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जानें पुनपुन को क्यों कहते हैं आदि गंगा और कब से शुरू हुआ पिंडदान - Punpun River Name Adi Ganga

पितृपक्ष के बारे में पुराणों में कहा गया है कि ब्रह्मदेव के मुख से जब अनायास पुनः पुनः शब्द निकला तो ब्रह्मांड से एक जल स्रोत पृथ्वी पर आया,A water source from the universe came to earth जिसका नाम पुनपुन पड़ा और वह आदि गंगा कहलाया. पुनपुन गंगा का चौथा स्वरूप है. उसी समय से पुनपुन नदी पर पिंडदान की शुरुआत हुई. जानिए ईटीवी भारत पर इसकी पूरी कहानी को..

जानें पुनपुन को क्यों कहते है आदि गंगा और कैसे शुरू हुआ पिंडदान
जानें पुनपुन को क्यों कहते है आदि गंगा और कैसे शुरू हुआ पिंडदान
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Published : Sep 7, 2022, 12:54 PM IST

Updated : Sep 7, 2022, 3:07 PM IST

पटना: धरती के स्वरूप और उसके विकास को लेकर सप्त ऋषि एक घने जंगल में तपस्या कर रहे थे, उस वक्त उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मदेव प्रकट हुए तो सभी ऋषि उनके चरण धोने के लिए पानी खोजने लगे. ऐसे में सभी ऋषियों ने अपने-अपने पसीने को एकत्रित कर कमंडल में रखकर चरण धोने की कोशिश की लेकिन बार-बार वह पानी गिर जा रहा था. ऐसे में ब्रह्मदेव के मुख से अनायास पुनः पुनः शब्द निकला और इस शब्द के निकलते ही आकाश से जल का एक स्रोत निकल कर धरती पर आया जिसे पुनपुन नदी के नाम से जाना( A source of water came out on earth which came to be known as Punpun River) जाता है. इसी वजह से इसे आदि गंगा (Pitrupaksha Mela 2022 Punpun is called Adi Ganga) कहा जाता है.

ये भी पढ़ें :-पुनपुन पिंडदान स्थल पर बारिश से चारों तरफ पानी-पानी, पंडा समितियों ने जताई नाराजगी

ब्रह्मा ने सप्त ऋषियों को दिया था आशीर्वाद : ब्रह्मदेव ने सप्त ऋषियों को कहा कि आपकी तपस्या पूर्ण हुई है, आज के बाद जो भी मनुष्य इस नदी तट पर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करेंगे, उनके पिंड का तर्पण संपन्न होगा. तब से पुनपुन नदी के घाट पर पितृपक्ष के अवसर पर पिंडदान का काम शुरू हो जाता है. गरुड़ पुराण में भी ऐसी व्याख्या की गई है. ब्रह्मदेव के आशीर्वाद से ही यहां पर पितृपक्ष शुरुआत हुई थी. भगवान श्रीराम ने भी अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पहले पिंड का तर्पण इसी पुनपुन नदी घाट पर किया था, ऐसी पुराणों में चर्चा है. उसके बाद ही गया के फल्गु नदी तट पर जाकर पिंडदान कर पूरे विधि-विधान का तर्पण किया था. ऐसे में इस पुनपुन नदी घाट को पिंडदान का प्रथम द्वार भी कहा जाता है.

पुनपुन नदी घाट पर 9 से शुरू हो रहा पितृपक्ष मेला : पुनपुन नदी घाट पर इसी 9 सितंबर से पितृपक्ष मेला की शुरुआत होने जा रही है. पुनपुन के महत्व को देखते हुए सरकार ने इसे अंतरराष्ट्रीय पितृपक्ष मेला के रूप में मान्यता दी है, हर साल देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु यहां पिंड का तर्पण करने आते हैं.पुनपुन नदी के उद्गम और इसकी पूरी कहानी पुराणों में वर्णित है. ब्रह्मदेव के मुख से निकले पुनपुन शब्द से पुनपुन नदी का उद्गम हुआ है और यह मां गंगा का चौथा स्वरूप है, इसलिए इसे आदि गंगा कहते हैं.

ये भी पढ़ें :-गया में पितृपक्ष मेला, 5 लाख से अधिक तीर्थयात्रियों ने कराई एडवांस बुकिंग, 8 से 10 लाख श्रद्धालुओं के जुटने की संभावना

" ब्रह्माजी के मुख से जैसे ही पुन: पुन: शब्द निकला वैसे ही ब्रह्मांड से एक जल स्रोत निकला जिसे धरती पर पुनपुन के नाम से जाना गया. ब्रह्मा का वरदान है कि पुनपुन नदी के तट पर जो कोई अपने पितरों की मोक्ष प्राप्ति के लिए पिंडदान करेगा उसके पितृ की मुक्ति हो जाएगी." -आचार्य सुदामा पांडेय, अध्यक्ष, पुनपुन पंडा समिति

पटना: धरती के स्वरूप और उसके विकास को लेकर सप्त ऋषि एक घने जंगल में तपस्या कर रहे थे, उस वक्त उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मदेव प्रकट हुए तो सभी ऋषि उनके चरण धोने के लिए पानी खोजने लगे. ऐसे में सभी ऋषियों ने अपने-अपने पसीने को एकत्रित कर कमंडल में रखकर चरण धोने की कोशिश की लेकिन बार-बार वह पानी गिर जा रहा था. ऐसे में ब्रह्मदेव के मुख से अनायास पुनः पुनः शब्द निकला और इस शब्द के निकलते ही आकाश से जल का एक स्रोत निकल कर धरती पर आया जिसे पुनपुन नदी के नाम से जाना( A source of water came out on earth which came to be known as Punpun River) जाता है. इसी वजह से इसे आदि गंगा (Pitrupaksha Mela 2022 Punpun is called Adi Ganga) कहा जाता है.

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ब्रह्मा ने सप्त ऋषियों को दिया था आशीर्वाद : ब्रह्मदेव ने सप्त ऋषियों को कहा कि आपकी तपस्या पूर्ण हुई है, आज के बाद जो भी मनुष्य इस नदी तट पर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करेंगे, उनके पिंड का तर्पण संपन्न होगा. तब से पुनपुन नदी के घाट पर पितृपक्ष के अवसर पर पिंडदान का काम शुरू हो जाता है. गरुड़ पुराण में भी ऐसी व्याख्या की गई है. ब्रह्मदेव के आशीर्वाद से ही यहां पर पितृपक्ष शुरुआत हुई थी. भगवान श्रीराम ने भी अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पहले पिंड का तर्पण इसी पुनपुन नदी घाट पर किया था, ऐसी पुराणों में चर्चा है. उसके बाद ही गया के फल्गु नदी तट पर जाकर पिंडदान कर पूरे विधि-विधान का तर्पण किया था. ऐसे में इस पुनपुन नदी घाट को पिंडदान का प्रथम द्वार भी कहा जाता है.

पुनपुन नदी घाट पर 9 से शुरू हो रहा पितृपक्ष मेला : पुनपुन नदी घाट पर इसी 9 सितंबर से पितृपक्ष मेला की शुरुआत होने जा रही है. पुनपुन के महत्व को देखते हुए सरकार ने इसे अंतरराष्ट्रीय पितृपक्ष मेला के रूप में मान्यता दी है, हर साल देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु यहां पिंड का तर्पण करने आते हैं.पुनपुन नदी के उद्गम और इसकी पूरी कहानी पुराणों में वर्णित है. ब्रह्मदेव के मुख से निकले पुनपुन शब्द से पुनपुन नदी का उद्गम हुआ है और यह मां गंगा का चौथा स्वरूप है, इसलिए इसे आदि गंगा कहते हैं.

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" ब्रह्माजी के मुख से जैसे ही पुन: पुन: शब्द निकला वैसे ही ब्रह्मांड से एक जल स्रोत निकला जिसे धरती पर पुनपुन के नाम से जाना गया. ब्रह्मा का वरदान है कि पुनपुन नदी के तट पर जो कोई अपने पितरों की मोक्ष प्राप्ति के लिए पिंडदान करेगा उसके पितृ की मुक्ति हो जाएगी." -आचार्य सुदामा पांडेय, अध्यक्ष, पुनपुन पंडा समिति

Last Updated : Sep 7, 2022, 3:07 PM IST
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