पटनाः रंगों का त्योहार होली को लेकर के लोगों में अभी भी असमंजस बना हुआ है कि होलिका दहन कब होगा. ऐसे में ज्योतिषचार्य डॉ श्रीपति त्रिपाठी ने कहा कि होलिका तीन शर्तों का पालन करते हुए किया जाता है. पहला फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा हो, दूसरा रात का समय हो और भद्रा नक्षत्र ना हो, 6 मार्च को दिन में 3:57 पर से पूर्णिमा तिथि प्रारंभ हो रही है और इसी के साथ भद्रा भी लग जा रही है जो कि रात्रि में 4:49 तक रहेगी. उन्होंने कहा कि हिंदू मान्यता में भद्रा पक्ष में होलिका दहन का विधान है. ऐसे में उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा की 6 मार्च को 12 12:00 बज कर 23:00 मिनट से लेकर 1:35 तक होलिका दहन का शुभ मुहूर्त है.
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8 मार्च को मनाई जाएगी होली ः उन्होंने बताया कि काशी पंचांग के अनुसार मंगलवार 7 मार्च को होली मनाई जाएगी और कुछ जगहों पर 8 मार्च को होली मनाई जाएगी. उन्होंने साफ तौर पर कहा कि रंगों का त्योहार होली को लेकर जो लोगों में संशय बना हुआ है इसलिए मैं यह बता दूं कि 7 मार्च को होलिका दहन और 8 मार्च को होली मनाई जाएगी. उन्होंने कहा कि अलग-अलग पंचांग के अनुसार समय में थोड़ा सा बदलाव है इसलिए लोगों में असमंजस की स्थिति बनी हुई है. उन्होंने कहा कि होली और होलिका दहन का विशेष महत्व है. बुराई पर अच्छाई की जीत को लेकर होली त्योहार मनाया जाता है.
"होली को लेकर जो लोगों में संशय बना हुआ है इसलिए मैं यह बता दूं कि 7 मार्च को होलिका दहन और 8 मार्च को होली मनाई जाएगी. 6 मार्च को 12 12:00 बज कर 23:00 मिनट से लेकर 1:35 तक होलिका दहन का शुभ मुहूर्त है"- डॉ श्रीपति त्रिपाठी, ज्योतिषाचार्य
ये है होलिका दहन की कहानीः होलिका दहन हिरण्यकश्यप और उसके पुत्र प्रह्लाद की कथा से जुड़ा हुआ है. पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु के भक्त हैं और हिरणकश्यप भगवान विष्णु क नाम लेना भी मुनासिब नहीं समझते थे. जिस कारण से वह प्रह्लाद को मारना चाहते थे. हिरण्यकश्यप की बहन होलीका ने पहलाद को अग्नि में लेकर बैठ गई और भगवान के महिमा से होलिका के शरीर से चादर हटकर भक्त प्रह्लाद के शरीर पर पड़ा, जिस कारण से भक्त प्रह्लाद बच गए और होलिका आग में जलकर भस्म हो गई. होलिका ने तपस्या करके भगवान को खुश करके वरदान मांगी थी जिसको ब्रह्माजी से मिला चादर को आग में ओढ़ कर बैठने पर मे नहीं जलेगी. इसी को लेकर होलिका ने प्रह्लाद को आग में लेकर बैठ गई थी.
बुराई पर अच्छाई की जीत है होलीः कथाओं के अनुसार तो यह भी कहा जाता है कि हिरण्यकश्यप दानव था और उसने भगवान की तपस्या करके वर मांगा था कि ना हम दिन में मरे ना रात में मरे ना घर में मरे ना घर के बाहर मरे. हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद की भक्ति से व्याकुल होकर पुत्र प्रह्लाद को मारने के लिए कोई कसर नही छोड़ा. अंत मे भगवान विष्णु ने अर्धनारी का रूप धारण करके ना उसको दिन में ना रात में ना घर में न बाहर मरने का वरदान मिला था, इसलिए भगवान विष्णु ने संध्या के समय घर के चौखट पर खड़ा होकर मारा था. इसलिए होली बुराई पर अच्छाई की जीत के लिए लो खुशी पूर्वक मनाते है.