पटना: बिहार में विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के साथ ही सरकार गठन की तैयारियां शुरू हो गई हैं. इस बीच खबर है कि कामेश्वर चौपाल को बिहार का उपमुख्यमंत्री बनाया जा सकता है. यह सवाल जब खुद कामेश्वर चौपाल से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि 'पार्टी का कार्यकर्ता हूं, पार्टी जो भी जिम्मेदारी देगी मुझे स्वीकार है.'
30 साल पहले राम मंदिर की नींव दलित समाज से आने वाले कामेश्वर चौपाल ने रखी थी. कामेश्वर चौपाल मूल रूप से बिहार के सुपौल जिले के कमरैल गांव के निवासी हैं. यह कोसी का इलाका है. 24 अप्रैल 1956 में जन्मे कामेश्वर चौपाल ने जेएन कॉलेज मधुबनी से स्नातक की परीक्षा पास करने के बाद मिथिला विवि दरभंगा से 1985 में एमए की डिग्री ली है. बिहार में चौपाल जाति अनुसूचित जाति की श्रेणी में आती है. पान और खतवा इसकी दो उप जातियां भी हैं.
कामेश्वर चौपाल ने रखी थी पहली ईंट
1989 में राम मंदिर के शिलान्यास के लिए अयोध्या में विहिप के कामेश्वर चौपाल ने पहली ईंट रखी थी. उस वक्त वे विहिप के संयुक्त सचिव हुआ करते थे. बाद में बिहार से बीजेपी के एमएलसी भी रहे. चौपाल श्रीराम लोक संघर्ष समिति के बिहार के संजोयक और बीजेपी के प्रदेश महामंत्री भी रह चुके हैं.
1989 में रखी गई थी मंदिर की नींव
नवंबर 1989 में राम मंदिर के शिलान्यास के लिए अयोध्या में विहिप के कामेश्वर चौपाल ने पहली ईंट रखी थी. अयोध्या में शिलान्यास का कार्यक्रम रखा गया था. कामेश्वर चौपाल तब अयोध्या में ही थे. उन्हें सूचना मिली कि, शिलान्यास के लिए उन्हें चुना गया है. शिलान्यास के वक्त विहिप के बड़े-बड़े नेता वहां मौजूद थे. राम मंदिर की नींव रखने के बाद कामेश्वर चौपाल ने तब कहा था, ''जैसे श्रीराम को शबरी ने बेर खिलाया था, वैसा ही मान-सम्मान उनको भी मिला है.''
कामेश्वर चौपाल का सियासी सफर
कामेश्वर चौपाल राम विलास पासवान के खिलाफ भी चुनाव लड़ चुके हैं, हालांकि तब उनको हार मिली थी. 2002 में वे बिहार विधान परिषद के सदस्य बने. 2014 में पप्पू यादव की पत्नी रंजीता रंजन के खिलाफ चुनाव लड़े, लेकिन कामयाबी नहीं मिली. हालांकि, शिलान्यास कार्यक्रम के बाद जब कामेश्वर चौपाल देश भर में चर्चा में आ गए थे तब बीजेपी ने उन्हें विधिवत पार्टी में शामिल किया था.
- साल 1991 में रोसड़ा सुरक्षित लोकसभा सीट से बीजेपी ने अपना उम्मीदवार बनाया. लेकिन चौपाल चुनाव हार गए.
- साल 1995 में वे बेगूसराय की बखरी विधानसभा सीट से भी चुनाव लड़े. लेकिन यहां भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा.
- 2002 में कामेश्वर चौपाल बिहार विधान परिषद के सदस्य बने और 2014 तक वो विधान परिषद के सदस्य रहे.
- 2014 में पार्टी ने कामेश्वर चौहान को सुपौल लोकसभा का उम्मीदवार बनाया. लेकिन वे सुपौल में भी चुनाव हार गए.