे ग्रसित बच्चे की मांसपेशियां कमजोर होना शुरू हो जाती हैं. धीरे-धीरे मांसपेशियां काम करना बंद कर देती हैं. आगे चलकर स्थिति ऐसी आ जाती है कि बच्चा बिना किसी सपोर्ट के सांस तक नहीं ले पाता है. बीमारी के शुरुआती स्टेज में बच्चे के गर्दन का कंट्रोल खत्म हो जाता है और फिर धीरे-धीरे हाथ-पैर ढीले पड़ने लगते हैं. इस बीमारी का ट्रीटमेंट जीन थेरेपी से होता है. स्वस्थ जेनेटिक मॉलिक्यूल को रीड की हड्डी में इंजेक्ट किया जाता है. यह कमजोर पड़ चुके मांसपेशियों में फिर से नई जान डालता है.
पटना के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. दिवाकर तेजस्वी ने कहा, 'इस बीमारी से ग्रसित बच्चे की अधिकतम आयु 2 से ढाई साल होती है. बच्चे की जान बचाने के लिए जरूरी है कि 2 साल की आयु पूरी होने से पहले उसे जोल्गेन्स्मा इंजेक्शन का डोज दे दिया जाए. जितना पहले बच्चे को यह इंजेक्शन दिया जाएगा उतना ज्यादा बच्चे के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होगा. अगर शरीर के सभी अंगों की मांसपेशियां कमजोर पड़ गईं तो इस इंजेक्शन का कोई महत्व नहीं रह जाता है.'
डॉ. दिवाकर तेजस्वी ने कहा, 'अभी तक यह देखने को मिला है कि इस बीमारी में बच्चे को इंजेक्शन का एक डोज ही कारगर है. विशेष परिस्थिति में बच्चे को दूसरे डोज की भी जरूरत पड़ सकती है. हालांकि अभी तक ऐसे मामले नहीं आए हैं जिसमें बच्चे को इंजेक्शन का दूसरा डोज देने की जरूरत हो. जीन थेरेपी का यह इलाज अभी काफी नया है. ऐसे मामलों में अभी और स्टडी की जरूरत है कि आगे चलकर क्या बच्चे को फिर से इंजेक्शन की आवश्यकता पड़ती है या नहीं.'
"जोल्गेन्स्मा इंजेक्शन जीन मॉडिफाई तकनीक से तैयार किया हुआ एक मॉलिक्यूल है जो स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी से पीड़ित बच्चों के कमजोर पड़ती मांसपेशियों को मजबूत करता है. इस इंजेक्शन की कीमत बहुत अधिक है. इंजेक्शन बनाने वाली कंपनी नोवर्टिस के पास इसका पेटेंट है. कंपनी का कहना है कि जीन बेस्ड टेक्निक डेवलप करने में काफी वर्षों का समय लगा है और काफी लागत आई है. इसके चलते इंजेक्शन की कीमत अधिक रखी गई है. यह इंजेक्शन एफडीए अप्रूव्ड है. कई सारी कंपनियां इस जीन मॉडिफाइड टेक्निक पर काम कर रही हैं. ऐसा संभव है कि निकट भविष्य में इस इंजेक्शन की कीमत में गिरावट आए."- डॉ. दिवाकर तेजस्वी, वरिष्ठ चिकित्सक
बताते चलें कि बीते दिनों पटना के आलोक सिंह और नेहा सिंह के 10 माह की बेटे आयांश को स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी 1 की दुर्लभ बीमारी डिटेक्ट हुई. एनआईएमएचएएनएस (National Institute of Mental Health and Neuro Sciences) बेंगलुरु में जांच के दौरान इस बीमारी का पता चला. बीमारी के ट्रीटमेंट के लिए जब डॉक्टरों ने बताया कि बच्चे को 16 करोड़ रुपये के इंजेक्शन के एक डोज की जरूरत होगी तो आलोक सिंह और नेहा सिंह के पैरों तले जमीन खिसक गई. चिकित्सकों की कमेटी ने क्राउडफंडिंग का सुझाव दिया और क्राउडफंडिंग के लिए अनुमति का एक लेटर उपलब्ध कराया.
इसके बाद पटना में क्राउडफंडिंग की मुहिम शुरू हुई. 1 महीने में लगभग 6 करोड़ रुपये क्राउडफंडिंग से जमा हो गए, लेकिन अब मुहिम धीमी पड़ गई है. दो-महीने बाद हालत यह है कि अब तक 7.15 करोड़ की राशि जमा हो पाई है. आयांश के पिता आलोक सिंह एक मामले में झारखंड के जेल में बंद हैं. आयांश की मां नेहा अपने बच्चे की जान बचाने के लिए फंड इकट्ठा कर रहीं हैं. आयांश 10 दिनों से वायरल फीवर से ग्रसित था. उसे प्राइवेट अस्पताल में एडमिट करना पड़ा. शुक्रवार को वह अस्पताल से डिस्चार्ज हुआ है, लेकिन अभी भी ऑक्सीजन के सपोर्ट पर है.
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