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Republic Day: संविधान सभा के प्रथम अध्यक्ष और बिहार के 'जनक' थे डॉ सच्चिदानंद सिन्हा, जानें इतिहास - डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा

डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा बिहार की महान विभूतियों में शामिल हैं. आधुनिक बिहार के शिल्पकार सच्चिदानंद सिन्हा की ख्याति राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की थी. बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉक्टर सिन्हा ने बिहार में शिक्षा के स्तर को ऊपर ले जाने के लिए महत्वपूर्ण योगदान भी दिया. सच्चिदानंद सिन्हा संविधान सभा के प्रथम अध्यक्ष थे. जिनके मार्गदर्शन में बिहार राज्य बंगाल से अलग होकर बना (Creator of Modern Bihar).

Know who was Doctor Sachchidanand Sinha
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Published : Jan 25, 2023, 3:15 PM IST

वीडियो में जानें, कौन थे डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा ?

पटना : देश की आजादी से लेकर अब तक भारत के निर्माण में बिहार के कई सपूतों का योगदान रहा है, उन्हीं सपूतों में एक थे डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा. देश आज 74वां गणतंत्र दिवस मना रहा है. ऐसे में संविधान सभा के पहले अध्यक्ष सच्चिदानंद सिन्हा को देश याद कर रहा है. शाहाबाद के मुरार में जन्मे डॉ सच्चिदानंद सिन्हा किसी परिचय के मोहताज नहीं है. वो एक ऐसे व्यक्तित्व थे जिनके अंदर राजनेता, शिक्षक, अधिवक्ता और पत्रकार के गुण थे. यही नहीं, डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा को संविधान सभा का प्रथम अध्यक्ष थे. उन्ही की देखरेख में बिहार को बंगाल से पृथक राज्य के रूप अस्तित्व में आया.

ये भी पढ़ें -आरके सिन्हा ने की सच्चिदानंद सिन्हा को 'भारत रत्न' देने की मांग, कहा- गंभीरता दिखाए बिहार सरकार


बिहार के निर्माता: भारत की संविधान सभा के प्रथम अध्यक्ष सच्चिदानंद सिन्हा बिहार के महान विभूतियों में शामिल हैं. डॉ सच्चिदानंद सिन्हा का जन्म 10 नवंबर 1871 को वर्तमान बक्सर जिले के मुरार में हुआ था. सच्चिदानंद सिन्हा ने वकालत की पढ़ाई लंदन से की. 1910 के चुनाव में डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा ने महाराजा को परास्त कर केंद्रीय विधान परिषद में प्रतिनिधि निर्वाचित होने का गौरव हासिल किया. वह प्रथम भारतीय थे जिन्हें एक प्रांत का राज्यपाल और हाउस ऑफ लॉर्ड्स का सदस्य बनने का श्रेय हासिल हुआ. वे प्रिवी काउंसिल के सदस्य भी थे.

बंगाल-बिहार सीमा विवाद: डॉ सच्चिदानंद सिन्हा के लिए वकालत उनका पेशा रहा, लेकिन उससे भी पहले वह बिहार निर्माण के लिए पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया करते थे. पत्रकारिता उनके साथ बिहार निर्माण एजेंडे के लिए उन्होंने पत्रकारिता को सशक्त साधन बनाया. बहुत कम लोगों को यह मालूम होगा कि 1947-48 के बीच बंगाल ने एक बार फिर सीमा विवाद की शुरुआत की थी. विवाद के निपटारे के लिए बिहार के तत्कालीन सरकार ने बिहार कमीशन का गठन किया. इसके तहत बनी ड्राफ्टिंग कमिटी के इंचार्ज भी सच्चिदानंद सिन्हा बनाए गए. बिहार की सीमा से बंगाल को केवल पुरुलिया जिला हासिल हो सका. जबकि बंगाल का दावा बोकारो, धनबाद तक अपनी सीमा बढ़ाने का था.

सच्चिदानंद की अध्यक्षता में बना बिहार: 13 फरवरी 1950 को डॉ सच्चिदानंद सिन्हा ने संविधान की मूल प्रति पर अपना हस्ताक्षर करते हुए वक्तव्य दिया था. उन्होंने कहा था कि मैं व्यक्तिगत तौर पर यह समझता हूं कि बिहार के इतिहास में यह एक महान घटना है. संविधान सभा का काम दिल्ली में 6 दिसंबर 1946 को ऐसे व्यक्ति की अध्यक्षता में शुरु हुआ जो बिहार में पैदा हुआ था. उसका काम पूरा हुआ ऐसे व्यक्ति के मार्गदर्शन और नियंत्रण में जो बिहार में पैदा हुआ था और बिहार में ही उसका पालन-पोषण हुआ. आज उस कदम की समाप्ति भी एक ऐसे व्यक्ति द्वारा हो रही है जो बिहार में पैदा हुआ. इस राज्य के प्रत्येक नागरिक के लिए यह बड़े गौरव और संतोष की बात थी.


सिन्हा एक पत्रकार: डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा 'बिहार टाइम्स' से 'बिहारी तक' की यात्रा में पत्रकारिता उनके मिशन की तरह रही. उसके बाद ही उन्होंने 'सर्चलाइट' से लेकर 'इंडियन नेशन' तक और लीडर से लेकर 'हिंदुस्तान रिव्यू' तक उनके जीवन के आखिरी क्षणों तक साथ रहे. डॉ सच्चिदानंद सिन्हा को इलाहाबाद विश्वविद्यालय द्वारा डी लिट की उपाधि दी गई. पटना विश्वविद्यालय द्वारा भी उन्हें डिलीट की उपाधि दी गई. बनारस विश्वविद्यालय द्वारा भी सच्चिदानंद सिन्हा को 1948 में डिलीट की उपाधि से नवाजा गया.



क्या कहते हैं इतिहासकार: इतिहासकार डॉ संजीव कुमार का मानना है कि- ''डॉ सच्चिदानंद सिन्हा बिहार के महान विभूतियों में शामिल हैं. उन्होंने आधुनिक बिहार को मूर्त रूप देने का काम किया. पत्रकारिता को उन्होंने माध्यम बनाया और उनके अंदर पत्रकार, राजनेता और विधि विशेषज्ञ के तमाम गुण थे.'' शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य के लिए भी सच्चिदानंद सिन्हा को बिहार में जाना जाता है. बिहार में सिन्हा लाइब्रेरी आज भी इनके समिति में छात्रों के बीच ज्ञान की रोशनी फैला रहा है.


शिक्षक और छात्रों के नजरिए से सच्चिदानंद सिन्हा: पेशे से शिक्षक सत्येंद्र कुमार का मानना है कि ''डॉ सच्चिदानंद सिन्हा महान शिक्षाविद थे. उन्होंने शिक्षा के स्तर को ऊंचा करने के लिए महत्वपूर्ण कार्य किया राजधानी पटना में 2 एकड़ से ज्यादा जमीन उन्होंने लाइब्रेरी के लिए बीच शहर में दान कर दी. सैकड़ों छात्र हर रोज लाइब्रेरी में आकर अध्ययन करते हैं.'' लाइब्रेरी में पढ़ाई करने के लिए आने वाले छात्र भी सच्चिदानंद सिन्हा को महान नेताओं में शुमार करते हैं. बिहार को बंगाल से मुक्ति दिलाकर अलग राज्य बनाने वालों में डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा को बिहार हमेशा याद रखेगा.

''सच्चिदानंद सिन्हा आज के नेताओं की तरह नहीं हैं. जिनके कथनी और करनी में फर्क है. सच्चिदानंद सिन्हा ने बिहार के लिए जो कुछ किया वह अविस्मरणीय है खास तौर पर छात्र उनके कर्जदार है.''- रोहन, छात्र

वीडियो में जानें, कौन थे डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा ?

पटना : देश की आजादी से लेकर अब तक भारत के निर्माण में बिहार के कई सपूतों का योगदान रहा है, उन्हीं सपूतों में एक थे डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा. देश आज 74वां गणतंत्र दिवस मना रहा है. ऐसे में संविधान सभा के पहले अध्यक्ष सच्चिदानंद सिन्हा को देश याद कर रहा है. शाहाबाद के मुरार में जन्मे डॉ सच्चिदानंद सिन्हा किसी परिचय के मोहताज नहीं है. वो एक ऐसे व्यक्तित्व थे जिनके अंदर राजनेता, शिक्षक, अधिवक्ता और पत्रकार के गुण थे. यही नहीं, डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा को संविधान सभा का प्रथम अध्यक्ष थे. उन्ही की देखरेख में बिहार को बंगाल से पृथक राज्य के रूप अस्तित्व में आया.

ये भी पढ़ें -आरके सिन्हा ने की सच्चिदानंद सिन्हा को 'भारत रत्न' देने की मांग, कहा- गंभीरता दिखाए बिहार सरकार


बिहार के निर्माता: भारत की संविधान सभा के प्रथम अध्यक्ष सच्चिदानंद सिन्हा बिहार के महान विभूतियों में शामिल हैं. डॉ सच्चिदानंद सिन्हा का जन्म 10 नवंबर 1871 को वर्तमान बक्सर जिले के मुरार में हुआ था. सच्चिदानंद सिन्हा ने वकालत की पढ़ाई लंदन से की. 1910 के चुनाव में डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा ने महाराजा को परास्त कर केंद्रीय विधान परिषद में प्रतिनिधि निर्वाचित होने का गौरव हासिल किया. वह प्रथम भारतीय थे जिन्हें एक प्रांत का राज्यपाल और हाउस ऑफ लॉर्ड्स का सदस्य बनने का श्रेय हासिल हुआ. वे प्रिवी काउंसिल के सदस्य भी थे.

बंगाल-बिहार सीमा विवाद: डॉ सच्चिदानंद सिन्हा के लिए वकालत उनका पेशा रहा, लेकिन उससे भी पहले वह बिहार निर्माण के लिए पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया करते थे. पत्रकारिता उनके साथ बिहार निर्माण एजेंडे के लिए उन्होंने पत्रकारिता को सशक्त साधन बनाया. बहुत कम लोगों को यह मालूम होगा कि 1947-48 के बीच बंगाल ने एक बार फिर सीमा विवाद की शुरुआत की थी. विवाद के निपटारे के लिए बिहार के तत्कालीन सरकार ने बिहार कमीशन का गठन किया. इसके तहत बनी ड्राफ्टिंग कमिटी के इंचार्ज भी सच्चिदानंद सिन्हा बनाए गए. बिहार की सीमा से बंगाल को केवल पुरुलिया जिला हासिल हो सका. जबकि बंगाल का दावा बोकारो, धनबाद तक अपनी सीमा बढ़ाने का था.

सच्चिदानंद की अध्यक्षता में बना बिहार: 13 फरवरी 1950 को डॉ सच्चिदानंद सिन्हा ने संविधान की मूल प्रति पर अपना हस्ताक्षर करते हुए वक्तव्य दिया था. उन्होंने कहा था कि मैं व्यक्तिगत तौर पर यह समझता हूं कि बिहार के इतिहास में यह एक महान घटना है. संविधान सभा का काम दिल्ली में 6 दिसंबर 1946 को ऐसे व्यक्ति की अध्यक्षता में शुरु हुआ जो बिहार में पैदा हुआ था. उसका काम पूरा हुआ ऐसे व्यक्ति के मार्गदर्शन और नियंत्रण में जो बिहार में पैदा हुआ था और बिहार में ही उसका पालन-पोषण हुआ. आज उस कदम की समाप्ति भी एक ऐसे व्यक्ति द्वारा हो रही है जो बिहार में पैदा हुआ. इस राज्य के प्रत्येक नागरिक के लिए यह बड़े गौरव और संतोष की बात थी.


सिन्हा एक पत्रकार: डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा 'बिहार टाइम्स' से 'बिहारी तक' की यात्रा में पत्रकारिता उनके मिशन की तरह रही. उसके बाद ही उन्होंने 'सर्चलाइट' से लेकर 'इंडियन नेशन' तक और लीडर से लेकर 'हिंदुस्तान रिव्यू' तक उनके जीवन के आखिरी क्षणों तक साथ रहे. डॉ सच्चिदानंद सिन्हा को इलाहाबाद विश्वविद्यालय द्वारा डी लिट की उपाधि दी गई. पटना विश्वविद्यालय द्वारा भी उन्हें डिलीट की उपाधि दी गई. बनारस विश्वविद्यालय द्वारा भी सच्चिदानंद सिन्हा को 1948 में डिलीट की उपाधि से नवाजा गया.



क्या कहते हैं इतिहासकार: इतिहासकार डॉ संजीव कुमार का मानना है कि- ''डॉ सच्चिदानंद सिन्हा बिहार के महान विभूतियों में शामिल हैं. उन्होंने आधुनिक बिहार को मूर्त रूप देने का काम किया. पत्रकारिता को उन्होंने माध्यम बनाया और उनके अंदर पत्रकार, राजनेता और विधि विशेषज्ञ के तमाम गुण थे.'' शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य के लिए भी सच्चिदानंद सिन्हा को बिहार में जाना जाता है. बिहार में सिन्हा लाइब्रेरी आज भी इनके समिति में छात्रों के बीच ज्ञान की रोशनी फैला रहा है.


शिक्षक और छात्रों के नजरिए से सच्चिदानंद सिन्हा: पेशे से शिक्षक सत्येंद्र कुमार का मानना है कि ''डॉ सच्चिदानंद सिन्हा महान शिक्षाविद थे. उन्होंने शिक्षा के स्तर को ऊंचा करने के लिए महत्वपूर्ण कार्य किया राजधानी पटना में 2 एकड़ से ज्यादा जमीन उन्होंने लाइब्रेरी के लिए बीच शहर में दान कर दी. सैकड़ों छात्र हर रोज लाइब्रेरी में आकर अध्ययन करते हैं.'' लाइब्रेरी में पढ़ाई करने के लिए आने वाले छात्र भी सच्चिदानंद सिन्हा को महान नेताओं में शुमार करते हैं. बिहार को बंगाल से मुक्ति दिलाकर अलग राज्य बनाने वालों में डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा को बिहार हमेशा याद रखेगा.

''सच्चिदानंद सिन्हा आज के नेताओं की तरह नहीं हैं. जिनके कथनी और करनी में फर्क है. सच्चिदानंद सिन्हा ने बिहार के लिए जो कुछ किया वह अविस्मरणीय है खास तौर पर छात्र उनके कर्जदार है.''- रोहन, छात्र

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